Monday 19 June 2023

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाकर केंद्रीय बलों को कमान सौंपना जरुरी



डेढ़ महीना हो गया किंतु मणिपुर की स्थिति अनियंत्रित बनी हुई है। जब विधायक, सांसद और मंत्री तक सुरक्षित नहीं हैं तब आम जनता की हालत क्या होगी ये आसानी से समझा जा सकता है। प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात पूर्वोत्तर भारत का ये राज्य इन दिनों भयावह दृश्यों से भरा हुआ है। उच्च न्यायालय के एक फैसले में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनु.जनजाति का दर्जा दिए जाने के बाद कुकी नामक आदिवासी समुदाय आंदोलित हो उठा और देखते - देखते हिंसा ने पूरे राज्य को अपनी चपेट में ले लिया। लेकिन ये साधारण हिंसा न होकर बाकायदा पूरी तैयारी के साथ रचा गया षडयंत्र लगता है। जिसके कारण आज मणिपुर दो हिस्सों में साफ तौर पर बंट चुका है । कुकी ज्यादातर पर्वतीय इलाकों में रहते हैं जबकि मैतेई का वर्चस्व इंफाल घाटी में है। नियमानुसार पर्वतीय इलाकों में मैतेई भूमि नहीं खरीद सकते क्योंकि वह अनु.जनजाति (आदिवासियों ) के लिए सुरक्षित रखी गई थी। उच्च न्यायालय के संदर्भित फैसले ने उक्त स्थिति को बदलकर मैतेई समुदाय को कुकी वर्चस्व वाले इलाकों में भूमि खरीदकर बसने का रास्ता साफ कर दिया। उल्लेखनीय है मैतेई समुदाय मणिपुर में जनसंख्या में अधिक होने से राजनीतिक दृष्टि से भी ताकतवर है और इसीलिए उसके विधायक भी ज्यादा रहते हैं किंतु इंफाल घाटी क्षेत्र के हिसाब से छोटी होने से उसके लिए छोटी पड़ती थी । लंबे समय से मैतेई अनु.जनजाति में शामिल होने की मांग करते आ रहे थे ताकि उनको भी पर्वतीय क्षेत्रों में जमीन हासिल करने का हक मिल सके। उच्च न्यायालय के निर्णय ने उनकी वह मांग तो पूरी कर दी किंतु कुकी समुदाय ने उसके विरोध में जिस तरह से जवाबी कार्रवाई की उसने अनेक  बातों को जन्म दे दिया। ये कुछ -कुछ वैसा ही है जैसे अनुच्छेद 370 हटने के पहले तक देश के किसी अन्य राज्य का निवासी  जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता था। जब उक्त धारा हटी तब कश्मीर घाटी के मुस्लिमों की नाराजगी इसी बात पर सबसे ज्यादा थी कि अब बाहर से आकर लोग यहां भूस्वामी बन सकेंगे। लेकिन कुकी समुदाय के लोग तो अपने ही राज्य के मैतेई समुदाय को अपने प्रभावक्षेत्र में आने से रोकने आमादा हैं। वर्तमान स्थिति ये है कि जहां इंफाल घाटी में रहनेवाले कुकी असुरक्षित हैं वहीं कुकी बाहुल्य क्षेत्र में चला गया मैतेई जिंदा बचकर नहीं लौट सकता। लेकिन इस समूचे परिदृश्य में कुकी समुदाय का हथियारबंद होना चौंकाने वाला है। वे जिस तरह से आक्रामक हुए वह साधारण बात नहीं है। धीरे - धीरे पहाड़ी क्षेत्रों में नशीली दवाओं के कारोबार का खुलासा भी होने लगा और ये भी कि पड़ोसी म्यांमार  ड्रग की आवाजाही में सहायक है। कुकी अधिकतर ईसाई धर्मावलंबी हैं वहीं मैतेई हिन्दू । दोनों के बीच  विभाजन इस हद तक हो चुका है कि कुकी वर्चस्व वाले इलाकों में जगह - जगह बोर्ड टांगकर लिख दिया गया है कि यह भारत का आदिवासी क्षेत्र है। मणिपुर में कानून - व्यवस्था पूरी