कोरोना का दूसरा हमला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा | गत दिवस तीन लाख से ज्यादा नए मरीज मिले जबकि स्वस्थ होने वालों की संख्या काफी कम होने से अस्पतालों पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है | वैसे एक बात धीरे - धीरे स्पष्ट हो रही है कि लोगों में जगरूकता बढ़ने से जांच का आंकड़ा भी बढ़ा है जिससे नए संक्रमितों का पता लगाने में आसानी हो रही है | लेकिन बड़ी संख्या में हुई मौतों ने भय का जो माहौल बनाया उसे आक्सीजन और जरूरी दवाओं की कमी ने और हवा दे दी | अनेक नामी - गिरामी चिकित्सकों ने सार्वजनिक तौर पर ये कहा है कि हर कोरोना मरीज को रेमडेसिवीर , फेबिफ्लू और ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है | इसी तरह वेंटीलेटर की अनिवार्यता भी सभी को नहीं पड़ती किन्तु संक्रमण का बढ़ता दायरा और बड़ी संख्या में हो रही मौतों ने जनमानस पर बुरा असर किया जिससे उक्त चीजों की अफरातफरी मच गई | कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा कर दी चिकित्सा जगत में सक्रिय माफिया ने जो लाशों का कारोबार करने से बाज नहीं आ रहा | और जो चिकित्सक अब जाकर बता रहे हैं कि उक्त दवाएं रामबाण नहीं है वे भी देर से जागे और तब तक तो बड़ा खेल हो चुका था | आश्चर्य की बात ये है कि जिस चिकित्सा जगत ने अब जाकर ये कहना शुरू किया कि कोरोना के सभी मरीजों को अस्पाताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है और साधारण से इलाज के साथ कुछ सावधानियों से घर पर रहते हुए भी ठीक हो सकते हैं वही पहले भयभीत करता रहा | टीवी पर लोगों को जानकारी देते हुए देश के अनेक बड़े एलोपैथी चिकित्सक ये सलाह दे रहे हैं कि योग और प्राणायाम कोरोना से बचाव और इलाज में सहायक है | लेकिन जब यही बात योग गुरुओं ने कही थी तब उनका जमकर उपहास किया गया | भारतीय चिकित्सा पद्धति में भले ही कोरोना को लेकर हाल ही में टीके जैसा कोई नया शोध भले न हुआ हुआ हो किन्तु उसे सिरे से नकार देना भी संक्रमण के विस्तार का कारण बना | देखने वाली बात ये है कि जब निजी क्षेत्र के अनेकानेक छोटे और बड़े अस्पतालों ने अंग्रेजी दवाओं के साथ ही मरीजों को योग संबंधी व्यायाम करवाने के लिए प्रशिक्षक रखे हुए हैं तब इस विधा का मजाक उड़ाना अपने आप में विरोधाभास ही है | कोरोना के प्रकोप को कम करने के लिए निश्चित रूप से आधुनिक चिकित्सा पद्धति का महत्वपूर्ण योगदान है | बहुत कम समय में टीका तैयार करना बड़ी सफलता है | लेकिन जैसे - जैसे जानकारी आ रही है वैसे - वैसे ये साफ़ होता जा रहा है कि कोरोना से बचाव के साथ ही संक्रमण को प्रारम्भिक अवस्था में ही नियंत्रित करने में योग और आयुर्वेद के साथ ही होम्योयोपैथी भी कारगर है | भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एलोपैथी के अलावा अन्य चिकित्सा पद्धतियों को संरक्षण देते हुए सस्ते और समय पर मिलने वाले इलाज की दिशा में जो कदम बढ़ाये वे भले ही कोरोना नामक आपदा के कारण धीमे पड़ गये हों किन्तु इस दौर के निकल जाने के बाद प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति और योग को उनका अपेक्षित सम्मान दिया जाना चाहिए | एलोपैथी में नये - नये शोध के अलावा शल्य क्रिया बहुत ही सहायक हुई है | विज्ञान और तकनीक का भरपूर उपयोग करते हुए इस पद्धति ने पूरी दुनिया को बीमारियों से लड़ने में उल्लेखनीय सहायता की किन्तु व्यवसायीकरण उसकी तमाम उपलब्धियों और अच्छाइयों पर भारी पड़ जाता है | उसकी चकाचौंध ने वैद्यों की परम्परा को भी भारी नुकसान पहुंचाया जिसका लाभ उठाकर आयुर्वैदिक दवाइयों का कारोबार स्थानीय फार्मेसियों से निकलकर बड़ी कंपनियों के हाथ में जा पहुंचा जिनमें से कुछ तो बहुराष्ट्रीय हैं | ये सब देखते हुए भारत में जिस चिकित्सा क्रांति की आवश्यकता महसूस की जा रही है उसमें एलोपैथी के साथ ही आयुर्वेद के अलावा अन्य परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों को भी समुचित महत्व दिया जावे जिससे इलाज सुलभ होने के साथ ही सस्ता भी हो | निश्चित रूप से वर्तमान समय बड़ा ही संकट भरा है | चारों तरफ से दुखद खबरें ही आ रही हैं लेकिन मानव जाति पर ऐसे संकट अतीत में भी आते रहे है और हर बार वह पहले से ज्यादा समझदार बनकर उभरी | इस बार भी ऐसा ही होगा ये उम्मीद करना गलत नहीं है किन्तु इसके लिये धैर्य के साथ ही ईमानदार और दूरगामी सोच की जरूरत है | जिस तरह कोरोना का टीका बनाने में भारत ने पूरे विश्व में अपनी धाक जमाई ठीक वैसे ही चिकित्सा तंत्र को मजबूती देकर हम सशक्त और समृद्ध के साथ ही स्वस्थ भारत की बुनियाद भी रख सकते हैं |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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