Saturday 31 July 2021
लाल किले के उपद्रवियों को सहायता : एक पूर्व सैनिक से ये अपेक्षा नहीं थी
Friday 30 July 2021
जब 100 फीसदी शिक्षित राज्य का ये हाल है तब ......
Thursday 29 July 2021
ममता कुछ भी कहें लेकिन क्या कांग्रेस किसी और का नेतृत्व स्वीकार करेगी
Wednesday 28 July 2021
तीसरी लहर के आकलन तक विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव भी रोके जाएं
Tuesday 27 July 2021
निर्णय क्षमता और इच्छाशक्ति की कमी के कारण उलझे हैं राज्यों के विवाद
Monday 26 July 2021
वोटों की खरीदी : इतने बड़े अपराध की इतनी मामूली सजा
Saturday 24 July 2021
मायावी दांव : कांशीराम को छोड़ राम और परशुराम की शरण में
Friday 23 July 2021
आधे वेतन पर छुट्टी की बजाय नेताओं और नौकरशाहों की फिजूलखर्ची रोकें
Thursday 22 July 2021
ऑक्सीजन : झूठ , सफेद झूठ और सरकारी झूठ
Wednesday 21 July 2021
मुनव्वर : माँ से चले मज़हब पर रुके
Tuesday 20 July 2021
जासूसी : ऐसे मामलों में सच्चाई कभी सामने नहीं आती
Monday 19 July 2021
हंगामा और बहिर्गमन से बचे विपक्ष तभी सरकार पर डाल सकेगा दबाव
Saturday 17 July 2021
पंजाब का मामला न सुलझा तो अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की अंतर्कलह बढ़ेगी
Friday 16 July 2021
राजद्रोह ही क्यों , किसी भी कानून का दुरूपयोग गलत
Thursday 15 July 2021
कावड़ यात्रा : तीसरी लहर का स्वागत द्वार बन सकती
Wednesday 14 July 2021
ज़िन्दगी रही तो सैर -सपाटा और धरम - करम भी हो जायेंगे वरना .......
Tuesday 13 July 2021
लाख दुखों की एक दवा है जनसंख्या नियंत्रण
Monday 12 July 2021
अफगानिस्तान : अमेरिका की हार से भारत पर बढ़ा भार
Saturday 10 July 2021
समान नागरिक संहिता : विरोध करने वालों की दशा कांग्रेस जैसी हो जाएगी
Friday 9 July 2021
जाति के मकड़जाल में उलझकर रह गयी भारतीय राजनीति
Thursday 8 July 2021
आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन से ही होगी नैया पार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के दो साल बीत जाने के बाद मंत्रीमंडल का जो विस्तार किया वह राजनीतिक से ज्यादा पेशेवर कार्यशैली का आभास कराता है | दो साल की समीक्षा के बाद एक दर्जन मंत्रियों को एक झटके में हटा देना साहसिक निर्णय है | खास तौर पर रविशंकर प्रसाद , प्रकाश जावडेकर ,रमेश पोखरियाल , संतोष गंगवार और डा हर्षवर्धन को हटाना आसान नहीं था | लेकिन जैसी खबरें आ रही थीं उनके अनुसार प्रधानमंत्री बीते एक महीने से सभी मंत्रियों के कार्यों की समीक्षा कर रहे थे | कोरोना काल में सरकार का काम अनेक क्षेत्रों में न सिर्फ पिछड़ा अपितु उसके माथे विफलता का दाग भी लगने लगा था | बंगाल चुनाव के बाद मंत्रीमंडल का पुनर्गठन और मंत्रियों के विभागों में फेरबदल अपेक्षित भी था और आवश्यक भी | उस दृष्टि से श्री मोदी ने जो किया वह स्वाभाविक प्रक्रिया ही है | उन्होंने अमित शाह , राजनाथ सिंह नितिन गडकरी , एस जयशंकर , निर्मला सीतारमण और नरेन्द्र सिंह तोमर को छोड़ शेष कैबिनेट मंत्रियों के विभागों में भी रद्दोबदल किया किन्तु सबसे आश्चर्यजनक बात रही श्रीमती सीतारमण को वित्त मंत्रालय से नहीं हटाने की क्योंकि मोदी सरकार जिस मोर्चे पर सबसे ज्यादा आलोचना झेल रही है वह वित्त ही है | आर्थिक मंदी के बाद कोरोना काल में लगाये गये लॉक डाउन ने उद्योग व्यापार के साथ ही रोजगार की हालत बिगाड़कर रख दी है | ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि नोट बंदी और जीएसटी के अन्तर्निहित लाभ लोगों तक पहुँचने के पहले ही कोरोना आ धमका जिसने दूबरे