Saturday 24 July 2021

मायावी दांव : कांशीराम को छोड़ राम और परशुराम की शरण में



तिलक , तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार के बाद कुछ बरस पहले हाथी नहीं गणेश हैं , ब्रह्मा , विष्णु , महेश हैं का नारा लगाने वाली  बहुजन समाज पार्टी  अब ब्राह्मण मतदाताओं पर ध्यान केन्द्रित कर रही  है | उ.प्र विधानसभा  चुनाव की तैयारियों के अंतर्गत पार्टी  महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने अयोध्या में रामलला के दर्शन उपरांत ब्राह्मणों को रिझाने वाले  बयान दिए और  ब्राह्मणों का एनकाउंटर करने वालों का राजनीतिक एनकाउंटर करने जैसी बात भी कही | अयोध्या में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के पोस्टर पर  मायावती के अलावा भगवान राम और परशुराम के चित्र बसपा की ताजा रणनीति का प्रमाण है | हालाँकि ये  प्रयोग उसने 2007 में भी किया था और उसी के बलबूते मायावती को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल हुई थी |  लेकिन सरकार बनाते ही उनका सवर्ण विरोधी रुख जाहिर होने लगा और उसी वजह से 2012 में समाजवादी पार्टी धमाकेदार अंदाज में लौट आई | तबसे बसपा लगातार पिछड़ती गई | 2014 के  लोकसभा चुनाव में उसके प्रतिबद्ध दलित मतदाता भी मोदी लहर में भाजपा के साथ चले गये और  उसका सफाया  हो गया | 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा | उस हार से मायावती इतना घबरा गईं कि 2019 के  लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा से गठबंधन कर लिया जिसके साथ उनकी  सांप - नेवले जैसी दुश्मनी थी | यहाँ तक कि वे मुलायम सिंह यादव के लिए भी प्रचार करने जा पहुंची किन्तु बुआ और बबुआ ( अखिलेश ) नामक वह गठजोड़ भी कारगर न हो सका और बसपा एक बार फिर अलग - थलग पड़ गई | हाल के पंचायत चुनाव में भी उसकी स्थिति अच्छी नहीं रही | वैसे भी  पंजाब में उसने अकाली दल के साथ गठबंधन कर कांग्रेस को अपने से दूर कर लिया वहीं सपा से दोस्ती का अनुभव भी कड़वा ही रहा | हालांकि एक जमाने में भाजपा के सहारे मायावती  सत्ता में आ चुकी थीं लेकिन अब उसके साथ भी उनका छत्तीस का आँकड़ा है | उनको  ये समझ में आ चुका है कि केवल दलित और उसमें भी जाटव  समुदाय के भरोसे चुनावी वैतरणी पार नहीं की जा सकती | ऐसे में उन्होंने सवर्ण जातियों में सेंध लगाने की रणनीति बनाई जिसके शिल्पकार बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र हैं | बसपा ये बात अच्छी तरह जानती है कि यादव तथा मुसलमान सपा के प्रति झुकाव रखते हैं जबकि वैश्य और ब्राह्मण सहित बाकी पिछड़ी जातियों में भाजपा की  अच्छी पकड़ बनी हुई है | योगी आदित्य नाथ और राजनाथ सिंह की वजह से क्षत्रिय समाज भी भाजपा की तरफ झुका नजर आ रहा है | ऐसे  में उसको लगा कि वह ब्राह्मण मतदाताओं के मन में योगी सरकार की  ब्राह्मण विरोधी छवि स्थापित कर उनको  अपने पाले में खींचकर 2007 वाली सफलता को दोहरा लेगी | दरअसल कानपुर के कुख्यात गैंग्स्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद कुछ और ब्राह्मण अपराधी योगी राज में मार गिराए गये जिससे मुख्यमंत्री को ब्राह्मण विरोधी प्रचारित करने की मुहिम शुरू हुई | इसका कितना असर हुआ ये तो अभी तक एहसास नहीं किया जा सका किन्तु बसपा को लगता है कि ब्राह्मण मतदाता ही  डूबते को तिनके का सहारा साबित हो सकते हैं | सतीश चन्द्र मिश्रा के रूप में उनके पास एक जाना - पहिचाना ब्राह्मण चेहरा पहले से है ही | वैसे कांग्रेस भी इस दिशा में  प्रयासरत है लेकिन उसकी जमीनी हालत बसपा से भी कमजोर है | कांशीराम को छोड़ राम और परशुराम को  पूजने का यह मायावी दांव कितना सफल होगा ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे  किन्तु वास्तविकता के धरातल पर देखें तो मायावती विश्वसनीयता खो चुकी हैं | गेस्ट हाउस काण्ड में उनके साथ  बदसलूकी  के लिए जिन मुलायम सिंह यादव को उन्होंने दलित अस्मिता का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था उन्हीं का प्रचार करने जाने के बाद मायावती के प्रति प्रतिबद्ध मतदाताओं का भरोसा भी घटा है | पश्चिमी उ.प्र  में भीम आर्मी नामक  दलित संगठन तेजी से पैर पसार रहा है जिसके नेता चन्द्रशेखर आजाद रावण ऐलानिया तौर पर मायावती के घोर  विरोधी हैं  और सपा तथा रालोद से गठबंधन करने की बात भी कह चुके हैं  | दलित मतों में भाजपा भी सेंध लगा रही है | दरअसल ये धारणा तेजी से फ़ैल रही  है कि बसपा जाटवों को ही  महत्व देती है | और फिर  मायावती में भी अब वह दमखम नहीं रहा जो दस साल पहले तक था | इसीलिये वे ब्राह्मणों को लुभाने का तानाबाना बुन रही हैं | लेकिन उनको ये भी सोचना चाहिए कि 2007 में साथ आने के बाद  अगड़ी जातियां उनसे नाराज क्यों हो उठीं और तो और  दलित समुदाय भी अब पूरी तरह उनके साथ क्यों नहीं है ?

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment