एक समय था जब जया जेटली का नाम सार्वजनिक तौर पर चर्चा में रहा करता था। वैसे वे राजनेता नहीं रहीं लेकिन पूर्व रक्षा मंत्री स्व. जॉर्ज फर्नांडीज की महिला मित्र के तौर पर जगह बनाने में कामयाब हुईं और समता पार्टी की अध्यक्ष तक बन गईं। दिलचस्प बात ये है कि उनके पति अशोक जेटली , जॉर्ज साहब के निजी सचिव हुआ करते थे। बाद में संभवत: उनका पति से अलगाव हो गया। श्रीमती जेटली की बेटी अदिति प्रख्यात क्रिकेटर अजय जडेजा की पत्नी हैं। जॉर्ज से उनकी निकटता इस हद तक बढ़ी कि वे उनके मंत्री वाले बंगले में ही रहने लगीं। उस समय जॉर्ज की पत्नी लैला कबीर उनसे अलग हो चुकी थीं। लेकिन बाद में जब वे अल्जाइमर से पीडि़त हो गये तब वे लौट आईं और अन्तिम समय में जया को उनसे मिलने तक नहीं दिया जिसे लेकर वे अदालत तक गईं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की तरह से ही स्व. फर्नांडीज भी लम्बे समय तक गम्भीर रूप से अस्वस्थ रहने की वजह से सार्वजनिक चर्चाओं से दूर थे। और पत्नी लैला के लौट आने के बाद जया भी समाचारों से अलग हो गईं। गत दिवस अचानक एक बार फिर उनका नाम सामने आया और उसमें भी स्व. फर्नांडीज ही संदर्भ बने। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि 2001 में तहलका नामक वेब पोर्टल ने एक स्टिंग आपरेशन किया जिसमें जया और उनके करीबी गोपाल पचरेवाल के अलावा मेजर जनरल रह चुके एसपी मुरगई को रक्षा सौदे में घूस लेते कैमरे में कैद किया गया। ब्रिटेन की एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधि बनकर आये तहलका के पत्रकारों ने वह स्टिंग किया था। उसके बाद जॉर्ज को वाजपेयी सरकार का रक्षा मंत्री पद छोड़ना पड़ा। मामला सीबीआई को गया जिसने जांच के बाद 2006 में आरोप पत्र दाखिल किया और तकरीबन 14 -15 साल की लंबी न्यायालयीन प्रक्रिया के बाद गत दिवस दिल्ली की एक अदालत ने जया और उनके उक्त दोनों साथियों सहित तीन अन्य को चार-चार साल की सजा के अलावा एक - एक लाख का अर्थदंड लगाया। जया के पक्ष में देश के सबसे महंगे वकीलों में से एक मुकुल रोहतगी खड़े हुए और शाम होने के पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने सजा पर स्थगन देते हुए फिलहाल श्रीमती जेटली को जेल जाने से बचा लिया। उनकी आयु 78 वर्ष की है। सीबीआई तो 7 साल की सजा चाहती थी किन्तु अदालत ने रहम करते हुए मात्र 4 वर्ष तक जेल में रखने का फैसला किया। इस तरह 2001 से शुरू हुआ मामला तकरीबन दो दशक बाद जाकर अंजाम तक भले ही पहुँच गया लगता है किन्तु उस काण्ड में सजा दिए जाने में इतना विलम्ब भारतीय न्याय और दंड प्रक्रिया दोनों पर नये सिरे से सवाल खड़े करता है। अव्वल तो सीबीआई ने ही आरोप पत्र प्रस्तुत करने में पांच साल का समय खर्च किया और फिर अदालत ने 14-15 साल खा लिए। अब मामला उच्च और फिर सर्वोच्च न्यायालय तक जाएगा और तब तक कितने आरोपी जीवित बचेंगे ये कह पाना मुश्किल है। जॉर्ज साहब की गिनती देश के अत्यंत ईमानदार और सादगी पसंद नेताओं में होती थी। बिना कलफ के कपड़े पहिनने और रक्षा मंत्री रहते हुए अपने बंगले के प्रवेश द्वार को सदैव खुला रखने वाले उस नेता पर कभी कोई तोहमत नहीं लगी। लोहिया युग के समाजवादी फक्कड़पन के वे अंतिम प्रतिनिधि थे लेकिन उनके सान्निध्य में रहने वाली जया जेटली की वजह से उनके निजी और पारिवारिक जीवन पर तो छींटे पड़े ही लेकिन तहलका के उस स्टिंग ने जॉर्ज की जीवन भर की प्रतिष्ठा और पुण्याई को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाया। वैसे जॉर्ज को भले ही उस काण्ड के परिप्रेक्ष्य में मंत्री पद छोड़ना पड़ा लेकिन उन पर घूस खाने जैसा कोई आरोप नहीं लगा। लेकिन जया जेटली ने उनके घर में रहते हुए ही जो किया वह राजनेताओं के निकटवर्ती लोगों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण है। आगे ये सिलसिला रुक जाएगा ऐसा नहीं लगता क्योंकि बीते बीस बरस बाद आज की राजनीति पूरी तरह से कारपोरेट संस्कृति से प्रेरित और प्रभावित है। लेकिन इससे हटकर बात भारतीय न्याय प्रणाली की करें तो भ्रष्टाचार के उच्च स्तरीय मामले के पहले चरण का फैसला आरोप पत्र दाखिल होने के 15 साल बाद आना और श्रीमती जेटली को तुरन्त सजा पर स्थगन मिल जाना ये स्पष्ट करता है कि न्याय पालिका की कार्यप्रणाली में न जाने कितने झोल हैं। आज के दौर में परिवर्तन इतनी तेजी से होने लगे हैं कि घटनाओं को याद रख पाना मुश्किल हो गया है। ऐसे में जॉर्ज, जया और उस स्टिंग के बारे में आम जनता को शायद ही कुछ याद होगा। जाँच एजेंसी के पास भी काम का अम्बार है और फिर उस पर भी वीआईपी नामक मानसिक बोझ रहता है। फिर भी इतने लम्बे समय बाद पहले पायदान का फैसला देखकर भ्रष्टाचारियों के हौसले और बुलंद ही होंगे। पता नहीं न्यायपालिका को ये देरी महसूस होती है या नहीं लेकिन यदि इस ढर्रे को नहीं सुधारा जा सका तो कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता प्रतिष्ठान की नाक के नीचे चलने वाली लूटपाट को रोकने के प्रयास कभी सफल नहीं होंगे।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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