Saturday 3 April 2021

छोटी - छोटी सावधनियाँ भी कारागर हो सकती हैं बशर्ते



कोरोना की दूसरी लहर हमारी सामूहिक लापरवाही का परिणाम है | गत वर्ष जब उसका आगमन हुआ तब वह पूरी तरह से अप्रत्याशित था | लेकिन पुनरागमन के समय हमें उसके चाल - चलन की पूरी जानकारी है | इसलिए ये कहना गलत होगा कि इस हमले के लिए हम तैयार न थे | पूरी दुनिया में कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर का हल्ला मचने के बावजूद भारत में पूरी तरह बेफिक्री का आलम था | लोग मान बैठे थे कि किसी बुरे सपने  की तरह से ही कोरोना भी बीत चुका है , लेकिन वह खुशफहमी घातक  साबित हुई और गत वर्ष जो चरमोत्कर्ष छह महीने बाद आया था वह दूसरी लहर में महीने भर के भीतर आने को है | दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार कोरोना अप्रैल के मध्य से लेकर मई की  समाप्ति तक सर्वोच्च स्तर पर रहेगा और उसके बाद ही उसमें गिरावट के आसार हैं | इसकी पुष्टि करने के लिए नए संक्रमण के दैनिक आंकड़े पर्याप्त हैं | सरकारी जानकारी के अनुसार एक दो दिन के भीतर एक लाख से ज्यादा नए कोरोना संक्रमित सामने आने लगेंगे | बीते एक सप्ताह का औसत भी तकरीबन 61 हजार प्रतिदिन का रहा है | हालांकि  टीकाकरण का काम भी तेजी से चल रहा है परन्तु   शोचनीय मुद्दा  ये है कि जनता का एक वर्ग उसके प्रति उदासीन  है | इसके पीछे एक कारण तो अशिक्षा है लेकिन दूसरी और सबसे बड़ी वजह है पढ़े - लिखे लोगों के एक वर्ग में कोरोना को लेकर लापरवाह रवैया | ये कहना भी गलत  नहीं है कि इसी तबके के कारण संक्रमण जाते - जाते फिर लौट आया है | ताजा  आंकड़ों के मुताबिक 7 करोड़ लोगों को ही अब तक टीका लगाया जा सका है | ऐसे में जब तक 60  फीसदी जनता टीका नहीं लगवा लेती तब तक कोरोना से बचने के लिए मास्क और सैनीटाइजर के उपयोग के साथ ही हाथ धोते रहने और छह से सात फीट की शारीरिक दूरी  नितांत आवश्यक है | लेकिन विडंबना ये है कि अधिकतर लोग इन सावधानियों के प्रति हद दर्जे की लापरवाही दिखा रहे हैं | कहावत है कि दूध का जल हुआ छाछ भी फूंक  फूंककर पीता है लेकिन हमारे  देश में इसका मजाक बनाया जा रहा है | सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक जलसों पर किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं है जिससे  सामुदायिक संक्रमण का खतरा बना हुआ है | पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के अभियान में कोरोना संबंधी निर्देशों   की जिस तरह से धज्जियां उड़ रही हैं उसकी वजह से आम जनता के मन में  भी उसको लेकर बेफिक्री बढ़ रही है | रैलियों  और  रोड शो में बिना मास्क लगाये  उमड़ने वाला जनसैलाब शारीरिक दूरी को भी  पूरी तरह से नजरअंदाज कर  देता है | विरोधाभास ये है कि भीड़ एकत्र करने वाले नेता ही आम जनता को कोरोना से लड़ने के लिए सावधानियाँ बरतने का उपदेश देते फिरते हैं | ये सब देखते हुए कोरोना के विरुद्ध जारी लड़ाई आगे पाट पीछे सपाट का उदाहरण पेश कर रही है | केवल ये मानकर निश्चिन्त हो जाना निरी मूर्खता है  कि वैक्सीन नामक रक्षा कवच  पूरी तरह बचा लेगा क्योंकि टीके की दोनों खुराक लगने के बाद भी संक्रमित होने के मामले आ रहे हैं | इस बारे में  प्रख्यात चिकित्सा विशेषज्ञ डा. नरेश त्रेहन का ये कहना आँखें खोल देना वाला है कि कोरोना कब तक रहेगा इसके बारे में कोई पुख्ता अनुमान नहीं लगाया जा सकता | उनका सुझाव है कि इस संक्रमण से बचाव हेतु छोटी - छोटी सावधानियां और सतर्कता कारगर हो सकते हैं , बशर्ते  उनका पालन ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ किया जावे  | बेहतर तो यही होगा कि हर नागरिक इस महामारी के फैलाव को रोकने के लिए अपने दायित्व को समझे | हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना का संक्रमण  शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से तो हमें  नुकसान पहुंचाता ही है लेकिन उसका दुष्प्रभाव हमारे परिवार के अलावा सम्पर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति पर पड़ सकता है | लॉक डाउन के पीछे भी उद्देश्य यही है कि किसी भी तरह से लोगों को एक दूसरे से दूर रखा  जा सके किन्तु इस उपाय को भी लम्बे समय तक आजमाया जाना अर्थव्यवस्था की सेहत को पूरी तरह  बर्बाद कर देगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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