Thursday 15 June 2023

योग का विरोध मानसिक दिवालियेपन का प्रतीक



जब भी 21 जून को योग दिवस मनाए जाने की तैयारियां शुरू होती हैं तब कुछ लोगों के पेट में मरोड़ होने लगता है।  गत दिवस उ.प्र  के सपा सांसद शफीकुर्रहमान ने मदरसों में योग दिवस मनाए जाने का विरोध करते हुए तालीम दिवस मनाए जाने की बात कही है। उनके मुताबिक  भाजपा सरकार इसके जरिए मदरसों में दी जाने वाली मजहबी शिक्षा में अड़ंगे लगा रही है। वे पहले व्यक्ति नहीं हैं जिनको योग से परहेज है। इसका कारण संभवतः ये है कि एक तो उससे बाबा रामदेव जुड़े हुए हैं और दूसरा ये कि योग दिवस की शुरुवात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई। उक्त सांसद तो खैर मुस्लिम हैं लेकिन धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले अनेक हिंदू नेता भी योग और योग दिवस के विरुद्ध बोलते हैं । इन सबके मन में ये डर बैठ गया है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सभी विषय चूंकि  हिंदुत्व की अवधारणा को मजबूत करते हैं , लिहाजा उनसे भाजपा को राजनीतिक लाभ होता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि जब योग जैसे मुद्दे पर कुछ लोग विरोध व्यक्त करते हैं तब भाजपा को बिना कुछ किए ही उसका लाभ लेने का अवसर मिल जाता है। उदाहरण के लिए राममंदिर के निर्माण का जिन लोगों ने विरोध किया वे जनता की नजरों से गिरते चले गए। लेकिन बाद में जब भाजपा को उ.प्र और देश में सत्ता हासिल हो गई तब उन ताकतों को ये लगा कि हिंदुत्व का विरोध करना  नुकसान का सौदा है। इसलिए वे  चुनाव घोषणापत्र में भव्य राममंदिर बनवाने का आश्वासन देने लगे । कुछ नेताओं ने अपना चुनाव प्रचार भी अयोध्या में हनुमान गढ़ी से शुरू कर खुद को रामभक्त दिखाने की कोशिश की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को तो अचानक जनेऊधारी ब्राह्मण प्रचारित कर मंदिर और मठों में घुमाया जाने लगा । असली  हिंदू होने की  कसमें भी खाई जाने लगीं । इसका कुछ असर तो हुआ किंतु  चुनाव खत्म होते ही ऐसे लोगों का मुस्लिम तुष्टिकरण रवैया उजागर होने लगा। यही वजह है कि जबर्दस्त विरोध के बावजूद 2019 में मोदी सरकार की वापसी हुई जबकि कुछ महीनों पहले ही भाजपा म. प्र , राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हार गई थी। दूसरी पारी में अयोध्या विवाद का फैसला मंदिर के पक्ष में होने और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने जैसे कदमों के कारण भाजपा अपने मूलभूत मुद्दों को लागू करने के दिशा में आगे बढ़ चली। नागरिकता संशोधन विधेयक भी उसी तरह का निर्णय था। ये बात भी कही जा सकती है कि कोरोना संकट न आया होता तो अब तक समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण हेतु भी कानून केंद्र सरकार बना चुकी होती। यद्यपि अनेक राज्यों में भाजपा को हिंदुत्व का झंडा उठाए बाद भी सफलता नहीं मिली । कर्नाटक उसका ताजा उदाहरण है। लेकिन इसका एक कारण ये  है कि कांग्रेस भी अब हिंदुत्व के मुद्दे पर सतर्क होकर बात करने लगी है। म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तो इन दिनों अपने को सबसे बड़ा हनुमान भक्त साबित करने पर आमादा हैं। ऐसे में यदि कोई योग दिवस का विरोध केवल इसलिए करे  कि वह भाजपा अथवा श्री मोदी  द्वारा प्रवर्तित है और भगवाधारी बाबा रामदेव ने उसे घर - घर पहुंचाया तो उसकी बुद्धि पर तरस ही किया जा सकता है । समाजवादी पार्टी के जिन सांसद महोदय ने मदरसों में योग दिवस का विरोध किया उनको अपनी बात के पक्ष में तर्क भी देना चाहिए। जहां तक मजहबी तालीम का सवाल है तो योग उसमें कहां बाधक है ये स्पष्ट किए बिना उसका विरोध सिवाय कट्टरपन के और क्या है ? ये वही तबका है जो भारत माता की जय और वंदे मातरम से भी परहेज करता है। सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विदेश में पढ़े होने के बावजूद कोरोना का टीका लगवाने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उनके नजर में  वह भाजपाई वैक्सीन थी। उनका  वह बयान भी काफी चर्चित हुआ था कि जब सपा की सरकार आयेगी तब वे टीका लगवाएंगे। ऐसे राजनेता ही दरअसल हमारे देश की समस्या हैं। आज जब पूरा विश्व भारत की प्राचीन योग व्यायाम पद्धति को अधिकृत तौर पर अपना रहा है तब कुछ लोग उसे हिंदुत्व से जोड़कर उसका विरोध करें तो वह मानसिक विपन्नता ही कही जायेगी । बेहतर हो कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी योग के बारे में अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए मुस्लिम समुदाय को ये समझाए कि वह कोई पूजा पद्धति नहीं है। इसी तरह ध्यान भी किसी धर्म विशेष का समर्थन नहीं करता। इन दोनों के माध्यम से शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टि से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इसीलिए आजकल अंग्रेजी शैली के एलोपैथी अस्पतालों में भी योग और ध्यान की सुविधा उपलब्ध होने लगी है। प्राणायाम की उपादेयता और लाभ भी वैश्विक मान्यता हासिल कर चुके हैं। बाबा रामदेव के बारे में कितनी भी आलोचनात्मक बातें कही जाएं किंतु उन्होंने योग और आयुर्वेद को जनसाधारण में लोकप्रिय बनाने का  प्रशंसनीय कार्य किया है। इसी तरह प्रधानमंत्री श्री मोदी को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने संरासंघ के जरिए  विश्व योग दिवस की शुरुआत कर इस भारतीय विद्या को दुनिया भर में स्थापित और प्रतिष्ठित किया। बेहतर हो शफीकुर्रहमान जैसे लोगों के ऐतराज पर उन्हीं की पार्टी के भीतर से आवाज उठे। सही मायनों में ऐसे लोग मुस्लिम समाज के भी हितचिंतक नहीं हैं । ये अल्पसंख्यकों की बदहाली का रोना तो खूब रोते  हैं लेकिन जब उसके उन्नयन की बात आती है तब ऐसे नेता ही मुसलमानों को मजहब का हवाला देकर प्रगति करने से रोकते हैं। योग का विरोध भी ऐसी ही कोशिश है जिसका मकसद मुसलमानों को मुख्य धारा से दूर रखना है ।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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