Thursday 9 July 2020

कांग्रेस और गांधी परिवार पर जवाबदेही का दबाव



1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद स्व. अर्जुन सिंह ने सोनिया गांधी को कांग्रेस की  बागडोर संभालने के लिए काफी मनाया था | लेकिन उस समय वे अपने पति की की दर्दनाक मौत के बाद परिवार की सुरक्षा के लिए ज्यादा चिंतित थीं | लिहाजा पार्टी की बागडोर स्व. पीवी  नरसिम्हाराव और फिर स्व. सीताराम केसरी जैसों के हाथ में आ गयी | इस दौरान न सिर्फ स्व. अर्जुन  सिंह और स्व. नारायण दत्त तिवारी अपितु गांधी परिवार के निकटस्थ पी. चिदम्बरम और स्व. माधवराव सिन्धिया तक ने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बनाई | कुछ समय तक ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस और गांधी परिवार का नाता खत्म हो चला था किन्तु बाद में राजनीति ने फिर पलटा खाया और श्री सिंह की योजना के चलते श्री केसरी  को उठाकर कांग्रेस मुख्यालय से बाहर करते हुए श्रीमती गांधी को बागडोर सौंप दी गई | इस फैसले पर किसी को न आश्चर्य   हुआ और न ही आपत्ति | अतीत में नेहरू जी के दौर में ही उनके बेटी स्व. इंदिरा गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर मुख्य धारा में स्थापित  कर दिया गया था | इंदिरा जी की उसके पहले कांग्रेस संगठन में कौन सी महत्वपूर्ण भूमिका में रही ये विश्लेषण का विषय है | स्व. अर्जुन सिंह ने सोनिया गांधी को कांग्रेस की कमान सौपते समय उठे सवालों के जवाब में कहा था कि गांधी परिवार कांग्रेस को एकसूत्र में बांधे रखने वाली  शक्ति है | 2004 में कांग्रेस की सत्ता में वापिसी से सोनिया जी के चयन की सार्थकता स्वयंसिद्ध हो गयी | लेकिन अंततः परिवार की परम्परा का निर्वहन करते हुए उन्होंने भी पंडित नेहरु और इंदिरा जी की तरह अपने बेटे राहुल और बेटी प्रियंका को कांग्रेस संगठन के शीर्ष पदों पर स्थापित कर दिया | नेहरु जी  और इंदिरा जी के समय तो फिर भी पार्टी में असहमति के दो - चार स्वर सुनाई दे जाते थे लेकिन आज की कांग्रेस पूरी तरह से गांधी परिवार की गिरफ्त में है | 2019 के लोकसभा चुनाव की पराजय  का दायित्व लेते हुए जब राहुल ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ते हुए संकेत दिया कि कोई गांधी इस पद पर नहीं  आएगा तब ये आशा बंधी थी कि पार्टी में  आन्तरिक लोकतंत्र का जो वायदा उन्होंने शुरुवात में किया था उसे वे पूरा करेंगे किन्तु अनेक महीनों की  अनिश्चितता के बाद भी कांग्रेस को कोई अध्यक्ष लायक नहीं मिला और ले देकर सोनिया जी ही कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर फिर मुखिया  बन बैठीं | उनकी पुत्री प्रियंका वाड्रा भी महासचिव पद पर कायम हैं | जबकि कुछ न रहते हुए भी राहुल ही पार्टी  के चेहरे बने हुए हैं | उससे भी बड़ी बात ये है कि गांधी परिवार ये स्वीकार नहीं कर पा रहा कि देश की सत्ता उनके हाथ में नहीं है | उनकी पूरी राजनीति में जो राजशाही अंदाज झलकता है वही उनके और कांग्रेस दोनों के लिए समस्या पैदा कर  रहा है | बतौर विपक्षी नेता सरकार पर तीखा हमला करना गांधी परिवार का फर्ज भी है और अधिकार भी , किन्तु उनकी  शान में कोई गुस्ताखी न हो , ये सोचना गैर प्रजातांत्रिक है | ताजा प्रसंग इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट , राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की जाँच का है | बीते कुछ समय से गांधी परिवार मोदी सरकार के विरुद्ध बेहद आक्रामक और  मुखर हो उठा था | लद्दाख में चीनी घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाकर प्रधानमंत्री को घेरने का अभियान जैसा चलाया  जा रहा था | बतौर विपक्षी उनका ऐसा करना स्वाभाविक माना जा सकता था किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा जब दांव पर लगी हो तब विपक्ष भी जिस जिम्मेदारी का परिचय अतीत में देता रहा वह गांधी परिवार भुला बैठा | और इसी झोंक में राहुल ने प्रधानमंत्री के नाम का मजाक बनाते हुए उन्हें सरेंडर मोदी कहकर सम्बोधित किया | इसके अलावा श्री मोदी पर लगातार ये आरोप लगाया  जाता रहा कि वे चीन से डरते