म.प्र सरकार अपना खर्च घटाने के लिए कर्मचारियों को पांच साल तक आधे वेतन पर अवकाश देने की योजना पर विचार कर रही है | इस अवधि में वे अपना कोई निजी कारोबार या दूसरी नौकरी कर सकेंगे | इस दौरान वार्षिक वेतन वृद्धि को छोड़ कर वरिष्ठता , पेंशन तथा मृत्यु हो जाने पर आश्रित को अनुकम्पा नियुक्ति की सुविधा यथावत रहेगी | हालाँकि शिक्षक , पुलिस और चिकित्सा सुविधाओं से जुड़े कर्मचारी इस योजना में शामिल नहीं होंगे | सरकार का सोचना है कि इस योजना के जरिये वह स्थापना व्यय का बोझ कम कर सकेगी | आपातकालीन व्यवस्था के अंतर्गत ये विचार सैद्धांतिक तौर पर गलत नहीं है किन्त्तु इसकी व्यवहारिकता का भी परीक्षण किया जाना जरूरी है | हालाँकि कम्प्यूटर के आने से दफ्तरों में कागजी काम घटा है लेकिन ये भी सही है कि अधिकांश कार्यालयों में स्थायी कर्मचारियों की जगह दैनिक वेतन भोगी अथवा संविदा नियुक्ति वाले कार्यरत हैं | तृतीय - चतुर्थ श्रेणी के अनेक कामों के लिए निजी क्षेत्र ( आउट सोर्सिंग ) की सेवाएं भी ली जाने लगी हैं | ऐसे में इस तरह की सुविधा मिलने से ऐसा न हो कि सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों का टोटा पड़ने से कामकाज की सुस्त चाल और धीमी हो जाये | वैसे भी कार्यक्षमता के लिहाज से मप्र के सरकारी दफ्तरों की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती | ये देखते हुए पांच साल की छुट्टी लेने वालों के आवेदन इतने न बढ़ जाएँ कि सरकार के लिए फैसला करना कठिन हो जाए | स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के मामलों में यही स्थिति है | भुगतान के लिए धनराशि न होने से सेवा निवृत्ति की आयु सीमा शिवराज सरकार ने पिछले कार्यकाल में बढ़ा दी थी | इससे भी बड़ी बात नये रोजगार की है | ये बात बिलकुल सही है कि न्यायाधीशों से लेकर तो भृत्य तक के पद स्वीकृत होने के बावजूद खाली पड़े हैं | लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के नतीजे सालों लम्बित पड़े रहते हैं | ऐसे में खर्च कम करने के लिए उठाये जाने वाले उक्त कदम के बजाय सरकार द्वारा मंत्रियों , वरिष्ठ अधिकारियों , विधायकों के अलावा निगम , मंडल और प्राधिकरणों में पदस्थ राजनीतिक हस्तियों को मितव्ययता अपनाने के लिए प्रेरित और जरूरत पड़ने पर बाध्य किया जाना चाहिए | जबसे देश में उदारीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था का पदार्पण हुआ तभी से सरकार के उच्च स्तर पर भी कारर्पोरेट सोच हावी होने लगी जिसके कारण नेता और नौकरशाहों के खर्चे अनाप - शनाप बढ़ गये | शासकीय विश्राम गृहों की बजाय ठहरने के लिए महंगे होटलों का चलन भी हो गया | सरकार ने अपने वाहन भले कम कर दिए लेकिन टैक्सियों पर भारी - भरकम खर्च किया जाने लगा | बंगलों के रखरखाव और सुविधाओं पर भी पानी की तरह पैसा लुटाया जाता है | सरकारी विमान और हेलीकाप्टरों पर भी सरकार का पैसा पानी की तरह बहता है | राजनीतिक कायों के लिए भी सरकारी उड़नखटोले बेरहमी से उड़ाये जाते हैं | निजी कार्यवश की जाने वाली यात्रा को भी किसी न किसी बहाने से सरकारी रूप देकर अपना खर्च बचाने की प्रवृत्ति भी आम है | इस आधार पर शासकीय कर्मचारियों को पांच साल तक आधे वेतन पर अवकाश की सुविधा देने के बजाय सरकार अपनी फिजूलखर्ची को रोक सके तो खजाना खाली होने से तो बचेगा ही , कर्मचारियों की कमी के कारण लम्बित काम के अम्बार भी नहीं लगेंगे | वैसे म.प्र सरकार की आर्थिक स्थिति वाकई खराब है | वह लगातार कर्ज पर कर्ज लेती जा रही है | कोरोना काल में राजस्व वसूली भी घटी है जबकि म.प्र वह राज्य है जहां पेट्रोल - डीज़ल पर सबसे ज्यादा करारोपण है | कर्मचारियों को आधे वेतन पर पांच वर्षीय अवकाश की योजना से भले ही तात्कालिक रूप से सरकार का खर्च कम हो जाए लेकिन ऐसा करने से सरकारी दफ्तरों की कार्यक्षमता में भी कमी आयेगी | इसलिए ज्यादा अच्छा यही होगा कि म.प्र सरकार मंत्री स्तर से निचली पायदान के कर्मचारी तक में कार्यसंस्कृति का विकास करते हुए अनुत्पादक खर्चों पर नियन्त्रण करे तो आर्थिक संकट दूर होने के साथ ही सरकार की छवि भी सुधरेगी |
आधे वेतन पर छुट्टी की बजाय नेताओं और नौकरशाहों की फिजूलखर्ची रोकें
