Monday 31 May 2021

अस्पतालों में ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों का प्रबंध सर्वोच्च प्राथमिकता



कोरोना की दूसरी लहर के चरम  में  दैनिक संक्रमितों का अधिकतम  आंकड़ा 4.5 लाख से भी ऊपर चला गया था | अस्पतालों में बिस्तरों की कमी  के साथ ही ऑक्सीजन आपूर्ति और वेंटीलेटरों की किल्लत भी देखने मिली जिस  कारण  बड़ी संख्या  में लोग मारे गये  |  उस दौर की याद आज भी दहला देती है | श्मसान में दाह संस्कार करने के लिए परिजनों को घंटों ही नहीं अपितु कई दिनों तक इन्तजार करना पड़ा | निश्चित रूप से वह एक अप्रत्याशित और अभूतपूर्व  संकट था | सरकार सहित निजी क्षेत्र द्वारा दी जाने वाली स्वस्थ्य सेवाएँ बुरी तरह चरमरा गईं | सरकारी अस्पतालों में चूँकि चिकित्सा संबंधी नियमों का पालन करना होता है इसलिए वहां जो भी इंतजाम हुए वे भले देर से हुए हों लेकिन पुख्ता हुए | लेकिन निजी अस्पतालों ने अंधाधुंध कमाई के फेर में बिस्तरों की संख्या तो बढ़ाई लेकिन उस अनुपात में आवश्यक सुविधाएँ नहीं बढ़ीं | कुछ ने तो पार्किंग हेतु बनाये गये तलघर में ही कोरोना वार्ड के अलावा  न्यूनतम जरूरतों का ध्यान रखे बिना ही सघन चिकित्सा वार्ड बना दिए गये | हालाँकि कोरोना संक्रमण के चरमोत्कर्ष में जैसी और जितनी चिकित्सा मिल सकी उसी में लोगों ने काम चलाया | चिकित्सकों और उनके सहयोगी कर्मियों ने इस अवधि में जिस  सेवा भाव का परिचय दिया वह भी मिसाल है | निजी अस्पतालों के मालिकों ने भले ही निर्लज्जता के साथ मुनाफाखोरी की लेकिन सरकारी अस्पतालों में संसाधनों के अभाव में जितना भी हो सका इलाज किया गया | लेकिन इस सबसे हटकर एक बात जो इस दौरान पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि 138 करोड़  की आबादी के हिसाब से हमारे देश में चिकित्सा प्रबंध बहुत ही नगण्य हैं | देश के बहुत बड़े हिस्से में चिकित्सा नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं है | गत दिवस प्रधानमन्त्री ने मन की बात में ये जानकारी दी कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी देखते हुए अस्पतालों में प्रयुक्त होने वाली ऑक्सीजन का  उत्पादन दस गुना बढ़ा | निश्चित रूप से ये संतोष का विषय है | ऑक्सीजन के वैकल्पिक स्रोत के तौर पर कंसंट्रेटर नामक उपकरण भी अस्पतालों के साथ घरों में रखे जा रहे हैं | विदेशों से बड़ी संख्या  में उनका आयात हो रहा है | कोरोना देखभाल केन्द्रों  की शक्ल में साधारण संक्रमण वाले मरीजों के इलाज की भी काफी व्यवस्था सरकार और निजी सेवाभावी संस्थाओं द्वारा की गई है | लेकिन ये सब होते - होते कोरोना की दूसरी लहर ढलान पर आ गई और 1 जून से देश के बड़े हिस्से में तालाबंदी वापिस लेकर व्यापारिक संस्थान और कार्यालय कतिपय बंदिशों के साथ खुलने जा रहे हैं | उद्देश्य व्यापार और उद्योग को गति देकर अर्थव्यवस्था को संबल देना है | लोगों की  आवाजाही के साथ ही  सार्वजनिक परिवहन भी शुरू किये जाने का फैसला किया जा रहा है | हालाँकि अनेक राज्यों और उनके भीतर कई शहरों में संक्रमण ज्यादा होने से  कुछ दिन और तालाबंदी जारी  रखी जावेगी | लेकिन इसके बाद भी कोरोना की उपस्थिति बनी रहने की आशंका है और तीसरी लहर कब आयेगी ये भी पक्के तौर पर कोई नहीं बता पा रहा | कोरोना के टीके लगाने के काम की गति को देखते हुए साल खत्म होते तक भी अगर यह अभियान पूरा हो जावे तो बड़ी बात होगी | ऐसे में अब जो जरूरत समझ आती है वह है देश में कोरोना के संक्रमण की चरम स्थित्ति के समय जितने मरीज अस्पतालों , शिविरों अथवा घरों में इलाजरत थे उससे भी ज्यादा ऑक्जसीन सुविधायुक्त  बिस्तरों का  प्रबन्ध सर्वोच्च प्राथमिकता  के आधार  पर किया जाए | ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि चिकित्सा जगत भी इस बात को लेकर आशंकित है कि कोरोना अथवा इस जैसी दूसरी संक्रामक बीमारी का हमला भविष्य में हो सकता है | ब्रिटेन और वियतनाम से जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार कोरोना से मिलता - जुलता नया संक्रमण देखने मिला है | छोटे देशों में  जनसंख्या कम होने से अस्पताल , चिकित्सक और दवाओं की जरूरत भी कम होती है लेकिन भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश की जरूरत तो अमेरिका और यूरोप के अनेक बड़े देशों को मिलाकर भी ज्यादा है | ऐसे में केंद्र  और राज्य सरकारों को चाहिए कि  वे कोरोना की दोनों लहरों से मिले सबक को भुलाने की बजाय चिकित्सा तंत्र को इतना मजबूत करें जिससे किसी को अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन के लिए भटकना न पड़े | इसके अलावा देश में दवा उत्पादन के क्षेत्र में भी बड़े सुधार की जरूरत है | जिस तरह वैक्सीन बनाने में भारत अग्रणी है वैसे ही दवा उत्पादन के साथ ही चिकित्सा संबंधी उपकरणों के मामले में अधिकतम  आत्मनिर्भरता जरूरी है | अभी तक देखने में आता रहा है कि किसी भी आपदा के जाते ही हम पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं | लेकिन कोरोना ने जिस तरह लाखों ज़िन्दगी छीनने के साथ ही अर्थव्यवस्था को चौपट कर  दिया उसके मद्देनजर आवश्यक है कि भारत चिकित्सा क्षेत्र में एक अग्रणी देश बने | यदि हम ऐसा कर पाए तो आपदा में अवसर तलाशने की बात सही हो जायेगी वरना हम नहीं  सुधरेंगे की परिपाटी जारी रहेगी | और वह  दुर्भाग्यपूर्ण होगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी

