दिल्ली में आज लोकतंत्र बचाओ रैली हो रही है। राहुल गाँधी की न्याय यात्रा के समापन पर मुंबई में आयोजित रैली के बाद विपक्ष का यह दूसरा बड़ा शक्ति प्रदर्शन है। इंडिया नामक गठजोड़ में शामिल नेता चुनाव के मौसम में इतनी जल्दी दोबारा एक मंच पर जमा होने राजी न हुए होते किंतु दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तार होने और आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस को 1800 करोड़ के कर और जुर्माने का भुगतान करने की कारवाई ने उन्हें इस हेतु मजबूर कर दिया।
सही बात ये है कि कानूनी प्रक्रिया को इकतरफा बताकर विपक्ष जनता के मन में ये बात बिठाने का प्रयास कर रहा है कि भाजपा सत्ता का दुरूपयोग करते हुए उसको चुनाव मैदान में निहत्था और साधनविहीन करने में जुटी है। श्री केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के बैंक खातों के संचालन पर लगी रोक पर जिस तरह से अमेरिका, जर्मनी और संरासंघ से प्रतिक्रियाएं आईं उनसे विपक्ष का हौसला मजबूत हुआ किंतु भारत सरकार द्वारा जिस कड़ाई से उनका जवाब दिया गया उससे ये लगा कि भाजपा को उनसे कोई तकलीफ नहीं है।
उक्त दोनों मामले अदालत के समक्ष आ चुके थे । दिल्ली के मुख्यमंत्री को अचानक नहीं पकड़ा गया । ईडी लंबे समय से उनको समन भेज रही थी जिनकी उन्होंने कोई परवाह नहीं की। और तो और संभावित गिरफ्तारी से बचने उच्च न्यायालय जा पहुंचे। उनको उम्मीद थी कि ईडी द्वारा भेजे गए समन की वैधानिकता पर सवाल उठाकर वे उसके बुलावे से बचते रहेंगे किंतु उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी पर रोक लगाने से मना करते हुए ईडी का हौसला बुलंद कर दिया। वरना एन चुनाव के समय वह उनको नहीं पकड़ती। इसी तरह काँग्रेस को ये मुगालता था कि आयकर विभाग की कारवाई को वह राजनीतिक प्रतिशोध का नाम देकर चुनाव तक बची रहेगी। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गाँधी ने पत्रकार वार्ता के जरिये ये रोना भी रोया कि पार्टी के पास खर्च चलाने पैसे नहीं हैं। उसके बाद पार्टी उच्च न्यायालय भी गई किंतु वहाँ से भी राहत नहीं मिली।
यदि मामला केवल श्री केजरीवाल की गिरफ्तारी तक सीमित रहता तब शायद कांग्रेस इस रैली हेतु राजी न होती किंतु आयकर विभाग द्वारा 1800 करोड़ की मांग भेजे जाने के बाद वह मजबूर नजर आई । हालांकि उच्चस्तरीय नेतृत्व भले ही आम आदमी पार्टी के संकट में साथ देने की सौजन्यता दिखा रहा हो किंतु निचले स्तर पर कांग्रेसी श्री केजरीवाल की गिरफ्तारी से मन ही मन प्रसन्न हैं। इसका कारण ये है कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की दुर्गति का कारण यही पार्टी है।
इन दिनों श्री केजरीवाल के पुराने भाषण का एक वीडियो जमकर प्रसारित हो रहा है जिसमें वे केंद्र सरकार को ललकारते हुए कहते रहे हैं कि दम है तो सोनिया गाँधी को गिरफ्तार कर पूछताछ करो और वैसा न करने पर ईडी और सीबीआई को भंग करने का उलाहना भी दे रहे हैं। कांग्रेस के प्रति आम आदमी पार्टी का रवैया दरअसल शराब नीति घोटाले के उजागर होने के बाद उदार हुआ। इसका एक कारण ये भी है कि उक्त घोटाला कांग्रेस की शिकायत पर ही चर्चा में आया। जब मनीष सिसौदिया को ईडी ने गिरफ्तार किया तब कांग्रेस उसका स्वागत करने में आगे - आगे रही।
ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए आम आदमी से हिसाब चुकता करने का ये सुनहरा अवसर था। पंजाब में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और दिल्ली में मात्र तीन। यदि कांग्रेस अकड़ जाती तब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी को भारी घाटा होना तय था। गाँधी परिवार और स्व. शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली पर कब्जा जमाया था। आज भी उसने उन आरोपों को न तो वापस लिया और न ही खेद व्यक्त किया। उसका जो रवैया है उसे देखते हुए यह पार्टी आगे भी कांग्रेस को बख्श देगी ये सोचना निरी मूर्खता है। कांग्रेस का आयकर का मसला पूरी तरह तकनीकी है जिसमें उसे कर और दंड राशि देनी ही होगी। ऐसे में विपक्ष की रैली से उसे राहत मिलने वाली नहीं है। लेकिन पूरे विपक्ष को साथ लाकर आम आदमी पार्टी अपने भ्रष्टाचार के प्रति सहानुभूति अर्जित करने का दांव खेल रही है।
कांग्रेस के रणनीतिकार श्री केजरीवाल के मकड़जाल में इतनी आसानी से फंस गए ये देखकर आश्चर्य होता है। ऐसा लगता है गाँधी परिवार सहित कांग्रेस के अन्य नेताओं का आत्मविश्वास जवाब दे चुका है। इसीलिए आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव और लालू प्रसाद यादव आदि कांग्रेस पर हावी होने का साहस दिखा सके। ममता बैनर्जी ने तो उसे एक सीट तक नहीं दी।
- रवीन्द्र वाजपेयी