तरह दम तोड़ चुकी है। हालांकि विपक्ष प्रधानमंत्री की चुप्पी पर कटाक्ष कर रहा है किंतु केंद्र सरकार इस नाजुक स्थिति में ऐसा कुछ भी करने से बचती रही है जिससे पूर्वोत्तर का ये सीमावर्ती राज्य जम्मू - कश्मीर की तरह नासूर न बन जाए। कुकी और मैतेई के बीच जानी दुश्मनी के हालात उत्पन्न होने से अब मणिपुर को दो टुकड़ों  में विभाजित करने की मांग जोर पकड़ रही है। इसके पीछे उग्रवाद है या  दो जातीय समूहों के बीच का परंपरागत विवाद , ये पक्के तौर पर फिलहाल कह पाना तो मुश्किल है । मुख्यमंत्री के बयानों से अलग वरिष्ट सैन्य अधिकारियों ने अपना जो आकलन  पेश किया उससे भ्रम की स्थिति भी बनी है। हालांकि इतना तो कहा ही जा सकता है कि कुकी समुदाय जिस तरह से हमलावर हुआ उससे ये आशंका प्रबल हुई है कि नशे के व्यवसाय के तार चूंकि पड़ोसी देशों से भी जुड़े हुए हैं इसलिए विदेशी ताकतें और  ड्रग माफिया  इस संघर्ष को हवा देने के लिए जिम्मेदार हो सकता है जिसे पर्वतीय इलाकों में मैतेई समुदाय के लोगों के आकर बसने से खतरा महसूस होने लगा। आतंकवाद के भीषण दौर में कश्मीर घाटी के भीतरी इलाकों से हिंदुओं को भी इसी तरह खदेड़ा गया था जिससे देश को तोड़ने वाले अपने षडयंत्र को खुलकर अंजाम दे सकें। मणिपुर की स्थिति का जो विश्लेषण सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा अब तक किया गया होगा उसके आधार पर अब ठोस कार्रवाई करने का समय आ गया है। उच्च न्यायालय के फैसले पर गृह मंत्री अमित शाह की ये टिप्पणी काबिले गौर है कि वह जल्दबाजी में लिया गया था किंतु ये बात भी शोचनीय है कि देश के किसी हिस्से में उसी राज्य के लोगों को बसने से रोका जाए। और वह भी जब वह सीमावर्ती हो और दुर्गम बसाहट वाला हो जिसमें विदेशी घुसपैठ आसानी से हो सके। ये सब देखते हुए मणिपुर ही नहीं बल्कि देशहित में भी होगा कि वहां तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्य में केंद्रीय बल तैनात किए जावें क्योंकि स्थानीय प्रशासन और पुलिस में भी जातीय वैमनस्यता के कारण आपसी सामंजस्य खत्म हो चुका है। हालांकि सीमावर्ती राज्य होने से मणिपुर में कोई भी कदम बेहद सोच - समझकर उठाना होगा। लेकिन देर करने से हालात और संगीन हो सकते हैं ।  समूचा पूर्वोत्तर जनजातियों से भरा पड़ा है । वहां ईसाई मिशनरियों का जाल ब्रिटिश शासन के जमाने में ही फैल चुका था । इस कारण उनको मुख्य राष्ट्रीय धारा से काटे रखने का प्रयास सफल हुआ। पृथक राष्ट्रीयता की भावना फैलाने में भी मिशनरियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। बीते कुछ दशकों में नगा और मिजो आंदोलनों पर काबू कर पूर्वोत्तर में शांति कायम करते हुए विकास का वातावरण बनने लगा था किंतु मणिपुर में बीते डेढ़ महीनों में जो कुछ भी हुआ उससे यह आशंका जन्म ले रही है कि कहीं ये किसी दूरगामी कार्ययोजना का हिस्सा तो नहीं जिसका उद्देश्य समूचे पूर्वोत्तर को भारत से अलग करना है। इसलिए बीते छह सप्ताह से चली आ रही स्थिति को देखते हुए अब मणिपुर में निर्णायक कदम उठाए जाने की जरूरत है।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment