Tuesday 20 July 2021

जासूसी : ऐसे मामलों में सच्चाई कभी सामने नहीं आती



इजरायली स्पायवेयर पेगासस के जरिये सरकार द्वारा राजनेताओं , पत्रकारों , सामाजिक कार्यकर्ताओं और न्यायाधीशों सहित उनसे जुड़े करीबी लोगों की जासूसी करवाए जाने का खुलासा नया नहीं है | दो साल पहले भी  इसे लेकर हंगामा हुआ था किन्तु  बात आई - गई होकर रह गई | दो दिन पहले अचानक विदेशी माध्यमों से ये खुलासा हुआ कि उक्त स्पायवेयर का उपयोग भारत में भी हुआ | चूंकि स्पायवेयर की निर्माता कंपनी अतीत में ये स्वीकार कर चुकी  है कि वह केवल सरकार को ही ये सुविधा प्रदान करती है इसलिए जैसे ही उक्त खबर आई वैसे ही विपक्ष के साथ समाचार माध्यमों एवं न्यायापालिका में भी हड़कम्प मचा | ताजा खुलासा क्योंकि संसद के मानसून अधिवेशन के ठीक  पहले हुआ इसलिए पहले दिन ही विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया | हालाँकि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में बोलते हुए किसी भी प्रकार की जासूसी से साफ़  इंकार कर दिया लेकिन बाद में उनका नाम भी उस सूची में आ गया जिनकी जासूसी किये जाने की बात उछली है | केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ ही पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी सरकार प्रायोजित जासूसी को कपोल कल्पित बताते हुए संसद सत्र के ठीक पहले उसे उजागर किये जाने पर सवालिया निशान लगा दिए | इस बारे में ये भी गौरतलब है कि सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म मसलन फेसबुक , ट्विटर और व्हाट्स एप भी इस मामले में संदेह के घेरे में हैं | काफी समय से उनका भारत सरकार के साथ कानूनी विवाद भी चला आ रहा है | जैसा कि कहा जाता है कि  इस दौर में किसी की भी निजता बरकरार नहीं रह गई है | व्यक्तिगत जानकारी के अलावा आर्थिक लेनदेन ,  व्यापारिक वार्तालाप , राजनीतिक चर्चाएँ आदि गोपनीय नहीं रह गई हैं | सोशल मीडिया पर लिखी  या दिखाई गई  किसी  भी सामग्री का विश्लेषण करते हुए व्यक्ति के बारे में तैयार किया गया ब्यौरा ( डेटा )  आज की दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने  वाली चीज है | इंटरनेट पर किसी उपभोक्ता वस्तु के बारे में जानकारी हासिल  करते ही उससे जुड़े विज्ञापन आपके सोशल मीडिया माध्यम पर आने शुरू हो जाते हैं जिससे ये बात साबित हो जाती है कि इंटेरनेट पर आपका हर व्यवहार सघन निगरानी में है और उसका व्यापारिक  उपयोग भी धड़ल्ले से हो रहा है | लेकिन संदर्भित विवाद में जिस तरह की निगरानी की गई उसका उद्देश्य चूँकि व्यापारिक न होकर सरकारी जासूसी बताया गया है इसलिए विपक्ष को सरकार की घेराबंदी करने का अच्छा अवसर हाथ लग गया  |  यद्यपि केंद्र सरकार और भाजपा तमाम आरोपों को झुठला रही है लेकिन  जानकारी का स्रोत विदेशों में है इसलिए उसकी सफाई से विपक्ष का संतुष्ट नहीं होना स्वाभाविक है | हालाँकि वह  भी जानता है कि ऐसे  मामलों में  सच्चाई कभी सामने नहीं आती किन्तु सरकार पर हमला करने का मौका वह भी नहीं छोड़ना चाहेगा | संसद में मुख्य विपक्ष विपक्षी दल कांग्रेस भी दशकों तक केन्द्रीय सत्ता में रही है इसलिये उसे पता है कि सरकार का ख़ुफ़िया विभाग ( इंटेलीजेंस ब्यूरो ) न सिर्फ राजनीतिक व्यक्तियों वरन उनके स्टाफ और संपर्कों के बारे में जानकारी एकत्र करता रहता है | न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूर्व उनकी भी निगरानी खुफिया तौर पर करवाई जाती है | लेकिन मौजूदा विवाद में चूँकि विदेशी स्पायवेयर से  जासूसी करवाने का आरोप है इसलिए वह  सतही तौर पर तो  गम्भीर लगता है |  लेकिन उसका खुलासा भी  विदेशी माध्यमों से हुआ है इसलिए पटाक्षेप भी विकीलीक्स प्रकरण जैसा ही होगा | इस सबके बावजूद भारत सरकार को इस बारे में  स्पष्ट करना चाहिए कि उसके द्वारा पेगासस के जरिये जासूसी  करवाई गई या नहीं ? हालाँकि ऐसे मामलों में हर  सरकार गोपनीयता बनाए रखती है | सारे ख़ुफ़िया विभाग गृह मंत्रालय के अधीन होने के बाद भी पुरानी सरकार के समय एकत्र की गई जानकारी इसीलिये सार्वजनिक नहीं होती | जासूसी यूँ भी शासन तंत्र का अभिन्न हिस्सा होता है | मनमोहन सिंह की सरकार के समय वित्तमंत्री  प्रणब मुखर्जी की  टेबिल पर जासूसी उपकरण लगाये जाने का मामला उठा था | स्व. मुखर्जी की शिकायत पर श्री सिंह ने ख़ुफ़िया विभाग से जांच करवाकर ये सफाई भी दी थी कि वैसा कुछ भी नहीं हुआ | उस कारण गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और स्व. मुखर्जी के बीच तनातनी भी हुई थी | चूँकि अभी संसद चल रही है इसलिए विपक्ष भी सरकार पर हावी होने  का अवसर नहीं  गंवाना चाहेगा परन्तु  जैसा होता आया है इस मामले पर भी कुछ दिन के हल्ले के बाद परदा पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि जासूसी करने और करवाने वाले अक्सर सबूत नहीं छोड़ते | रही बात आरोप - प्रत्यारोप की तो राजस्थान में पायलट समर्थक विधायक भी  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर  उनके फोन टेप करवाने का आरोप लगा चुके हैं |  

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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