Friday 28 July 2017

कांग्रेस पर मंडराता बिखराव का संकट


बिहार में बाजी पलटकर भाजपा ने लालू प्रसा यादव से ज्यादा झटका कांग्रेस को दिया है। महागठबंधन की पिछलग्गू बनने के कारण बिहार में पार्टी घुटनों के बल चलने लायक हो गई थी। सरकार में उसे हिस्सेदारी तो मिल गई लेकिन 20 महीने के भीतर ही उसके अच्छे दिन खत्म हो गये। बिहार में पार्टी की दयनीय स्थिति का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि सरकार गिरने और बनने के बीच के घटनाचक्र में उसकी भूमिका कहीं नजर ही नहीं आई। 2-3 दिन पहले ही नीतिश कुमार ने दिल्ली में राहुल गांधी से 40 मिनिट बात की थी किन्तु कांग्रेस उपाध्यक्ष ने बिहार संकट सुलझाने के लिये कोई ठोस प्रयास किया हो ऐसा कहीं से नहीं लगा। यही वजह है कि पार्टी के विधायकों के टूटने की अटकलें लगने-लगी हैं। बिहार का हल्ला थमा भी नहीं था कि गुजरात से तीन विधायकों के इस्तीफे की खबर आ गई। राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद नेता प्रतिपक्ष शंकरसिंह बाघेला द्वारा कांग्रेस को अलविदा कहने से उत्पन्न संकट और गहराता जा रहा है। सोनिया गांधी के निकटस्थ अहमद पटैल को राज्यसभा चुनाव में हरवाने के लिये भाजपा द्वारा की जा रही आक्रामक व्यूह रचना का मुकाबला करने का कोई भी समुचित प्रयास पार्टी कर रही हो ऐसा नहीं लग रहा। कांग्रेस छोडऩे वाले एक नेता बलवंत सिंह राजपूत को भाजपा ने राज्यसभा उम्मीदवार बनाकर श्री पटैल की जीत में रोड़ा अटकाने का काम और तेज कर दिया। खबर है मतदान होने के पहले तक कुछ और विधायक टूट जायेंगे।  गुजरात में इसी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कारण मुख्यमंत्री पद पर आनंदी बेन पटैल को बिठाया गया था किन्तु पाटीदार आंदोलन से निपटने में असफल रहने के कारण उन्हें हटा दिया गया। विजय रूपाणी को उनकी जगह बिठाने के बाद भी भाजपा आगामी चुनाव जीतने के प्रति सशंकित हो चली थी। जब उसे लगा कि वह अपना किला मजबूत नहीं कर पा रही तब उसने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के घर में सेंध लगाने की रणनीति बनाई जो अब तक तो सफल प्रतीत हो रही है। जिन शंकर सिंह वाघेला के कारण गुजरात में भाजपा टूटी थी उन्हें वापिस खींचकर श्री मोदी और अमित शाह ने ये बता दिया कि जंग जीतने के लिये वे कोई भी कसर नहीं छोडऩे की नीति पर चल रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि कांग्रेस इस हमले का प्रतिकार करना तो दूर रहा उससे बचने का प्रयास तक नहीं कर रही। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता को मजबूत कर भाजपा की तगड़ी घेराबंदी की जा सकती थी किन्तु रामनाथ कोविंद के पक्ष में गैर एनडीए खेमे से हुई क्रॉस वोटिंग ने ये बता दिया कि विपक्ष में एका बनाने की कोई सुनियोजित कोशिश हुई ही नहीं। सोनिया गांधी अस्वस्थतावश उतनी सक्रियता नहीं दिखा पा रहीं और राहुल की रहस्यमय कार्यप्रणाली स्वयं कांग्रेसी नहीं समझ पा रहे। गत दिवस उन्होंने नीतिश कुमार पर धोखेबाजी का आरोप लगाते हुए कहा कि कई महीनों से वे भाजपा के साथ खिचड़ी पका रहे थे लेकिन श्री गांधी ये नहीं बता पाये कि जिस संकट की जानकारी उन्हें पहले से ही हो गई थी उसे टालने के लिये उनकी तरफ से कौन सा प्रयास हुआ। गुजरात में श्री वाघेला सरीखा वरिष्ठ नेता लंबे समय से नाराज चल रहा था परन्तु उन्हें मनाने का भी कोई यत्न नहीं हुआ। कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी इस समय बिना राजा की फौज सरीखी हो चुकी है। मोदी सरकार भले ही तीन साल पूरे कर लेने के बाद भी अपेक्षाओं पर खरी न उतर पाई हो परन्तु जब भी ये लगता है कि जनमत उसके विरुद्ध जा रहा है तब-तब भाजपा कुछ न कुछ ऐसा कर देती है जिसके कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष असहाय नजर आने लगता है। बिहार के बाद गुजरात में भी यदि भाजपा अपनी योजना में सफल हो गई तो ये कांग्रेस के लिए मात्र एक राज्यसभा सीट का नुकसान न होकर विधानसभा चुनाव के पहले ही आधी लड़ाई हार जाने जैसा होगा। ये मानने में कोई बुराई नहीं है कि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को सफल बनाने के जुनून में मोदी-शाह सही गलत सब करने पर आमादा हैं परन्तु कांग्रेस स्वयं जिस तरह बिखराव की तरफ बढ़ रही है उससे उनका काम और आसान हो रहा है। बिहार में हुए तख्ता पलट के बाद सोशल मीडिया पर ये कहने वाले बढ़ गए हैं कि जिस तरह पुत्र प्रेम  मुलायम सिंह और लालू यादव को ले डूबा वही स्थिति राहुल के फेर में कांग्रेस की भी होती जा रही है। पता नहीं कांग्रेस के बाकी शीर्ष नेता दरबारी संस्कृति से निकलकर पार्टी के भले और भविष्य के बारे में कब सोचेंगे। कभी-कभी तो ये 2019 के लिये विपक्ष को एक करने के प्रयास में जुटी कांग्रेस तब तक खुद एक रह पाएगी?

-रवींद्र वाजपेयी

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