Saturday 18 July 2020

पहला दौर जीतने के बाद धैर्य रखना चाहिए था गहलोत को



राजस्थान  का राजनीतिक रण जिस दिशा में बढ़ रहा है उसके कारण संवैधानिक संकट उत्पन्न हो सकता है। मुख्यमंत्री  अशोक गहलोत ने अपने बहुमत का जुगाड़ करते ही जिस तरह के तेवर दिखाए उससे कांग्रेस  आलाकमान भी हतप्रभ है। सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से  हटाने के अलावा उनके साथ बागी हुए दो मंत्रियों की छुट्टी के बाद श्री गहलोत का रास्ता साफ़ हो चुका था। ये बात स्पष्ट  हो चुकी है कि श्री पायलट के पास सरकार गिराने या भाजपा के सहयोग से बनाने लायक संख्याबल नहीं है। और अभी तक की स्थिति में वे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। बजाय बागी विधायकों को योग्यता संबंधी नोटिस देने के श्री गहलोत बेहतर होता विधानसभा का सत्र बुलवाकर अपना बहुमत साबित करने का दांव  चलते और तब पायलट खेमा पार्टी व्हिप के फेर में फंसकर या तो सरकार का समर्थन करता या उल्लंघन करने पर सदस्यता गंवाता। इसी तरह जब कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को माफ़ करने के ऐलानिया आश्वासन के साथ गुस्सा थूककर घर लौट आने के लिए पुचकारने में लगा था तभी श्री गहलोत ने अपने बयान के जरिये जहर बुझे तीर  छोड़कर हाईकमान को झटका दे दिया। उनकी रणनीति इस बारे में बहुत स्पष्ट है। वे समझ चुके हैं कि कांग्रेस की केन्द्रीय राजनीति में वे अपरिहार्य हैं। जैसी कि चर्चा है पार्टी के केन्द्रीय कार्यलय का खर्च राजस्थान से ही पुजाया जाता है। केन्द्रीय नेतृत्व में अब इतना दम नहीं है कि वह किसी राज्य के मुख्यमंत्री को चलता कर सके।  इसमें दो मत नहीं हैं कि कांग्रेस पार्टी आज भी गांधी परिवार के इर्द - गिर्द ही मंडराती है किन्तु उसका रौब-रुतबा पहले जैसा नहीं रहा। इसकी वजह साफ है। अव्वल तो 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद राजस्थान और मप्र में राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य  सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं  बन सके। सचिन को तो खैर उपमुख्यमंत्री  की गद्दी ही नसीब हो गई जबकि श्री सिंधिया लोकसभा चुनाव हारकर पूरी तरह हाशिये पर आ गये। राहुल की नजदीकी के बावजूद जब प्रदेश में उनकी उपेक्षा जारी रही तब वे बगावत कर बैठे और कमलनाथ सरकार धराशायी हो गयी। राजस्थान में भी जिन सचिन पायलट ने बगावत का झंडा उठाया वे भी टीम राहुल के अन्तरंग सदस्य थे। इन दो उदाहरणों से स्पष्ट हो गया कि राहुल गांधी के अत्यंत करीबी युवा नेताओं का ही कांग्रेस से मोहभंग होने लगा क्योंकि वरिष्ठ नेता उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं देते वहीं  राहुल भी उनका संरक्षण करने में विफल रहे हैं। गांधी परिवार के अत्यंत करीबी माने जाने वाले कुछ वरिष्ठ नेतागण  भी इस बात से रुष्ट हैं कि पार्टी का प्रथम परिवार धीरे - धीरे अपनी पकड़ खो रहा है। ज्योतिरादित्य के बाद साचिन ने जिस तरह से सोनिया गांधी के अलावा राहुल और प्रियंका वाड्रा की उपेक्षा की वह साधारण बात नहीं है। अशोक गहलोत इस कमजोरी को भांप गए और उन्होंने बिना समय गँवाए श्री पायलट की  वापिसी  के सारे रास्ते बंद कर  दिए। ये भी चर्चा है कि इस खेल में उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भी गुप्त सहयोग मिल रहा है जो  इस दौरान पूरी तरह से  चुप्पी साधे हुए हैं। फिर भी  पायलट गुट की बगावत को काफी हद तक बेअसर कर देने के बाद श्री गहलोत को संभलकर कदम आगे बढ़ाना थे किन्तु  लगता है वे अति आत्मविश्वास का शिकार हो गये हैं। विधायकों  की खरीद फरोख्त संबंधी कुछ ऑडियो टेप को आधार बनाकर उनकी सरकार ने दो बागी  कांग्रेस विधायकों के साथ ही केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के विरुद्ध भी मामला पंजीबद्ध कर  उनसे पूछताछ के लिए विशेष जांच दल भेज दिया। यही नहीं तो उनकी गिरफ्तारी की मांग भी उठवा दी। स्मरणीय है श्री शेखावत ने ही जोधपुर लोकसभा सीट पर श्री गहलोत के पुत्र वैभव को रिकार्ड मतों  से हराया था। इस तरह की कार्रवाई से गहलोत परिवार की खीझ ही सामने आ रही है। ऑडियो टेप को लेकर की जा रही कार्रवाई धैर्य के साथ होती तो वह निष्कर्ष तक पहुंचती। लेकिन श्री गहलोत लगता है एक साथ अनेक मोर्चे खोल बैठे जो उनकी पूरी बढ़त को मटियामेट कर  सकती  है। सचिन पायलट का अभियान तो उन्होंने बड़ी ही चतुराई से फुस्स कर दिया किन्तु ये दूसरा मोर्चा उनके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। अभी तक भाजपा दूर से बैठकर नजारा देख रही थी। लेकिन मुख्यमंत्री ने अति उत्साह में जो कदम उठा लिए उनके बाद भाजपा हाईकमान भी यदि मैदान में आ गया तब श्री गहलोत की जादूगरी बेअसर होकर रह जायेगी। राजनीति में आक्रामक होना बुरा नहीं है लेकिन ये ध्यान भी रखना चाहिए कि आपके तीर इधर-उधर न चले जाएँ। वैसे राजस्थान की मौजूदा राजनीति में एक से बढ़कर एक पैंतरे देखने मिल रहे हैं परन्तु  मुख्यमंत्री ने बिना सोचे - समझे हमले जारी रखे तब उनका दम जल्दी फूलने का खतरा है।  उनको ये ध्यान रखना चाहिए कि सचिन की वापिसी में रोड़े अटकाकर उनने कांग्रेस  हाईकमान को भी छेड़ दिया है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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