Monday 19 July 2021

हंगामा और बहिर्गमन से बचे विपक्ष तभी सरकार पर डाल सकेगा दबाव



संसद का बहुप्रतीक्षित मानसून सत्र आज  प्रारम्भ हो गया | सत्र से पहले लोकसभा अध्यक्ष और  संसदीय कार्य मंत्री ने सर्वदलीय बैठक आयोजित कर सदन के सुचारू रूप से चलने और लंबित विधायी कार्य संपन्न कराने में सहयोग की अपील की | सरकार  और विपक्ष दोनों ने अपनी प्राथमिकतायें बताईं | अमूमन इस बैठक का वातावरण बहुत ही सौहार्द्र्पूर्ण रहता है | लेकिन सदन के भीतर वही सब  किया जाता है जिसे ससंदीय कहना भी संसद का अपमान है | मौजूदा माहौल में  विपक्ष के पास ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिन पर वह सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकता है | कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चिकित्सा प्रबंधों के लड़खड़ाने  से लोगों की  बड़ी संख्या में हुई मौतों पर क्षतिपूर्ति   , पेट्रोल - डीजल  के अलावा उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में  ताबड़तोड़ वृद्धि , कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद टीकाकरण का लक्ष्य से पीछे रहना , राजद्रोह क़ानून  पर सर्वोच्च न्यायालय का कड़ा   रुख और  जम्मू - कश्मीर में विधानसभा चुनाव आदि ऐसे विषय हैं जिन पर सरकार को रक्षात्मक किया जा सकता है | इसके साथ ही जनसँख्या नियन्त्रण कानून को लेकर भी विपक्ष के हमलों का सरकार को सामना करना पड़ेगा | सत्र के शुभारम्भ के दिन ही पत्रकारों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , वकीलों , विपक्षी नेताओं , उद्योगपतियों एवं न्यायाधीश की जासूसी करवाए जाने का खुलासा भी विपक्ष के हाथ आया एक धारदार हथियार हो सकता है | हालाँकि सरकार ने भी सम्भावित आक्रमणों का सामना करने का इरादा जता दिया है | प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया है कि सरकार हर सवाल का उत्तर देने तैयार है लेकिन विपक्ष को भी उसे समय देना होगा | उनका आशय हंगामे को रोकने से  है | पता नहीं विपक्ष किसी नई रणनीति के साथ मानसून सत्र में व्यवहार करेगा या हंगामा और बहिर्गमन जैसे तरीके अपनाते हुए सत्ता पक्ष की परोक्ष रूप से मदद करेगा | 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से ये देखने में आया है कि विपक्ष या तो सदन को चलने नहीं देता या फिर विरोध स्वरूप उठकर बाहर चला जाता है | उसके ऐसा  करने से सरकार को आसानी हो जाती है | इसलिए जितना भी समय मिले उसका वह चर्चा के लिए उपयोग करे तो अपनी  बात देश के सामने रखते हुए सरकार को घेर सकता है | हंगामे के कारण  सदन स्थगित हो जाने से  विपक्ष के तीर तरकश में ही रखे रह जाते हैं | यही  बहिर्गमन के साथ होता है जो  संसदीय प्रणाली में विरोध प्रदर्शन का बहुत ही प्रचलित तरीका रहा है किन्तु जरूरत से ज्यादा उपयोग होने से वह असरहीन होकर रह जाता है | लोकसभा में मोदी सरकार के पास भारी बहुमत होने से सदन को चलते रहने देने में ही विपक्ष का फायदा है | राज्यसभा में भी भले ही सत्ता पक्ष के पास पूर्ण बहुमत नहीं है किन्तु विपक्ष में तालमेल न होने से सरकार अपना काम  आसानी से निकाल ले  जाती है | सदन के संचालन में फ्लोर मैनेजमेंट नामक शब्द का काफी प्रयोग होता है |  सामान्यतः ये काम सत्ता पक्ष करता है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में  जब विपक्ष  के कमजोर होते जाने से आम जनमानस भी चिंतित है तब सदन के सुचारू रूप से चलते रहने के लिए उसको गंभीरता से प्रयास करना चाहिए क्योंकि संसद ही वह मंच है जहाँ कही गई कोई भी बात देश ही  नहीं दुनिया में भी सुनी जाती है | विपक्ष में बैठे नेताओं को संख्याबल में कमी से हताश हुए बिना उन दिनों से प्रेरणा लेनी  चाहिए जब विपक्ष के मुट्ठी भर नेता पं. नेहरु और इंदिरा जी जैसे ताकतवर प्रधानमंत्री पर भी भारी पड़ जाया करते थे | आज के दौर  की संसद में विपक्षी खेमे से ऐसा कोई भाषण बीते सालों में नहीं सुनाई दिया जिसे लोग याद रख सकें | मौजूदा सत्र उस दृष्टि से विपक्ष के लिए एक अच्छा अवसर है , अपनी साख और धाक ज़माने का | यदि वह इसमें चूक गया तब जनता के मन में उसे लेकर व्याप्त निराशा और बढ़ती जायेगी | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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