Wednesday 28 April 2021
ताकि तीसरे हमले के दौरान ऐसी भयावह स्थिति न बने
Monday 26 April 2021
समय पर आक्सीजन संयंत्र बन जाते तो सैकड़ों जिंदगियां बच जातीं
किसकी गलती है फ़िलहाल इस बहस में पड़कर मूल विषय से ध्यान हटाने की बजाय आगे की सुधि लेय वाली सलाह का पालन करना ही बुद्धिमत्ता होगी | फिर भी पीएम केयर कोष द्वारा जनवरी में देश के विभिन्न शहरों के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र लगवाने हेतु दी गई राशि का उपयोग न हो पाना वाकई दुःख का विषय है | जैसी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरी में विभिन्न राज्यों के सरकारी अस्पतालों में 162 संयंत्र लगाने के लिए उक्त कोष से 200 करोड़ रु. जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरुप छोड़कर या तो संयंत्र का काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गति से चल रहा है | गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश के 551 जिलों के सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए फिर राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जाने के बाद से देश के तकरीबन सभी हिस्सों में आक्सीजन की आपूर्ति और परिवहन आसान हो जाएगा | हालाँकि जिस तरह की परिस्थितियां बीते कुछ दिनों में बनीं उसके बाद इसे आग लगने पर कुआ खोदने का प्रयास ही कहा जाएगा लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि जो राज्य पूर्व में धन मिलने के बावजूद समय रहते आक्सीजन संयंत्र नहीं बना सके उनसे उसका कारण तो पता किया जाना ही चाहिए | इसके साथ ही जो धनराशि गत दिवस पीएम केयर कोष से स्वीकृत हुई उससे बनने वाले आक्सीजन संयंत्र कितने समय में बनकर तैयार हो जायेंगे इसकी समय सीमा भी निश्चित करना जरूरी है | इस बारे में कुछ माह पहले सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो काफी चर्चित होकर प्रसारित हुआ था | उसमें वे अपने मंत्रालय के अंतर्गत एक विभाग के कार्यालय के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण आभासी माध्यम से कर रहे थे | विभागीय अधिकारीयों को उम्मीद रही होगी कि मंत्री जी नए भवन के निर्माण पर सबको बधाई देते हुए परम्परागत शैली में कहेंगे कि इससे विभाग के कार्य में सुधार आयेगा वगैरह.... वगैरह | लेकिन हुआ बिलकुल अलग क्योंकि मंत्री जी ने बजाय बधाई और तारीफ के पुल बांधने के कहा कि भवन के निर्माण में हुई देरी के लिए जिम्मेदार शीर्ष स्तर के अधिकारियों के चित्र उसकी दीवारों पर टांगकर लिखा जाए इनके कारण देश का नुक्सान हुआ | साथ ही उन्होंने उपस्थित कर्मचरियों और अधिकारियों को कहा कि ये अभिनन्दन नहीं अपितु चिंतन का अवसर है कि किसी भी कार्य को निर्धारित समय सीमा में पूरा नहीं किये जाने से राष्ट्रीय संसाधनों की कितनी क्षति होती है और विकास के लक्ष्य भी उसी मुताबिक पिछड़ जाते हैं | हालाँकि श्री गडकरी के साथी मंत्री भी उनकी उस नसीहत से कितने प्रेरित और प्रभावित हुए ये तो पता नहीं लेकिन जिस किसी ने भी वह वीडियो देखा वह श्री गडकरी का प्रशंसक अवश्य बन गया | संदर्भित प्रसंग में आक्सीजन संयंत्रों के लिए धन प्राप्त हो जाने के बाद भी उनका न बन पाना सामान्य हलात्तों में तो संज्ञान में न आता किन्तु कोरोना की दूसरी लहर ने जो रौद्र रूप दिखाया उसकी वजह से ज्योंही अस्पतालों में आक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में मरीजों के मरने की खबरें आने लगीं और ठीकरा केंद्र सरकार पर फूटा तब जाकर ये सच्चाई सामने आई कि पैसा मिलने के बाद भी संयंत्रों का लाभ नहीं मिल सका , अन्यथा सैकड़ों जिंदगियां बचाई जा सकती थीं | इस अनुभव को नजीर बनाते हुए भविष्य के लिए एक नीति बननी चाहिए जिसमें किसी भी कार्य में सीमा का पालन न होने पर जो नुकसान होता है उसके लिए सम्बन्धित अधिकारियों - कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए | बीते कुछ दिनों से देश भर में