Friday 9 June 2023

वरना कैनेडा में अलग खालिस्तान बनाने की मांग उठने लगेगी



दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान जब भिंडरावाले की तस्वीर वाली टी शर्ट पहिए सिख युवक धरना स्थल पर नजर आए तभी ये आशंका हुई थी कि खालिस्तानी आंदोलन किसानों की आड़ में सिर उठा रहा है। चूंकि उसकी अगुआई पंजाब से हुई थी इसलिए सिख किसानों की संख्या काफी थी। धरना स्थल पर लंगर की व्यवस्था भी पंजाब के गुरुद्वारों से ही हो रही थी । धीरे - धीरे ये खबरें भी  आईं कि आंदोलन को कैनेडा और ब्रिटेन के खालिस्तान समर्थक संगठनों से धन भी मिल रहा था।  वहां किसान आंदोलन के पक्ष में जिस तरह से प्रदर्शन हुए उससे भी उक्त आशंका को बल मिला। बाद में गणतंत्र दिवस पर लालकिले की प्राचीर पर  निशान साहेब वाला झंडा फहराकर तलवारें घुमाने जैसी हरकत के साथ ही  शासकीय संपत्ति को क्षतिग्रस्त किए जाने से  इस बात की पुष्टि हो गई कि राष्ट्रविरोधी ताकतें किसान आंदोलन में घुसकर अपना उल्लू सीधा करना चाह रही थीं।आंदोलन खत्म होने के बाद हुए पंजाब विधानसभा के  चुनाव में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई । यद्यपि उसे कांग्रेस की आपसी फूट का परिणाम माना गया लेकिन शीघ्र ही ये बात समझ में आने लगी कि सत्ता परिवर्तन के पीछे  कोई अदृश्य खेल भी था । भगवंत सिंह मान  के सत्ता संभालने के बाद अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के निकट लगातार विस्फोट होने लगे।  थाने में बंद एक उग्रवादी को  जिस तरह सशस्त्र भीड़ ने रिहा कराया , उसके बाद ये बात साफ हो गई कि खालिस्तान की जो चिंगारी लंबे समय से दबी हुई थी वह नई सरकार के सत्ता में आते ही भड़कने लगी । भिंडरावाले के नए संस्करण के तौर पर उभरे एक कथित नेता की फरारी से माहौल तनावपूर्ण होने लगा। अनेक हिंदू मंदिरों पर हमले की घटनाएं भी हुईं। इस साल  आपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर  हुए आंदोलन कुछ ज्यादा ही बड़े थे। कुल मिलाकर ये बात स्पष्ट हो गई कि पंजाब में  सत्ता बदलने के बाद खालिस्तान समर्थक अपने को सुविधाजनक स्थिति में मानने लगे । जल्द ही ये बात भी उजागर हो गई कि विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी संगठन भी खुलकर भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए हैं । ब्रिटेन और कैनेडा में खालिस्तान के पक्ष में धरना , जुलूस और पोस्टर बाजी की हालिया खबरें इस बात का प्रमाण हैं कि पंजाब में सिर उठा रहे खालिस्तान समर्थक और विदेश में खालिस्तान का झंडा उठा रहे संगठनों के बीच संबंध है । हाल ही में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका गए तब उनकी सभा में भी खालिस्तानी समर्थक घुस आए और नारेबाजी की । लेकिन कैनेडा से जो ताजा खबर आई वह चिंताजनक है। वहां के एक शहर में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व.  इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाली गई जिस पर विदेश  मंत्री एस.जयशंकर ने कड़ा  विरोध करते हुए कैनेडा सरकार को चेतावनी दी  कि वह अपनी धरती का उपयोग खालिस्तानी तत्वों को न करने दे क्योंकि यह दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिए नुकसानदेह होगा । उल्लेखनीय है कैनेडा में बब्बर खालसा जैसे अनेक सिख संगठन हैं जो खुलकर खालिस्तान की मांग उठाते हैं। पंजाब में चलने वाली खालिस्तानी गतिविधियों को आर्थिक सहायता उनसे  मिलने की बात भी किसी से छिपी नहीं है। ये कहना भी गलत न होगा कि दिल्ली में पूरे साल चले किसानों के धरने के दौरान  जिस तरह से वहां निहंगो द्वारा हिंसक वारदातें की गईं उससे खालिस्तानी आंदोलन के बीजों के दोबारा अंकुरित होने की आशंका जन्मी जिसकी पुष्टि ब्रिटेन और कैनेडा में हुए  उग्र प्रदर्शनों से हुई। उसी के बाद से पंजाब में खालिस्तान की मांग उठने और राज्य के भीतरी हिस्सों में गड़बड़ियों के समाचार आने लगे । हालांकि किसान आंदोलन को  खालिस्तान समर्थक कहना तो सही नहीं है किंतु उसका लाभ लेकर देश विरोधी ताकतें अपना जाल फैलाने में कामयाब हो गईं। अमेरिका में श्री गांधी के कार्यक्रम में सिख संगठनों द्वारा नारेबाजी के बाद कैनेडा में इंदिरा जी की हत्या का दृश्य दिखाने वाली झांकी निकाले जाने से साफ है कि किसी बड़ी योजना की रूपरेखा बन रही है। विदेश मंत्री श्री जयशंकर ने कैनेडा सरकार को चेतावनी देते हुए जो बयान दिया वह सही समय पर उठाया गया कदम है क्योंकि जहां पाकिस्तान  , खालिस्तानी आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने का काम करता है वहीं कैनेडा में सक्रिय खालिस्तानी संगठन इन आतंकवादियों को आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाने के दोषी हैं। भारत के लिए चिंता की बात ये है कि  भारतीय मूल के लाखों सिख कैनेडा के नागरिक  हैं जिनका वहां के राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में भी काफी प्रभाव है। ये देखते हुए कैनेडा सरकार भी उनके  विरुद्ध कार्रवाई करने में हिचकती है । लेकिन भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते मजबूत होने से कैनेडा को भी ये ध्यान रखना चाहिए कि उसकी जमीन पर भारत विरोधी गतिविधियां जोर न पकड़ें। उसे ये बात समझ लेना चाहिए कि भारत में खालिस्तान बनाए जाने की  मांग को  उसने अपने यहां उठने से नहीं रोका तो  एक - दो दशक बाद कैनेडा में ही सिखों के लिए अलग देश का आंदोलन जन्म लेने लगेगा। उसको ये बात जान लेना चाहिए कि जिस ओसामा बिन लादेन को पालने - पोलने में अमेरिका ने मदद की वही कालांतर में उसके लिए भस्मासुर बना। कैनेडा को अमेरिका के उस अंजाम से सबक  लेना चाहिए। ब्रिटेन , फ्रांस और जर्मनी भी उग्रवाद को नजरंदाज करने की सजा भोग रहे हैं । भारत सरकार द्वारा कैनेडा से जो विरोध व्यक्त किया गया वह तो पूरी तरह सही है किंतु  घरेलू मोर्चे पर भी  इस कूटनीति को सर्वदलीय समर्थन मिलना चाहिए। आम आदमी पार्टी से भी अपेक्षा है कि इस बारे में अपना दृष्टिकोण सामने रखे क्योंकि पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन के पनपने से वह भी संदेह के दायरे में आने लगी है। किसी जमाने में अरविंद केजरीवाल के दाहिने हाथ रहे डा.कुमार विश्वास ने इस बारे में जो आरोप लगाए थे , उनका संज्ञान लिया जाना भी जरूरी है।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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