Monday 26 June 2023

पुतिन का पाला सांप उनको डसने पर ही आमादा हो गया



हालांकि  रूस में राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का तख्ता पलटने के लिए आगे बढ़े रहे वेगनर लड़कों ने अपना अभियान रोक दिया है। उनका नेता प्रिगोझिन बेलारूस चला गया है। मॉस्को की  तरफ़ बढ़ रहे वेगनर सैनिक थम गए हैं। पुतिन के मॉस्को छोड़ देने की खबरों का खंडन भी हो रहा है। इस चौंकाने वाले घटनाक्रम से पूरी दुनिया हतप्रभ रह गई। यूक्रेन पर हमला करने के बाद पुतिन की छवि दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध में झोंकने वाले जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर जैसी बनने लगी थी। चूंकि अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देश कोरोना की मार के बाद आर्थिक तौर पर काफी कमजोर हुए हैं इसलिए रूस का हमला तृतीय विश्व युद्ध का कारण तो नहीं बन सका  किंतु  अमेरिकी लॉबी के सभी देश यूक्रेन के मददगार बनकर सामने आ गए और रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसको घेरने का दांव चला। यही वजह है कि सवा साल से ज्यादा बीत जाने के बावजूद पुतिन , यूक्रेन की राजधानी कीव पर अपना झंडा फहराने में कामयाब नहीं हो सके। भले ही बुरी तरह तबाह होने से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है किंतु आज भी वह रूस के सामने झुकने तैयार नहीं है। उल्लेखनीय बात ये है कि बर्बादी के इस दौर में भी उसकी जनता अपनी सरकार के साथ है। हालांकि ये सब विदेशी समर्थन और सहायता से ही संभव है। दूसरी तरफ रूस में यूक्रेन पर हमले के पुतिन के फैसले के विरोध में शुरूआत से ही आवाजें उठ रही हैं। अनेक उद्योगपतियों एवं राजनेताओं ने जब उक्त निर्णय पर सवाल उठाए तो वे स्टालिन युग की तरह से ही गायब हो गए। संदेह ये है कि उनको मौत की नींद सुला दिया गया। रूस में गोपनीय ढंग से अपने विरोधी को खत्म करने का चलन 1917 की साम्यवादी क्रांति के बाद से चला आया है । पुतिन खुद अतीत में उस कुख्यात केजीबी नामक खुफिया संस्था के मुखिया रहे हैं जो इस तरह के काम करती रही। इसलिए सत्ता संभालने के बाद उन्होंने जिस क्रूरता का परिचय समय - समय पर दिया उससे स्टालिन युग की स्मृतियां सजीव हो उठीं। वेगनर नामक निजी सेना को भी पुतिन का मानस पुत्र कहा जाता है। उसका मुखिया प्रिगोझिन उनका रसोइया हुआ करता था। यूक्रेन पर किए हमले में रूसी सेना के साथ वेगनर लड़ाके भी साथ रहे । इस सेना ने वहां के कुछ शहरों पर कब्जा करने में निर्णायक भूमिका निभाई। वेगनर लड़ाके बड़े ही क्रूर किस्म के माने जाते हैं। उनके पास सेना जैसा साजो - सामान और प्रशिक्षण है। कुख्यात अपराधी इसमें भर्ती किए जाते हैं। इसका गठन क्यों और किसलिए किया गया ये बड़ा सवाल है किंतु अचानक वेगनर ने  यूक्रेन को छोड़कर मास्को का रुख क्यों किया और सैन्य मुख्यालय वाले  दो शहरों पर कब्जा करने के बाद पुतिन का तख्तापलट करने का इरादा क्यों जताया ये सवाल बीच में ही अटक गया जब सोवियत संघ का  हिस्सा रहे पड़ोसी  बेलारूस ने प्रिगोझिन को अपने यहां बुलाकर सुरक्षा का आश्वासन दिया। कहने को तो बगावत का यह प्रयास फिलहाल असफल होता दिख रहा है लेकिन पुतिन ने प्रिगोझिन को गद्दार बताते हुए सजा देने का ऐलान कर ये साफ कर दिया है कि वे वेगनर का मास्को प्रस्थान रुकने के बाद भी संतुष्ट नहीं हैं और अपनी चिरपरिचित शैली में इस निजी सेना को नष्ट करने से बाज नहीं आयेंगे। दुनिया ये सोचकर हतप्रभ है कि आज के युग में रूस जैसी विश्व शक्ति में पूरी तरह से सुसज्जित  निजी सेना का औचित्य क्या है और यूक्रेन पर हमले के दौरान पेशेवर सेना के साथ वेगनर का उपयोग करने के पीछे पुतिन की मंशा क्या थी ? सवाल और भी हैं किंतु इस घटना से एक बात साफ हो गई कि पुतिन का यूक्रेन दांव उनके गले पड़ गया है। ऐसा लगता है उन्होंने प्रिगोझिन के साथ कोई गुप्त समझौता किया था जिसका पालन न हो पाने के कारण वे  नाराज होकर उन्हीं का तख्ता पलटने पर आमादा हो गये। ये जानकारी भी मिल रही है कि वेगनर , पुतिन की समानांतर सेना जैसा ही है जिसका  उपयोग वे अनेक देशों में कर चुके हैं। अप्रत्यक्ष तौर पर यह एक आतंकवादी संगठन ही है जिसमें अपराधी तत्वों को भर्ती कर वे अपने गुप्त एजेंडे को अंजाम देते रहे । पश्चिम एशिया के अनेक देशों में  रूस की सैन्य उपस्थिति  वेगनर के जरिए ही बताई जाती है। ऐसा लगता है जिस तरह अमेरिका का पाला - पोसा ओसामा बिन लादेन उसी के लिए जहरीला नाग बन बैठा ठीक वैसा ही वेगनर भी पुतिन के लिए बन गया है। ये भी संभव है कि प्रिगोझिन को पश्चिमी देशों ने अपने पाले में खींचकर उससे पुतिन का तख्ता पलटने का सौदा किया हो। हालांकि ऐसे मामलों में सच्चाई का तत्काल सामने आना मुश्किल होता है लेकिन देर - सवेर इसके पीछे अमेरिका और रूस के खुफिया तंत्र के बीच की जंग भी हो सकती है। इस समय वेगनर द्वारा किए गए दुस्साहस के अंजाम का आकलन करना तो जल्दबाजी होगी किंतु  जिस तरह से प्रिगोझिन और पुतिन एक - दूसरे को धमका रहे हैं उससे लगता है कुछ न कुछ ऐसा जरूर है जिसने पुतिन जैसे सर्वशक्तिमान समझे जा रहे शासक के अति विश्वस्त व्यक्ति को ही उनका दुश्मन बना दिया । इसे उनके पतन की शुरुआत भी माना जा सकता है क्योंकि यूक्रेन में अपने देश को उलझाकर उन्होंने हिटलर जैसी गलती कर दी जो अंततः उसके लिए ही नहीं अपितु जर्मनी के लिए भी आत्मघाती साबित हुई। कूटनीति के किसी जानकार की ये कहावत काफी प्रसिद्ध है कि तानाशाह शेर की पीठ पर सवार तो हो जाते हैं किंतु उतर नहीं पाते। फिलहाल पुतिन की स्थिति भी वैसी ही होकर रह गई है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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