Friday 30 June 2023
तब क्या राज्य का शासन जेल से चलेगा
Thursday 29 June 2023
वंदे भारत : किराया कम न हुआ तो यात्री नहीं मिलेंगे
Wednesday 28 June 2023
समान नागरिक संहिता : कांग्रेस सहित विपक्ष के सामने नया धर्मसंकट
Tuesday 27 June 2023
विपक्षी एकता की नाव में अभी से छेद होने लगे
Monday 26 June 2023
पुतिन का पाला सांप उनको डसने पर ही आमादा हो गया
Saturday 24 June 2023
केजरीवाल की मजबूरी का फायदा उठाना चाह रही कांग्रेस
Friday 23 June 2023
अमेरिका : स्वागत से ज्यादा सौदे और समझौते महत्वपूर्ण हैं
Thursday 22 June 2023
आम आदमी पार्टी बनेगी विपक्षी एकता में बाधक
Wednesday 21 June 2023
नीलेकणी ने गुरु दक्षिणा का आदर्श रूप प्रस्तुत किया
Tuesday 20 June 2023
गीता प्रेस का विरोध मानसिक खोखलेपन का प्रमाण
Monday 19 June 2023
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाकर केंद्रीय बलों को कमान सौंपना जरुरी
डेढ़ महीना हो गया किंतु मणिपुर की स्थिति अनियंत्रित बनी हुई है। जब विधायक, सांसद और मंत्री तक सुरक्षित नहीं हैं तब आम जनता की हालत क्या होगी ये आसानी से समझा जा सकता है। प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात पूर्वोत्तर भारत का ये राज्य इन दिनों भयावह दृश्यों से भरा हुआ है। उच्च न्यायालय के एक फैसले में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनु.जनजाति का दर्जा दिए जाने के बाद कुकी नामक आदिवासी समुदाय आंदोलित हो उठा और देखते - देखते हिंसा ने पूरे राज्य को अपनी चपेट में ले लिया। लेकिन ये साधारण हिंसा न होकर बाकायदा पूरी तैयारी के साथ रचा गया षडयंत्र लगता है। जिसके कारण आज मणिपुर दो हिस्सों में साफ तौर पर बंट चुका है । कुकी ज्यादातर पर्वतीय इलाकों में रहते हैं जबकि मैतेई का वर्चस्व इंफाल घाटी में है। नियमानुसार पर्वतीय इलाकों में मैतेई भूमि नहीं खरीद सकते क्योंकि वह अनु.जनजाति (आदिवासियों ) के लिए सुरक्षित रखी गई थी। उच्च न्यायालय के संदर्भित फैसले ने उक्त स्थिति को बदलकर मैतेई समुदाय को कुकी वर्चस्व वाले इलाकों में भूमि खरीदकर बसने का रास्ता साफ कर दिया। उल्लेखनीय है मैतेई समुदाय मणिपुर में जनसंख्या में अधिक होने से राजनीतिक दृष्टि से भी ताकतवर है और इसीलिए उसके विधायक भी ज्यादा रहते हैं किंतु इंफाल घाटी क्षेत्र के हिसाब से छोटी होने से उसके लिए छोटी पड़ती थी । लंबे समय से मैतेई अनु.जनजाति में शामिल होने की मांग करते आ रहे थे ताकि उनको भी पर्वतीय क्षेत्रों में जमीन हासिल करने का हक मिल सके। उच्च न्यायालय के निर्णय ने उनकी वह मांग तो पूरी कर दी किंतु कुकी समुदाय ने उसके विरोध में जिस तरह से जवाबी कार्रवाई की उसने अनेक बातों को जन्म दे दिया। ये कुछ -कुछ वैसा ही है जैसे अनुच्छेद 370 हटने के पहले तक देश के किसी अन्य राज्य का निवासी जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता था। जब उक्त धारा हटी तब कश्मीर घाटी के मुस्लिमों की नाराजगी इसी बात पर सबसे ज्यादा थी कि अब बाहर से आकर लोग यहां भूस्वामी बन सकेंगे। लेकिन कुकी समुदाय के लोग तो अपने ही राज्य के मैतेई समुदाय को अपने प्रभावक्षेत्र में आने से रोकने आमादा हैं। वर्तमान स्थिति ये है कि जहां इंफाल घाटी में रहनेवाले कुकी असुरक्षित हैं वहीं कुकी बाहुल्य क्षेत्र में चला गया मैतेई जिंदा बचकर नहीं लौट सकता। लेकिन इस समूचे परिदृश्य में कुकी समुदाय का हथियारबंद होना चौंकाने वाला है। वे जिस तरह से आक्रामक हुए वह साधारण बात नहीं है। धीरे - धीरे पहाड़ी क्षेत्रों में नशीली दवाओं के कारोबार का खुलासा भी होने लगा और ये भी कि पड़ोसी म्यांमार ड्रग की आवाजाही में सहायक है। कुकी अधिकतर ईसाई धर्मावलंबी हैं वहीं मैतेई हिन्दू । दोनों के बीच विभाजन इस हद तक हो चुका है कि कुकी वर्चस्व वाले इलाकों में जगह - जगह बोर्ड टांगकर लिख दिया गया है कि यह भारत का आदिवासी क्षेत्र है। मणिपुर में कानून - व्यवस्था पूरी तरह दम तोड़ चुकी है। हालांकि विपक्ष प्रधानमंत्री की चुप्पी पर कटाक्ष कर रहा है किंतु केंद्र सरकार इस नाजुक स्थिति में ऐसा कुछ भी करने से बचती रही है जिससे पूर्वोत्तर का ये सीमावर्ती राज्य जम्मू - कश्मीर की तरह नासूर न बन जाए। कुकी और मैतेई के बीच जानी दुश्मनी के हालात उत्पन्न होने से अब मणिपुर को दो टुकड़ों में विभाजित करने की मांग जोर पकड़ रही है। इसके पीछे उग्रवाद है या दो जातीय समूहों के बीच का परंपरागत विवाद , ये पक्के तौर पर फिलहाल कह पाना तो मुश्किल है । मुख्यमंत्री के बयानों से अलग वरिष्ट सैन्य अधिकारियों ने अपना जो आकलन पेश किया उससे भ्रम की स्थिति भी बनी है। हालांकि इतना तो कहा ही जा सकता है कि कुकी समुदाय जिस तरह से हमलावर हुआ उससे ये आशंका प्रबल हुई है कि नशे के व्यवसाय के तार चूंकि पड़ोसी देशों से भी जुड़े हुए हैं इसलिए विदेशी ताकतें और ड्रग माफिया इस संघर्ष को हवा देने के लिए जिम्मेदार हो सकता है जिसे पर्वतीय इलाकों में मैतेई समुदाय के लोगों के आकर बसने से खतरा महसूस होने लगा। आतंकवाद के भीषण दौर में कश्मीर घाटी के भीतरी इलाकों से हिंदुओं को भी इसी तरह खदेड़ा गया था जिससे देश को तोड़ने वाले अपने षडयंत्र को खुलकर अंजाम दे सकें। मणिपुर की स्थिति का जो विश्लेषण सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा अब तक किया गया होगा उसके आधार पर अब ठोस कार्रवाई करने का समय आ गया है। उच्च न्यायालय के फैसले पर गृह मंत्री अमित शाह की ये टिप्पणी काबिले गौर है कि वह जल्दबाजी में लिया गया था किंतु ये बात भी शोचनीय है कि देश के किसी हिस्से में उसी राज्य के लोगों को बसने से रोका जाए। और वह भी जब वह सीमावर्ती हो और दुर्गम बसाहट वाला हो जिसमें विदेशी घुसपैठ आसानी से हो सके। ये सब देखते हुए मणिपुर ही नहीं बल्कि देशहित में भी होगा कि वहां तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्य में केंद्रीय बल तैनात किए जावें क्योंकि स्थानीय प्रशासन और पुलिस में भी जातीय वैमनस्यता के कारण आपसी सामंजस्य खत्म हो चुका है। हालांकि सीमावर्ती राज्य होने से मणिपुर में कोई भी कदम बेहद सोच - समझकर उठाना होगा। लेकिन देर करने से हालात और संगीन हो सकते हैं । समूचा पूर्वोत्तर जनजातियों से भरा पड़ा है । वहां ईसाई मिशनरियों का जाल ब्रिटिश शासन के जमाने में ही फैल चुका था । इस कारण उनको मुख्य राष्ट्रीय धारा से काटे रखने का प्रयास सफल हुआ। पृथक राष्ट्रीयता की भावना फैलाने में भी मिशनरियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। बीते कुछ दशकों में नगा और मिजो आंदोलनों पर काबू कर पूर्वोत्तर में शांति कायम करते हुए विकास का वातावरण बनने लगा था किंतु मणिपुर में बीते डेढ़ महीनों में जो कुछ भी हुआ उससे यह आशंका जन्म ले रही है कि कहीं ये किसी दूरगामी कार्ययोजना का हिस्सा तो नहीं जिसका उद्देश्य समूचे पूर्वोत्तर को भारत से अलग करना है। इसलिए बीते छह सप्ताह से चली आ रही स्थिति को देखते हुए अब मणिपुर में निर्णायक कदम उठाए जाने की जरूरत है।
- रवीन्द्र वाजपेयी
Friday 16 June 2023
धर्मांतरण विरोधी कानून किसे खुश करने रद्द किया जा रहा
बहुमत प्राप्त सरकार संविधान के दायरे में रहते हुए नया कानून बनाए या पुराने को रद्द करे , ये उसका अधिकार है। लेकिन कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनका संबंध किसी दल विशेष की नीति या पसंद से ऊपर उठकर समाज और देशहित से जुड़ा होता है । इसलिए ऐसे मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए। संदर्भ , कर्नाटक की नई सरकार द्वारा पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के बनाए धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द किए जाने वाले प्रस्ताव का है । इस बारे में विचारणीय ये है कि उक्त कानून क्यों लाया गया और उस पर किसे आपत्ति थी ? जाहिर है लोभ - लालच , दबाव या अन्य किसी गैर कानूनी तरीके से हिंदू धर्म छोड़कर मुस्लिम या ईसाई बनाए जाने का जो सुनियोजित अभियान देश भर में चलाया जा रहा है उसे रोकने के लिए कर्नाटक ही नहीं अन्य राज्यों ने भी कानून बनाए हैं । एक समय था जब आदिवासी और दलित समुदाय में अशिक्षा और गरीबी का लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियों द्वारा उनका धर्म परिवर्तन करवाए जाने की ही चर्चा होती थी। देश के पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त जिन भी राज्यों में आदिवासियों की बड़ी संख्या है , वहां धर्मांतरण जमकर हुआ। जिन इलाकों में आवगमन के साधन और विकास की रोशनी नहीं पहुंची वहां मिशनरियों का जाल फैलता गया। केरल का ईसाईकरण तो बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। लेकिन बीते कुछ दशकों से हिंदुओं को इस्लाम स्वीकार करने हेतु मजबूर किए जाने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं । केरल में जब लव जिहाद के जरिए हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने की बात हिंदू संगठनों ने उठाई तब उसे हल्के में लिया गया किंतु धीरे - धीरे वह इस्लामीकरण के हथियार के तौर पर उपयोग होने लगा। इसमें खाड़ी देशों से आए पेट्रो डालरों की भी महती भूमिका रही। बीते कुछ सालों में लव जिहाद के जरिए हिंदू युवतियों के साथ होने वाले अमानुषिक व्यवहार के मामले भी लगातार सामने आने लगे। सभी में धोखाधड़ी होती हो ऐसा कहना तो गलत होगा किंतु ज्यादातर में हिंदू लड़की का भावनात्मक शोषण या ब्लैकमेल किया जाना सामने आया। इस तरह की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए ही धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए गए। कर्नाटक की नव - निर्वाचित कांग्रेस सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसे मौजूदा कानून में ऐसा क्या लगा जिसकी वजह से वह उसे रद्द करने जा रही है। रही बात कानून के दुरुपयोग की तो जिन मामलों में ज्यादती की शिकायत है , नई सरकार उनकी समीक्षा भी कर सकती थी। लेकिन ले - देकर वही तुष्टीकरण की नीति लागू करने का प्रयास हो रहा है। बेहतर होता कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस निर्णय के दुष्परिणाम का पूर्वानुमान लगाकर कर्नाटक सरकार को इसके खतरों से आगाह करते हुए धीरज के साथ आगे बढ़ने की सलाह देता। लेकिन विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं के थोक समर्थन की खुशी में वह अपने पैरों पर कूल्हाड़ी मारने की मूर्खता कर रही है । लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी की व्यूह रचना में मुस्लिम मतदाताओं को क्षेत्रीय पार्टियों के प्रभाव से मुक्त कर वापस अपने साथ लाना है। उल्लेखनीय है बाबरी ढांचा गिरने के बाद मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से छिटककर इधर - उधर चले गए। इसी के चलते उ.प्र और बिहार में वह घुटनों के बल आ गई। अन्य राज्यों में भी भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दल को उनका समर्थन मिलने लगा। इस तरह उसको दोहरा नुकसान हुआ क्योंकि हिंदू मतदाता भाजपा की तरफ झुके तो मुसलमानों ने मुलायम , लालू , ममता और देवगौड़ा जैसे छत्रपों को सिर पर बिठा लिया। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इसी वोट बैंक को वापस खींचने में जुटा हुआ है। कर्नाटक चुनाव ने उसका मनोबल बेशक बढ़ा दिया । लेकिन वहां के मुसलमान जनता दल सेकुलर के ढुलमुल रवैए से सशंकित होकर कांग्रेस की तरफ झुके । लेकिन पार्टी उनको खुश करने के लिए पूरी तरह आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गई तब उसे हिंदू मतों से हाथ धोना पड़ सकता है जो स्थानीय कारणों से उसकी तरफ आकर्षित हुए। कांग्रेस को ये ध्यान रखना चाहिए कि लव जिहाद के मामले जिस संख्या में सामने आए हैं उनसे हिंदू समाज काफी उद्वेलित है । हाल ही में प्रदर्शित धर्मांतरण पर बनी फिल्म द केरल स्टोरी को पूरे देश में जो सफलता मिली उससे कांग्रेस ही नहीं , मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले अन्य दलों को भी चौकन्ना हो जाना चाहिए। धर्मांतरण जिस स्वरूप में सामने आ रहा है उसकी हिंदू समाज में बेहद रोष पूर्ण प्रतिक्रिया है जिसे हल्के में लेना सच्चाई से मुंह चुराने जैसा होगा। कर्नाटक सरकार जो कदम उठाने जा रही है उससे तो धर्मांतरण में लगी ताकतों का हौसला और बुलंद होगा जो कालांतर में देश के लिए खतरा साबित हो सकता है।
- रवीन्द्र वाजपेयी