कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही विभिन्न एजेंसियों द्वारा किये गए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के निष्कर्ष भी सार्वजनिक हो गये | इनका औसत निकालने पर ये बात सामने आई है कि भाजपा अपनी सत्ता गंवाती नजर आ रही है | एक – दो नतीजों में वह सबसे बड़ी पार्टी बन भी रही है लेकिन बहुमत से उसे दूर ही रहना पडेगा | हालाँकि 2018 में हुए चुनाव में भी कमोबेश यही स्थिति बनी थी | भाजपा 108 सीटें प्राप्त कर बहुमत से पीछे रह गई किन्तु राज्यपाल ने येदियुरप्पा को शपथ दिलवा दी जिन्होंने विश्वास मत अर्जित करने के पहले ही स्तीफा दे दिया और तब कांग्रेस ने जनता दल ( एस ) से हाथ मिलाकर सरकार बना ली जिसके मुख्यमंत्री कुमार स्वामी बनाये गए | लेकिन बाद में कांग्रेस में हुई तोड़फोड़ के बाद भाजपा ने अपनी सत्ता बना ली और येदियुरप्पा की ताजपोशी के कुछ समय बाद बसवराज बोम्मई को उनकी जगह बिठा दिया गया | बीते पांच साल में दक्षिण के इस राज्य में काफी राजनीतिक उठापटक चलती रही | जिसमें हिजाब विवाद सबसे प्रमुख रहा जिसने पूरे देश में हलचल मचाकर रख दी | कर्नाटक को भाजपा के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार कहा जाता है | यहाँ हिंदुत्व की लहर भी दिखाई देती है | मठों के बीच बंटी सामाजिक व्यवस्था में जातिगत समीकरण भी अंततः हिंदुत्व की ओर ही झुकते हैं जिसका लाभ लेकर भाजपा ने यहाँ अपनी जड़ें काफी मजबूत कर लीं | बावजूद इसके वह पिछले चुनाव में भी बहुमत हासिल नहीं कर सकी और ऐसी ही सम्भावना आगामी चुनाव को लेकर विभिन्न चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में देखने मिल रही है | हालाँकि अभी मतदान होने में 40 दिन शेष हैं और इतनी अवधि पलड़ा अपनी तरफ झुकाने के लिए काफी होती है | वैसे सर्वेक्षणों के अनुसार आम राय ये है कि मतदाता भले ही राज्य सरकार के कामकाज से संतुष्ट अथवा नाराज हों लेकिन तकरीबन 50 फीसदी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम से खुश हैं वहीं 15 से 20 फीसदी ऐसे हैं जो उनके काम को औसत मानते हैं | इस प्रकार उनसे नाराज मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा 25 से 30 फीसदी ही दिखता है | और इसीलिये भाजपा इस आत्मविश्वास को पाले बैठी है कि मोदी जी उसकी नैया पार लगा लेंगे | जिस तरह बीते कुछ समय में उन्होंने कर्नाटक आकर रैलियाँ , रोड शो और उद्घाटन – शिलान्यास वगैरह किये उससे ये बात सामने आ गयी कि पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व कर्नाटक को हल्के में नहीं ले रहा | इसीलिये गृहमंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी लगातार कर्नाटक आते रहे | हालाँकि मोदी और शाह की भाजपा हर चुनाव को बेहद गंभीरता से लेती है | गुजरात दोनों का गृह राज्य है किन्तु वहां भी पिछले चुनाव में उन्होंने 2017 के परिणामों से सबक लेते हुए पूरी ताकत लगा दी और नतीजे भी ऐतिहासिक आये | इसी तरह जिस भी राज्य में चुनाव हुए दोनों ने अग्रिम मोर्चा संभाला | प. बंगाल और दिल्ली में जहाँ भाजपा को कम उम्मीद थी वहां भी उसने जबरदस्त मोर्चेबंदी की | ऐसे में कर्नाटक के चुनाव में भी मोदी – शाह की जुगलबंदी आख़िरी क्षण तक दम लगाएगी | उनकी सहायता के लिए उ.प्र और असम के मुख्यमंत्री क्रमशः योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्व सरमा भी मैदान में उतरेंगे जो अपनी प्रखर हिंदुत्व छवि के कारण चर्चा में रहते हैं | हो सकता है भाजपा अनुमानों को गलत साबित करते हुए मुकाबला अपने पक्ष में झुका ले जैसा गुजरात में देखने मिला | लेकिन इसके साथ ही ये भी याद रखना होगा कि उसी के साथ हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में वह अपनी सरकार गँवा बैठी | 2018 में थोड़े से अंतर से कर्नाटक गंवाने के बाद पार्टी म.प्र में भी बहुमत की देहलीज पर आकर रुक गयी जबकि छत्तीसगढ़ में वह बुरी तरह हारी और राजस्थान में भी बहुमत से काफी दूर रहते हुए विपक्ष में बैठने मजबूर हुई | यद्यपि कर्नाटक में उसने कांग्रेस में सेंध लगाते हुए सरकार बना ली किन्तु चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उसकी विजय पर मंडरा रहे शंका के बादल इस बात का इशारा करते हैं कि पार्टी धीरे – धीरे केन्द्रीय नेतृत्व के करिश्मे पर जरूरत से ज्यादा निर्भर करने लगी है | जहाँ तक श्री मोदी की छवि का सवाल है तो वह उन राज्यों में भी काफी अच्छी है जहाँ की जनता ने भाजपा को बहुमत देने से परहेज किया किन्तु लोकसभा चुनाव में उसकी झोली भर दी | कर्नाटक , म.प्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान इसके सबसे अच्छे उदहारण हैं जहां 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी भाजपा ने 2019 के लोकसभा में अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखा | लेकिन दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीतने के बाद भी विधानसभा चुनाव में उसे कामयाबी नहीं मिली | इससे ऐसा लगता है कि भाजपा अपने विशाल संगठन के बावजूद प्रादेशिक स्तर पर ऐसे नेता सामने नहीं ला पा रही जो अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी रखते हों | और जो हैं वे भी की पार्टी की बजाय खुद को मजबूत करने में लग जाते हैं | येदियुरप्पा को ही देखें तो भ्रष्टाचार के कारण उनको मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बावजूद भाजपा विधानसभा चुनाव में उनको सिर पर बिठाने मजबूर है | यही स्थिति राजस्थान में वसुंधरा राजे ने बना रखी है जो खेलेंगे या खेल बिगाड़ेंगे की राह पर चलती हैं | कहने का आशय ये कि सिद्धांतों और संगठन पर आधारित पार्टी की राज्य सरकार को जनता का विश्वास दोबारा अर्जित करने में इतनी परेशानी आना विचारणीय प्रश्न है | नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं जिनके बारे में राजनीतिक पंडित भी मान रहे हैं कि वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं किन्तु ऐसा ही विश्वास उ.प्र और असम के अलावा अन्य राज्यों के भाजपाई मुख्यमंत्रियों के बारे में व्यक्त क्यों नहीं किया जाता ये शोचनीय है | कर्नाटक के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण को अंतिम परिणाम मान लेने का दावा तो सम्बंधित एजेंसियां भी नहीं कर रहीं | लेकिन इसे हवा का रुख तो माना ही जा सकता है | नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से भाजपा का चेहरा हैं लेकिन जिस तरह कांग्रेस की गांधी परिवार पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता कालान्तर में उसके लिए नुकसानदेह साबित हुई उससे भाजपा को सबक लेना चाहिए |
- रवीन्द्र वाजपेयी