कोरोना का दूसरा चरण कितना खतरनाक है ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है | संक्रमण के राष्ट्रीय आंकड़ों के साथ ही अब तो स्थानीय स्तर पर सामने आ रही संख्या भी भयग्रस्त करने के लिये पर्याप्त है | रात्रिकालीन कर्फ्यू के बाद अब देश के अनेक शहरों में तो लॉक डाउन लग चुका है और जैसे हालात हैं उनको देखते हुए बड़ी बात नहीं गत वर्ष की तरह से ही लम्बी देशबंदी करनी पड़ जावे | देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई सहित अनेक बड़े शहरों से प्रवासी श्रमिकों के लौटने का सिलसिला शुरू हो चुका है | हालाँकि केंद्र और राज्यों की सरकारें उद्योग - व्यवसाय को बंद करने से बच रही हैं लेकिन संक्रमण पर लगाम नहीं लग सकी तो बड़ी बात नहीं आगामी कुछ महीने तक पूरे देश में लॉक डाउन लगाना पड़े | किसी व्यक्ति द्वारा सोशल मीडिया पर प्रसारित ये टिप्पणी काफी अर्थपूर्ण है कि अभी तो अस्पतालों में बिस्तर कम पड़े हैं लेकिन यही हाल रहा तो श्मसान और कब्रिस्तान में भी जगह कम पड़ जायेगी | बात है भी सही क्योंकि जान है तो जहान है से शुरू होकर बात जब जान भी और जहान भी तक आ पहुंची तब लॉक डाउन को धीरे धीरे इस विश्वास के साथ शिथिल किया गया था कि कोरोना से बचाव के प्रति आम जनता में काफी जागरूकता आ गई है | लेकिन ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि ज्योंही लॉक डाउन हटा त्योंही ऐसा लगने लगा मानो कुछ हुआ ही नहीं था | सरकार के साथ जिम्मेदार तबके ने हमेशा ये अपील की कि मास्क और शारीरिक दूरी जैसी सावधानियां लम्बे समय तक हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बनकर रहेंगी | संक्रमण के पूरी तरह से खत्म नहीं होने की बात भी किसी से छिपी नहीं थी | लेकिन ज़माने भर के प्रचार और समझाइश के बाद भी आम जनता ने अव्वल दर्जे की लापरवाही दिखाई जिसके कारण कोरोना को दोबारा पैर पसारने की जगह और छूट मिल गई | गत वर्ष तो इस समय तक वह सामान्य गति से बढ़ रहा था और चरमोत्कर्ष तक पहुंचने में उसे छह महीने लग गये थे किन्तु इस वर्ष छह सपताह भी नहीं हुए और देश भर में डेढ़ लाख से भी ज्यादा संक्रमित रोज निकलने की स्थिति आ गयी , जो बड़ी चिंता का कारण है | हालाँकि कुछ चिकित्सा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जितनी तेजी से संक्रमण फैला उससे ये भी लगता है कि वह जल्दी ही ढलान पर भी आ सकता है किन्तु इसके लिए भी मई के अंतिम सप्ताह तक प्रतीक्षा करने कहा जा रहा है | और वर्तमान स्थिति को देखते हुए तब तक प्रतिदिन ढाई लाख से भी ज्यादा नए मरीज निकलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता | ऐसे में ये अनिवार्य हो गया है कि कोरोना अनुशासन का कड़ाई से पालन किया जावे | जिन - जिन स्थानों पर लॉक डाउन लगाया गया है वहां दैनिक उपयोग की चीजें खरीदने के लिए दिए जाने वाले समय में जिस तरह की अफरातफरी देखने मिल रही है उसे देखकर ये लगता है कि लोग अपनी जान के प्रति पूरी तरह से निष्फिक्र हैं | वास्तविकता ये है कि चिकित्सा प्रबंध पूरी तरह से पंगु हो चले हैं और अस्पतालों में पैर रखने की जगह तक नहीं है | अचानक आई इस विपदा के कारण ऑक्सीजन और जीवनरक्षक इंजेक्शन की आपूर्ति भी फ़िलहाल गड़बड़ा गई है | ऐसी स्थिति में जनता को ये सोचना चाहिए कि जो भी पाबंदियां लगाई जा रही हैं उनका उद्देश्य उसी की प्राण रक्षा करना है | लॉक डाउन के दौरान दी जाने वाली छूट का उपयोग अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए ही करें तभी वह सार्थक है | दंगे फसाद के समय लगाए जाने वाले कर्फ्यू के दौरान जब इस तरह की ढील दी जाती है तब भी बाजारों में हुजूम उमड़ता है लेकिन कोरोना काल में भीड़ का हिस्सा बनना संक्रमण को अपने घर आने का न्यौता देना है | जैसे समाचार आ रहे हैं वे चिंता पैदा करने वाले हैं | ये कहना गलत न होगा कि यदि जनता ने लॉक डाउन के दौरान मिलने वाली छूट को स्वछंदता का लायसेंस समझ लिया तब फिर बात उससे आगे बढ़कर कर्फ्यू तक जा पहुंचेगी और वह स्थिति ज्यादा असुविधाजनक होगी | इस समय अनुशासन सबसे जरूरी चीज है | हर व्यक्ति को अपनी और अपनों की जान बचाने के लिए जिम्मेदार बनना पड़ेगा | एक संक्रमित व्यक्ति अपने पूरे परिवार को ही नहीं बल्कि सम्पर्क में आने वाले न जाने कितने लोगों की जान खतरे में डाल सकता है | जिन लोगों ने टीका लगवा लिया वे निःसंदेह दायित्वबोध के प्रति सजग है लेकिन उनसे भी अपेक्षा है कि वे निडर दिखने का दुस्साहस न करें | आने वाले कुछ सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण हैं जिनमें हमारा आचरण और अनुशासन ही हमारी रक्षा करेगा | कोरोना की दूसरी लहर अभी कितनी ऊंची और जायेगी ये तो बड़े से बड़े वैज्ञानिक और ज्योतिषी तक नहीं बता पा रहे | लेकिन सावधान रहकर उसके प्रकोप से बचा जा सकता है ये सर्वविदित है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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