म.प्र सरकार अपना खर्च घटाने के लिए कर्मचारियों को पांच साल तक आधे वेतन पर अवकाश देने की योजना पर विचार कर रही है | इस अवधि में वे अपना कोई निजी कारोबार या दूसरी नौकरी कर सकेंगे | इस दौरान वार्षिक वेतन वृद्धि को छोड़ कर वरिष्ठता , पेंशन तथा मृत्यु हो जाने पर आश्रित को अनुकम्पा नियुक्ति की सुविधा यथावत रहेगी | हालाँकि शिक्षक , पुलिस और चिकित्सा सुविधाओं से जुड़े कर्मचारी इस योजना में शामिल नहीं होंगे | सरकार का सोचना है कि इस योजना के जरिये वह स्थापना व्यय का बोझ कम कर सकेगी | आपातकालीन व्यवस्था के अंतर्गत ये विचार सैद्धांतिक तौर पर गलत नहीं है किन्त्तु इसकी व्यवहारिकता का भी परीक्षण किया जाना जरूरी है | हालाँकि कम्प्यूटर के आने से दफ्तरों में कागजी काम घटा है लेकिन ये भी सही है कि अधिकांश कार्यालयों में स्थायी कर्मचारियों की जगह दैनिक वेतन भोगी अथवा संविदा नियुक्ति वाले कार्यरत हैं | तृतीय - चतुर्थ श्रेणी के अनेक कामों के लिए निजी क्षेत्र ( आउट सोर्सिंग ) की सेवाएं भी ली जाने लगी हैं | ऐसे में इस तरह की सुविधा मिलने से ऐसा न हो कि सरकारी दफ्तरों में काम करने वालों का टोटा पड़ने से कामकाज की सुस्त चाल और धीमी हो जाये | वैसे भी कार्यक्षमता के लिहाज से मप्र के सरकारी दफ्तरों की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती | ये देखते हुए पांच साल की छुट्टी लेने वालों के आवेदन इतने न बढ़ जाएँ कि सरकार के लिए फैसला करना कठिन हो जाए | स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के मामलों में यही स्थिति है | भुगतान के लिए धनराशि न होने से सेवा निवृत्ति की आयु सीमा शिवराज सरकार ने पिछले कार्यकाल में बढ़ा दी थी | इससे भी बड़ी बात नये रोजगार की है | ये बात बिलकुल सही है कि न्यायाधीशों से लेकर तो भृत्य तक के पद स्वीकृत होने के बावजूद खाली पड़े हैं | लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के नतीजे सालों लम्बित पड़े रहते हैं | ऐसे में खर्च कम करने के लिए उठाये जाने वाले उक्त कदम के बजाय सरकार द्वारा मंत्रियों , वरिष्ठ अधिकारियों , विधायकों के अलावा निगम , मंडल और प्राधिकरणों में पदस्थ राजनीतिक हस्तियों को मितव्ययता अपनाने के लिए प्रेरित और जरूरत पड़ने पर बाध्य किया जाना चाहिए | जबसे देश में उदारीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था का पदार्पण हुआ तभी से सरकार के उच्च स्तर पर भी कारर्पोरेट सोच हावी होने लगी जिसके कारण नेता और नौकरशाहों के खर्चे अनाप - शनाप बढ़ गये | शासकीय विश्राम गृहों की बजाय ठहरने के लिए महंगे होटलों का चलन भी हो गया | सरकार ने अपने वाहन भले कम कर दिए लेकिन टैक्सियों पर भारी - भरकम खर्च किया जाने लगा | बंगलों के रखरखाव और सुविधाओं पर भी पानी की तरह पैसा लुटाया जाता है | सरकारी विमान और हेलीकाप्टरों पर भी सरकार का पैसा पानी की तरह बहता है | राजनीतिक कायों के लिए भी सरकारी उड़नखटोले बेरहमी से उड़ाये जाते हैं | निजी कार्यवश की जाने वाली यात्रा को भी किसी न किसी बहाने से सरकारी रूप देकर अपना खर्च बचाने की प्रवृत्ति भी आम है | इस आधार पर शासकीय कर्मचारियों को पांच साल तक आधे वेतन पर अवकाश की सुविधा देने के बजाय सरकार अपनी फिजूलखर्ची को रोक सके तो खजाना खाली होने से तो बचेगा ही , कर्मचारियों की कमी के कारण लम्बित काम के अम्बार भी नहीं लगेंगे | वैसे म.प्र सरकार की आर्थिक स्थिति वाकई खराब है | वह लगातार कर्ज पर कर्ज लेती जा रही है | कोरोना काल में राजस्व वसूली भी घटी है जबकि म.प्र वह राज्य है जहां पेट्रोल - डीज़ल पर सबसे ज्यादा करारोपण है | कर्मचारियों को आधे वेतन पर पांच वर्षीय अवकाश की योजना से भले ही तात्कालिक रूप से सरकार का खर्च कम हो जाए लेकिन ऐसा करने से सरकारी दफ्तरों की कार्यक्षमता में भी कमी आयेगी | इसलिए ज्यादा अच्छा यही होगा कि म.प्र सरकार मंत्री स्तर से निचली पायदान के कर्मचारी तक में कार्यसंस्कृति का विकास करते हुए अनुत्पादक खर्चों पर नियन्त्रण करे तो आर्थिक संकट दूर होने के साथ ही सरकार की छवि भी सुधरेगी |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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