Saturday 17 April 2021

प्रचार के घिसे पिटे तौर - तरीकों में सुधार और संशोधन जरूरी




कुछ वर्ष पहले हमारे देश से एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल जापान गया हुआ था | उद्देश्य था उस देश की संसदीय प्रणाली का अवलोकन करना | प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों  को जब ये बताया गया कि उस समय वहां  राष्ट्रीय चुनाव चल रहे थे तो वे आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि उन्हें न कहीं कोई रैली या जुलूस दिखा न झंडे , बैनर और पोस्टर | जब कुछ सदस्यों ने पता किया तो उन्हें ये जानकर आश्चर्य हुआ कि विभिन्न पार्टियां और प्रत्याशी अपनी  प्रचार सामग्री डाक द्वारा मतदाताओं के घर पहुंचा देते हैं | इसके अलावा टेलीविजन के जरिये मतदाताओं को अपनी नीतियों और वायदों से अवगत करवाया जाता है | उन्हें ये सुनकर भी हैरत हुई कि चुनाव प्रचार करने के लिए घर - घर संपर्क करने का चलन भी नहीं है क्योंकि बिना समय लिए किसी के घर पहुंचना आपत्तिजनक  माना जाता है | उक्त प्रसंग का उल्लेख करने के पीछे उद्देश्य हमारे देश  की चुनाव प्रचार शैली में समयानुकूल सुधार और बदलाव को लेकर शुरू हुई चर्चा को आगे बढ़ाना है | पांच राज्यों की विधानसभा के चुनावों के बीच ही  कोरोना के दूसरे हमले से उत्पन्न हालातों में ये बात  पूरे  देश से उठ रही है कि ऐसे समय जब कोरोना से बचाव के लिए देश के बड़े हिस्से में लॉक डाउन का सहारा  लिया जा रहा है और आम जनता से कहा जा रहा है कि वह बिना किसी काम के घर से बाहर न निकले तब नेतागण न केवल खुले  आम घूम रहे हैं अपितु रैलियों और रोड शो में हजारों  का मजमा जमा करते हुए शारीरिक दूरी का मजाक बनवा रहे हैं | चार राज्यों के चुनाव तो खैर हो चुके हैं लेकिन बंगाल में आज का मतदान होने के बाद  तीन चरण चूँकि  अभी बाकी  हैं इसलिए प्रचार भी चल रहा है | कोरोना के तेजी से फैलने की वजह से चुनाव आयोग ने रात 7 से सुबह 10 बजे तक  रैलियों पर रोक लगाते  हुए मतदान के 72 घंटे पहले ही चुनावी  शोर - शराबा बंद करने का निर्देश जारी कर दिया |  देश भर में इस बात पर गुस्सा है कि आम जनता को मास्क पहिनने , बिना जरूरी  काम के घर से नहीं निकलने और दो गज की दूरी बनाये रखने की समझाइश देने वाली  नेता बिरादरी अपने ही उपदेशों के सर्वथा विरुद्ध आचरण कर रही है | ये मजाक भी सब दूर चल पड़ा कि कोरोना चुनाव वाले राज्यों में घुसने से डरता है | हालांकि इसके पहले बिहार के चुनाव जब हुए तब भी  कोरोना  की पहली लहर अपने चरमोत्कर्ष पर थी और उस समय भी नेताओं के रोड शो और रैलियों में कोरोना नियमों की धज्जियां उडाये जाने का मामला जोरशोर से उठा था  | लेकिन फिर भी चुनाव संपन्न हो ही गया और आश्चर्य इस बात का था कि जनता ने भी बिना डरे मतदान में बढ़ - चढ़कर हिस्सेदारी की | बंगाल के जिन चार चरणों में अब तक मत डाले गये उनमें भी औसतन 80 फीसदी मतदान होना ये साबित करता है कि मतदाताओं में  कोरोना को लेकर तनिक भी भय नहीं है | और इसकी वजह हमारे  राजनेताओं का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार ही है जो अपने स्वार्थ के लिये  बजाय समझाने के जनता को उकसाते है | ऐसे में अब सुझाव आने लगे हैं कि हमारे देश में चुनाव प्रचार के प्रचलित तौर -तरीकों में समयानुकूल सुधार  और संशोधन हो | बड़ी रैलियाँ और   रोड शो जैसे  आयोजनों की बजाय ऐसे तरीके अपनाएँ जाने चाहिए जिनमें खर्च कम हो और जनता को असुविधा भी न हो | सूचना तकनीक के जरिये राजनीतिक दल प्रत्येक मतदाता तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं | उसके अलावा घर - घर संपर्क का परम्परागत तरीका भी प्रभावशाली होता है | चुनाव आयोग ने जिस   तरह से मतदाता पर्चियां घर - घर पहुँचाने की  व्यवस्था कर मतदान प्रतिशत बढ़ाने में योगदान दिया उसी तरह उसे सभी प्रत्याशियों की प्रचार सामग्री निर्धारित प्रारूप में मतदाताओं तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए | ब्रिटेन सहित अनेक देशों में चुनाव प्रचार सामग्री डाक से निःशुल्क भेजने की सुविधा भी है | यद्यपि हमारे देश की विशाल आबादी को देखते हुए विकसित देशों के तौर - तरीके जस के तस अपना लेना शायद संभव न हो सके लेकिन भारतीय  हालातों के अनुरूप चुनाव प्रचार को नया स्वरूप देना समय की मांग है , जो देशहित में भी है | ये बात सभी मानते हैं कि चुनाव आचार  संहिता को लागू करवाने में स्व. टी.एन शेषन की भूमिका अविस्मरणीय है जिन्होंने  प्रचलित नियम कानूनों का सहारा लेकर चुनाव सुधारों की दिशा में साहसिक कदम उठाये | उनके हटने के बाद भी चुनाव आयोग हर चुनाव में कुछ न कुछ सुधार करता आ रहा है लेकिन अब समय आ गया है जब चुनावों को भीड़तंत्र और मेला संस्कृति  से मुक्त करते हुए ऐसे उपाय किये जाएँ जो समाज के उस तबके को भी लोकतान्त्रिक  प्रक्रिया के प्रति आकर्षित कर सकें जो अपने अनुभव और पेशेवर दक्षता के बावजूद प्रचार की वर्तमान शैली के कारण चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता | चिकित्सा जगत के साथ ही  वैज्ञानिक भी ये समझाने में जुटे हैं कि हमें कोरोना जैसी समस्या के साथ रहने की आदत डालनी होगी | ऐसे में चुनाव प्रक्रिया को तदनुसार बदलने की बात प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी | आगामी 2 मई को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ जायेंगे | उसके बाद बेहतर हो चुनाव आयोग सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस दिशा में पहल करे | आगामी वर्ष उप्र , उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव होंगे और उनके बाद गुजरात के भी | उसके पहले ऐसा कुछ किया जाना चाहिए जिससे लगे कि हमारा लोकतन्त्र वाकई परिपक्व हो रहा है | वरना जिस  तरह महामारी के दौर में हरिद्वार कुम्भ के आयोजन पर धर्म को मानने वाले श्रद्धालु ही उंगली उठा रहे हैं ठीक वही स्थिति चुनावों को लेकर भी हो जायेगी | जनतंत्र की रक्षा के लिए जन का सुरक्षित रहना प्राथमिक आवश्यकता है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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