Saturday 29 May 2021

शिष्टाचार का पालन कानून नहीं अपितु संस्कार से होता है



ममता बैनर्जी को राजनीति में आये कई दशक बीत चुके हैं | हाल ही में वे तीसरी बार बंगाल की  मुख्यमंत्री बनी हैं  | चुनाव प्रचार के दौरान उनके और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के बीच काफी तनातनी रही  | यहाँ तक कि मुकाबला मोदी बनाम ममता बनकर रह गया था | चुनाव परिणामों ने प्रधानमन्त्री  की  साख को काफी धक्का पहुँचाया जिन्होंने बंगाल में पूरी ताकत झोंक दी थी | हालाँकि भाजपा को  संतोष होगा कि  जिस राज्य में उसका नामलेवा नहीं होता था वहां  वह मुख्य विपक्षी दल बन बैठी | सुश्री  बैनर्जी के लिए ये चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि  लोकसभा के  बाद विधानसभा चुनाव में भी भाजपा , कांग्रेस और वामपंथियों को पीछे छोड़ते हुए उनकी  प्रमुख  प्रतिद्वंदी बनकर उभरी | इसीलिये  उन्होंने अपने स्वभाव अनुसार केंद्र  सरकार से पंगा लेना शुरू कर दिया | चुनाव पूर्व  भाजपा ने भी उनको घेरने के लिए सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत  तृणमूल से   बड़ी संख्या में दलबदल करवाया और टूटकर आये लोगों को उम्मीदवारी भी  दी  | दरअसल  ममता  की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह ये  है कि वे अपनी पार्टी को तो शानदार  सफलता दिलवाने में कामयाब हो गईं किन्तु खुद चुनाव हार गईं |  हुआ यूँ कि  वे अपनी परम्परागत भवानीपुर सीट छोड़कर  नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी की चुनौती स्वीकार करने जा पहुँची जो चनाव के पहले उनका साथ छोड़कर भाजपा में चले गये थे | लेकिन वह दांव गलत साबित हुआ | भाजपा ने भी श्री अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष बनाकर  ममता के जले पर नमक छिड़कने का काम किया  |  चुनाव के बाद तृणमूल के लोगों ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले करने शुरू कर दिए | हालाँकि चुनाव  के पहले भी प्रायोजित हिंसा वे  करते थे लेकिन सरकार बन जाने के बाद अपेक्षा थी कि मुख्यमंत्री परिपक्वता का परिचय देकर सामान्य वातावरण बनाने का प्रयास करेंगीं | लेकिन गत दिवस तूफ़ान से हुई  क्षति का जायजा लेने  आये  प्रधानमन्त्री के स्वागत में मुख्यमंत्री और किसी बड़े अधिकारी की गैर मौजूदगी के बाद श्री मोदी द्वारा बुलाई गयी बैठक में ममता न सिर्फ 30 मिनिट देर से गईं वरन प्रधानमन्त्री को तूफ़ान से हुए नुकसान की  क्षतिपूर्ति हेतु 20 हजार करोड़ की मांग सम्बन्धी फ़ाइल देने  के बाद ये कहते हुए चली गईं कि उनको दूसरी किसी बैठक में जाना था |  बताया जाता है मुख्यमंत्री इस बात से नाराज थीं कि बैठक में  नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु को भी बुलाया गया था | उल्ल्लेखनीय है उक्त बैठक में लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी भी आमंत्रित थे किन्तु दिल्ली में होने की वजह से वे नहीं आये | बंगाल के पहले प्रधानमंत्री  उड़ीसा भी गये  जहाँ मुख्यमंत्री नवीन पटनायक उनके साथ रहे | वहां भी नेता प्रतिपक्ष को बुलाया गया था जो कोरोना संक्रमित होने से नहीं आ सके | जिस भवन में प्रधानमन्त्री की बैठक हो रही थी  उसी में मौजूद रहने के बाद भी ममता  30 मिनिट देर से आईं जबकि प्रधानमन्त्री और राज्यपाल धैर्यपूर्वक उनकी प्रतीक्षा करते रहे |  उन्हें चाहिए था कि वे  राज्य को तूफ़ान से हुए नुकसान का विस्तृत ब्यौरा देते हुए ज्यादा से जयादा राहत  की माँग करतीं | प्रधानमन्त्री को यदि वीडियो के जरिये तबाही के दृश्य  दिखाए जाते तो उससे राज्य को फायदा ही होता | लेकिन मुख्यमंत्री ने  बजाय अवसर का लाभ उठाने के बचकानी हरकत की | भले ही वे इस बात पर खुश हों कि उन्होंने प्रधानमंत्री  और राज्यपाल को आधा घंटे इंतजार करवा दिया किन्तु इससे उनकी शान बढ़ी हो ऐसा नहीं |  प्रधानमन्त्री यदि उनके व्यवहार से नाराज होकर बैठक रद्द कर  लौट जाते तब वे  बंगाल की उपेक्षा को लेकर हल्ला मचा देतीं | वे चाहती तो कोई बहाना खोजकर किसी वरिष्ठ मंत्री को अधिकारियों के साथ भेजकर प्रधानमन्त्री के सामने राज्य की जरूरत का ब्यौरा रखवा सकती थीं | लेकिन वे  मुख्य सचिव को लेकर बैठक में आईं  जो  उनके साथ ही  चले गए | बाद में केंद्र  सरकार ने उनको वापिस दिल्ली आकर रिपोर्ट करने कहा |  उल्लेखनीय है मुख्य सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा के अंतर्गत केंद्र  के अधीन होते हैं | उनका सेवाकाल समाप्त होने के बाद ममता ने उन्हें तीन महीने की सेवा वृद्धि दे दी थी | हो सकता है मुख्यमंत्री उन्हें दिल्ली  भेजने में टांग फंसायें | ये भी सम्भव है कि मुख्य सचिव इस्तीफा दे दें | लेकिन इस घटना ने बंगाल और केंद्र के पहले से खराब चले आ रहे रिश्तों में और कड़वाहट घोल दी है | सुश्री बैनर्जी का स्वभाव देखते हुए किसी को इस आचरण पर आश्चर्य नहीं हुआ किन्तु राजनीति से हटकर इस तरह के मामलों में  शिष्टाचार का उल्लंघन अपरिपक्वता के साथ ही बेहूदगी भी है |  भविष्य में अपने राज्य की किसी जरूरत को लेकर मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के पास  जाएँ और उनका यथोचित सत्कार न हो तो वह  किसी भी दृष्टि से उचित न होगा | चुनाव के बाद प्रधानमन्त्री ने बंगाल के विकास में सहयोग देने की बात भी कही थी | गैर भाजपा शासित अन्य राज्यों और  केंद्र के बीच अनेक मुद्दों पर टकराव होता रहता है लेकिन प्रधानमन्त्री  सरकारी दौरे पर राजकीय अतिथि होते हैं | इसलिए  जो भी हुआ वह अशोभनीय और अवांछित कहा  जाएगा | ममता बैनर्जी के व्यवहार में किसी सुधार की उम्मीद करना तो व्यर्थ है किन्तु यदि वे आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा बनकर नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ी होना चाहती हैं तब उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के अनुरूप अपने को ढालना होगा | गत दिवस उन्होंने  प्रधानमन्त्री के साथ जिस तरह का व्यवहार किया उसके चलते वे बंगाल की नेता भले बनी  रहें लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य पर उनका उभरना संभव नहीं होगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


Friday 28 May 2021

निजी अस्पतालों में इलाज की दरें तय करने नियामक संस्था बने



यदि कोई अनहोनी नहीं हुई तो जून के अंत तक कोरोना की दूसरी लहर का वेग समाप्त होने आ जाएगा | जहां तक बात  तीसरी लहर की है तो उसे रोकना हमारे हाथ में है | और वह आती भी है तो उसका प्रकोप और समयावधि बहुत कम होगी | इसका कारण ये है कि बीते दो महीनों में समूचे देश में जो चिकित्सकीय ढांचा खड़ा किया गया है उसे यदि बरकरार रखा जा सके तो  संक्रामक बीमारी  को प्रारंभिक पायदान पर ही रोकने में हम सक्षम होंगे | हालाँकि इस बारे में ज्यादा आशावाद भी घातक  होगा क्योंकि ब्रिटेन सहित अनेक देशों में कोरोना रूप बदलकर बार - बार लौट  रहा है | भारतीय संदर्भ में देखें तो कोरोना की पहली लहर में लोगों का इलाज आसानी से हो गया था क्योंकि संक्रमण की गंभीरता और गति अपेक्षाकृत कम रही परन्तु दूसरी लहर ने बहुत ही तेजी से जोर पकड़ा  | हालाँकि अधिकतर संक्रमित मरीज  घर में साधारण इलाज से ही स्वस्थ  हो गए लेकिन जिनको अस्पताल और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी उन्हें मुश्किल  हालातों से गुजरना पड़ा | अप्रैल का महीना इस बारे में बहुत ही चिंता और चुनौतियों से भरा रहा क्योंकि अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के अलावा   ऑक्सीजन और वेंटीलेटरों की किल्लत होने से हजारों लोगों की जान चली गई | इसका एक कारण संक्रमण का अप्रत्याशित रूप से तेज हो जाना रहा | गत वर्ष उसका चरमोत्कर्ष आते - आते छह महीने लग गये थे | लेकिन दूसरी लहर की  उछाल इतनी जबरदस्त थी कि देखते - देखते वह रोजाना 4 लाख से भी ऊपर निकल गई |  जिसके कारण पूरे देश में भय का वातावरण बन गया | संक्रमण के अनुपात में ही मौतें भी बढ़ीं | कुछ समय के लिए तो लगा कि समूची व्यवस्था पंगु होकर रह गयी है | लेकिन उस घड़ी में भी लोगों ने हौसला नहीं खोया | बीते कुछ दिनों के आंकड़े  इस बात का संकेत  हैं कि दूसरी लहर अब ढलान पर है और  कुछ दिनों में ही उससे निजात मिलने लगेगी | लेकिन उसके बाद निश्चिन्त होकर बैठ जाना खतरे को दोबारा निमन्त्रण देने जैसा होगा | पहली लहर के बाद जैसी  बेफिक्री देखी गयी थी वह बहुत महंगी पड़ी | सरकार और जनता दोनों अति आत्मविश्वास का शिकार न हुए होते तो दूसरी लहर को आ धमकने का अवसर न मिलता | इसी तरह कोरोना के टीके को लेकर राजनेताओं सहित कतिपय लोगों ने जो भ्रम फैलाया वह भी गैर जिम्मेदाराना था | उसी कारण से उप्र और बिहार के अनेक गाँवों में लोग टीका लगाने तैयार नहीं हैं |  स्वास्थ्य विभाग की टीमों पर हमले तक किये गए | समाजावादी पार्टी के विदेश शिक्षित  अध्यक्ष अखिलेश यादव तो यहाँ तक बोल गए कि ये भाजपा वैक्सीन है जिसे वे नहीं लगवाएंगे | उम्मीद है दूसरी लहर में हुई परेशानियों और जनहानि के बाद नेताओं के साथ ही आम जन के आचरण में दायित्वबोध का समावेश हो सकेगा | ये बात ध्यान रखने वाली है कि कोरोना पार्टी या विचारधारा नहीं  देखता | दूसरी लहर ने अनेक नेताओं तथा विशिष्ट हस्तियों को छीन लिया | इसलिए  ये आवश्यक  है कि पूरा देश बिना मतभेद के कोरोना  सदृश किसी  भी आपदा से निबटने में धैर्य और एकजुटता का परिचय दे | बीते दो महीनों में निजी क्षेत्र की चिकित्सा व्यवस्था  में जो मुनाफाखोरी हुई वह किसी लूट से कम न थी | दवाइयों की कालाबजारी ने भी समाज के एक वर्ग की हैवानियत का पर्दाफाश कर दिया है | सरकार ने अपने स्तर पर उसे रोकने का प्रबंध किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका | इस कटु अनुभव के बाद भविष्य के लिए इन अस्पतालों में  इलाज की दरों का नियमन किया जाना निहायत आवशयक है | चिकित्सा चाहे सरकार करे या निजी क्षेत्र के अस्पताल या डिस्पेंसरी खोलकर बैठे चिकित्सक , लेकिन उसकी आड़ में जनता की जेब काटने जैसी नीचता पर विराम लगना ही  चाहिए | यदि इसके लिए कोई नियामक संस्था की जरूरत पड़े तो वह भी तत्काल गठित की जावे  |  दवा निर्माताओं को भी हालातों का लाभ उठाकर  लूटने की छूट नहीं दी जा सकती | सरकार ने निर्देश दिए थे कि हर अस्पताल में जेनेरिक दवाओं की दूकान होनी  चाहिये लेकिन उसको रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया | यही वजह रही कि दवा व्यवसायियों और निजी अस्पतालों ने बीते दो महीने में बेशुमार  कमाई की  | आगे ऐसा न हो इसके लिए सरकार को कड़ाई से पेश आना होगा | जनता का भी ये फर्ज है कि वह कोरोना अनुशासन का ईमानदारी से पालन करे क्योंकि लापरवाही उसकी ज़िन्दगी के लिए ही खतरा बन जाती है | कुल मिलाकर बीते एक साल ने जो सिखाया है   यदि सरकार और जनता उससे सबक लें   तो कोई कारण नहीं तीसरी लहर अथवा भेस बदलकर आने वाले संक्रमण का सामना हम न कर पाएं  | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


Thursday 27 May 2021

श्रीलंका का चीन के जाल में फंसना भारत के लिए चिंता का बड़ा कारण



श्रीलंका वैसे तो एक संप्रभुता संपन्न देश है इसलिए वह अपने फैसले करने के  लिए स्वतन्त्र है | ताजा समाचार के अनुसार प्रधानमंत्री   महिंद्रा   राजपक्षे की  सरकार ने राजधानी कोलम्बो के बंदरगाह को चीन के हवाले करने का फैसला किया है जो वहां 269 हेक्टेयर में  एक पोर्ट सिटी बनाएगा जिसे सिंगापुर और हांगकांग  की तरह एक व्यावसायिक केंद्र बनाने का सपना श्रीलंका  सरकार देख रही है | उसके अनुसार कोलम्बो बन्दरगाह  और पोर्ट सिटी में चीन की सहायता से जिस अधोसंरचना का विकास होगा उससे इस टापू  नुमा देश में विदेशी निवेश के साथ ही पर्यटन में खासी वृध्दि होगी | आगामी 5 वर्षों में  2 लाख से ज्यादा  नए रोजगार भी उत्पन्न होंगे | भारत  के  लिए इस खबर का कोई महत्व न होता लेकिन दो बातों से ये हमारे लिए चिंता का कारण है  | पहला तो  ये परियोजना चीन द्वारा विकसित की जायेगी और दूसरी ये कि कोलम्बो बंदरगाह कन्याकुमारी से मात्र 290 किमी दूर है | इसे लेकर भी फ़िक्र न होती किन्तु चीन चूँकि भारत के प्रति खुलकर शत्रुता का भाव रखता है और श्रीलंका चाहे कितना भी आश्वस्त करे लेकिन आने वाले समय में वह  यहाँ अपना सैन्य जमावड़ा करने से बाज नहीं आयेगा | इसके पहले भी श्रीलंका भारत के विरोध को नजरअंदाज करते हुए हम्बनटोटा बन्दरगाह 99 साल की लीज पर चीन को सौंप चुका था | कोलंबो बंदरगाह और पोर्ट सिटी को लेकर भी ऐसा ही अनुबंध किये जाने की खबर है | इस बारे में सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि राजपक्षे सरकार ने सर्वोच्च  न्यायालय के निर्देश  की भी बड़ी ही चालाकी से अवहेलना कर  डाली  जहां  उक्त फैसले के विरुद्द्ध दो दर्जन याचिकाएं विचाराधीन हैं जिन पर न्यायालय ने सरकार से कह रखा था कि विपक्ष को विश्वास में लिए बिना कोई फैसला न करे | लेकिन राजपक्षे सरकार ने गत 24 मई को संसद में बहुमत के बल पर फैस्ला करने के बाद आनन - फानन में चीन के साथ करार करने का कदम उठा लिया | विपक्ष का कहना है कि चीन से आँख मूंदकर लिया जा रहा निवेश देश को उसका आर्थिक उपनिवेश बनाने का कारण बनेगा | स्मरणीय है श्रीलंका आर्थिक तौर पर काफी पिछड़ा माना जाता है | वहां से चाय और मसालों के अलावा और कुछ निर्यात नहीं होता | दोपहिया वाहन , ऑटो और छोटी कारें तक भारत से जाती हैं | अंतर्राष्ट्रीय अनुदान के बल पर उसका काम चलता है | चीन ने  इस कमजोर नस को पकड़ लिया | कुछ साल पहले तक श्रीलंका में तमिल उग्रवाद के कारण गृह युद्ध की स्थिति रही | राजपक्षे के पिछले कार्यकाल में लिट्टे नामक तमिल उग्रवादी संगठन को समूल नष्ट कर दिया गया | उसे इस बात पर गुस्सा है कि लिट्टे को भारत ने ही खड़ा किया था तथा तमिलनाडु की द्रमुक नामक पार्टी तमिल राष्ट्र के लिए लिट्टे को प्रश्रय देती थी | पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की हत्या के पीछे भी यही प्रमुख कारण बना | उसी अवधारणा के वशीभूत श्रीलंका विशेष रूप से राजपक्षे चीन की तरफ झुकते हुए चीनी पूंजी के लिए रास्ता साफ़ करते गए | लिट्टे के खात्मे के बाद इस देश में विदेशी पर्यटकों की संख्या बढने लगी है तथा अनेक देश यहाँ निवेश के इच्छुक बताये जाते हैं किन्तु चीन ने जिस तेजी से  अपना शिकंजा कसा उससे सब चौकन्ने हैं | वैसे भी श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है | पश्चिम एशिया और यूरोप से दक्षिण एशिया और पेसिफिक क्षेत्र में   आने वाले जलपोतों के लिए वह एक बेहतरीन विश्राम स्थल है |  साथ ही वह अफ्रीका के भी निकट है | चीन वैसे भी दक्षिण चीन के समुद्र के साथ ही हिंद माहासागर में भी  दबदबा बढ़ाना चाह रहा है किन्तु वियतनाम , थाईलैंड , मलेशिया , दक्षिण कोरिया आदि के विरोध के साथ भारत , जापान और आस्ट्रेलिया की मजबूत मोर्चेबंदी ने उसके मंसूबे पूरे नहीं होने दिए | कोरोना के कारण अमेरिका भी उससे बहुत नाराज है | ऐसे में चीन द्वारा  कोलम्बो बंदरगाह को हथियाकर पोर्ट सिटी के विकास के अधिकार हासिल करने से हिन्द महासागर में तनाव का बीजारोपण हो रहा है  | श्रीलंका को आज भले ही सब हरा - हरा दिख रहा है लेकिन वह जिस जाल में फंसता जा रहा है उसकी कल्पना तक उसे नहीं है | ये कहना भी गलत न होगा कि राजपक्षे भारत के प्रति  खुन्नस  के चलते अपने देश को ड्रेगन के जबड़े में धकेलने की ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं | श्रीलंका में राष्ट्रपति पद पर भी  प्रधानमन्त्री राजपक्षे के छोटे भाई ही आसीन हैं | इस वजह से उनकी सरकार को राजनीतिक तौर पर  खतरा नहीं है | इसे भारतीय विदेश नीति की असफलता भी कहा जा सकता है क्योंकि  इस निकटस्थ पड़ोसी से जहां भारत से गये  बौद्ध धर्म का बोलबाला है और सांस्कृतिक निकटता के अलावा दूसरी सबसे बड़ी आबादी तमिल भाषियों की होने के बाद भी , आपसी रिश्तों में कभी विश्वास नहीं रह सका | हालाँकि भारत ने कभी उसको दबाने की कोशिश नहीं की किन्तु तमिल उग्रवाद ने  सिंहली नेतृत्व के मन में जो भारत विरोध भर दिया वह  निकलने का नाम नहीं ले रहा | कोलम्बो बंदरगाह को चीन के हवाले करने का राजपक्षे सरकार का फैसला यदि अमल में आ गया तब वह  उनके  देश के लिए तो खतरे की  घंटी होगा ही लेकिन भारत के व्यापारिक और सामरिक हितों को भी उससे नुकसान होगा | सबसे बड़ी बात हिन्द महासागर भी अंतर्राष्ट्रीय शक्ति प्रतिस्पर्धा  का अड्डा बन सकता है क्योंकि अमेरिका भी इस इलाके में  अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा |

- रवीन्द्र वाजपेयी


Wednesday 26 May 2021

क्यों न हम भी अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म विकसित करें



सोशल मीडिया के  विभिन्न प्लेटफार्म भारत में जितने प्रचलित हैं वह कुछ वर्ष पहले तक कल्पनातीत था | देखते - देखते फेसबुक , व्हाट्स एप , ट्विटर और इन्स्टाग्राम जैसे इन्टरनेट माध्यम आपसी संवाद , विचार सम्प्रेषण , सूचना के प्रसारण , व्यवसायिक नेटवर्किंग के साथ ही राजनीतिक बहस के मंच बन गए | क्या नेता और क्या अभिनेता सभी इनका उपयोग कर रहे हैं | किसके  कितने आभासी मित्र और समर्थक ( फालोअर ) हैं  इससे उसकी लोकप्रियता का आकलन होने लगा | यद्यपि अनेक पेशेवर संस्थाएं पैसे लेकर  रातों - रात इस  संख्या में अकल्पनीय वृद्धि करवा देती हैं | उक्त माध्यमों ने एक तरह से भारतीय समाज को अपने मोहपाश में बांध लिया है | सोशल मीडिया से मनोरंजन भी होता है | इसीलिये न केवल किशोर और युवा अपितु वरिष्ठ नागरिकों के अलावा कामकाजी ही  नहीं वरन घरेलू  महिलाएं भी खुलकर इन माध्यमों का उपयोग करती हैं | इनकी कमाई का स्रोत विज्ञापन तो हैं ही लेकिन उससे भी बढ़कर  उनसे जुड़े करोड़ों लोगों की व्यक्तिगत जानकारी ( डेटा ) विभिन्न कंपनियों को उपलब्ध करवाकर इन्हें मोटी कमाई होती है | वैश्वीकरण की जिस  अवधारणा ने नब्बे के दशक में जोर पकड़ा उसको सबसे ज्यादा विस्तार यदि किसी ने दिया तो वह है इंटरनेट के जरिये चलन में आये सोशल मीडिया के उक्त प्लेटफार्मों ने | आज पूरी दुनिया एक वैश्विक गाँव बनकर रह गई तो उसके पीछे फेसबुक , व्हाट्स एप और ट्विटर जैसे माध्यम प्रमुख रूप से हैं | भारत की विशाल आबादी इन माध्यमों के लिये दुधारू गाय साबित हुई | उल्लेखनीय है चीन ने इन पर रोक लगा रखी है और उसके अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म हैं | इसकी वजह वह अपने लोगों को न तो अभिव्यक्ति की आजादी देना चाहता है और न ही उनको अन्य देशों के लोगों से उन्मुक्त संवाद की छूट |  भारत चूँकि  लोकतान्त्रिक देश है इसलिए उसने  अपने लोगों पर चीन जैसी बंदिश नहीं लगाई | लेकिन बीते कुछ समय से उक्त माध्यमों द्वारा ऐसी शर्तें थोपी जा रही हैं जिससे उनसे जुड़े लोगों की निजता का उल्लंघन होने के साथ ही देश के हितों पर भी विपरीत असर पड़ने की आशंका उत्पन्न  हो गयी | ट्विटर पर विदेशी हस्तियों द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के साथ ही दुष्प्रचार करने पर सरकार की आपत्तियों को अनदेखा करने की हिमाकत भी देखी गई | आपत्तिजनक सामग्री हटाने में जिस तरह की ना - नुकुर की जाने लगी उससे इन माध्यमों के खतरनाक इरादे साफ़ हो गए | जिसके बाद भारत सरकार ने कुछ नियम और शर्तें इनके सामने रखकर उनका पालन करने कहा | आज से ये लागू हो गये हैं | जो जानकारी आई उसके अनुसार फेसबुक ने तो उनके पालन की इच्छा व्यक्त करते हुए कुछ समय माँगा है लेकिन बाकी की तरफ से संवादहीनता बनी हुए है | सरकार का कहना है कि हमारे देश में यदि उक्त माध्यमों ने अपने दफ्तर आदि खोल रखे हैं तब उन्हें यहाँ के कायदे - कानून भी मानने पड़ेंगे | ये मुद्दा सुलझेगा या और उलझेगा ये जल्द ही साफ़ हो जाएगा लेकिन भारत सरकार ने समय रहते उचित कदम उठा लिए | व्यवसायिक हितों के मद्देनजर उक्त सभी प्लेटफार्म भारत जैसे देश में करोड़ों उपयोगकर्ताओं को गंवाने की हिम्मत नहीं दिखा  सकेंगे | इतिहास गवाह है कि विदेशियों को एक सीमा  से ज्यादा दी गयी छूट देश के  लिये घातक साबित हुई है | सोशल मीडिया के जरिये अनेक देशों में विदेशी दखल बढ़ने से आन्तरिक अशांति बढ़ी | ये देखते हुए भारत सरकार ने जो कदम उठाये वे सही हैं | सोशल मीडिया के जरिये  संपर्क और संवाद का एक नया युग तो प्रारम्भ हुआ लेकिन उसके कारण किसी  भी स्तर पर यदि देश हित पर आंच आये और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  का स्थान स्वछंदता ले ले तो वह स्वीकार्य नहीं होगी | भले ही उक्त सभी  माध्यमों का संचालन अमेरिका में बैठी कंपनियों  के हाथ में है लेकिन वे हमारे क़ानून और व्यवस्था को ठेंगा दिखाएँ तो फिर उनको बर्दाश्त करना अनुचित होगा | रही बात नफे और नुकसान की तो फेसबुक , व्हाट्स एप , ट्विटर और इन्स्टाग्राम भारत के करोड़ों उपयोगकर्ताओं को गंवाने का जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं हैं | बेहतर हो हम भी अपने समानांतर  सोशल मीडिया प्लेटफार्म तैयार करें | अन्तरिक्ष तकनीक और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत के युवा इन्जीनियर और तकनीशियनों ने जो उपलब्धियां हासिल कीं उन्हें देखते हुए हम ऐसा  कर सकें तो उसे दुनिया भर में रहने वाले अप्रवासी भारतवंशियों से भी अच्छा समर्थन मिलेगा | वैश्वीकरण के इस दौर में भारतीय अब वैश्विक कौम हो गये हैं | दूसरों से बड़ी अपनी लकीर खींचने का सही समय आ गया है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

Tuesday 25 May 2021

कोरोना के टीके को लेकर भय और गलतफहमी दूर करना जरूरी



कोरोना के टीके को लेकर विरोधाभासी खबरें मिल रही हैं | एक तरफ तो बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो टीका न लग पाने के कारण नाराज हैं | वहीं  दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो टीका लगाने वाले दल को देखकर ही भाग खड़े होते हैं | उप्र में  बाराबंकी जिले  के एक गाँव के लोग टीकाकरण के लिए ग्राम में आये दल  से बचने के लिए सरयू नदी में कूद गये | अनेक गाँवों के अलावा शहरों की बस्तियों में टीका लगाने गये दल के सदस्यों  पर घातक  हमला किये जाने के समाचार भी निरंतर  आ रहे हैं | इन हमलों में अनेक स्वास्थ्यकर्मी तथा सरकारी अधिकारी घायल होने के बाद  जान बचाकर भागे |  टीकाकरण दल के वाहनों पर पथराव भी किया जा रहा है | ये निश्चित रूप से बहुत ही  गैर  जिम्मेदाराना आचरण है | कोरोना की दूसरी लहर के लिए जनता के एक बड़े वर्ग की लापरवाही भी  काफी हद तक उत्तरदायी है | तमाम समझाइश के बावजूद मास्क जैसी छोटी सी सावधानी तक की  उपेक्षा किये जाने के गंभीर परिणाम निकले और पहली लहर से अप्रभावित रहे  ग्रामीण इलाके भी इस बार चपेट में आ गये जहां बड़ी संख्या में मौतें हुईं | ये संतोष का विषय है कि बीते कुछ दिनों से कोरोना की दूसरी लहर के कमजोर पड़ने के संकेत मिल रहे हैं | नए संक्रमितों की दैनिक  संख्या दो लाख से भी नीचे आने के साथ ही स्वस्थ हो रहे मरीज काफी ज्यादा होने से अस्पतालों में बिस्तरों  की मारामारी खत्म हो गयी है | ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की मांग में भी खासी कमी देखने मिल रही है | वैज्ञानिकों ने 15 मई से कोरोना की दूसरी लहर के कमजोर पड़ने का जो अनुमान लगाया  था वह सही  प्रतीत  हो रहा है | ये भी अच्छा है कि दो लहरों का सामना करने के बाद हुए अनुभव के आधार पर संभावित तीसरी लहर का सामना करने के लिए चिकित्सा प्रबन्ध अभी से पुख्ता करने पर ध्यान दिया जा रहा है | लेकिन ये बात पूरे तौर पर साबित हो चुकी है कि टीकाकरण ही कोरोना से  बचाव का कारगर तरीका है | भले ही दोनों टीके लगने के बाद भी अनेक लोगों को संक्रमित होना पड़ा लेकिन शोधपरक अध्ययनों से ये बात साबित हो चुकी है कि जिस व्यक्ति को एक डोज भी लग चुका है उसके शरीर में इस बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगती है | ऐसे में  ये जरूरी है कि टीके को लेकर जिन लोगों में किसी भी प्रकार् का डर अथवा गलतफहमी है उनको समझाने के लिए अभियान चलाया जावे और इस कार्य को गाँव के पंच , स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य , विधायक और सांसद करें | चूँकि इन सबका जनता से सतत सम्पर्क रहता है इसलिए इनकी बात लोगों के गले उतर सकती है | इस बारे में आश्चर्य की बात ये है कि अशिक्षित अथवा अल्पशिक्षित ही नहीं अपितु शहरों में रहने वाले पढ़े - लिखे लोगों में से भी अनेक ऐसे हैं जो  टीकाकरण से परहेज करने के साथ ही दूसरों को भी  बरगलाते हैं | इसी के साथ ही ये खबर भी चिन्ताजनक है कि देश में टीकों की कमी के बावजूद कई स्थानों पर टीके खराब हो गये | इसकी वजह पंजीयन करवाने के बाद भी सम्बन्धित व्यक्ति का टीका केंद्र पर नहीं पहुंचना बताया जाता है | लेकिन कुछ जगहों पर तो मानवीय लापरवाही के कारण लाखों टीके बर्बाद हो गये जो निश्चित रूप से अक्षम्य है | कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम होने के बाद भी सरकार के साथ स्वयंसेवी  सामाजिक संस्थाओं एवं राजनीतिक दलों का फर्ज है कि वे टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक बनाकर उसकी उपयोगिता की प्रति विश्वास जगाएं | तीसरी लहर आने तक यदि देश की आधी आबादी को भी टीका लगाया जा सका तो जैसा कहा जा रहा है कि हर्ड इम्युनटी के रूप में सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से  भविष्य में आने वाली किसी भी लहर का प्रभाव ज्यादा नहीं होगा | इस बारे में रोचक तथ्य ये है कि सत्ता के उच्च पदों पर विराजमान नेताओं के अपने गाँव या निर्वाचन क्षेत्र में भी टीके लगवाने के प्रति लोगों में हिचक है | मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह ग्राम में एक टीका लगवाने के बाद  दूसरे डोज  के प्रति लोगों में उत्साह नहीं है | वीआईपी कहे जाने वाले और भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां टीकाकरण अभियान के प्रति लोगों में भय व्याप्त है |आने वाले कुछ महीने इस बारे में काफी महत्वपूर्ण रहेंगे | देश में टीके का उत्पादन बढाये जाने  के  साथ  ही उसके आयात की व्यवस्था भी की जा रही है | ऐसे में टीकाकरण जैसे अभियान के प्रति जनता के मन में ये भरोसा बिठाना सबसे आवशयक है कि जब तक कोरोना को रोकने की प्रामाणिक दवा नहीं आ जाती  तब तक टीका ही उससे बचाव का आसान और प्रमाणित उपाय है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

Monday 24 May 2021

हीरे तो नकली भी बन सकते हैं लेकिन .....?



 इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा की मौत के कुछ दिन बाद ही मप्र के छतरपुर जिले में स्थित बक्स्वाहा के जंगल में लगे 2.15 लाख वृक्ष काटे जाने को लेकर देश भर के लोगों में गुस्सा है | पड़ोसी जिले पन्ना की धरती में हीरों का जो भण्डार है उससे कई गुना ज्यादा 3.42 करोड़ कैरेट के  हीरे बक्स्वाहा की धरती में होने की जानकारी बीते अनेक वर्षों तक करवाये गए भूगर्भीय सर्वेक्षण में मिलने के बाद उक्त स्थल में उत्खनन का ठेका सरकार ने आगामी पचास सालों  के लिए आदित्य बिरला उद्योग समूह को दे दिया | इस काम के  लिए वह उस खूबसूरत वन को उजाड़ने का अधिकारी हो गया | बक्स्वाहा के जो चित्र इन दिनों प्रसारित हो रहे हैं उन्हें देखकर उस दृश्य  की कल्पना भी दिल दहला देती है जिसमें हरे भरे इस जंगल की जगह मिट्टी के ढेर और धरती का सीना चीर रही विशालकाय मशीनों का शोर होगा | 2.15 लाख पेड़ लगाने और उनके बड़े होने में दशकों लग जाते हैं लेकिन  जो जंगल प्राकृतिक होते हैं उनकी संरचना  कुछ अलग तरह की होने से आँखों और मन दोनों को सुकून देती है | वृक्षों की विविधता और उनसे मानव जाति को  मिलने वाले आनंद के अलावा पर्यावरण संरक्षण में भी ऐसे जंगल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | बक्सवाहा के गर्भ से निकलने वाले हीरे अरबों - खरबों रु. के होंगे | आदित्य बिरला समूह के साथ ही सरकार को भी उससे कमाई होगी | आसपास के लोगों को मजदूरी भी मिल जायेगी | बड़ी कम्पनी के डेरा ज़माने से हो सकता है नजदीकी बाजार को भी उससे कमाई होने लगे | लेकिन इस सबसे अलग सवाल ये है कि जिस ऑक्सीजन के अभाव में हाल ही में हजारों लोग जान गँवा बैठे उसके प्रकृति प्रदत्त भंडार को नष्ट कर ऐसे चामकीले पत्थर खोजने का काम होगा जो केवल और केवल धनकुबेरों की शान बढ़ाते हैं लेकिन उससे  लाखों लोगों को मिलने वाली शुद्ध ऑक्सीजन सदा के लिए छिन जायेगी | हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में हजारों लोग केवल इसलिए जान से हाथ धो बैठे क्योंकि उन्हें अस्पताल  में ऑक्सीजन नहीं मिल सकी | यद्यपि अस्पतालों और औद्योगिक इकाइयों में  प्रयुक्त होने वाली ऑक्सीजन प्राकृतिक न होकर कृत्रिम तौर पर बनाई जाती है लेकिन मानव जीवन के लिए वृक्षों से प्राप्त होने वाली शुद्ध ऑक्सीजन प्राणवायु कहलाती है और पूरी तरह निःशुल्क है | इसका महत्व दिल्ली जैसे शहर में बसने वालों से पूछें तो सही स्थिति मालूम हो जायेगी जिनके फेफड़े शुद्ध ऑक्सीजन के लिए तरसते हैं | ये सब देखते हुए बक्स्वाहा के जंगल को नेस्तनाबूत करने की कोई भी परियोजना चाहे उससे कितना भी आर्थिक लाभ सरकार को हो , ततकाल प्रभाव से रद्द होनी चाहिए | तर्क दिया जा सकता है कि 3.42 करोड़ कैरेट हीरों के भण्डार से देश को बड़ा लाभ होगा क्योंकि भारत हीरों का बड़ा निर्यातक है । लेकिन उसके लिए 2.15 लाख विकसित वृक्षों की कटाई  क्षेत्रीय जनों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने के साथ ही किसी पाप से कम नहीं  है | ऐसे में सरकार को चाहिए वह जनभावनाओं के आहत होने के अलावा   उस इलाके के पर्यावरण को होने वाली क्षति को ध्यान  में रखते हुए उक्त परियोजना को तत्काल स्थगित करे | रही बात आर्थिक  नुकसान की तो वह उस क्षति से कम ही होगा जो 2.15 लाख  वृक्षों को काटने से होगी | ध्यान रखने वाली बात ये है कि धरती से निकला हीरा केवल एक बार ही आय का जारिया बनेगा लेकिन एक वृक्ष 24 घंटे जो ऑक्सीजन मानव जाति की प्राण रक्षा के लिए छोड़ते हैं उसका मूल्यांकन रुपयों में नहीं किया जा सकता | इस बारे में उल्लेखनीय है कि विकसित देशों में ऑक्सीजन पार्लर खुल गये हैं जहाँ पैसा देकर कुछ देर कृत्रिम ऑक्सीजन ली जाती है | हमारे देश में पूर्वजों द्वारा लगाए गये वृक्षों के अलावा जो वन क्षेत्र हैं उनसे  शुद्ध ऑक्सीजन का प्रवाह निरंतर बना रहा लेकिन कथित विकास रूपी वासना के वशीभूत  वृक्षों की जो अंधाधुंध कटाई हुई  उसने पर्यावरण असंतुलन पैदा कर दिया जिसका प्रमाण उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में लगातार आने वाली प्राकृतिक विपदाओं से मिलता रहता है | बक्स्वाहा जिस बुदेलखंड में है वहां जल की भारी कमी है | उसके पीछे भी वनों की अंधाधुन्ध कटाई ही है ।वरना एक ज़माने में समूचा इलाका घने जंगलों से भरा था | बेहतर हो बक्स्वाहा से हीरे निकालने की  योजना पर तुरंत रोक लगा दी जाए | यदि इस दिशा में हेकड़ी दिखाई गयी तो बड़े जनांदोलन की आशंका से इंकार नहीं  किया जा सकता | ये भी संभव है कि न्यायालय ही इस पर रोक लगा दे जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति सदैव चिंतित रहता है | सरकार में बैठे महानुभावों को भी कोरोना की  दूसरी लहर ने इतना तो तो सिखा ही दिया होगा कि प्रकृति और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का दुष्परिणाम क्या होता है ? गर्मियों में झुलसने वाले बुंदेलखंड से शीतल हवा के कुदरती स्रोत छीनना बड़ा  अपराध होगा जिसकी कितनी  सजा प्रकृति देगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



Saturday 22 May 2021

आंकड़ों से भ्रमित न होकर आने वाली आफत के बारे में सतर्क रहें



 कोरोना की दूसरी लहर ढलान पर आ रही प्रतीत होने लगी है | दैनिक आंकड़ों में नए संक्रमितों से ज्यादा मरीजों के स्वस्थ होने का आंकड़ा राहत भरा है | आज जो जानकारी आई उसके अनुसार ये अंतर एक लाख से भी ज्यादा का है | इससे उस अनुमान की पुष्टि भी होती है जिसके अनुसार 15 मई को दूसरी लहर का चरम आना था | बीते एक सप्ताह से नए संक्रमण के आंकड़ों में  गिरावट पर बहुत  लोग इस आधार पर संदेह भी जता रहे हैं कि सरकार अपनी विफलता छिपाने और चौतरफा हो रही आलोचना से बचने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी कर रही है |  लेकिन इसी के साथ ये तथ्य भी संज्ञान योग्य है कि अस्पतालों में खाली बिस्तरों की संख्या बढ़ने के अलावा ऑक्सीजन को लेकर जो मारामारी मची थी वह भी नहीं दिखाई दे रही | वैसे  भी इस तरह की संक्रामक बीमारी या यूँ कहें  कि महामारी का प्रकोप  एक सीमा के बाद कम होता जाता है | इसका कारण ज्यादातार लोगों में संक्रमण होने से बाकी लोगों में भी उस बीमारी के प्रति रोग  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है | देश में प्रतिदिन लाखों लोगों को कोरोना का टीका लगने से भी संक्रमण को नियंत्रित्त करने  में मदद मिली है | लेकिन सबसे ज्यादा लाभ हुआ कोरोना कर्फ्यू अथवा लॉक डाउन से , जिसने कोरोना की श्रृंखला को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया | स्मरणीय है गत वर्ष जब प्रधानमन्त्री ने पूरे देश में लॉक डाउन लागू किया था तब राहुल गाँधी सहित अनेक विपक्षी नेताओं ने  उसे जल्दबाजी में उठाया कदम बताते हुए तीखी आलोचना की थी | लेकिन इस वर्ष केंद्र  ने लॉक डाउन संबंधी फैसला राज्यों पर छोड़ दिया | जिन राज्यों ने सही समय पर इसे लागू किया वे कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से काफ़ी हद तक सुरक्षित रहे   | इस बार कोरोना ने ग्रामीण भारत को भी अपनी चपेट में ले लिया | वहां जो स्वास्थ्य सेवाएँ हैं भी वे दुर्भाग्य से बीमार हैं | यहाँ तक कि  कस्बों , तहसील और छोटे जिलों तक में ऐसी चिकित्सा सुविधा नहीं है जो किसी महामारी के समय लोगों को समुचित इलाज दे सके | ये देखते हुए दूसरी लहर की वापिसी को लेकर आश्वस्त होने की बजाय कहीं ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है | ये भी गौर तलब है कि गत वर्ष जून के पहले सप्ताह से ज्योंही लॉक डाउन में ढील दी गई त्योंही संक्रमण तेजी से बढ़ा था | इसी तरह दीपावली के बाद से जब ये लगने लगा कि कोरोना वापिस चला तब पूरा देश  बेफिक्र हो गया और मास्क जैसी प्राथमिक सावधानी के प्रति भी अव्वल दर्जे का उपेक्षा भाव दिखाए जाने की प्रवृत्ति खुलकर सामने आने लगी | कुछ गिने चुने जो लोग कोरोना से बचाव करते  दिखते उनका उपहास भी देखने मिलता था | ग्रामीण क्षेत्रों में तो ज्यादातर लोग इस अति आत्मविश्वास में जी रहे थे कि ये बीमारी शहरी लोगों तक सीमित है और  गाँवों में रहने वालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता चूँकि ज्यादा है इसलिए वे इसके प्रकोप बचे रहेंगे | संयोग से पहली लहर में कोरोना ने ग्रामीण इलाकों तक पैर नहीं पसारे किन्तु इस बार जब वह लौटा तब उसकी गति और संक्रामक क्षमता पूर्वापेक्षा कहीं अधिक होने से क्या गाँव और क्या शहर सभी जगह उसका हमला  एक जैसा हुआ और यही वजह रही कि पिछले साल हुए अनुभवों के बावजूद चिकित्सा व्यवस्थाएं दम तोड़ बैठीं | ये सब देखते हुए  तीसरी लहर की आशंका देखते हुए पूरी तरह सावधानी बरतने की जरूरत है |  ये खुशफहमी भी मन से  निकालनी होगी कि जिनको कोरोना हो चुका है या जिन्होंने दोनों टीके लगवा लिये हैं वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं | पूरे देश को कोरोना से बचने के तौर - तरीके बताने वाले प्रख्यात चिकित्सक डा. के.के अग्रवाल दोनों टीके लगवाने के बावजूद कोरोना की चपेट में आकर चल बसे | इस तरह के अनेक उदाहरण हैं | इसलिए सरकार द्वारा प्रसारित किये जाने वाले आंकड़ों से खुश या निराश होने की बजाय खुद को कोरोना अनुशासन में ढालने के साथ ही अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना हर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज़ है | देखने वाली बात ये भी है कि  दूसरी लहर ने बड़ी संख्या में युवाओं को मौत के मुंह में भेज दिया | और अब जैसी कि आशंका व्यक्त की जा रही है तीसरी लहर बच्चों को निशाना बना सकती है | इसलिए आग लगने के बाद कुआ खोदने की सोचने की बजाय सावधानी को अपनी जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा  बना लेना ही बुद्धिमत्ता है | जहां तक बात टीकाकरण की है तो भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए 50 फीसदी आबादी को टीका लगने में कई महीने लगेंगे और तब तक तीसरी लहर आ जाए तो अचरज नहीं होगा | ऐसे में बेहतर है हम सीमा पर तैनात फौजी जवान की तरह हर समय कोरोना रूपी शत्रु के प्रति  चौकस रहें | भले ही दूसरी लहर के दौरान देश में कोविड सेंटर और ऑक्सीजन सुविधा वाले बिस्तरों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई हो लेकिन बीमारी से बचाव करना ही बुद्धिमता होती है और ये समय उसी की अपेक्षा करता है जिसे पूरा  करना हम सभी का कर्तव्य है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

Friday 21 May 2021

कमलनाथ जी ये सदाचार है तो कदाचार क्या होता है




 मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ देश के अनुभवी राजनेताओं में गिने जाते हैं | केन्द्रीय मंत्री के साथ ही  कांग्रेस के महासचिव भी रहे हैं | वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष  हैं | गत वर्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद श्री नाथ प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में चुनौती विहीन हो गये हैं | उनके समकक्ष कहे जा रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अब केवल बयानों तक सीमित रह गये हैं और तेजी से उनका आभामंडल सिमटकर श्री नाथ के इर्द - गिर्द नजर आने लगा है | चूँकि श्री नाथ की ताजपोशी में श्री सिंह की ही मुख्य भूमिका थी इसलिए वे उनका विरोध करने की स्थिति में भी नहीं  रह गये हैं | इन सब कारणों से श्री नाथ प्रदेश में  कांग्रेस के एकमात्र चेहरे हैं | संगठन पूरी तरह उनकी मुट्ठी में है | उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की कोशिशें अब तक नाकाम ही रही | हाल ही  में संपन्न दमोह विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस की बड़े अंतर से जीत ने उनका कद पार्टी  हाईकमान की निगाह में और बढ़ा दिया है | शिवराज सरकार के विरुद्ध वे काफी मुखर भी हैं और उसे घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते | कोरोना ने उन्हें इस बारे में अनेक अवसर प्रदान किये | विपक्षी दल के नेता के तौर पर उनकी मैदानी सक्रियता भी संतोषजनक है जिसका लाभ कांग्रेस पार्टी को मिल सकता है | लेकिन गत दिवस उन्होंने   एक बयान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ये कहकर धमकाया कि उनके पास हनीट्रैप कांड की मूल पेन ड्राइव है | उल्लेखनीय है हनीट्रैप काण्ड ने कुछ साल पहले प्रदेश के राजनीति के साथ ही प्रशासनिक अमले में हडकंप मचा दिया था | कुछ युवतियों के साथ अनेक  राजनेता ,  आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के रंगरेलियां मनाते हुए वीडियो जप्त हो गए | जाँच दल गठित हुआ और वे  युवतियां गिरफ्तार कर ली  गईं | ये बात सामने  आ गई कि अपने सौन्दर्य के जाल में नेताओं और अधिकारियों को फंसाकर उक्त युवतियां सरकारी ठेकों के साथ और भी उलटे - सीधे काम करवाकर पैसे कमाती थीं | उक्त कांड की जांच को लेकर शुरू से ये आशंका थी कि वह दबी रह जायेगी क्योंकि नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि दोनों एक दूसरे पर आंच नहीं आने दे सकते | ये भी सही है कि एक के फंसने पर वे  दूसरे को  लपेटे में लेने से बाज नहीं आते  | यही  स्थिति दूसरी पार्टियों के नेताओं  को लेकर है | दरअसल  श्री नाथ द्वारा  हनीट्रैप की मूल पेन ड्राइव होने की बात कहते हुए मुख्यमंत्री को धमकाने के पीछे उद्देश्य  अपनी पार्टी के पूर्व मंत्री उमंग सिंगार का बचाव करना  है जिन पर अपनी महिला मित्र को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामाला दर्ज किया गया है |  पुलिस ने उन दोनों के बीच हुई बातचीत के आधार पर ये पाया कि उमंग द्वारा विवाह का वायदा करने के बाद मुकरने  की वजह से महिला ने आत्महत्या कर ली | अपनी पार्टी के नेता को बचाने के लिए श्री नाथ राजनीतिक तौर पर सरकार पर निशाना साधें  तो उसमें कुछ भी गलत  नहीं है किन्तु उमंग को बचाने के  लिए हनीट्रैप की पेन ड्राइव होने की धमकी देने के साथ ही सदाचार की राजनीति का दम्भ भरना तो निरा पाखंड है | श्री नाथ जैसे चतुर  राजनेता भी अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका बयान  विशुद्ध ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आता है | अब सवाल ये उठता है कि यदि शिवराज सरकार ने उमंग के विरुद्ध प्रकरण वापिस नहीं लिया तब क्या श्री नाथ उक्त पेन ड्राइव सार्वजानिक करने का साहस दिखाएँगे और ये भी कि वे अभी तक उसे अपने  पास क्यों रखे हुए थे जबकि ऐसी चीजें तो उन्हें खुद होकर जाँच एजेंसी  को देनी  चाहिए थीं | जहां तक बात हनीट्रैप मामले की है तो लंबे समय से उसकी चर्चा  सुनने में नहीं आ रही थी | जाँच कहाँ तक पहुंची ये भी किसी को नहीं पता और अब तक कितने नेताओं और अधिकारियों की शराफत का पर्दाफाश हुआ ये भी जानकारी में नहीं है | ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री का तत्संबधी पेन ड्राइव अपने पास होने और अपने नेता के फंसने पर उसका खुलासा करने जैसी धमकी तो उन्हें  साक्ष्य छिपाने और ब्लैकमेल करने का दोषी बना देती है | राज्य सरकार श्री नाथ द्वारा बनाये दबाव के बाद  उमंग सिंगार पर दर्ज मामला वापिस लेती है तो  ये स्पष्ट हो जाएगा कि शिवराज सिंह इस धमकी से डर  गये क्योंकि श्री नाथ जिस पेन ड्राइव का हवाला देकर उमंग को बचाने का दांव खेल रहे हैं उसमें ऐसा कुछ है जो श्री चौहान की सरकार और पार्टी पर भारी पड़ेगा और यदि वे दबाव में नहीं आते तब श्री  नाथ को अपनी धमकी पर अमल करने की हिम्म्त्त दिखानी होगी | वरना उनकी विश्वसनीयता तार - तार होते देर नहीं लगेगी | वैसे आज की  राजनीति भी पोरस द्वारा   सिकन्दर को दिए उस जवाब से प्रेरित और प्रभावित है कि एक  राजा जैसा व्यवहार दूसरे राजा के साथ करता है | ये बात भी काफ़ी हद तक सही है कि हनीट्रैप में केवल एक पार्टी के नेता होते तो बड़ी बात नहीं अब तक उसकी पेन ड्राइव  सार्वजनिक हो चुकी होती | और चूँकि उसमें अफसरों की रंगरेलियां भी हैं इसलिए भी उस पर अब तक पर्दा पड़ा हुआ है क्योंकि हमारे देश में अफसर वह शख्स होता है जिसके पास नेताओं का पूरा काला चिट्ठा होता है | कमलनाथ ने शेर की पीठ पर बैठने की जुर्रत तो कर ली लेकिन अब वे उससे उतरते कैसे हैं ये देखने वाली बात होगी | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


Thursday 20 May 2021

तीसरी लहर आने के पहले ही चिकित्सा तंत्र को और मजबूत करना होगा





अदालतें पूछ रही हैं कि कोरोना की आशंकित तीसरी लहर को लेकर सरकार की क्या तैयारी है ? दूसरी तरफ चिकित्सा जगत के साथ ही वैज्ञानिक भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि टीकाकरण का काम युद्धस्तर पर किया जाना चाहिए अन्यथा तीसरी लहर को रोकना मुश्किल होगा । कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस लगातार अपना रूप बदल रहा है । जिसकी वजह से संक्रमण के लक्षण भी बदल रहे हैं। कोरोना की मौजूदा लहर वापिस जाने के आसार बनने के पहले ही ब्लैक फंगस नामक मुसीबत आ गई। चिकित्सकों  को शिक्षा के दौरान इसके बारे में यही पढ़ाया जाता रहा कि यह बहुत ही विरली बीमारी है । इस कारण इसकी सम्भावनाओं पर कभी ध्यान भी नहीं गया। लेकिन अब जितना पता चलता जा रहा है उसके मुताबिक तो ये बीमारी बहुत ही घातक है जो मरीज को अंधा करने के साथ ही मौत के मुंह में भी धकेल सकती है। इसके इलाज के लिए प्रयुक्त इंजेक्शन भी बहुत महंगे हैं और उनकी मांग अचानक बढ़ने से रेमिडिसिविर की तरह कालाबाजारी भी शुरू हो चुकी है। आज खबर आ गई की ब्लैक के बाद अब व्हाइट फंगस नामक नया संक्रमण आ गया जिसके इलाज के बारे में अब तक कोई विशेष जानकारी भी नहीं आ सकी। बहरहाल दूसरी लहर का सामना करते समय चिकित्सा व्यवस्था की जो खामियां और कमजोरियां सामने आईं , विशेष रूप से ऑक्सीजन और बिस्तरों की उपलब्धता संबंधी उन्हें काफी हद तक तो दूर कर लिया गया है जिससे कोरोना के अगले हमले के समय हम असहाय न खड़े रह सकें। लेकिन अभी भी गांवों में रहने वाली देश की 60 फीसदी जनता को त्वरित और पर्याप्त इलाज उपलब्ध कराने की क्षमता पैदा नहीं की जा सकी। तहसील और जिला स्तर पर भी इस तरह की महामारी से निबटने में हमारा चिकित्सा तंत्र बहुत ही  मामूली किस्म का है। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए कंसंट्रेटर नामक उपकरण बड़ी संख्या में आ तो रहे है लेकिन उनकी क्षमता बहुत ज्यादा न होने से गम्भीर मरीजों के लिए वे उपयोगी नहीं रहते। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों का अभाव भी यथावत रहेगा। यही वजह है कि छोटी-छोटी बीमारी के लिए भी मरीज को बड़े शहर लाना पड़ता है । गत दिवस मप्र उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा कि  शासकीय जिला अस्पतालों में सीटी मशीन क्यों नहीं लगीं। कोरोना   की दूसरी लहर ने ये स्पष्ट कर दिया कि निजी क्षेत्र में चल रहे छोटे या बड़े अस्पतालों में अपवाद स्वरूप ही ऐसे निकले  जिनमें मानवीय सम्वेदनाएँ परिलक्षित हुईं। मुट्ठी भर चिकित्सक ही इस दौर में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार नजर आये। बचे हुए अधिकतर ने तो पैसे कमाने का नहीं वरन लूटने का जो घिनौना प्रयास किया उससे इस पवित्र पेशे की प्रतिष्ठा चकनाचूर होकर रह गई। ये देखने के बाद  भविष्य की किसी भी चुनौती का सामना करने लिए  शासकीय चिकित्सा तंत्र को अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। चिकित्सकों के साथ नर्सिंग स्टाफ को तहसील और ग्रामों में ले जाना बड़ी समस्या है। बेहतर होगा नए निजी चिकित्सालयों को बड़े शहरों की बजाय छोटे जिलों में खोलने की ही अनुमति मिले तथा उपकरणों की खरीदी सहित आय पर लगने वाला कर भी कम किया जावे। ऐसा होने से ग्रामीण और कस्बाई आबादी को समुचित चिकित्सा  मिल सकेगी तथा शहरी अस्पतालों पर भार कम होगा। इसके अलावा जनता को बड़ा अभियान चलाकर कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के प्रति जागरूक रहते हुए न्यूनतम सावधानियां बरतने के प्रति आगाह करते हुए सख्ती भी करनी जरूरी है।क्योंकि पहली लहर के समाप्त होने के पहले ही सरकार और जनता दोनों ने ये मान लिया  था कि कोरोना अपनी मौत मर गया । उसके बाद उसे लेकर किसी भी तरह की सावधानी नहीं रखी गई। ग्रामीण क्षेत्रों में तो उसे शहरी रईसों की बीमारी बताकर उपहास किया जाता रहा।जिसका दुष्परिणाम सामने है।अब चूंकि ग्रामीण भारत भी इस जानलेवा बीमारी का प्रकोप झेल चुका है इसलिए  ये मानकर चला जा सकता है कि वहां रहने वाले भविष्य में आने वाली मुसीबत के प्रति जिम्मेदार नजर आएंगे। गलतियों से सीखने की प्रवृत्ति से मुंह न मोड़ा जाए तो कोरोना के दूसरे हमले ने हमें बहुत कुछ सोचने , सीखने और करने के मौके दिए हैं । लेकिन केवल सरकार अकेले कुछ न कर पाएगी । गत वर्ष लॉक डाउन का जमकर विरोध करने वाले इस साल मांग करते देखे गए कि उसे जल्द लगाया जाए। ये बात भी साबित हो चुकी है कि कोरोना का संक्रमण कम होने और ठीक होने वालों की संख्या में वृद्धि लॉक डाउन के बाद से देखने मिली। जहां तक बात टीकाकरण की है तो इसके लिए  सरकार को ठोस काम करने की जरूरत है।वैक्सीन की उप्लब्धता के  साथ ही उसका सही वितरण सर्वोच्च प्राथमिकता है। आयातित वैक्सीन से समस्या काफी हद तक हल हो सकती है । यद्यपि देश में उसका उत्पादन बढाना कालान्तर में लाभकारी रहेगा ।कुल मिलाकर तीसरी लहर के आने के पहले सरकार और जनता दोनों अपने स्तर पर मुस्तैदी और जिम्मेदारी का परिचय दें तो दूसरी लहर जैसी त्रासदी से बचा जा सकता है। 

