विपक्षी गठबंधन इंडिया जिन दो राज्यों में सबसे अधिक मजबूत माना जा रहा था वे तमिलनाडु और महाराष्ट्र हैं। तमिलनाडु में तो द्रमुक की सरकार और संगठन दोनों बेहद मजबूत हैं। इसीलिए सभी चुनाव पूर्ण सर्वेक्षण वहाँ इंडिया की जबर्दस्त जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। शुरुआत में लग रहा था कि महाराष्ट्र भाजपा की राह में बड़ी बाधा बनेगा। कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के अलावा प्रकाश आंबेडकर जैसे कद्दावर दलित नेता के भी गठबंधन के साथ आ जाने से उसकी ताकत बढ़ी हुई नजर आ रही थी। राहुल गाँधी की न्याय यात्रा का समापन मुंबई में जिस विशाल रैली में हुआ उससे पूरा विपक्ष उत्साहित था। गठबंधन के बड़े चेहरे भी इसी राज्य से हैं। शिवसेना और एनसीपी में हुई टूटन और कांग्रेस से अशोक चव्हाण और मिलिंद देवड़ा के निकलने के कारण राजनीतिक खींचातानी काफी बढ़ गई थी। ये बात भी तेजी से उठी कि एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को सत्ता में बड़ी हिस्सेदारी देने से भाजपा में अंदरूनी असंतोष है। अशोक चव्हाण को पार्टी में आते ही राज्यसभा सीट मिलने की भी चर्चा रही। विपक्षी गठबंधन भाजपा में आये नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का मुद्दा भी गरमा रहा था। इंडिया में शामिल पार्टियों में सीटों का बंटवारा भी सौजन्यता के साथ होने की बात प्रचारित की जाती रही। शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे बड़े नेताओं के रहते किसी भी मतभेद को सुलझाने की उम्मीद भी जताई जा रही थी। लेकिन न्याय यात्रा की समाप्ति के पहले तक इंडिया की जो एकजुटता सतह पर तैरती लग रही थी वह कुछ दिनों में ही बिखरती लगने लगी। जैसे ही चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम घोषित किया और सीटों के चयन का कार्य शुरू हुआ, मतभेद सामने आने लगे। उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने बिना कांग्रेस को विश्वास में लिए 17 प्रत्याशी घोषित कर दिये। मुंबई में संजय निरुपम जैसे नेता जिस सीट पर नजरें टिकाए थे वहाँ उद्धव द्वारा अपना उम्मीदवार उतारे जाने से कांग्रेस नाराज है। श्री आंबेडकर की वंचित बहुजन अगाड़ी ने 8 प्रत्याशी घोषित कर गठबंधन को झटका दे दिया वहीं स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने भी महा विकास अगाड़ी को ठेंगा दिखा दिया। पार्टी हाथ से चली जाने के बाद शरद पवार बूढ़े शेर की तरह लाचार नजर आने लगे हैं। बारामती में उनकी बेटी सुप्रिया सुले के विरुद्ध अजीत पवार की पत्नी के कूद जाने से श्री पवार को अपनी विरासत के खत्म होने की चिंता सताने लगी है। इसी तरह उद्धव भी अपने परिवार के भविष्य को लेकर परेशान हैं। एकनाथ शिंदे उनके प्रभाव क्षेत्र में निरंतर सेंध लगाते जा रहे हैं। कांग्रेस भी श्री ठाकरे को ज्यादा ताकत देने में झिझक रही है। इस सबके विपरीत एनडीए में सीटों का बंटवारा अपेक्षाकृत शांति से निपट गया। चूंकि भाजपा दबाव बनाने की स्थिति में है इसलिए उसके सहयोगी दल कड़ी सौदेबाजी से बचते दिखे। बीते दो - तीन दिनों के भीतर ही महाराष्ट्र में इंडिया के घटक दलों में जो खींचातानी देखने मिल रही है वह विपक्ष के लिए अच्छा संकेत नहीं है जहाँ उसके लिए अच्छी संभावनाएं बताई जा रही थीं। समस्या एनडीए में न हों ये कहना गलत होगा किंतु उसके सबसे बड़े दल भाजपा का प्रबंधन, आपसी संवाद और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता के कारण छोटी - बड़ी समस्याओं का हल समय रहते हो जाता है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने गठबंधन बनाने में इंडिया से पिछड़ने के बाद जिस तेजी से कदम बढ़ाये उसके कारण वह विभिन्न राज्यों में मजबूती के साथ खड़े होने की स्थिति में आ गई। बिहार के बाद महाराष्ट्र में एनडीए की शुरुआत धीमी रही किंतु अब वह आगे है। महाराष्ट्र में यदि इंडिया के सदस्यों में तालमेल बिगड़ा तो उसका प्रभाव अन्य राज्यों में भी दिखाई देगा। संजय निरुपम ने कांग्रेस नेतृत्व से मांग की है कि पार्टी बचाने वह उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन से बाहर आये। कुल मिलाकर विपक्षी गठबंधन के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे। भाजपा ने महाराष्ट्र में जिस प्रकार से विपक्ष में सेंध लगाई उसके कारण इंडिया की एकता खतरे में पड़ रही है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी अपनी वजनदारी खोते जा रहे हैं। आने वाले दिन महाराष्ट्र की राजनीति में उठापटक भरे होना तय है जिसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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