Saturday 10 July 2021

समान नागरिक संहिता : विरोध करने वालों की दशा कांग्रेस जैसी हो जाएगी


हालांकि ऐसा होना आसान नहीं है लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय की  न्यायाधीश  प्रतिभा एम सिंह की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने बदलते सामाजिक वातावरण और सोच के मद्देनजर समान नागरिक संहिता लागू करने संबंधी निर्देश केंद्र सरकार को देते हुए कहा कि  इसके लिए ये सही समय है क्योंकि भारतीय समाज में धर्म , जाति , विवाह आदि की पारम्परिक बेड़ियाँ टूट रही हैं | राजस्थान के मीणा समाज की एक महिला ने अपने पति द्वारा परिवार अदालत में  हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक़ के आवेदन का विरोध करते हुए  ये तर्क दिया था  कि मीणा समाज पर हिन्दू विवाह  कानून लागू नहीं होता |  उसकी आपत्ति को अदालत ने मंजूर कर लिया | उसके विरुद्ध पति ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसने मामले की सुनवाई करते हुए केद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 44 के हवाले से निर्देश दिया कि वह तलाक सहित अन्य पारिवारिक विवादों में अलग - अलग कानूनों के कारण  उत्पन्न पेचीदगियों को समाप्त करने के लिए समान नागरिक संहिता को लागू करने जरूरी कदम उठाये | न्यायाधीश के निर्देश का केंद्र सरकार किस तरह पालन करती है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी अनेक प्रकरणों में समान  नागरिक संहिता लागू किये जाने की बात कही जा चुकी है | लेकिन ये मामला सामाजिक  और कानूनी से ज्यादा चूँकि राजनीति के शिकंजे में फंसा हुआ है इसलिए सरकारें  इस बारे में फैसला लेना तो अलग रहा बात करने तक से डरती हैं  | वैसे नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भाजपा के जो प्रमुख मुद्दे थे उनमें जम्मू कश्मीर से धारा  370 हटाना और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण जैसे वायदे तो पूरे हो गये | मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ से मुक्त करवाने की व्यवस्था भी हो गई | लेकिन समान नागरिक संहिता को लागू करने की इच्छा  के बाद भी वह ऐसा नहीं कर सकी तो उसका प्रमुख कारण कोरोना संक्रमण रहा वरना अभी तक समान नागरिक संहिता लागू हो चुकी होती | हालाँकि अभी तक भाजपा को इस मुद्दे पर केवल शिवसेना का समर्थन मिलता रहा है जो अब उसके विरोध  में है | लेकिन अपने वोट बैंक की खातिर वह  इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का साथ दे दे तो आश्चर्य नहीं होगा | बाकी दल मुस्लिम वोटों की खातिर समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं | लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने जिस आधार पर केंद्र को निर्देश दिया उसके पीछे बड़े ही व्यवहारिक कारण बताये गये हैं | मौजूदा समय में दूसरी जाति ही नहीं वरन दूसरे धर्म में भी ऐसे  विवाह होने लगे हैं जिसमें कुछ मामलों में पति और पत्नी अपना मूल धर्म नहीं छोड़ते लेकिन जब तलाक़ की नौबत आती है तब उस प्रकरण का निपटारा किस क़ानून के अंतर्गत हो ये समस्या सामने आ जाती है | संदर्भित मामले में पत्नी द्वारा मीणा समुदाय का अलग विवाह कानून होने की बात को अदालत ने स्वीकार नहीं किया लेकिन आदिवासी  सहित अनेक जातिगत समुदायों में उनके अपने सामाजिक कानून हैं | यही  देखते हुए न्यायाधीश महोदया ने समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता व्यक्त करते हुए मौजूदा समय को उसके सर्वथा अनुकूल बताया | आज जब सभी राजनीतिक दल सामाजिक समरसता की जरूरत पर बल देते हैं तब समान नागरिक कानून उसमें सहायक ही बनेगा | संविधान में भी इस आशय की जरूरत व्यक्त की गई थी  | बेहतर होगा उक्त निर्देश को किसी पूर्वाग्रह अथवा दुराग्रह के बगैर लागू करने पर विचार हो | वैसे जो दल इसका विरोध करेंगे उनको याद रखना चाहिए कि लोकसभा में विशाल बहुमत वाली  स्व.राजीव गांधी की सरकार ने संसद के जरिये शाह बानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उलटवाकर जो गलती की थी उसकी सजा कांग्रेस आज तक भुगत रही है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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