Thursday 7 March 2024

शाहजहां को बचाने के फेर में अपना नुकसान कर बैठीं ममता


प.बंगाल का संदेशखाली बीते कुछ समय से राष्ट्रीय स्तर चर्चाओं में बना हुआ है। 24 परगना जिले में स्थित उक्त कस्बे में शाहजहां शेख नामक नेता के यहां राशन घोटाले को लेकर जनवरी माह में ईडी की जिस टीम ने छापा मारा उस पर घातक हमला किया गया। और उसी बीच वह फरार हो गया। बाद में स्थानीय महिलाओं ने शेख़ और उसके साथियों द्वारा उनका यौन शोषण किए जाने की जानकारी सार्वजनिक की  । लोगों की जमीनें जबरन कब्जाने की शिकायतें भी आईं। जब विरोधी दलों ने ममता सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो कुछ लोगों की गिरफ्तारी तो कर ली गई लेकिन शाहजहां फरार ही रहा। अंततः जब उच्च न्यायालय ने 7 दिनों में उसे पकड़कर पेश करने कहा तब  बड़ी ही आसानी से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।  ये भी सुनने में आया कि राज्य  सरकार को इस बात का डर था कि वह ईडी या सीबीआई की पकड़ में न आ जाए ।उच्च न्यायालय की फटकार के बाद जिस आसानी से शाहजहां  को गिरफ्तार किया गया उस पर  सामान्य प्रतिक्रिया यही रही कि 55 दिनों तक वह कहां रहा इसकी जानकारी पुलिस को थी। मामले में रोचक मोड़ तब आया जब दो दिन पूर्व उच्च न्यायालय ने उसे सीबीआई को सौंपने के साथ उसके विरुद्ध दर्ज  सभी 42 मामलों के दस्तावेज भी जांच एजेंसी के हवाले करने का आदेश दिया। लेकिन प.बंगाल सरकार ने आदेश का पालन करने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी । लेकिन वहां भी तुरंत सुनवाई नहीं हुई । और जब ममता सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो मजबूरन  शाहजहां को सीबीआई के हवाले किया।  सर्वोच्च न्यायालय राज्य सरकार की अपील पर क्या फैसला लेता है ये अभी तय नहीं है किंतु उच्च न्यायालय ने  शाहजहां की गिरफ्तारी के लिए राज्य की पुलिस के अलावा ईडी और सीबीआई को भी अधिकार दिया था । समूचे घटनाक्रम में जो सबसे बड़ा मुद्दा उठ खड़ा हुआ वह है प.बंगाल सरकार द्वारा शाहजहां को सीबीआई के सुपुर्द करने में की गई अड़ंगेबाजी । उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बावजूद शाहजहां को केंद्रीय जांच एजेंसी के हवाले करने में ममता बैनर्जी को संभवतः यही डर होगा कि वह उसे प्राप्त संरक्षण का भंडाफोड़ न कर दे । यद्यपि तृणमूल कांग्रेस ने उसकी सदस्यता निलंबित कर दी परंतु उसे सीबीआई को सौंपने के  आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी लगाने से ये बात उजागर हो गई है कि उसे बचाने के लिए राज्य सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही। बड़ी संख्या में मामले दर्ज होने के बाद भी वह कानून की पकड़ से बाहर रहकर काले - कारनामों को अंजाम देता रहा जिससे  उसकी राजनीतिक पहुंच स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकरण से ममता बैनर्जी की छवि को जबर्दस्त नुकसान हुआ है। हालांकि उनकी तरफ से  ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा , शाहजहां के मुस्लिम होने के कारण मामले को तूल दे रही है किंतु संदेशखाली की महिलाओं ने जिस साहस के साथ उन पर हुए अत्याचार के लिए शाहजहां और उसके साथियों पर आरोप लगाए उसके बाद ममता को चाहिए था कि वे खुद उन पीड़ित महिलाओं और अन्य लोगों से मिलकर उनके घावों पर मरहम लगातीं किंतु उसके उलट वे शाहजहां को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाती रहीं। यदि न्यायपालिका ने सख्ती न दिखाई होती तो उक्त आरोपी अब तक फरार ही रहता। लोकसभा चुनाव के पहले उठा ये मामला तृणमूल के गले की हड्डी बन गया है।  राजनीतिक विश्लेषक भी ये कहने लगे हैं कि जिस तरह वामपंथी सरकार के लिए नंदीग्राम और सिंगुर प्रकरण नुकसानदेह साबित हुए थे ठीक वैसे ही संदेशखाली में शाहजहां शेख और उसके गुर्गों के जंगलराज को ममता सरकार का संरक्षण तृणमूल की जड़ें उखाड़ने का कारण बन सकता है। 2021 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अपने विरोधियों पर जबरदस्त तरीके से हावी हुई ममता पहली बार दबाव में  हैं। इंडिया गठबंधन के किसी भी घटक के उनके बचाव में नहीं आने से वे अकेली नजर आ रही हैं। कांग्रेस और वामपंथी दोनों संदेशखाली कांड में तृणमूल सरकार का विरोध कर चुके हैं। अब चूंकि शाहजहां केंद्रीय एजेंसी के सुपुर्द हो चुका है इसलिए अब ये उम्मीद की जा सकती है कि उसके अपराधों की सजा उसे मिलकर रहेगी। ममता को यही भय सता रहा है।


-रवीन्द्र वाजपेयी

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