हैं और इसीलिये पूरे विवाद के दौरान उन्होंने न उसका नाम लिया न ही वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का | लेकिन जब श्री गांधी ने प्रधानमंत्री को सरेंडर मोदी कहा तब भाजपा ने भी तुरुप का पत्ता निकालकर गांधी परिवार और कांग्रेस के चीन से मधुर रिश्तों का पिटारा खोलते हुए पलटवार कर दिया | सामने आये भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश  नड्डा | उन्होंने कांग्रेस पार्टी के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हुए समझौता ज्ञापन (एमओयू) का खुलासा करते हुए राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन सरकार तथा चीनी दूतावास से धन मिलने की बात सार्वजनिक की  | इसके साथ ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष से भी  फाउंडेशन को धन दिये  जाने की बात सामने लाई गई | डोकलाम विवाद के समय राहुल के दिल्ली स्थित चीनी दूतावास में जाने के  साथ ही  जिनपिंग सहित दूसरे चीनी नेताओं के साथ राहुल और श्रीमती गांधी की निजी मुलाकातों पर भी सवाल दागे गए | और गत दिवस उक्त सभी संस्थानों की जाँच हेतु केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा विभिन्न मंत्रालयों को मिलाकर एक  समिति बना दी गयी जो उनको चीन और अन्य विदेशी स्रोतों से मिले धन की जाँच करेगी | इस पर राहुल ने गुस्से से भरा एक ट्वीट किया जिसमें प्रधानमन्त्री पर तीखे कटाक्ष किये गये | उक्त सभी संस्थान कहने को तो सार्वजनिक न्यास हैं लेकिन वस्तुतः उन पर गांधी परिवार का  ही पूरा नियन्त्रण है | इनकी गतिविधियों से वैसे तो किसी को सरोकार नहीं  रहा लेकिन कांग्रेस पार्टी की पूरी तरह विपरीत  विचारधारा वाली चीन की कम्यनिस्ट पार्टी के साथ जुगलबन्दी और फिर राजीव गांधी के नाम से बने फाउंडेशन को चीन से मिले अनुदान के अलावा मिली अन्य विदेशी आर्थिक  सहायता के कारण  संदेह और गहरा गये | इसमें दो राय नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष  द्वारा किया गया हमला विशुद्ध राजनीतिक पैंतरा था और सरकार द्वारा गत दिवस बिठाई गई जांच को भी कांग्रेस तथा गांधी परिवार को घेरने का प्रयास कहा जा सकता है | लेकिन फाउंडेशन द्वारा अपनी वार्षिक  जाँच रिपोर्ट में चीन से मिले धन के साथ प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष से हासिल अनुदान का विवरण देने के बावजूद उनका औचित्य साबित करने में कांग्रेस और गांधी परिवार अब तक तो विफल रहे हैं | नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर चल रहे राहुल और श्रीमती गांधी पर इस जाँच में भी अपराधिक प्रकरण बनेगा या नहीं  ये कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इससे उनका नैतिक पक्ष कमजोर हुआ है | अभी तक श्री गांधी ने चीनी दूतावास जाने , चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से सम्झौता ज्ञापन हस्ताक्षरित करने और फाउंडेशन को चीनी अनुदान के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं  दिया  | सरकारी जांच तो अपनी गति से चलेगी और उसके पीछे के निहित उद्देश्य से भी इंकार नहीं  किया जा सकता किन्तु कांग्रेस और गांधी परिवार   केवल सियासी प्रतिशोध का आरोप  लगाकर खुद को सहानुभूति का पात्र नहीं  बना सकते | उसके लिए जरूरी है वह राजपरिवार वाली श्रेष्ठता की मानसिकता से बाहर निकलकर जनता के बीच उक्त प्रश्नों का जवाब दे क्योंकि बाकी सब बातें तो अपनी  जगह हैं किन्तु कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच समझौता और राजीव गांधी के नाम से बने संस्थान को चीन  सरकार से प्राप्त  धन के बारे में तो जनता को साफ़ - साफ़ बताना ही चाहिये | फ़िलहाल तो गांधी परिवार और उसके साथ ही कांग्रेस के लिए कठिन स्थितियां बनती जा रही हैं | यदि इनसे ठीक तरह से नहीं निपटा गया तो पार्टी में टूटन की आशंका और मजबूत हो जायेगी | और बकौल स्व. अर्जुन सिंह जो गांधी परिवार कांग्रेस की एकजुटता का आधार रहा वही उसके बिखराव की वजह बन सकता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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