Thursday 28 March 2024

गलतियों पर गलतियाँ करते जा रहे केजरीवाल


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उच्च न्यायालय से भी राहत न मिलने के बाद वे लंबे समय तक रिहाई से वंचित रहेंगे। गत दिवस श्री केजरीवाल के वकील द्वारा प्रस्तुत याचिका पर जवाब देने के लिए ईडी को 3 अप्रैल तक का समय दिया गया है। आज  रिमांड यदि अदालत ने नहीं बढ़ाया तब उनको जेल जाना पड़ेगा। इस मामले  में अब तक  गिरफ्तार किये गए एक - दो को ही जमानत मिली, वह भी सरकारी गवाह बनने के बाद। मनीष सिसौदिया और संजय सिंह की जमानत अर्जियां लगातार जिस प्रकार से रद्द होती रहीं उसके आधार पर ये कयास लग रहे हैं कि श्री केजरीवाल को जमानत मिलना  आसान नहीं होगा। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि दिल्ली की सरकार कैसे चलेगी? अब तक की परंपरानुसार सत्ता में बैठे नेता की गिरफ्तारी होने पर या तो वह स्वयं पद से इस्तीफा दे देता था या उसे बर्खास्त किया जाता रहा। गिरफ्तारी की संभावना होते ही पद त्यागने की परिपाटी का पालन करते हुए ही झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दे दिया था। हालांकि दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री श्री सिसौदिया और मंत्री सत्येंद्र जैन ने गिरफ्तार होने के बाद लंबे समय तक कुर्सी नहीं छोड़ी। लेकिन जब ये लगा कि अदालत उनको राहत नहीं दे रही तब इस्तीफा दिया ताकि दो नये मंत्री बनाये जा सकें और उनके विभागों का काम चल सके। उल्लेखनीय हैं श्री केजरीवाल ने अपने पास कोई विभाग नहीं रखा और श्री सिसौदिया के पास ज्यादातर बड़े महकमे थे। उक्त दोनों को जेल में रहते  हुए मंत्री के दायित्व निर्वहन की छूट  मुख्यमंत्री द्वारा क्यों नहीं दी गई, ये बड़ा सवाल है। सही बात तो ये है कि श्री केजरीवाल भी इस सच्चाई से अवगत हैं कि जेल से सरकारी कामकाज संभव नहीं क्योंकि वहाँ कार्यालायीन व्यवस्था मुश्किल है। गिरफ्तारी के समय हो सकता है उनको उम्मीद रही होगी कि अगले दिन जमानत मिल जायेगी किंतु ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में  जेल से सरकार चलाने की  ज़िद सिवाय हेकड़ी के और कुछ भी नहीं। सही बात ये है कि  आम आदमी पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो सरकार चलाने में सक्षम हो। दूसरा मुख्यमंत्री इस बात के प्रति सशंकित हैं कि  उनके समानांतर कोई और नेता ताकतवर न बन जाए। उनके गिरफ्तार होते ही उनकी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा भी चली किन्तु पार्टी के भीतर बगावत की आशंका को देखते हुए उन्होंने फिलहाल तो उस निर्णय को लंबित कर दिया किंतु जिस तरह से वे पत्नी के जरिये अपने संदेश प्रसारित करवा रहे हैं उनमें भविष्य के संकेत छिपे हुए हैं। उधर उपराज्यपाल ने जेल से सरकार चलाने के श्री केजरीवाल के फैसले की संवैधानिकता पर जो सवाल उठाए हैं उनसे लगता है कि दिल्ली राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रही है। मुख्यमंत्री भी इस बात को जानते हैं और इसीलिए वे इस्तीफा न देकर सहानुभूति बटोरना चाह रहे हैं ।  लेकिन इस पेचीदा स्थिति  के लिए श्री केजरीवाल ही उत्तरदायी हैं। ईडी के समन को वे जिस प्रकार ठुकराते रहे उससे उनकी गिरफ्तारी का रास्ता पुख्ता होता गया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ईडी द्वारा पेश किये गए प्रमाण देखने के बाद ही उनको गिरफ्तारी से राहत  न देने का निर्णय सुनाया था। ऐसे में आम आदमी पार्टी द्वारा ईडी और केंद्र सरकार के विरुद्ध किए जा रहे आंदोलन का कोई नैतिक आधार नहीं बचा। और जो कांग्रेस इस गिरफ्तारी को लेकर मुखर है वह भूल जाती है कि श्री केजरीवाल को इस हालत तक पहुंचाने में भाजपा के साथ वह भी जिम्मेदार है। जिस शराब नीति को लेकर ये मामला बना उसमें भ्रष्टाचार की शिकायत कांग्रेस ने भी करते हुए श्री केजरीवाल पर जोरदार हमले किये थे। बाद में इंडिया गठबन्धन में उनके शामिल होने के बाद उसने अपना मुँह बंद कर लिया। सही बात ये भी है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए राजी भी शराब घोटाले पर चुप रहने की शर्त पर हुई थी। उसके एवज में दिल्ली में तीन लोकसभा सीटें उसके लिए छोड़ दीं। कुल मिलाकर मामला ये है कि श्री केजरीवाल ज्यादा होशियारी के फेर में मूर्खता कर बैठे। ईडी के पहले बुलावे पर वे चले गए होते तो शराब घोटाले की जाँच  अंजाम तक पहुँच जाती ।  और हो सकता है जेल में बंद उनके नेता जमानत पर छूट जाते। गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा न देकर वे और भी बड़ी गलती कर रहे हैं। यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया तब श्री केजरीवाल की  वजनदारी भी जाती रहेगी। जो काँग्रेस आज उनके गम में आँसू बहा रही है वह  पल्ला झाड़ने में देर नहीं करेगी क्योंकि मन ही मन वह भी आम आदमी पार्टी से खार खाए बैठी है। पंजाब के एक सांसद और विधायक के पार्टी छोड़ने से श्री केजरीवाल को सतर्क हो जाना चाहिए। 


-रवीन्द्र वाजपेयी

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