Sunday 24 March 2024

म.प्र में सूपड़ा साफ होने से बचाने में लगी कांग्रेस दिग्विजय को लड़वाकर कमलनाथ को दिया संदेश




    विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा पर ये तंज कसती थी कि उसके पास मजबूत प्रत्याशी नहीं होने से उसने 6 सांसदों को उम्मीदवार बनाया जिनमें 3 तो केंद्र सरकार में मंत्री थे। राष्ट्रीय महामंत्री रहे कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर से उतारा गया। कांग्रेस के उस व्यंग्य में कुछ हद तक सच्चाई भी थी क्योंकि सारे विश्लेषण म.प्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच करीबी संघर्ष बता रहे थे। लेकिन जब परिणाम आये तब भाजपा हाईकमान की रणनीति सटीक साबित हो गई। हालांकि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला जिले की निवास और सांसद गणेश सिंह सतना सीट से हार गए किंतु नरेंद्र सिंह तोमर - दिमनी, प्रहलाद सिंह पटेल- नरसिंहपुर, कैलाश विजयवर्गीय - इंदौर, रीति पाठक - सिंगरौली और उदय प्रताप सिंह गाडरवारा से बड़े अंतर से जीते।
      भाजपा ने उक्त प्रयोग अन्य राज्यों में भी अपनाया और उसे अपेक्षित सफलता मिली।  ये बात सही है कि बड़े चेहरों को छोटे चुनाव में उतारने से एक तो पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा वहीं दूसरी तरफ विपक्षी उम्मीदवार और उसकी पार्टी मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गई। उस प्रयोग की सफलता ने कांग्रेस को भी उसका अनुसरण करने प्रेरित किया जिसका प्रमाण उसके द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राजगढ़ और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को रतलाम से प्रत्याशी बनाए जाने से मिला।   विधानसभा चुनाव में मिली करारी पराजय के बाद  मनोबल पूरी तरह टूटने से  उसके पास प्रत्याशियों का टोटा हो चला था। बड़े नेता सुनिश्चित पराजय की वजह से  मुँह चुराते फिर रहे थे। मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में मात खाने के बाद कमलनाथ के जबलपुर से लड़ने की चर्चा चली तो उन्होंने छिंदवाड़ा से बाहर जाने की बात को नकार दिया। वैसे भी भाजपा में उनके और बेटे के आने की अटकलबाजियों ने उनकी साख पार्टी के भीतर काफी कम कर दी। यहाँ तक कि छिंदवाड़ा में उनके अति विश्वस्त दीपक सक्सेना तक ने उनका साथ छोड़ दिया। कांग्रेस से जिस बड़ी संख्या में नेताओं की भगदड़ मची हुई है उसने भी  हौसले ठंडे कर रखे हैं।

    सबसे बड़ी बात ये देखने मिल रही है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार को नियुक्त किये जाने के हायकमान के फैसले को भी कांग्रेसजन  पचा नहीं पा रहे। कमलनाथ भी उन्हें हटाये जाने के तरीके से अपमानित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस में बड़ा शून्य पैदा हो गया था। इसीलिए दिग्विजय सिंह और कांतिलाल भूरिया को मैदान में उतारा गया है। दरअसल पार्टी ये संदेश देना चाहती है कि उसके पास अभी भी कुछ योद्धा शेष हैं। इसके अलावा  कमलनाथ को भी ये एहसास करवाया जा रहा है कि उनके छिंदवाड़ा में बैठ जाने के बावजूद कांग्रेस पूरे प्रदेश में लड़ने का माद्दा रखती है।

       राजगढ़ दिग्विजय सिंह की पुरानी सीट है। हालांकि उनकी जीत सुनिश्चित नहीं है क्योंकि ज्यादातर विधायक भाजपा के हैं। लेकिन उनके पास खोने को कुछ नहीं है। हारने पर  भी राज्यसभा सदस्य तो वे रहेंगे ही। इस दांव से वे फिर से कांग्रेस हायकमान के चहेते हो गए।सही बात तो ये है कि उनको अपने पुत्र जयवर्धन की फिक्र सता रही है। उसी वजह से उनका भाई लक्षमण सिंह नाराज हो उठे हैं।
      कांग्रेस द्वारा दो दिग्गजों को लोकसभा चुनाव लड़वाने का क्या लाभ होगा ये तो परिणाम के दिन ही पता चलेगा किंतु इस कदम के जरिये हायकमान ने दिग्विजय को विवादास्पद बयान देने से भी रोक दिया है जिनकी वजह  से उसको जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ता है। चूंकि वे खुद उम्मीदवार बन गए इसलिए जुबान पर नियंत्रण रखेंगे।

     हालांकि दो वरिष्टों को लड़वाने के बाद भी कांग्रेस चुनौती देती नहीं दिख रही। उसके कुछ प्रत्याशी दबाववश तो कुछ प्रचारित होने के लिए लड़ रहे हैं। सही बात तो ये है कि कांग्रेस का लक्ष्य भाजपा को सभी 29 सीटें जीतने से रोकना मात्र रह गया है। छिंदवाड़ा में नकुलनाथ बुरी तरह घिर चुके हैं जिस वजह से उनके पिताश्री वहीं फंसे हैं। खुद कांग्रेसी कह रहे हैं कि यदि पांच सीटें भी मिल गईं तो वह बड़ी उपलब्धि होगी। 


रवीन्द्र वाजपेयी

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