Saturday 31 July 2021

लाल किले के उपद्रवियों को सहायता : एक पूर्व सैनिक से ये अपेक्षा नहीं थी



जब नवजोत सिंग सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण कर रहे थे उसी आयोजन  में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि जब नवजोत पैदा हुए थे तब वे सेना में रहते हुए देश की रक्षा कर रहे थे | कैप्टेन की वह टिप्पणी सिद्धू को अपने सामने बच्चा साबित करना था या कुछ और ये तो वही बेहतर जानते होंगे किन्तु पटियाला जैसी बड़ी रियासत के उत्तराधिकारी होने के बावजूद उनका सेना में शामिल होना निश्चित तौर पर सम्मान का भाव उत्पन्न करता है | लेकिन पंजाब सरकार द्वारा बीती 26 जनवरी को  किसान आन्दोलन के दौरान दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर चढ़े उपद्रवियों को  दिल्ली पुलिस द्वारा दायर मुकदमे में  कानूनी सहायता प्रदान करने के ऐलान से मुख्यमंत्री का दोहरा चरित्र सामने आ गया है | लाल किले की प्राचीर पर  चढ़कर तिरंगे का अपमान करने और  तलवारें घुमाने के दृश्य पूरे देश ने देखे | हर देशभक्त को उस हरकत ने क्रोधित कर दिया | यहाँ तक कि सिख समुदाय के भी अनेक लोगों ने उस घटना को सिख धर्म के  आदर्शों के विरुद्ध बताते हुए कड़ी निंदा करने में संकोच नहीं किया | किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने वालों ने भी ये स्वीकार किया कि लालकिले  पर चढ़ना  उनके आन्दोलन का हिस्सा  नहीं था और ऐसा करने वाले उनके लोग नहीं थे | राकेश टिकैत जैसे कुछ नेताओं ने तो भाजपा पर ही ये आरोप लगा दिया कि उक्त घटना का तानाबाना उसी ने बुना था किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए |  ये तर्क भी दिया गया कि इसीलिये सुरक्षा कर्मियों ने  उपद्रवियों को रोका ही नहीं | प्राचीर पर हंगामा करने के अलावा  भूतल पर भी तोड़फोड़ की गई | वह तो सुरक्षा बल के जवानों ने समझदारी से काम लिया नहीं तो बात खूनखराबे तक पहुँच  सकती थी | निश्चित तौर पर वह  साधारण अपराध न होकर राष्ट्रीय  सम्मान के साथ खिलबाड़ था और ऐसा करने वालों को कड़ा दंड देना किसी भी स्थिति में गलत नहीं होगा | लेकिन किसान आन्दोलन में घुस आये खलिस्तान समर्थकों ने उपद्रवियों को महिमामंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी | पंजाब सरकार द्वारा ऐसे लोगों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीकों का अपमान करने वालों की पीठ ठोंकने जैसा है | कैप्टेन अमरिंदर पूर्व फ़ौजी हैं  और उस आधार पर उनसे ये अपेक्षा थी  कि वे  देश की आन – बान – शान कहलाने वाले  लाल किले का अपमान करने वालों के विरुद्ध खुलकर खड़े होते | पंजाब देश का सीमावर्ती राज्य है जहां के लोग भारत की एकता और अखंडता के लिए सदैव एकजुट होकर खड़े रहे हैं | भारतीय सेना की तो कल्पना तक बिना पंजाबियों के नहीं की जा सकती | यही वजह रही कि जब खलिस्तान के नाम पर वहां आतंक का दौर आया तब  पंजाब के लोगों  ने देश की अखंडता को ही महत्व दिया जिसके कारण देश विरोधी ताकतें पराभूत हुईं | लम्बे समय बाद किसान आन्दोलन की आड़ लेकर खालिस्तानी फिर सक्रिय हो उठे और पूर्व की तरह उनको विदेशों से भी समर्थन मिलने लगा | उसी से उत्साहित होकर लाल किले वाली जुर्रत की गई | ये बात भी बिना  लाग - लपेट के स्वीकार करनी होगी कि गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर लाल किले में की गई देश विरोधी करतूत से किसान आन्दोलन की गम्भीरता तार – तार हो गई और उसके बाद वह पहले जैसी तेजी  नहीं पकड़ सका | ये देखते हुए कैप्टेन अमरिंदर सिंह की सरकार द्वारा उन उपद्रवियों को कानूनी सहायता देने का फैसला बहुत ही ओछी हरकत है | इस फैसले के दूरगामी परिणाम बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं | अमरिंदर केवल राजनेता होते तब भी उनसे ऐसे निर्णय की अपेक्षा नहीं थी लेकिन वे तो एक पूर्व सैन्य अधिकारी भी हैं और इसलिये उनसे ऐसे लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने की उम्मीद नहीं की जा सकती जिन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक चिन्ह का अपमान करने जैसा अक्षम्य अपराध किया हो |  

- रवीन्द्र वाजपेयी



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