नए आक्सीजन संयंत्र जिस त्वरित गति से लगाये गए उससे ये तो सिद्ध हो गया कि ये काम नदी पर पुल बनाने अथवा फ्लायओवर बनाए जैसा नहीं है जिसके निर्माण में बरसों लगते हों | लेकिन हमारे देश में जब संसद और न्यायपालिका जैसी जिम्मेदार संस्थाएं तक समय सीमा के अनुशासन का पालन नहीं कर पातीं तब बाकी से क्या उम्मीद ? चीन के विकास की प्रशंसा करने वालों की संख्या अनगिनत होगी किन्तु वहाँ आक्सीजन संयंत्र लगाने में इतनी गफलत होती तो जिम्मेदार छोटे - बड़े सभी पर शिकंजा कस दिया जाता | आपदा में अवसर का जो नारा श्री मोदी ने कोरोना काल के दौरान दिया उसका एक अभिप्राय ये भी निकाला जाना चाहिए कि हम विलम्ब के लिए खेद व्यक्त कर छुट्टी पाने की आदत से बाहर निकलें | किसी काम को समय पर करने के लिए आपात्कालीन परिस्थितियों का इंतजार क्यों किया जाये ये बड़ा सवाल है | जिन अधिकारियों अथवा सत्ताधारी नेताओं के कारण आक्सीजन संयंत्रों के निर्माण में अनावश्यक विलम्ब हुआ , काश वे इस बात का पश्चाताप करें कि उनकी लापरवाही ने कितने जीवन दीप बुझा दिए |
Saturday 24 April 2021
मानव जीवन को खतरे में डालकर मुनाफा कमाने वालों का पर्दाफाश जरूरी
Thursday 22 April 2021
योग , आयुर्वेद और होम्योपैथी को भी बराबरी से सम्मान मिले
Tuesday 20 April 2021
टीकाकरण अभियान में समाज की सहभागिता भी जरूरी
Monday 19 April 2021
वरना इनकी आत्माएं हमें माफ़ नहीं करेगी
Saturday 17 April 2021
प्रचार के घिसे पिटे तौर - तरीकों में सुधार और संशोधन जरूरी
Friday 16 April 2021
सजा के अलावा इंसानियत के दुश्मनों का सामाजिक तिरस्कार भी होना चाहिये
Thursday 15 April 2021
चिकित्सा क्रांति सबसे बड़ी राष्ट्रीय आवश्यकता
Wednesday 14 April 2021
सरकार कितना भी छिपाए किन्तु अस्पताल और श्मशान सच उगल देते हैं
Tuesday 13 April 2021
अब भी नहीं माने तो अगली बारी कर्फ्यू की है
Monday 12 April 2021
जो हमारे हाथ में है उतना तो कम से कम करें
Saturday 10 April 2021
दलबदलू से वसूला जाए उपचुनाव का खर्च
Friday 9 April 2021
जब मध्यस्थ पहुंच सकते हैं तो सुरक्षा बल क्यों नहीं
Thursday 8 April 2021
राष्ट्रीय आपात्काल घोषित कर एक साल के लिए सभी चुनाव रोके जाएँ
Wednesday 7 April 2021
बाअदब - बामुलाहिजा होशियार , मुख्तार की सवारी आ रही है
मुख्तार अंसारी की पारिवारिक पृष्ठभूमि यूँ तो बहुत ही समृद्ध है | दादा आजादी के पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्य्क्ष रहे | पिता साम्यवादी थे जिन्हें स्वच्छ छवि के चलते नगर पालिका के लिए निर्विरोध चुना गया | चाचा हामिद अंसारी विदेश सेवा में रहने के बाद उपराष्ट्रपति बने | नाना उस्मान खान फ़ौज में ब्रिगेडियर बने जिनकी सेवाओं के लिए उन्हें महावीर चक्र दिया गया | भाई अफजल अंसारी उप्र की गाजीपुर सीट से लोकसभा सदस्य हैं और बेटा निशानेबाजी की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुका है | इन्हीं सबके कारण उप्र के मऊ इलाके में अंसारी परिवार का बड़ा नाम और् प्रतिष्ठा रही लेकिन मुख़्तार इससे अलग अपराधों की दुनिया में अपनी जगह बनाने में लग गया और देखते - देखते उसके विरुद्ध ह्त्या , अपहरण , फिरौती जैसे दर्जनों मामले कायम हो गये | बीते लगभग दो साल से किसी मामले में वह पंजाब की रोपड़ जेल में बंद था | उप्र पुलिस उसे वहां से लाने की कोशिश कर रही थी जिसमें पंजाब सरकार अज्ञात कारणों से अड़ंगे लगाने में जुटी रही | अंततः अदालती आदेश के तहत उसे उप्र लाने की अनुमति मिली जिसके बाद गत दिवस उप्र पुलिस भारी तामझाम के साथ उसे रोपड़ जेल से लेकर बांदा के लिए रवाना हुई | मुख्तार बीमार हैं इसलिए एम्बुलेंस में लाया गया | आगे पीछे वज्र वाहन चल रहे थे | लगभग 150 पुलिस वाले काफिले के साथ रहे | कुछ महीने पहले कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे का उज्जैन से कानपुर ले जाते समय वाहन पलट जाने पर भागने की वजह से