Tuesday 27 July 2021

निर्णय क्षमता और इच्छाशक्ति की कमी के कारण उलझे हैं राज्यों के विवाद



गत दिवस असम और मिजोरम की सीमा पर नागरिकों और पुलिस के बीच हुए टकराव में असम पुलिस के पांच जवानों के मारे जाने और उसके बाद मिज़ोरम पुलिस द्वारा खुशियाँ मनाये जाने की घटना न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण वरन खतरनाक संकेत है | प्राथमिक तौर पर ये बताया गया है कि विवाद की जड़ दोनों राज्यों के बीच सीमा के निर्धारण का है | पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से मिज़ोरम द्वारा  असम के कुछ इलाकों पर दावा किया जाता रहा है | ताजा झगड़े के पीछे अतिक्रमण हटाया जाना कारण बताया जाता  है | जिसके बाद दोनों तरफ से  पथराव  शुरू हुआ जिसकी परिणिति हिंसक   मुठभेड़ में होने के बाद  पुलिस आमने - सामने  आ गई | असम पुलिस के पांच जवानों की मौत के अलावा पचास के घायल होने की जानकारी भी मिली है | पता चला है पूर्वोत्तर  राज्यों के सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दो दिन पहले ही केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सभी राज्यों के  मुख्यमंत्रियों की बैठक भी ली थी |  ये पहला अवसर नहीं है जब दो राज्यों के बीच सीमा विवाद ने उग्र रूप लिया हो | अनेक राज्यों के बीच कहीं जमीन तो कहीं नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवाद चला आ रहा है | केंद्र सरकार दोनों पक्षों को समझा -  बुझाकर अस्थायी तौर पर तो विवाद ठंडा करवा देती है लेकिन स्थायी समाधान  नहीं होने से दबी हुई चिंगारी रह – रहकर भड़कती रहती है | देश के भीतरी हिस्सों वाले राज्यों के बीच के विवाद से हटकर सीमावर्ती राज्यों में इस तरह का तनाव पैदा होना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी  खतरा है | जहां तक पूर्वोत्तर राज्यों का प्रश्न है तो उनमें से अनेक वैसे भी विदेशी घुसपैठ और अलगाववाद की समस्या से जूझ रहे हैं | पूर्वोत्तर के अनेक राज्यों  में ईसाई मिशनरियों के अलावा नक्सलियों द्वारा अलगाववादी संगठनों को सहायता और संरक्षण मिलता रहा है | बांग्लादेश , म्यांमार और चीन के रास्ते भारत में अलगाववादी ताकतों को मदद मिलने की बात सर्वविदित है | इसी वजह से नागालैंड और  मिजोरम में आज भी भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का षडयंत्र रचा जाता है | गत दिवस मिज़ोरम पुलिस ने   जिस तरह से गोलियां चलाईं वह तात्कालिक तौर पर निर्मित परिस्थितियों का नतीजा था या पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा ,  ये तो जांच से पता चलेगा किन्तु असम पुलिस के जवानों को गोलियों से भूनने के बाद जश्न मनाने का जो दृष्य मिजोरम सीमा में दिखाई दिया वह किसी बड़े संकट की तरफ इशारा कर रहा है | इस सम्बन्ध में ये बात उल्लेखनीय है कि मिज़ोरम की धरती में आज भी अलगावावाद के बीज अंकुरित होते रहते हैं | वहां का सामाजिक ढांचा भी भारत विरोधी भावनाओं को खाद – पानी देने में सहायक है | भले ही उसके भारत से अलग होने की सम्भावना न के बराबर है लेकिन इस सीमावर्ती राज्य में मुख्यधारा की राजनीति पर क्षेत्रीय दल हावी हैं | पिछले चुनाव में दस साल बाद कांग्रेस को हराकर मिजो नेशनल फ्रंट ने सत्ता हथिया ली थी | हालाँकि अब पहले जैसी स्थिति नहीं है और सुरक्षा बलों की तैनाती की वजह से अलगाववादी तबके भी कमजोर हुए हैं , किन्तु किसी भी तरह की खुशफहमी से बचना जरूरी है | कल हुई घटना को मामूली मानकर नजरंदाज करना बड़े संकट का आधार बन सकता है | दो राज्यों के नागरिकों के बीच होने वाले झगड़े में  दोनों तरफ की पुलिस को मिलकर स्थिति संभालना थी किन्तु मिजोरम की पुलिस ने जिस तरह का आक्रामक रवैया अपनाया वह सतर्क करने  वाला है | इस बारे में राजनीतिक आरोप – प्रत्यारोप से अलग हटकर देखें तो ये हमारे देश के शीर्ष नेतृत्व में निर्णय क्षमता की कमी का परिणाम है | असम और मिज़ोरम के बीच जमीन का झगड़ा दो देशों के बीच का होता तब तो बात समझ में भी आती किन्तु एक ही देश के दो राज्यों की पुलिस के बीच गोलियां चलना देश की एकता और संघीय ढांचे के लिए खतरे का संकेत है | केन्द्र सरकार को चाहिए वह सर्वप्रथम तो इस बात के पुख्ता इंतजाम करे कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो और उसके बाद उस विवाद के स्थायी हल की दिशा में ठोस प्रयास करे जिसकी वजह से कल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी | ऐसे विवादों में दोनों पक्षों को संतुष्ट  करना  आसान नहीं होता   लेकिन कभी  न कभी तो फैसला करना ही होगा | जिस तरह केंद्र की मौजूदा सरकार ने जम्मू - कश्मीर संबंधी साहसिक फैसला लिया और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला सुनाया उससे ये विश्वास प्रबल हुआ कि केन्द्रीय सत्ता चाह ले तो बड़ी से बड़ी समस्या भी हल की जा सकती है | पूर्वोत्तर के अलावा देश के जिन राज्यों के बीच किसी मुद्दे पर विवाद है तो उसका निदान निकालने के लिए समयबद्ध निर्णय प्रक्रिया को अपनाना राष्ट्रीय जरूरत है | ऐसे मामलों को वोटों के नफे  - नुकसान से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिये क्योंकि जहां राष्ट्रीय हित कसौटी पर हो वहां दलीय हित महत्वहीन हो जाते हैं |

- रवीन्द्र वाजपेयी
 

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