Friday 31 July 2020
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Thursday 30 July 2020
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Wednesday 29 July 2020
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Tuesday 28 July 2020
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Monday 27 July 2020
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Friday 24 July 2020
आत्मनिर्भर भारत : ऐसे अवसर रोज - रोज नहीं मिलते ।
Thursday 23 July 2020
तो युधिष्ठिर कहते सबसे बड़ा आश्चर्य है भारत में बिना भ्रष्टाचार के विकास ! नेता और नौकरशाहों के गठबंधन ने किया बेड़ा गर्क
मेरे पिछले आलेख , क्या कभी भ्रष्टाचार पर भी लॉक डाउन होगा , पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मित्रवर डॉ . योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था कि बिना भ्रष्टाचार के विकास पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए | उनका सुझाव न सिर्फ सामयिक अपितु देश के व्यापक हित में होने से मुझे लगा कि बात आगे बढ़ाई जाए | उन्होंने ये भी माना कि भ्रष्टाचार रहित विकास की सम्भावना असंभव न सही लेकिन कठिन तो है | वैसे देश के अधिकतर लोगों का अभिमत है कि भ्रष्टाचार गाजर घास की तरह है जिसका उन्मूलन नामुमकिन है क्योंकि उसे एक जगह से उखाड़ो तो दूसरी जगह जम आती है | उक्त आलेख का संदर्भ था मप्र के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का एक पुराना वीडियो जिसमें वे अपने मातहत वर्दीधारियों से लिफाफे लेते दिखाई दे रहे थे | वीडियो सार्वजनिक होते ही उन्हें परिवहन आयुक्त के पद से हटाकर पुलिस मुख्यालय पदस्थ कर दिया गया | जांच भी शुरू हो गई है | लेकिन खबर है उनसे छोटे पद का अधिकारी जाँच हेतु पूछताछ हेतु नियुक्त हुआ, जिसे लेकर तरह - तरह की चर्चाएँ हैं |
डा. सिंह ने जो विषय सुझाया वह इसलिए उपयुक्त लगा क्योंकि जबसे उदारीकरण आया तब से विकास सम्बन्धी सपने भी मानो बलैक एंड व्हाईट फिल्मों के दौर से निकलकर टेक्नीकलर फिल्मों के युग में प्रविष्ट हो चले हैं | पहले जहां लाखों की किसी योजना को बहुत बड़ा समझ जाता था वहीं आजकल तो करोड़ों भी किसी नाली या पुलिया के निर्माण पर खर्च होने वाली रकम है | विकास माने जाने वाले किसी भी कार्य के लिए तो अरबों और उससे भी इतनी बड़ी राशि की घोषणा होने लगी है जिसके आगे लगने वाले शून्य गिनने में भी समय लगता है | परियोजना ज्यादा बड़ी हो तो बात हजार करोड़ या लाख करोड़ में होने लगती है |
देश में विकास कार्यों पर ज्यादा खर्च होना संतोष के साथ ही गौरव का भी विषय है | अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ाने के प्रयास भी अपनी जगह अच्छे संकेत हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या बात है हमारे देश में कोई भी परियोजना न तो समय पर पूरी होती है और न ही निश्चित बजट में | इसी के साथ ही उसमें गुणवत्ता का पालन भी नहीं होता तो उसका सीधा - सीधा कारण है भ्रष्टाचार |
बीते कुछ वर्षों से देश में गरीबों के लिए प्रधानमन्त्री आवास योजना के अंतर्गत पक्के मकान बनाये जा रहे हैं | इस योजना की आवश्यकता और औचित्य से भला कौन इंकार करेगा | लेकिन अपवाद स्वरूप एकाध जगह ठीक - ठाक निर्माण भले मिल जाये, वरना कार्य इतना घटिया है कि कुछ वर्षों बाद वे सभी भ्रष्टाचार के जीवंत दस्तावेज बन जायेंगे | दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेल के कुछ दिन पहले ही नया - नया बना पुल भरभरा कर गिर गया था | अभी हाल ही में बिहार में बने एक पुल की प्रारंभिक सड़क ही धंस गई | देश की राजधानी दिल्ली और मायानगरी मुम्बई के कुछ हिस्सों को छोड़कर शहर के बाकी हिस्सों की सड़कों को देखने के बाद बिना सिविल इंजीरियरिंग पढ़ा इन्सान भी बता देगा कि उनके निर्माण में कितना भ्रष्टाचार हुआ है ?
ये सब तो छोटे - छोटे उदाहरण हैं | सही बात तो ये है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार और विकास एक दूसरे के समानार्थी बन चुके हैं | ये भी कहा जा सकता है कि दोनों का चोली दामन का साथ है | कहने वाले कहेंगे कि भ्रष्टाचार तो एक वैश्विक समस्या है | भूमंडलीकरण का दौर शुरू होते ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जाल जिस तरह फैला उसके बाद विदेशी घूस भी हमारे प्रशासनिक ढांचे में सहज रूप से आने लगी | विश्व बैंक , एशिया डेवलेपमेंट बैंक , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अलावा और भी विदेशी एजेंसियों से विकास के लिए कर्ज लेने के पीछे उद्देश्य देश का विकास कम नेताओं और नौकरशाहों का विकास ज्यादा होता है |
देखने वाली बात है कि दूसरे महायुद्ध में बर्बाद हुए जापान और जर्मनी ने विकास के आसमान छू लिए | इस्रायल जैसा छोटा सा देश अस्तित्व में आते ही पड़ोसी देशों के हमले का शिकार हो गया | बीते सात दशक से वह चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा होने के बाद भी तकनीक के मामले में हमसे कई गुना आगे है | चीन में 1949 में साम्यवादी क्रांति हुई | 1962 में उसने लड़ाई में हमें बुरी तरह हरा दिया | उस लड़ाई के बाद रक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार का जबर्दस्त खुलासा हुआ और पंडित नेहरु को अपने प्रिय रक्षामंत्री वीके . कृष्णा मेनन को हटाना पडा | 1988 तक चीन की अर्थव्यवस्था हमसे कमजोर थी और आज वह अमेरिका की अर्थव्यस्था को हिलाने की स्थिति में आ गया | डेढ़ दशक से ज्यादा चले युद्ध में बर्बाद हो चुके वियतनाम की छलांग भी भारत से कहीं बेहतर है |
ऐसे में ये बात दिमाग में कौंधना स्वाभाविक है कि आखिर क्या बात है कि विकास की दौड़ में हमारा देश उक्त देशों की तुलना में पीछे रह गया | कहने वाले ये कहने से नहीं चूकेंगे कि जो देश चंद्रमा और मंगल तक जाने की क्षमता अर्जित कर चुका हो उसे पिछड़ा कैसे कह सकते हैं ? बेशक भारत ने अन्तरिक्ष विज्ञान में अपने बूते जो कर दिखाया वह गौरवान्वित करता है लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि आज देश के करोड़ों लोगों के पास रहने को घर नहीं है | 2014 में सत्ता में आने के बाद जब नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा को राष्ट्रीय अभियान बनाकर लागू किया तब बड़े - बड़े लोगों ने उनका मजाक उड़ाया लेकिन बाद में उसकी सार्थकता समझ में आई । तब भी ये सवाल उठा कि विकास की प्राथमिकताओं में शौचालय के बारे में किसी ने पहले क्यों नहीं सोचा ? उस अभियान के कारण घरों में शौचालय बनाने की जो मुहिम चली वह एक क्रांतिकारी बदलाव था लेकिन उसके तहत बने छोटे सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में हुआ भ्रष्टाचार चीख - चीखकर व्यवस्था के खून में आ चुकी खराबी का प्रमाण दे रहा है |
देश में आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए बीते सात दशक में जितना धन खर्च हुआ उतने में तो उनमें अमेरिका के हवाई द्वीप जैसा नजारा दिखाई देना चाहिए था | यही हाल गाँवों की दशा सुधारने के काम में हुआ | ग्रामीण विकास के लिये आजादी के बाद से बेहिसाब पैसा खर्च होने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्र आज तक शहरों जैसी मूलभूत सुविधाओं से क्यों वंचित हैं , ये वह प्रश्न है जिसका उत्तर कोई नहीं देगा क्योंकि उक्त दोनों क्षेत्रों की तकदीर संवारने के लिए आये पैसे की बड़ी रकम नेता - नौकरशाह गठबंधन की भेंट चढ़ गयी | जो सरकारें भ्रष्टाचार के मामले में ज्यादा बदनाम हुईं वे तो ठीक हैं लेकिन जिनके राज में ईमानदारी का खूब गाना गया उनके दौर में भी विकास के नाम पर हुई लूटमार किसी से छिपी नहीं है |
ऐसे में सवाल उठता है कि विदेशी कर्ज और जनता के पैसे से किये जाने विकास में भ्रष्टाचार कब तक चलता रहेगा और क्या भ्रष्ट व्यक्ति को उसके किये का समुचित दंड इस तरह सुनिश्चित होगा जिससे और कोई वैसा करने के बारे में सौ बार सोचे |
निश्चित रूप से जब देश विश्व की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने के बाद मोदी जी के अनुसार 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का सपना साकार करने की सोच रहा हो तब इस वास्तविकता की अनदेखी करना अपने आपको धोखा देने से कम न होगा कि हमारा देश आजादी के बाद भ्रष्टाचार जैसी बुराई से बचा रहता तब आज हम एशिया में जापान और चीन को पीछे छोड़कर विश्व के विकसित देशों की अग्रिम पंक्ति में बैठे होते |
ये भ्रष्टाचार ही है जिसने हमारी नौजवान प्रतिभाओं को प्रवासी भारतीय बनने के लिए मजबूर कर दिया | प्रधानमंत्री जितनी मेहनत विदेशी निवेश लाने के लिए करते हैं यदि उतनी ही वे भारत में भ्रष्टाचार मुक्त विकास को सपने से हकीकत में बदलने में करें तो विदेशों में जा बसे प्रतिभाशाली भारतीय अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने की भावना लिए दौड़े चले आएंगे | और तब उनकी प्रतिभा और क्षमता के सामने विदेशी निवेश गैर जरूरी लगने लगेगा |
आज सर्वत्र ये सुनने में मिलता है कि ईमानदार वह है जिसे या तो भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिला या फिर उसे भ्रष्टाचार करना नहीं आता | लेकिन ये अवधारणा बदली जा सकती है और बदलना ही चाहिये । वरना विकास की राह पर हमारी गति बीते सात दशक जैसी ही बनी रहेगी | भले ही हम पहले से बेहतर होते जाएँ लेकिन एशिया के ही अनेक छोटे - छोटे देशों की तुलना में हम फिसड्डी ही रहेंगे |
समय आ गया है जब बिना भ्रष्टाचार के विकास को भी राष्ट्रीय अभियान बनाया जाए | लेकिन इसके लिए राजसत्ता में बैठे नेताओं को ये ठान लेना होगा कि भले ही अगला चुनाव न जीतें लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ों में इतना मठा डाल जायेंगे जिससे वह दोबारा न पनप सके | चूंकि उसकी शुरुवात ऊपरी संरक्षण से ही होती है इसलिए रूकावट भी वहीं से करनी होगी | हालाँकि ऐसा करना कठिन है लेकिन कार्य कठिन है तभी तो करने योग्य है वरना सरल काम तो सभी कर लेते हैं |
महाभारत में युधिष्ठिर और यक्ष सम्वाद के दौरान यक्ष पूछता है विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? और उत्तर में युधिष्ठिर कहते हैं कि मनुष्य नित्यप्रति लोगों को मरते देखकर भी अमरत्व की कामना करता है |
यदि ये प्रश्न आज के समय युधिष्ठिर से पूछा जाता तब वे बिना संकोच किये उत्तर देते कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है भारत में भ्रष्टाचार के बिना विकास |