एनकाउंटर कर दिया गया | उस घटना को लेकर उप्र की पुलिस अभी भी संदेह के घेरे में है | मुख्तार और उनके परिवार ने पंजाब से उप्र लाये जाने का विरोध करने के लिए विकास की मौत को ही आधार बनाया | यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर मुख़्तार के साथ भी विकास दुबे जैसे काण्ड की पुनरावृत्ति का शिगूफा छोड़ा जाता रहा | और इसी के चलते रोपड़ से बांदा जेल तक के तकरीबन 800 किमी तक के रास्ते पर मुख्तार के काफिले के साथ टीवी चैनलों के संवाददाताओं के वाहन मय कैमरों के चलते रहे | काफिला पंजाब से निकलकर हरियाणा में घुस गया , फलां वाहन में मुख्तार बैठा है , गाड़ियां 120 की गति से दौड़ रही हैं , रास्ते में काफिला कहीं रोका नहीं जाएगा , अब वह आगरा एक्सप्रेस हाइवे पर आ गया है जैसे समाचार लगातार सुनाये और दिखाये जाते रहे | बीच - बीच में मुख़्तार के भाई का बयान भी सुनाया गया जिसमें उसने कहा कि उसके भाई को कुछ हुआ तो उसे शहादत माना जायेगा और इसके बाद तानाशाही का अंत हो जाएगा | मुख्तार की पत्नी द्वारा उसकी सलामती को लेकर व्यक्त की जा रही चिन्ताओं से भी देश और दुनिया को अवगत कराने की होड़ टीवी चैनलों में लगी रही | ऐसा लग रहा था किसी बड़ी हस्ती का काफिला एक जगह से दूसरी को जा रहा है | लोकतंत्र में अभिव्यक्ति , मानवाधिकार और पारदर्शिता का महत्वपूर्ण स्थान है | आरोप लगने मात्र से किसी को तब तक सजा नहीं दी जा सकती जब तक वे प्रमाणित न हो जाएँ | मुख्तार भी दर्जनों मामलों में आरोपी है जिनका फ़ैसला होना है | सवाल ये है कि बरसों से चले रहे इन मामलों में फैसला क्यों नहीं हो पाता | न्याय प्रक्रिया निचली अदालत से सर्वोच्च न्यायालय तक चलती है जिसका लाभ लेकर संपन्न और प्रभावशाली अपराधी बचे रहते हैं | मुख्तार का आर्थिक साम्राज्य और राजनीतिक प्रभाव सर्वविदित है | अल्पसंख्यक होने के कारण उसे अतिरिक्त फायदा मिलता रहा , ये कहना गलत न होगा | उसका अपने इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं पर भी खासा प्रभाव और दबाव है जिसके कारण पिछली राज्यं सरकारें उसके प्रति नरम बनी रहीं | योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपराधी सरगनाओं पर कानून का शिकंजा कसने की जो कवायद शुरू हुई उसी के तहत मुख्तार भी घेरे में है | उसे पंजाब से वापिस लाने के लिए कितनी उठापटक करनी पड़ी ये किसी से छिपा नहीं है | उसके अपराधों की सूची इतनी लम्बी है कि मौजूदा गति से चल्र रही न्याय प्रक्रिया के अंजाम तक पहुचने में बरसों लग जायेंगे | ऐसे व्यक्ति के प्रति टीवी चैनलों का विशेष अनुराग समाचार माध्यमों द्वारा प्राथमिकता के चयन पर बड़ा सवाल है | मुख्तार के काफिले का मार्ग सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक नहीं किया गया था | लेकिन टीवी कैमरे हर स्थान का नाम बताते हुए ये भी कहते जा रहे थे कि अगला स्थान कौन सा आयेगा | मुख्तार का रोपड़ से बाँदा जेल लाया जाना निश्चित तौर पर समाचार है लेकिन टीवी प्रसारण ने उसे एक ईवेंट बना दिया | गनीमत है कोई चैनल वाला उसकी एम्बुलेंस में बैठने का जुगाड़ नहीं कर सका वरना मुख़्तार अंसारी के कथित क्रांतिकारी विचार सुनने मिलते जिनमें तानाशाही के विरुद्ध निर्णायक जंग का आह्वान होता | बीते कुछ समय से टीवी चैनलों के पास दर्शकों को दिखाने के लिए गुणवत्तायुक्त सामग्री का अभाव होने से वे ऊलजलूल चीजें दिखाकर समय व्यतीत किया करते हैं | मुख्तार अन्सारी जैसे लोग समाज के लिए खतरा हैं | उनका खुली हवा में रहना जनसुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है | बेहतर होगा माननीय न्यापालिका इनको दण्डित करने में तत्परता बरते जिससे इनका अनुसरण करने के इच्छुक लोगों में भी भय व्याप्त हो सके | संसद और विधानसभाओं में ऐसे लोगों की उपस्थिति लोकतंत्र के लिए किसी कलंक से कम नहीं है | समाचार माध्यमों को चाहिए कि वे ऐसे लोगों को बिना वजह महत्व देने से परहेज करें |