आखिरकार भारत में कोरोना 10 लाख का आंकड़ा लांघ गया । हालांकि अभी तक ठीक होने वालों का राष्ट्रीय औसत 63 प्रतिशत है जबकि मृत्यु दर को लेकर थोड़ा भ्रम है । यदि ठीक होने वालों की संख्या से उसे जोड़ें तो वह 4 फीसदी है लेकिन अब तक संक्रमित हुए कुल लोगों की संख्या के आधार पर मूल्यांकन करें तो वह मात्र ढाई प्रतिशत ही आती है । संतोष की बात ये जरूर है कि अस्पतालों में भर्ती मरीज 3.6। लाख ही हैं किन्तु चिंता का विषय ये है कि प्रतिदिन ठीक होने वाले मरीजों की तुलना में नए संक्रमित ज्यादा होने से अस्पतालों की क्षमता निरंतर कम होती जा रही है । वृद्धि का आंकडा मात्र तीन दिनों में एक लाख होने के बाद आशंका है कि कुछ दिनों के बाद प्रति दिन 1 लाख नए मरीज आयेंगे । और वही भयभीत कर रहा है क्योंकि उस स्थिति में न तो सरकारी और न ही निजी क्षेत्र के अस्पतालों में पैर रखने की जगह बचेगी । इसके अलावा विचारणीय बात ये भी है कि बरसात के मौसम में डेंगू , मलेरिया , चिकिनगुनिया और अन्य वायरल बीमारियाँ भी तेजी से फैलती हैं जिनके कारण अस्पतालों पर वैसे भी काफी दबाव रहता है । उस स्थिति में यदि कोरोना संक्रमण इसी गति से बढ़ता गया तब चिकित्सा प्रबंध गड़बड़ा जायेंगे । हालांकि हो वैसा ही रहा है जैसा विशेषज्ञ अनुमान लगा चुके थे । जुलाई और अगस्त में कोरोना का चरमोत्कर्ष आने के बाद उसमें ढलान आने की बात लगातार जिम्मेदार सूत्रों ने कही थी । उनको लगता था कि तब तक शायद वैक्सीन भी बाजार में आ जायेगी । लेकिन उस बारे में नित नई खबरें आने के बाद भी अभी तक कोई निश्चित तिथि बताने जैसी स्थिति नहीं है । भारत सहित अनेक देशों ने संकेत दिया है कि वे वैक्सीन बनाने के बाद उसके मानव परीक्षण के दौर में हैं और अतिशीघ्र उसके बाजार में आने की सम्भावना है । इस बारे में उल्लेखनीय बात ये होगी कि भारत में बनी वैक्सीन यदि पहले आ गई तब तो हमारे देश के लोगों को उसका लाभ तत्काल मिल जाएगा वरना विदेशों में बनी वैक्सीन के भारतीय बाजारों में आने में समय लगेगा । यद्यपि ये बात आशा जगाने वाली है कि वैक्सीन खोजे कोई भी लेकिन उसका व्यावसायिक उत्पादन भारत में भी होगा क्योंकि यहाँ उसके लिए जरूरी अधोसंरचना पहले से है । माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स ने भी गत दिवस इसकी उम्मीद जताई है । लेकिन मोटे तौर पर ये माना जा रहा है कि वैक्सीन पूरी तरह से बाजार में आने तक 2020 विदा हो जाएगा । और इसीलिये शायद कुछ विदेशी विशेषज्ञों ने आगामी वर्ष की जनवरी और फरवरी में कोरोना के भयावह होने की आशंका जताई है । आंकड़ों की मगजमारी से अलग हटकर देखें तो ये मानना पड़ेगा कि प्रारम्भिक दौर में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भारत बीते डेढ़ महीने के दौरान गंभीर हालात में आ पहुंचा है । और इसकी वजह जनता और नेताओं द्वारा बरती गई घोर लापरवाही है । लॉक डाउन के दौरान भारत में कोरोना का फैलाव देश की आबादी के मद्देनजर बहुत ही मामूली था । कुल मरीजों के 0 फीसदी चंद महानगरों में ही सिमटे थे । हॉट स्पॉट का चयन भी सही समय पर कर लिया गया । कन्टेनमेंट जोन बनाकर कोरोना के सामुदायिक फैलाव को रोकने में भी उल्लेख्नीय सफलता हासिल हुए । मुम्बई के धारावी इलाके की झोपड़ पट्टी में कोरोना को जिस तरह से नियंत्रित किया जा सका उसकी वैश्विक स्तर पर तारीफ भी हुई लेकिन लॉक डाउन हटते ही अनुशासनहीनता का जो नजारा दिखाई दिया वह कोरोना के विस्फोट का कारण बन गया । जिन दो - तीन सावधानियों का पालन कोरोना से बचाव के लिए ज़रूरी बताया गया वे इतनी कठिन या अव्यवहारिक नहीं हैं जिनका पालन न किया जा सके । मुंह और नाक को ढंकने के साथ ही हाथ को साफ करते रहना और लोगों के बीच शारीरिक दूरी जैसे सामान्य उपायों से कोरोना सदृश खतरनाक संक्रमण को रोकना संभव है लेकिन न जाने लोगों को इसमें भी क्या परेशानी होती है ? बाजारों सहित सार्वजनिक स्थलों पर आम जनता जिस बेख़ौफ़ अंदाज में घूमती दिखती है उससे तो लगता है उसे अपनी जान की कोई परवाह ही नहीं है । लेकिन बीते एक - दो सप्ताह में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा जिस तेजी से आसमान छूने पर आमादा है उसे देखते हुए अब लोगों को सावधान होना चाहिए वरना दो महीने से ज्यादा के लॉक डाउन की समूची मेहनत पर पानी फिर जाएगा । कुछ जगहों को अपवादस्वरूप छोड़ दें तो देश की अर्थव्यवस्था दोबारा राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन की अनुमति नहीं देती । यूँ भी पूरी दुनिया ये स्वीकार कर चुकी है कि लॉक डाउन एक हद के बाद अनावश्यक और नुकसानदेह हो जाता है । ऐसे में अब बात जनता के स्तर पर आकर ठहर जाती है । हमारी जान की रक्षा के लिए सरकार और डाक्टर से पहले हम जिम्मेदार हैं । लेकिन जनता को प्रेरित करने वाले राजनेता भी कोरोना के फैलाव के लिए कम दोषी नहीं हैं । अनेक शहरों में राजनीतिक जलसों के बाद बड़ी संख्या में मरीजों का निकलना इसका प्रमाण है । कोरोना के प्रति यदि इसी तरह का गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया जाता रहा तब बीमारी के महामारी में बदलने की आशंका वास्तविकता में बदल जायेगी । क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?
-रवीन्द्र वाजपेयी
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