देश में ऑक्सीजन के संकट के कारण बीते कुछ दिनों के भीतर ही हजारों जानें चली गईं | बवाल मचा तो आनन - फानन में युद्धस्तर पर प्रयास हो रहे हैं। विदेशों तक से आयात किया जाने लगा । निजी क्षेत्र के उद्योगों द्वारा भी अपने काम की ऑक्सीजन अस्पतालों को दी जा रही है | देश भर में ऑक्सीजन उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हो रही है | सरकारी और निजी अस्पताल अपने यहाँ संयंत्र लगाने में जुटे हुए हैं जिससे भविष्य में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर चिकित्सा व्यवस्था इस तरह विकलांग होकर न खड़ी हो जाये | इसके अलावा छोटे घरेलू सिलेंडर भी तेजी से बाजार में आ रहे हैं | तकनीक के विकास ने आक्सीजन कंसनट्रेटर नामक मशीन भी ईजाद कर दी जो घर बैठे ताजी आक्सीजन प्रदान करने में मददगार साबित हो रही है | हालाँकि वह पहले से बाजार में उपलब्ध थी लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में ज्योंही प्राणवायु की किल्लत शुरू हुई उसकी मांग और कीमतें तेजी से बढ़ गईं | इस कारण बड़े पैमाने पर इसका आयात किया जा रहा है | कुल मिलाकर रेमिडिसिविर इंजेक्शन के बाद अब ऑक्सीजन देश में सबसे चर्चित विषय बन गया | ये अच्छी बात हुई कि जिस तेजी से समस्या पैदा हुई उतनी ही तेजी से उसका समाधान निकालने की कोशिशें भी सफ़ल हो रही हैं | इस दौरान एक बार फिर ये साबित हो गया कि भारत की मिट्टी में उद्यमशीलता और सृजनशीलता समाई हुई है | लेकिन उसी के साथ जो सबसे बड़ा दुर्गुण ये है कि उसका उपयोग समय पर नहीं हो पाने से अक्सर जरूरत के समय वह काम नहीं आती | शत्रु से घर के दरवाजे पर आने के बाद जूझने में तो जबर्दस्त बहादुरी दिखाई जाती है | लेकिन उस संकट को दूर से पहिचानकर पहले ही बेअसर करने के बारे में जो मुस्तैदी दिखाई जानी चाहिए उसका अभाव रहा है | इतिहास गवाह है कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ शौर्य ( लड़ाकू ) जातियों के सीमावर्ती इलाकों में रहने तथा युद्धकौशल में उनकी महारत के बावजूद देश लगातार विदेशी आक्रमण झेलता रहा और अंततः सैकड़ों वर्षों लिए उसे गुलाम होना पड़ा | लम्बे संघर्ष के बाद अंग्रेज तो देश छोड़कर चले गए लेकिन हमारी वह कमी बदस्तूर जारी रही जिसकी वजह से आजादी के बाद से अनेक समस्याएँ नासूर बन गईं | कोरोना के दूसरे हमले से पैदा हुए हालात उसी गलती का नतीजा है | उसके आकलन के अलावा बचाव के संसाधनों का समुचित प्रबन्ध करने में चिकित्सा जगत बुरी तरह चूका | इसी तरह सरकार भी इस भरोसे रही कि जब पिछले आक्रमण का सामना देश ने कर लिया तब इसका भी कर ही लेगा | लेकिन हम ये नहीं जान सके कि शत्रु इस बार ज्यादा तैयारी से आएगा और वही हुआ भी | सरकारों की तो खैर , ये आदत ही बन चुकी थी किन्तु चिकित्सा जगत के साथ ही वैज्ञानिक भी टीका खोज लिए जाने के जश्न में तल्लीन रहे | और बची जनता तो उसे तो न पहले फ़िक्र थी और न ही अब है | अपनी और अपनों की जान बचाने में सहायक मास्क जैसी छोटी सी चीज के उपयोग तक में लापरवाही किये जाने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी ये सामने है | सवाल ये है कि क्या इससे कोई सबक लिया जाएगा या फिर जैसी कि आशंका जताई जा रही है तीसरे हमले के समय भी हम ऐसे ही असहाय खड़े रहेंगे ? जितनी फुर्ती ऑक्सीजन के उत्पादन और परिवहन में अब जाकर दिखाई जा रही है ऐसी ही आपाताकालीन तैयारियों के लिए जरूरी अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई जानी चाहिये क्योंकि ये देश के सुरक्षित भविष्य की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment