आम आदमी पार्टी जिस तेजी से राजनीतिक परिदृश्य पर उभरी उसके बाद ये कहा जाने लगा था कि वह 2024 तक राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर स्थापित हो जायेगी | दिल्ली विधानसभा के दो चुनाव जिस धमाकेदार अंदाज में उसने जीते उसी की पुनरावृत्ति पंजाब में भी हुई जहां उसने कांग्रेस , अकाली दल और भाजपा सभी का सफाया कर दिया | हालाँकि गोवा , उत्तराखंड , हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनाव उसके लिए निराशजनक रहे | बावजूद उसके दिल्ली नगर निगम पर कब्जा करने से उसका हौसला बेशक मजबूत हुआ है | और इसी वजह से पार्टी के सर्वेसर्वा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कर्नाटक के दौरे पर चले गए और उसके बाद उनके छत्तीसगढ़ , म.प्र और राजस्थान प्रवास का कार्यक्रम भी बन गया है जहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं | राष्ट्रीय पार्टी बनने की महत्वाकांक्षा श्री केजरीवाल के मन में पहले दिन से ही थी और उसी के अंतर्गत उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में ही वाराणसी में नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़े होने का दुस्साहस किया | यही नहीं पार्टी के संस्थापकों में रहे कवि कुमार विश्वास को अमेठी और योगेन्द्र यादव को भी गुडगाँव से मैदान में उतार दिया | ये तीनों तो चुनाव हार गए लेकिन पंजाब में पार्टी के चार सदस्य जीतकर आये जिनमें से एक भगवंत सिंह मान आजकल उस राज्य के मुख्यमंत्री हैं | उसके बाद श्री केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली की विधानसभा में पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत मिला | आम आदमी पार्टी का जन्म दिल्ली में अन्ना हजारे द्वारा लोकपाल की मांग को लेकर किये गए 12 दिवसीय अनशन के बाद हुआ था | उसके मूलभूत आदर्शों में ईमानदारी , सादगी और सेवा भाव थे | सत्ता में आने पर सरकारी वाहन , बंगला और वेतन आदि से परहेज की बात भी कही गयी | लेकिन सरकार बनाते ही बतौर मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने सारी सुविधाएं प्राप्त कर लीं | विधायकों के वेतन - भत्ते बढ़ा देने के साथ ही उनमें से अनेक को मंत्री का दर्जा देकर सत्ता का सुख प्रदान कर दिया गया | इससे असंतोष फैला और जल्द ही संस्थापक सदस्य शांति भूषण , प्रशांत भूषण , कुमार विश्वास , योगेन्द्र यादव और डा. आनंद कुमार पार्टी से निकल गए या निक़ाल दिए गए | उसके राज्यसभा सदस्यों में से संजय सिंह और राघव चड्डा को छोड़ दें तो एक भी ऐसा नहीं है जो पार्टी के सिद्धांतों और आदर्शों के मापदंडों पर खरा उतरता हो | चंदे के बारे में जिस पारदर्शिता का उदाहरण शुरुआती दौर में पेश किया गया वह भी धीरे - धीरे हवा - हवाई होकर रह गया | 2014 में पंजाब की चार लोकसभा सीटें जीतने वाला करिश्मा 2019 में केवल भगवंत सिंह मान की एक सीट पर सिमट गया | और जब वे मुख्यमंत्री बने तब उनके द्वारा रिक्त की गयी संगरूर सीट पर भी अकाली दल ( अमृतसर ) के सिमरनजीत सिंह मान जीत गए जो खालिस्तान समर्थक माने जाते हैं | इस तरह दो राज्यों में भारी बहुमत वाली सरकार चला रही आम आदमी पार्टी का लोकसभा में एक भी सदस्य नहीं है | दिल्ली की सातों सीटों पर भी वह बुरी तरह हारी | इस सबके बाद जब उसने राष्ट्रीय पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने का जो प्रयास किया उसमें उसकी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता का क्षरण होता चला गया | धीरे – धीरे ये बात सामने आने लगी कि वह भी अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह सत्ता के मकड़जाल में फंसकर रह गयी है और उसके लिए वह किसी भी हद तक जाने तैयार है | पंजाब चुनाव में जब उस पर खालिस्तान समर्थकों से समर्थन लेने का आरोप लगा तब सहसा विश्वास नहीं हुआ किन्तु भगवंत सिंह मान के मुख्यमंत्री बनते ही पंजाब में नब्बे के दशक वाले हालात नजर आने लगे हैं | मुफ्त बिजली और पानी के आश्वासन खजाने के खाली होने से पूरे नहीं हो पा रहे | दिल्ली में भी बिजली की सब्सिडी घटाने का प्रस्ताव है | जिन मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी विद्यालयों का गुणगान पूरे देश में किया जाता है वे भी अव्यवस्था के शिकार हो रहे हैं | दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री अपने राज्यों की समस्याएँ हल करने की बजाय दूसरे राज्यों में सरकार बनाने के लिए घूम रहे हैं | इसी बीच दिल्ली का शराब घोटाला उभरकर सामने आ गया जिसमें आम आदमी पार्टी में दूसरे नम्बर की हैसियत रखने वाले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया गिरफ्तार कर लिए गए | और उन पर सीबीआई और ईडी दोनों ने शिकंजा कस दिया है | भले ही श्री केजरीवाल और उनकी पार्टी के अन्य नेता कुछ भी कहें लेकिन जिस तरह की जानकारी सामने आ रही है उससे लगता है कि बिना आग लगे धुंआ नहीं निकलता | हालाँकि इस मामले में अंतिम निर्णय तो अदालत करेगी किन्तु इस तरह के घोटालों से किसी भी पार्टी या नेता की छवि और विश्वसनीयता को होने वाला नुकसान दूरगामी असर वाला होता है | और कोई पार्टी होती तो इतनी हायतौबा नहीं मचती लेकिन जो पार्टी स्वयं को गंगा की तरह पवित्र मानने का दावा करती थी जब उसके दामन पर इस तरह के छींटे पड़ते हैं तब आम जनता द्वारा लगाई गयी उम्मीदें टूटती हैं | बीते कुछ दिनों में इस घोटाले के बारे में जो कुछ भी जानकारी आई है उसके बाद आम आदमी पार्टी के सामने बड़ा संकट उत्पन्न हो सकता है | वैसे भी आन्दोलन से निकली राजीतिक पार्टियों की आयु ज्यादा नहीं होती | आम आदमी पार्टी भी उसी दिशा में बढ़ती दिख रही है |
रवीन्द्र वाजपेयी
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