अफगानिस्तान में बीते 20 सालों से जमी अमेरिकी सेनाओं की वापिसी शुरू होते ही कट्टरपंथी तालिबान अपना आधिपत्य कायम करने की दिशा में सफल होते लग रहे हैं | वहां की वर्तमान सरकार की सेना और उसके समर्थक सशस्त्र गुट तालिबान लड़ाकुओं का विरोध करने एकजुट हैं लेकिन वास्तविकता ये हैं कि आगामी 31 अगस्त को अमेरिकी सेनाओं द्वारा पूरी तरह से वापिसी किये जाते ही तालिबान इस देश पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो जायेंगे | अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति उसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना देती है | मध्य और पश्चिम एशिया को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाले इस देश की सीमाएं ईरान , पाकिस्तान , तजाकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान भारत और चीन से मिलती हैं | अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में डेरा ज़माने के बाद से वहां अनुकूल परिस्थितियाँ बनीं जिस वजह से इस पहाड़ी देश के विकास के लिए भारत ने भारी मात्रा में निवेश किया | तालिबान के काबिज होते ही वहां भारत के हितों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाएगा ये बात पूरी तरह सही है | और इसीलिये गत दिवस वहां के भारतीय दूतावास से 50 राजनयिक और सुरक्षा कर्मी वापिस बुला लिए गए | हालाँकि राजनयिक रिश्ते पूरी तरह समाप्त करने के बारे में कोई संकेत नहीं हैं लेकिन वाजपेयी सरकार के काल में जब भारतीय विमान को अपहृत कर कंधार ले जाया गया था तब तालिबान के साथ बातचीत हेतु खुद विदेश मंत्री स्व.जसवंत सिंह को जाना पड़ा क्योंकि हमारे पास उनसे संवाद का माध्यम ही नहीं बचा था | उस समय तक तालिबान का पाकिस्तान के साथ तो सीधा तालमेल था किन्तु चीन के नहीं | लेकिन बदलते माहौल में तालिबान ने चीन को अपना मित्र बताकर ये संकेत दे दिया है कि वह भारत के प्रति शत्रुता भाव को और गहरा करने जा रहा है | अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के रहते तक भारत के हित सुरक्षित थे लेकिन अचानक नई परिस्थितियों में अब ये देश पूरी तरह इस्लामिक कट्टरपंथियों के कब्जे में जाने को है | इस बारे में गौरतलब है कि अमेरिका के दबाव में कच्चा तेल खरीदने के करार से पीछे हटने की वजह से ईरान भारत से नाराज हो उठा और उसने अपने बन्दरगाहों सहित कुछ बड़े विकास कार्य चीन के जिम्मे कर दिए हैं | प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना को तालिबान की मदद से अफगानिस्तान होते हुए ईरान ले जाने और वहां से पश्चिम एशिया तक पहुँचने की योजना को अफगानिस्तान के बदलते हालातों से बल मिल सकता है | पाक अधिकृत कश्मीर में भारत विरोधी ताकतों को समर्थन के साथ ही आतंकवादी अड्डे बनाने के काम में भी तालिबान पाकिस्तान की मदद कर सकते हैं | इसलिए भविष्य में जम्मू कश्मीर में तालिबानी घुसपैठ होने लगे तो अचम्भा नहीं होगा | चीन अब तक पाकिस्तान को मदद देकर भारत के लिए समस्या खड़ी किया करता था किन्तु अब वह तालिबान को भी वैसी ही सहायता देकर हमारे लिए दोहरी मुश्किल उत्पन्न कर सकता है | कुल मिलाकर अफगानिस्तान से अमेरिका भले ही बेआबरू होकर निकला हो लेकिन उसकी हार हमारे लिए भार बनने जा रही है | दुर्भाग्य से बांगला देश को छोड़कर भारत के पड़ोसी देशों से रिश्ते अच्छे नहीं हैं | चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के अंतर्गत हमारे चारों तरफ घेराबंदी कर रखी है | अफगानिस्तान में तालिबान के पुनरोदय और चीन के साथ उसकी जुगलबंदी चिंता का नया कारण है | हालाँकि पाकिस्तान बीते कुछ समय से भारत के साथ युद्धविराम का पालन कर रहा है लेकिन कश्मीर घाटी में हो रही आतंकवादी घटनाएँ इस बात का प्रमाण है कि अभी भी वह अपनी हरकतों पर उतारू है | तालिबान के पुराने रवैये को देखते हुए ये आशंका गलत नहीं है कि वह भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचने से बाज नहीं आयेगा |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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