Monday 12 April 2021

जो हमारे हाथ में है उतना तो कम से कम करें



गत वर्ष जब इन्हीं  दिनों कोरोना अपने शुरुवाती दौर में था तब देश में जांच की समुचित व्यवस्था नहीं होने से मरीजों के आंकड़े भी धीमी गति से बढ़ रहे थे | धीरे - धीरे निजी क्षेत्र को भी जांच का जिम्मा सौंप दिया गया | इसी तरह इलाज हेतु भी अस्पताल गिने चुने होने से परेशानी हुई | लेकिन समय बीतने के साथ ही निजी अस्पतालों में भी कोरोना का इलाज शुरू हो गया | और फिर ऐसा लगने लगा कि उस  पर हमने काबू पा लिया है | नए संक्रमण घटते - घटते दहाई के भीतर सिमटने लगे | देश में बने टीके के कारण आम जनता का आत्मविश्वास भी बढ़ा | लेकिन उसके अति आत्मविश्वास में बदल जाने से लौटती  हुई मुसीबत के कदम वापिस घूम पड़े और जब तक हम कुछ समझ और संभल पाते उसने हमें चारों तरफ से घेर लिया | एक तरफ तो टीकाकरण चल रहा है दूसरी  तरफ संक्रमण दोगुनी और चौगुनी ताकत से हमला करने पर आमादा है | ज़ाहिर है इसकी आशंका तो थी लेकिन जिस तरह कोरोना के पहले चरण का  भारत ने सामना किया उसे देखते हुए सभी को ये भरोसा था कि उसके पलटवार को आसानी से झेल लिया जावेगा किन्तु ये आशावाद खोखला साबित हो गया | बीते कुछ दिनों से ऐसा लगने लगा है कि स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने जा रही है | चिकित्सा को लेकर किये जा रहे तमाम इंतजाम दम तोड़ने लगे हैं | जीवन रक्षक इंजेक्शन और ऑक्सीजन की कमी ने  लोगों में घबराहट पैदा कर दी है | ये आरोप भी खुले आम लग रहे हैं कि शासन - प्रशासन नए संक्रमण के साथ ही मरीजों और मौतों की संख्या छिपा रहे हैं  | अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ने से लाखों लोगों को मजबूरन घरों में रहकर इलाज करने बाध्य किया जा रहा है |  जब तक किसी को वेंटीलेटर और आक्सीजन की जरूरत न हो तब तक तो घर पर इलाज संभव भी है किन्तु उनकी आवश्यकता होते ही अस्पताल में भर्ती होना अनिवार्य बन जाता है | ये दुखद है कि सैकड़ों मरीज अस्पताल के बाहर ही जान गँवा बैठे क्योंकि वहां बिस्तर उपलब्ध नहीं थे | ऑक्सीजन के अलावा गंभीर मरीजों को लगने वाले इंजेक्शन की आपूर्ति भी गड़बड़ा गई है | कुल मिलाकर स्थिति चिंताजनक है और कोई भी दावे के साथ ये बता पाने में असमर्थ है कि हालत सामान्य होने में कितना समय लगेगा | ये बात तो अच्छी है कि बीमारी के समानांतर टीकाकरण भी चल रहा है और लोगों में उसके प्रति व्याप्त प्रारंभिक हिचक भी खत्म हो गई है | लेकिन इस सबसे अलग  बात है  हमारी अपनी सोच | क्योंकि कोरोना का जो नया  रूप आया है उसके फैलने के पीछे हमारी अपनी लापरवाही बड़ी वजह  है | ये कहना कहीं से भी  गलत न होगा कि संक्रमण की  पहली लहर की वापिसी का एहसास होते ही जिस तरह की लापरवाही देखने मिली उसका ये परिणाम होना ही  था | बीते कुछ दिनों से जो आंकड़े आ रहे हैं उनकी वजह से भय का माहौल तो है लेकिन अब भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो स्थिति की  गम्भीरता को समझने से दूर भाग रहे हैं | चिकित्सा विज्ञान भी  कोरोना के इस नए रूप को  लेकर भ्रमित है | संक्रमण की तीव्रता मरीज और चिकित्सक दोनों को सम्भलने का अवसर नहीं देती | जो टीका लगाया जा रहा है वह भी कोविड - 19 पर तो कारगर था किन्तु उसके नए रूप पर उसका कितना असर होगा इस पर विमर्श हो रहा है | लेकिन एक बात जो वैश्विक स्तर पर स्वीकार कर ली गयी है वह है बचाव के परम्परागत तरीकों की सफलता | पूरी दुनिया के चिकित्सा विशेषज्ञ एक स्वर से कह रहे हैं कि मास्क और सैनीटाईजर का उपयोग , शारीरिक दूरी , भीड़भाड़ में जाने से परहेज और हाथ धोते रहने जैसे उपाय कोरोना और उस जैसे अन्य संक्रमणों से 90 फीसदी बचाव करने में सक्षम है | लेकिन देश में कहीं भी चले जाएँ बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके लिए उक्त सभी उपाय फालतू की चीजें हैं | कोरोना का दूसरा हमला यदि शुरुवात में ही तेज हो गया तो उसके पीछे ऐसे ही लोग हैं जिनको न अपनी चिंता है और न  अपने परिवार की | मौजूदा हालातों में सरकार और चिकित्सा जगत जो कर रहे हैं उनमें ढेर सारी खामियां हैं जिनकी आलोचना करने बैठें तो समय कम पड़ जाएगा | लेकिन ऐसे समय में जनता का अनुशासित होना सबसे ज्यादा  जरूरी  है | जिन देशों के लोगों  ने कोरोना से जुड़े अनुशासन का पालन किया वहां हालात काबू में बने रहे | दूसरी ओर अनेक विकसित देशों में लोगों को अपने यहाँ की चिकित्सा सुविधा पर बड़ा घमंड था | इसलिए वे  बेहद लापरवाह रहे जिसकी वजह से वहां मौत का तांडव हुआ | उल्लेखनीय है उनमें से अनेक  देशों की आबादी भारत के कुछ प्रदेशों से भी कम है | उस दृष्टि से हमारे लिए ये समय बहुत ही  नाजुक है | संक्रमण की तीव्रता पहले से ज्यादा बताई जा रही है , उसका सटीक इलाज भी विचाराधीन है , वर्तमान में लग रहे टीके की प्रभावशीलता पर भी वैज्ञानिक  बहस जारी है | ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि हर व्यक्ति इस विषम परिस्थिति में  बजाय भयभीत होने या व्यवस्था को कोसते रहने के अपनी प्राण रक्षा के लिए जो वह खुद कर  सकता है , उतना तो करे ही | याद रहे किसी की मौत सरकार के लिए महज आँकड़ा है | यदि आप उस आँकड़े में शामिल नहीं होना चाहते तो सामान्य तौर पर सुझाए गए उपायों को अपनाएँ | लॉक डाउन लगे या न लगे लेकिन ये मानकर चलना चाहिए कि कोरोना नामक मुसीबत से छुटकारा पाने में अभी समय लगेगा और तब तक छोटी से भी लापरवाही बड़े नुकसान का कारण बन सकती है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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