-रवीन्द्र वाजपेयी


Wednesday 19 May 2021

इजरायल को छेड़कर हमास ने अपनी बर्बादी का रास्ता खोल दिया




चौंकाने वाली बात ये है कि  हमास नामक जिस संगठन ने फिलहाल इजरायल से पंगा ले लिया उसे तो सभी फिलिस्तीनी भी पसन्द नहीं करते। इसका गाजा पट्टी पर कब्जा है। यासर अराफात ने जब इजरायल से शांति समझौता किया तबसे हमास नामक संगठन ने गाजा पट्टी पर कब्जा जमाकर इजरायल से लड़ते रहने की नीति प्रारम्भ की जबकि खुद  फिलिस्तीन सरकार के हमास से मतभेद हैं। मौजूदा युद्ध हमास के दुस्साहस से शुरू हुआ जब उसने इजरायल पर रॉकेट छोड़े । लेकिन जो जवाब इजरायल ने दिया उसने उसकी कमर तोड़ दी। हालांकि वह ईरान से मिली ताक़त पर लड़ रहा है लेकिन इजरायल हमलावर को घायल करके नहीं छोड़ता और यह हमास को पता चल रहा है। विश्व बिरादरी युद्ध रोकना चाहती है क्योंकि उसे अरब देशों से तेल की दरकार है। लेकिन सऊदी अरब और सं अरब अमीरात द्वारा इजरायल से दोस्ती किये जाने ने मध्य पूर्व के समीकरण बदल डाले हैं । मौजूदा संघर्ष को रोकने के लिए भी उक्त दोनों प्रयास कर रहे हैं । लेकिन जैसा कि इजरायल का कहना है कि हमास ने बेवजह उसे उकसाया जिसका दंड उसे समूल नाश के तौर पर दिया जाएगा और जिस तरह से इजरायली वायु सेना ने रौद्र रूप दिखाया उससे ये लग भी रहा है कि हमास  बिना सोचे -  समझे  बर्बादी के रास्ते पर चल पड़ा । उसने जब इजरायल पर रॉकेट दागे उसके पहले तक वहां युद्ध की न स्थिति थी और न ही सम्भावना। यद्यपि गाजा पट्टी में दोनों तरफ से गोलाबारी आये दिन चला करती है। लेकिन  वर्तमान संघर्ष हमास की मूर्खता का परिणाम है जिसकी वजह से वहां बसे फिलिस्तीनियों को बेवजह मौत और दूसरी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इजरायल के आक्रामक रुख को  अमेरिका और ब्रिटेन सहित पश्चिमी महाशक्तियों का समर्थन प्राप्त है।जिसके कारण उसके विरुद्ध संरासंघ में चीन और रूस जैसे देशों की कोई भी मुहिम आगे नहीं बढ़ पाती । लेकिन हमास ने इस विवादग्रस्त इलाके में शांति की कोशिशों को जिस तरह पलीता लगाया उसने यासर अराफात को भी उनके जीवन के अंतिम समय काफी दुखी कर दिया जो लंबे संघर्ष के बाद एक शांति समझौते के तहत इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करने को राजी हुए थे और उसके बाद लगातार अनेक वर्षों तक वहां शांति भी  रही । लेकिन फिलिस्तीनी मुक्ति मोर्चे द्वारा सशस्त्र संघर्ष की बजाय शान्ति और सहअस्तित्व का रास्ता चुन लेने से  मध्य पूर्व के साथ वे अन्तर्राष्ट्रीय ताकतें निराश हुईं जिन्हें फिलिस्तीन और इजरायल के लड़ते रहने में अपना स्वार्थ सिद्ध होता लगता था। ईरान के अलावा रूस ,सीरिया और काफी हद तक चीन ने  हमास  नामक संगठन को दूध पिलाकर बड़ा किया जिसने फिलीस्तीनियों के सर्वमान्य नेता  यासर अराफात की नीयत पर ही सवाल उठा दिए। इस बारे में ये कहना पूरी तरह से सही है कि इजरायल ने हर युद्ध में फिलीस्तीनियों के साथ ही सीरिया , जॉर्डन ,लेबनान और मिस्र जैसे देशों के संयुक्त हमले को न सिर्फ नाकाम किया बल्कि उनकी सैन्य शक्ति की कमर ही तोड़कर रख दी। येरुशलम  यहूदी ,इस्लाम और ईसाइयत का जन्मस्थान होने से तीनों धर्मों को मानने वाले इस पर अपना कब्जा चाहते हैं । बीते लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा तक इस इलाके पर विभिन्न ताकतों का कब्जा रहा जिसमें पहले तुर्की और अंत में ब्रिटेन था। दूसरे महायुध्द के बाद ब्रिटेन एवं मित्र राष्ट्रों ने अपनी मातृभूमि से बेदखल किये गए यहूदियों को दोबारा उनका देश देने हेतु फिलिस्तीन का विभाजन कर दिया । हिटलर ने नस्लीय घृणा के तहत जिस बेरहमी से यहूदियों को गैस चेम्बर में थोक के भाव मौत के मुंह में धकेला उससे भी उनके प्रति सहानुभूति बढ़ी लेकिन इजरायल की स्थापना के पीछे ईसाई धर्म की अनुयायी पश्चिमी ताकतों की दूरगामी रणनीति ये थी कि येरुशलम से ईसाइयत का गहरा सम्बन्ध होने पर भी चूंकि उसके आसपास कोई ईसाई बहुल देश नहीं था इसलिए वे खुद वहां जमे नहीं रह सकते थे। ब्रिटेन भी दूसरे महायुद्ध के बाद आर्थिक और सामरिक तौर पर फिलिस्तीन पर कब्जा जमाए रहने में असमर्थ था। वैसे दुनिया भर से यहूदियों को वहां लाकर बसाने का काम प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच शुरू कर दिया गया था और 1948 में विधिवत इजरायल की स्थापना कर उसे मान्यता दे दी गई किन्तु उसके पड़ोसी इस्लामी देश इसे हजम न कर सके और उस पर हमला कर दिया। इस तरह जन्म लेते ही यहूदी राष्ट्र को अपना अस्तित्व बचाने जूझना पड़ गया। सैकड़ों सालों तक खानाबदोश रहे यहूदी शक्तिशाली की विजय के सूत्र से प्रेरणा लेकर उस हमले का जवाब देने उठ खड़े हए और लम्बे संघर्ष के बाद पड़ोसी अरब देशों को परास्त करने में कामयाब हुए।उसके बाद 1967 में फिर उस पर छह सात देशों ने आक्रमण किया लेकिन 6 दिन के भीतर सबकी  हेकड़ी निकल गई। यद्यपि ये कहना गलत न होगा कि अमेरिका और ब्रिटेन का संरक्षण मिले बिना इजरायल का अस्तित्व बचना कठिन था किन्त ये भी उतना ही सच है कि आम इजरायली अपने देश के प्रति कुछ भी करने से नहीं हिचकता। बीते सात दशक में यह देश  अपनी रक्षा प्रणाली को अभेद्य बनाकर आक्रमण क्षमता भी आश्चर्यजनक रूप से विकसित करते हुए शक्तिशाली देशों के समकक्ष खड़ा हो गया। आर्थिक के साथ ही विज्ञान , तकनीकी और रेगिस्तान में खेती के तरीके खोजना उसकी जीवटता का प्रमाण है। उसकी गुप्तचर व्यवस्था के सामने सीआईए तक नहीं ठहरती। उस पर फिलीस्तीन की जमीन हड़पते जाने और येरुशलम पर कब्जा जमाने का आरोप तथ्यों के आधार पर सही है किंतु इसके लिए उसे मजबूर किया गया। उस पर जब भी हमले हुए उसने अपनी सीमा का विस्तार करते हए शत्रु को कमजोर किया जो उसके अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। अरब देशों की आंखों में कांटे की तरह चुभने वाले इस देश को एक हकीकत के तौर पर लगभग पूरा अरब जगत स्वीकार कर चुका था। यासर अराफात ने जब लम्बे संघर्ष के बाद इजरायल से शांति समझौता कर फिलिस्तीन का शासन सम्भाला तब ये लगा था कि मध्य पूर्व में शांति स्थायी तौर पर आ जायेगी किन्तु कुछ विघ्नसंतोषियों को वह रास नहीं आई और उनके संरक्षण में हमास नामक संगठन पनपा जिसने फिलिस्तीन के गाजा पट्टी इलाके पर कब्जा कर लिया। हमास इजरायल के अस्तित्व को नहीं मानता और यही मौजूदा समस्या की जड़ है। इस युद्ध की शुरुवात हमास ने रॉकेट दागकर कर तो दी जिन्हें इजरायल की जबरदस्त रक्षा प्रणाली ने हवा में ही  नष्ट कर दिया और उसके बाद जो पलटवार किया उसने हमास के कब्जे वाले इलाके में जबरदस्त तबाही मचा दी । पता नहीं हमास का नीति निर्धारक या सलाहकार कौन है जिसने बेवजह  सोते हुए शेर की पूंछ पर पैर रखने की जुर्रत करते हुए अपने लोगों को बेमौत मरवाने के साथ चारों तरफ बर्बादी के मंजर पैदा करने के कारण पैदा कर दिए। इजरायल ने साफ कर दिया कि वह हमास को जड़ सहित उखाड़े बिना जंग नहीं रोकेगा। दुनिया भर उससे आक्रामक रुख रोकने की गुजारिश कर रही है। भारत सहित तमाम देश कच्चे तेल के लिए अरब देशों पर निर्भरता के चलते इजरायल का खुलकर समर्थन नहीं कर पाते लेकिन जिस तरह सऊदी अरब और सं.अरब अमीरात ने इजरायल के साथ आर्थिक रिश्ते मजबूत कर द्विपक्षीय लाभ का रास्ता खोल दिया वैसी ही समझदारी शेष इस्लामिक देशों को दिखानी ही पड़ेगी । अन्यथा फिलिस्तीन का आकार हर युद्ध के बाद सिमटता जायेगा। अकाट्य सत्य ये है कि इस्लाम , यहूदी और ईसाइयत एक ही पूर्वज की संतानों से जन्मे धर्म हैं । यहूदियों को अपना इलाका छोड़कर सैकड़ों सालों तक दूसरे देशों में बदहाली का शिकार होना पड़ा ये भी पूर्ण सत्य है । ईसाई देशों तक में उनके साथ अत्याचार हुए क्योंकि ईसाइयत भी उन्हें पसंद नहीं करती थी किन्तु धीरे - धीरे समय ने करवट बदली और इजरायल की स्थापना ईसाई देशों ने ही करवाते हुए उसे पूर्ण सहयोग तथा संरक्षण दिया। जिस तरह पाकिस्तान ने भारत का अस्त्तित्व मिटाने की शेखी में अपने दो टुकड़े करवा लिए ठीक वही गलती इजरायल के पड़ोसी इस्लामी देश करते आये जिसकी वजह से उसको अपना विस्तार करने का मौका मिलता रहा। पता नहीं अरब देशों को मदद करने वाले उन्हें ये क्यों नहीं समझाते कि इजरायल के साथ अच्छे रिश्ते पश्चिम एशिया में न सिर्फ शांति अपितु विकास के नए रास्ते खोल सकते हैं ।जिस कच्चे तेल के भंडार पर अरब देश इठलाते और इतराते हैं उसका विकल्प दुनिया खोज  चुकी है और आने वाले 10 - 15 सालों के भीतर उसकी मांग तेजी से घटेगी । ऐसे में उन्हें इजरायल से तकनीक और खेती के हुनर सीखकर नए युग की शुरुवात करनी चाहिए। बेहतर हो हमास जैसे आतंकवादी संगठनों को इस्लामी देश खुद होकर नष्ट करें क्योंकि इन्हीं की वजह से पूरे विश्व में उनकी नकारात्मक छवि बनी हुई है। फिलिस्तीन और इजरायल के बीच हुए ऐतिहासिक शांति समझौते के बाद यदि बजाय हेकड़ी के बुद्धिमत्ता दिखाई गई होती  तो आज पश्चिम एशिया आग में न जल रहा होता। यासर अराफात तो हकीकत से रूबरू होकर समझौता कर बैठे लेकिन अल कायदा , बोको, हराम , आई एस आई एस और तालिबान ने इस्लामी जगत को जो नुकसान पहुँचाया उसका आकलन करना सम्भव नहीं है। ओसामा बिन लादेन , जवाहिरी , बगदादी जैसे आतंकवादियों ने इस्लाम को क्या दिया ये बड़ा सवाल है। मजे की बात ये है कि जिस अमेरिका के विरुद्ध ये सब मरने - मारने उतारू हो जाते हैं शुरू में ये उसी के टुकड़ों पर पलते रहे। इजरायल का गठन भी वैश्विक कूटनीति का हिस्सा रहा लेकिन उसके अस्तित्व को नकारना वास्तविकता से मुंह मोड़ना है। हमास जैसे संगठन इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु हैं और ये बात अरब देश जितनी जल्दी समझ लें अच्छा अन्यथा जो हो रहा है वह होता रहेगा और क्या पता फिलीस्तीन का बचाखुचा अस्तित्व भी नष्ट हो जाये।

-- रवीन्द्र वाजपेयी