किसकी गलती है फ़िलहाल इस बहस में पड़कर मूल विषय से ध्यान हटाने की बजाय आगे की सुधि लेय वाली सलाह का पालन करना ही बुद्धिमत्ता होगी | फिर भी पीएम केयर कोष द्वारा जनवरी में देश के विभिन्न शहरों के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र लगवाने हेतु दी गई राशि का उपयोग न हो पाना वाकई दुःख का विषय है | जैसी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरी में विभिन्न राज्यों के सरकारी अस्पतालों में 162 संयंत्र लगाने के लिए उक्त कोष से 200 करोड़ रु. जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरुप छोड़कर या तो संयंत्र का काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गति से चल रहा है | गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश के 551 जिलों के सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए फिर राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जाने के बाद से देश के तकरीबन सभी हिस्सों में आक्सीजन की आपूर्ति और परिवहन आसान हो जाएगा | हालाँकि जिस तरह की परिस्थितियां बीते कुछ दिनों में बनीं उसके बाद इसे आग लगने पर कुआ खोदने का प्रयास ही कहा जाएगा लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि जो राज्य पूर्व में धन मिलने के बावजूद समय रहते आक्सीजन संयंत्र नहीं बना सके उनसे उसका कारण तो पता किया जाना ही चाहिए | इसके साथ ही जो धनराशि गत दिवस पीएम केयर कोष से स्वीकृत हुई उससे बनने वाले आक्सीजन संयंत्र कितने समय में बनकर तैयार हो जायेंगे इसकी समय सीमा भी निश्चित करना जरूरी है | इस बारे में कुछ माह पहले सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो काफी चर्चित होकर प्रसारित हुआ था | उसमें वे अपने मंत्रालय के अंतर्गत एक विभाग के कार्यालय के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण आभासी माध्यम से कर रहे थे | विभागीय अधिकारीयों को उम्मीद रही होगी कि मंत्री जी नए भवन के निर्माण पर सबको बधाई देते हुए परम्परागत शैली में कहेंगे कि इससे विभाग के कार्य में सुधार आयेगा वगैरह.... वगैरह | लेकिन हुआ बिलकुल अलग क्योंकि मंत्री जी ने बजाय बधाई और तारीफ के पुल बांधने के कहा कि भवन के निर्माण में हुई देरी के लिए जिम्मेदार शीर्ष स्तर के अधिकारियों के चित्र उसकी दीवारों पर टांगकर लिखा जाए इनके कारण देश का नुक्सान हुआ | साथ ही उन्होंने उपस्थित कर्मचरियों और अधिकारियों को कहा कि ये अभिनन्दन नहीं अपितु चिंतन का अवसर है कि किसी भी कार्य को निर्धारित समय सीमा में पूरा नहीं किये जाने से राष्ट्रीय संसाधनों की कितनी क्षति होती है और विकास के लक्ष्य भी उसी मुताबिक पिछड़ जाते हैं | हालाँकि श्री गडकरी के साथी मंत्री भी उनकी उस नसीहत से कितने प्रेरित और प्रभावित हुए ये तो पता नहीं लेकिन जिस किसी ने भी वह वीडियो देखा वह श्री गडकरी का प्रशंसक अवश्य बन गया | संदर्भित प्रसंग में आक्सीजन संयंत्रों के लिए धन प्राप्त हो जाने के बाद भी उनका न बन पाना सामान्य हलात्तों में तो संज्ञान में न आता किन्तु कोरोना की दूसरी लहर ने जो रौद्र रूप दिखाया उसकी वजह से ज्योंही अस्पतालों में आक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में मरीजों के मरने की खबरें आने लगीं और ठीकरा केंद्र सरकार पर फूटा तब जाकर ये सच्चाई सामने आई कि पैसा मिलने के बाद भी संयंत्रों का लाभ नहीं मिल सका , अन्यथा सैकड़ों जिंदगियां बचाई जा सकती थीं | इस अनुभव को नजीर बनाते हुए भविष्य के लिए एक नीति बननी चाहिए जिसमें किसी भी कार्य में सीमा का पालन न होने पर जो नुकसान होता है उसके लिए सम्बन्धित अधिकारियों - कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए | बीते कुछ दिनों से देश भर में नए आक्सीजन संयंत्र जिस त्वरित गति से लगाये गए उससे ये तो सिद्ध हो गया कि ये काम नदी पर पुल बनाने अथवा फ्लायओवर बनाए जैसा नहीं है जिसके निर्माण में बरसों लगते हों | लेकिन हमारे देश में जब संसद और न्यायपालिका जैसी जिम्मेदार संस्थाएं तक समय सीमा के अनुशासन का पालन नहीं कर पातीं तब बाकी से क्या उम्मीद ? चीन के विकास की प्रशंसा करने वालों की संख्या अनगिनत होगी किन्तु वहाँ आक्सीजन संयंत्र लगाने में इतनी गफलत होती तो जिम्मेदार छोटे - बड़े सभी पर शिकंजा कस दिया जाता | आपदा में अवसर का जो नारा श्री मोदी ने कोरोना काल के दौरान दिया उसका एक अभिप्राय ये भी निकाला जाना चाहिए कि हम विलम्ब के लिए खेद व्यक्त कर छुट्टी पाने की आदत से बाहर निकलें | किसी काम को समय पर करने के लिए आपात्कालीन परिस्थितियों का इंतजार क्यों किया जाये ये बड़ा सवाल है | जिन अधिकारियों अथवा सत्ताधारी नेताओं के कारण आक्सीजन संयंत्रों के निर्माण में अनावश्यक विलम्ब हुआ , काश वे इस बात का पश्चाताप करें कि उनकी लापरवाही ने कितने जीवन दीप बुझा दिए |
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