Wednesday 29 July 2020

भूमि पूजन का विरोध करने वाले पुरानी गलतियाँ दोहरा रहे



अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण बेशक भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा था। बीते तीन दशक में इसके लिए हुए आन्दोलनों को उसका प्रत्यक्ष समर्थन भी रहा। लेकिन कांग्रेस  के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी 2017  में उप्र विधानसभा के चुनाव प्रचार की शुरुवात अयोध्या में हनुमान गढ़ी  के महंत से आशीर्वाद  लेकर की। पूरे चुनाव के दौरान वे और उनकी पार्टी  भाजपा पर आरोप लगाती रही कि वह चुनाव जीतने के लिए मंदिर मुद्दा गरमाती है और बाद में उसे भुला देती है। यहाँ तक कहा जाने लगा कि मंदिर  का ताला खुलवाने और शिलान्यास करवाने का काम स्व. राजीव गांधी ने किया था और मंदिर का निर्माण राहुल करवाएंगे। यद्यपि वह सब उप्र के हिन्दू मतदाताओं को लुभाने का दांव था जिसमें सफलता नहीं मिली। उसके बाद गुजरात चुनाव में राहुल का जनेऊधारी अवतार सामने आया। फिर वे शिव भक्त बने। कर्नाटक चुनाव में मंदिरों और मठों में धोती पहिनकर भी गए। फिर भी कोई लाभ नहीं हुआ। आखिर में शिवभक्ति का चरमोत्कर्ष दिखाने के  लिए कैलाश-मानसरोवर की यात्रा भी की परन्तु 2019 के लोकसभा चुनाव पर उस सबका कोई असर नहीं पड़ा। बीते लगभग सवा साल में श्री गांधी किसी मंदिर या मठ में गये हों ये शायद ही किसी ने देखा होगा। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी या भाजपा ने मन्दिर को लेकर अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया। राम मंदिर का फैसला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाये जाने के पहले ही उप्र की योगी आदित्यनाथ  सरकार द्वारा अयोध्या के विकास की रूपरेखा बनाकर उस पर काम शुरू कर दिया गया था। इसी पृष्ठभूमि के कारण यदि राम मन्दिर के निर्माण में भाजपा और उसके सहयोगी संगठन आगे-आगे हैं तो उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जाना चाहिए। और जिन लोगों ने मंदिर निर्माण  के लिए लम्बी  मैदानी लड़ाई लड़ी तथा जिनके मन में उसे लेकर किसी भी तरह का कोई संदेह  नहीं था उनको ही यदि उसके निर्माण के लिए गठित न्यास में रखा गया तो उस पर भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भूमि पूजन में आमंत्रित किया जाना भी एक सही कदम कहा जाएगा क्योंकि राममंदिर का निर्माण देश के अधिकतर लोगों की चिर संचित आकांक्षा है और प्रधानमंत्री जनभावनाओं के सबसे उपयुक्त प्रतिनिधि होते हैं। कुछ लोग संवैधानिक हैसियत के मद्देनजर उनके हिन्दुओं के एक मंदिर की आधारशिला रखने हेतु जाने को धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध बता रहे हैं। लेकिन आजादी के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद  गुजरात के ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के बाद आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मना करने के बाद भी गये थे। धर्मनिरपेक्षता के प्रति नेहरू जी का वह  आग्रह कालान्तर में पाखंड बन गया क्योंकि  सरकारी खर्चे पर रोजा अफ्तार का आयोजन करते समय किसी को संविधान की रोक -टोक याद नहीं रहती थी। श्री मोदी को अयोध्या जाने से रोकने के लिए असदुद्दीन ओवैसी आवाज उठायें तो बात समझ आती है लेकिन शरद पवार सहित कुछ हिन्दू धर्मगुरु भी उस पर नाक सिकोड़ें ये देखकर आश्चर्य होता है। श्री पवार ने तो यहाँ तक कटाक्ष कर  दिया कि मन्दिर बनाने से कोरोना ठीक हो जाएगा। लेकिन उनकी पार्टी के टेके से चल रही महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना ने राम मन्दिर निर्माण के लिए 1 करोड़ का दान देकर श्री पवार को आईना दिखा दिया। उनमें हिम्मत हो तो वे श्री ठाकरे  और उनकी पार्टी पर भी तंज करके बताएं। सही बात ये है कि भाजपा विरोधी तमाम पार्टियां मन्दिर को लेकर शुरू से ही गलत रास्ते पर चल पड़ीं। भाजपा ने बेशक इस मुद्दे का लाभ लेकर अपना उत्थान किया लेकिन इसके लिये भी उसके विरोधी ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने उसके अंधे विरोध के फेर में जनमानस को पढऩे में चूक की। स्व. राजीव गांधी ने शाह बानो सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को उलटकर जो भूल की वैसी ही बाकी गैर भाजपा पार्टियाँ भी मन्दिर मुद्दे पर विपरीत दिशा में जाकर कर बैठीं। उम्मीद थी कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद इस मुद्दे से राजनीति दूर हो जायेगी। लेकिन भूमि पूजन में  अड़ंगा लगाने की कोशिशें जिस तरह सामने आईं और उसके साथ ही श्री मोदी के अयोध्या जाने को लेकर विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं उनसे लगता है कि विपक्ष गलतियों को दोहराने की हिमाकत कर रहा है। यदि वह मंदिर निर्माण शीघ्र करने के प्रयासों का स्वागत करते हुए सहयोग की पहल करे तब निश्चित रूप से भाजपा या प्रधानमंत्री पूरा श्रेय नहीं ले सकेंगे।  राम मंदिर अब एक वास्तविकता है जिसे रोकने की कोशिश देश के अधिकतर लोगों को ठेस पहुंचाने वाली है। बेहतर हो गैर भाजपाई तबका 5 अगस्त के आयोजन के ऐतिहासिक महत्व को समझकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाये। गुजरात में विश्व की सबसे बड़ी सरदार पटेल की जो मूर्ति बनाई गयी उसका भी इसी तरह विरोध किया गया जिससे सरदार साहब की विरासत सहज रूप से भाजपा ने हथिया ली। राम के नाम पर किसी तरह की राजनीति भाजपा न कर सके इसके लिए जरूरी है कांग्रेस सहित अन्य पार्टियाँ भी अयोध्या मुद्दे पर विरोध के लिए विरोध करना बंद करते हुए मंदिर  निर्माण में सहभागिता दें। शिवसेना ने कांग्रेस और शरद पवार दोनों को ये बता दिया है कि वह उनके  साथ सत्ता में हिस्सेदार रहकर भी जन भावनाओं के विरुद्ध जाने का खतरा नहीं उठाना चाहती।

- रवीन्द्र वाजपेयी


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