में दो आसाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर दी | हालाँकि पहली लहर में केंद्र सरकार के आपदा प्रबंधन को लोगों ने सराहा लेकिन उसके बाद दूसरी लहर के कहर ने न सिर्फ सरकार की छवि खराब की वरन जनता में नाराजगी भी उसके कारण बढी | स्वास्थ्य मंत्री डा हर्षवर्धन की छुट्टी इसी वजह से की गई | बहरहाल नए मंत्रियों के चयन और पुरानों के विभागों में बदलाव से ये बात समझ में आती है कि प्रधानमन्त्री ने केवल उप्र ही नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव की व्यूहरचना भी दिमाग में रखी है | उप्र को 16 मंत्री देने के साथ ही उन्होंने बंगाल और महाराष्ट्र पर भी विशेष ध्यान दिया जो दूरगामी रणनीति का संकेत है | सबसे उल्लेखनीय बात ये है कि श्री मोदी ने राजनीतिक और जातीय समीकरण साधे रखने के साथ ही चतुराई से मंत्रीमंडल में शैक्षणिक और पेशेवर और गुणवत्ता तथा अनुभव को महत्व देते हुए ऐसे चेहरों को सत्ता संचालन में अपना सहयोगी बनाया जो राजनीतिक दृष्टि से भले ही प्रभावशाली नजर न आते हों लेकिन जो मंत्रालय उनको दिया गया उसका दायित्व निर्वहन करने में सफल होगे | इसका कारण ये है कि दूसरी पारी का 40 फीसदी कार्यकाल व्यतीत होने के बाद भी केंद्र सरकार जनमानस पर वैसा असर नहीं छोड़ पा रही जिसके लिए श्री मोदी जाने जाते हैं | ये बात सच है कि कोरोना ने सरकार के कामकाज पर बुरा असर डाला | महंगाई विशेष रूप से पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने कट्टर मोदी समर्थको तक को नारज कर दिया है | ब्रांड मोदी के चलते भाजपा जिस तरह से निश्चित होकर बैठी थी वह स्थिति काफी बदल चुकी है | बंगाल चुनाव में हालाँकि कांग्रेस और वामदलों के सफाए ने पार्टी के लिए नई सम्भवनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं लकिन राष्ट्रीय विकल्प की गैर मौजूदगी को विजय की स्थायी गारंटी नहीं माना जा सकता और ये बात श्री मोदी अच्छी तरह समझते हैं | विपरीत परिस्थितियों में चुनौतियों पर विजय हासिल करने में वे काफी पारंगत हैं | लेकिन ये भी सही है कि आत्मविश्वास का अतिरेक अप्रत्याशित पराजय का कारण बन जाता है | 2004 में स्व. अटलबिहारी वाजपेयी अच्छी छ्वि के बाद भी स्व. प्रमोद महाजन के अति आत्मविश्वास की वजह से सत्ता गँवा बैठे थे | श्री मोदी उस अनुभव से बचने के प्रति सदैव सतर्क रहते हैं और यही गत दिवस हुए मंत्रीमंडल विस्तार में झलकता है | जहां तक बात आगामी लोकसभा चुनाव की है तो उनको पता है कि 2022 में होने वाले राज्यों के चुनावों में भले ही भाजपा बाकी राज्यों में ज्यादा कुछ न कर पाए लेकिन उप्र और गुजरात में उसे सत्ता हासिल करने के साथ ही बड़ा बहुमत लाना होगा क्योंकि उप्र जहां राष्ट्रीय राजनीति में दबदबे के लिए जरूरी है वहीं गुज्ररात से प्रधानमन्त्री की साख जुडी हुई है | इस प्रकार प्रधानमन्त्री ने बड़ी ही चतुराई से मंत्रीमंडल की संरचना की है | उनको ये बात अच्छी तरह पता है कि मंत्रियों के चेहरे और प्रभाव से ज्यादा लोग सरकार के कामकाज से अपनी राय बनायेंगे और उस दृष्टि से श्री मोदी के पास समय कम और काम ज्यादा है | शपथ ग्रहण के फौरन बाद विभागों का ऐलान दर्शाता है कि प्रधानमन्त्री ने भविष्य का पूरा तानाबाना बुन लिया है | और इसीलिये उम्मीद की जा सकती है कि अब सरकार तेजी से काम करेगी | लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि आर्थिक मोर्चे पर उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा क्योंकि आगामी राजनीतिक मुकाबलों में महंगाई और कारोबारी जगत के सामने आ रही परेशानियां ही फैसले का आधार बनेंगी।
-रवीन्द्र वाजपेयी