Saturday 31 December 2022
प्रधानमंत्री का आचरण सत्ताधारी राजनेताओं के लिए सन्देश
Friday 30 December 2022
फ़ुटबाल के निर्विवाद सर्वकालीन महानायक पेले
Thursday 29 December 2022
कोरोना से डरने की जरूरत नहीं लेकिन लापरवाही महंगी पड़ सकती है
Wednesday 28 December 2022
बेलगाम : समय रहते विवाद न सुलझाने का दुष्परिणाम
Tuesday 27 December 2022
हर साल होने वाले चुनाव निर्णय प्रक्रिया में बाधक
Monday 26 December 2022
नेपाल में माओवादी गठबंधन की सरकार भारत के लिए सिरदर्द बनेगी
Saturday 24 December 2022
मुफ्त अनाज योजना से होने वाले नुकसान का आकलन भी जरूरी
Friday 23 December 2022
म.प्र में बूढ़े नेताओं के भरोसे कांग्रेस की नैया पार होना मुश्किल
Thursday 22 December 2022
कोरोना के खतरे के बीच सांसदों को जश्न की चिंता
Wednesday 21 December 2022
चीन में कोरोना का तांडव भारत के लिए भी चिंता का विषय
Tuesday 20 December 2022
भृत्य के लिए न्यूनतम शिक्षा जरूरी है तो जनप्रतिनिधियों के लिए क्यों नहीं
Monday 19 December 2022
सरकार को घेरो पर सेना की वीरता पर सवाल उठाना गलत
Saturday 17 December 2022
बिलावल का बिलबिलाना खानदानी आदत है : हश्र भी वैसा ही होगा
Friday 16 December 2022
गालियों , गोलियों और नग्नता के बिना भी सफल फ़िल्में बनी हैं
शाहरुख खान की आने वाली फिल्म पठान को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है | उसका जो एक गीत जारी हुआ उसमें नायिका को भगवा रंग के कम वस्त्रों और उत्तेजक मुद्राओं में नायक के साथ दिखाया गया जिसके प्रति नाराजगी जताते हिन्दू संगठन खुलकर सामने आ रहे हैं | अनेक राजनेताओं और धर्मगुरुओं ने भी विरोध करते हुए सिनेमा गृह जला देने तक की बात कही है | जहाँ भाजपा की सरकारें हैं वहां फिल्म पर रोक लगाने की मांग भी उठ रही है | नायिका दीपिका पादुकोण द्वारा दिल्ली की जे.एन.यू में हुए भारत विरोधी आन्दोलन को दिए समर्थन का हवाला देते हुए उन्हें टुकड़े – टुकड़े गैंग से जुड़ा बताया जा रहा है | विरोध करने वालों का आरोप है कि बेशर्म रंग नामक गीत में दीपिका को भगवा वस्त्र पहनाकर अश्लील दृश्य फिल्माने का मकसद हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाना है और भगवा रंग को सनातन धर्मियों के लिए पवित्र होने से बेशर्म रंग कहना आपत्तिजनक है | दूसरी तरफ फिल्म के बचाव में भी एक वर्ग मुखर है | भगवा कपड़े पहने अन्य नायिकाओं के चित्र दिखाकर कहा जा रहा है कि ऐसा पूर्व में भी होता रहा है किन्तु तब विरोध नहीं हुआ | भाजपा समर्थक कही जाने वाली नायिका कंगना रनौत के बदन उघाड़ू चित्रों के जरिये पठान के विरोधियों पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप भी लगाया जा रहा है | सबसे बड़ी बात ये उठ रही है कि फिल्म सेंसर बोर्ड ने इस तरह के दृश्यों और गाने को अनुमति कैसे दे दी जिससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं | पठान समर्थकों का कहना है कि फिल्म का विरोध कर रहे व्यक्तियों और संगठनों को सेंसर बोर्ड के उन लोगों को हटाने की माँग करनी चाहिए जिन्होंने उसको प्रदर्शन हेतु प्रमाणपत्र प्रदान किया | ये पहला अवसर नहीं है जब किसी फिल्म का प्रदर्शित होने के पूर्व ही विरोध शुरू हो गया | ऐतिहासिक कथानक पर बनी फिल्मों में तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने पर बवाल मचता रहा है | कुछ फ़िल्में इसलिए विरोध का शिकार हुईं क्योंकि उनकी कहानी सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध थी | अश्लीलता का अतिरेक भी लोगों को नागवार गुजरा है | इसमें दो मत नहीं है कि फ़िल्म उद्योग के कुछ पटकथा लेखक , निर्देशक और अभिनेता जान बूझकर ऐसी फ़िल्में लेकर आते हैं जिन पर विवाद पैदा होता है | पठान का जो गीत और दृश्य प्रसारित किये गये उनसे इस बात का संदेह होता है कि सोच - समझकर ऐसा किया गया | अनेक निर्माता उन दृश्यों और संवादों को हटा देते हैं जिन पर ऐतराज किया जाता है | जोधा – अकबर फिल्म के निर्माताओं ने करणी सेना वालों को फिल्म दिखाकर उनके सुझाये फेरबदल कर दिए | हालांकि विवादित हुई कुछ फ़िल्में जब बिना बदलाव किये ही प्रदर्शित हुईं तब उन्हें दर्शक नहीं मिले जबकि कुछ अपेक्षा से ज्यादा सफल रहीं | कुल मिलाकर मामला बड़ा पेचीदा है | पठान फिल्म को भाजपा शासित राज्यों में भले ही विरोध झेलना पड़े लेकिन जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं वे उसे पूरा समर्थन और संरक्षण प्रदान करेंगीं ये भी तय है | इस प्रकार विरोध और समर्थन का ये मुकाबला हमारे समाज की पहिचान बनता जा रहा है जिसका लाभ फिल्म निर्माता उठा लेते हैं | उदाहरण के लिए बाबा रामदेव को समाज के बड़े वर्ग का समर्थन मिलने से उनके व्यावसायिक कारोबार को भी जबर्दस्त सहारा मिला | लेकिन इसी कारण वे दूसरे तबके के लिए उपहास और नफरत का पात्र बने | ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि फ़िल्मी दुनिया में लम्बे समय तक एक विचारधारा विशेष का आधिपत्य रहा | विशेष तौर पर पटकथा , गीत और संवाद लेखन में कथित प्रगतिशील लोग हावी थे | कुछ अभिनेताओं , निर्माताओं और निर्देशकों के राजनीतिक प्रतिबद्धता के प्रति समर्पित होने से फिल्मों पर उनका असर साफ़ नजर आता रहा | अस्सी के दशक के साथ ही फिल्मों में माफिया का प्रवेश हुआ जिससे फिल्म निर्माण का स्वरूप और संस्कृति पूरी तरह बदल गई | समानांतर सिनेमा के नाम पर होने वाले प्रयोग नग्नता को कला का पर्याय बताने में जुट गए | सेंसर नामक केंची की धार दिन ब दिन भोंथरी होती जाने से उसका रहना न रहना बराबर हो गया | कुल मिलाकर सारा खेल येन केन प्रकारेण पैसा बटोरना रह गया है | रही – सही कसर पूरी कर दी छोटे परदे पर ओ.टी.टी के पदार्पण ने , जिसमें वास्तविकता के नाम पर अश्लीलता परोसने का अभियान चल पड़ा है | गालियों और गोलियों की बौछारों से भरी ये श्रृंखलाएं मनोरंजन के नाम पर कौन सा सन्देश दे रही हैं ये फिल्म समीक्षकों के ही नहीं अपितु समाजशास्त्रियों के लिए भी चिंतन – मनन का विषय है | टीवी पर मनोरंजन का दौर जिन धरावाहिकों से शुरू हुआ वे पारिवारिक माहौल को पेश करने के कारण लोकप्रिय हुए जिन्हें तीन पीढ़ियों के लोग एक साथ देखते थे | लेकिन आज छोटा पर्दा जो परोस रहा है उसमें अधिकतर की विषय वस्तु वयस्कों के लिए ही है | लेकिन सभी वयस्क गंदी गालियों को सुनना पसंद करते हैं ,ये पूरी तरह गलत है | सबसे बड़ी बात ये है कि समाज की सोच को विकृत करने की साजिश पर विराम कैसे लगाया जाए ? फिल्म उद्योग में बॉक्स आफिस फार्मूला बहुत महत्वपूर्ण होता है | निर्माता को अपने निवेश की चिंता रहती है तो कलाकारों को छवि की | लेकिन अनेक निर्माता – निर्देशक और अभिनेता ऐसे भी हुए जिन्होंने बिना बॉक्स आफिस की फ़िक्र किये साधारण बजट से ऐसी असाधारण फ़िल्में बनाईं जिन्होंने लोकप्रियता के कीर्तिमान स्थापित कर डाले | शाहरुख खान को फिल्म उद्योग में आये चौथाई सदी से ज्यादा बीत चुका है | लेकिन आज तक वे एक भी ऐसी भूमिका में नहीं दिखे जो उन्हें कालजयी बना सके | ऐसा नहीं है कि प्रयोगधर्मी फ़िल्में पहली नहीं बनीं किन्तु उनमें सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखा गया | वयस्क कथानक पर भी अनेक फ़िल्में आईं किन्त्तु उनमें से एक भी बिमल रॉय , गुरुदत्त , हृषिकेश मुखर्जी और वासु भट्टाचार्य की फिल्मों के सामने नहीं ठहरीं | गुलज़ार ने भी फिल्म रूपी माध्यम का बहुत ही करीने से उपयोग किया और सितारा अभिनेताओं के साथ कम बजट में बेहतरीन और सफल फ़िल्में बनाईं | आशय मात्र इतना है कि फ़िल्में केवल मनोरंजन और पैसा कमाने का जरिया न होकर समाज को संदेश देने का माध्यम भी है | अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को भी ये सोचना चाहिए कि उनके भी कुछ सामाजिक सरोकार हैं | ध्यान रहे दादा कोडके जैसे फिल्मकारों पर विस्मृति की धूल जम चुकी है जबकि व्ही. शांताराम का नाम उनके अवसान के दशकों बाद भी आदर के साथ लिया जाता है |
: रवीन्द्र वाजपेयी
Thursday 15 December 2022
फुटबाल विश्व कप में भारत की गैर मौजूदगी शर्मनाक
Wednesday 14 December 2022
जिनपिंग अपने बचाव में भारत पर हमले की रणनीति पर चल रहे
Tuesday 13 December 2022
मोदी की हत्या की बात कहने वाले को कड़ा दंड मिले वरना ये प्रवृत्ति और बढ़ेगी
म.प्र में भारत यात्रा के दौरान एक सभा में राहुल गांधी ने कहा था कि वे नरेंद्र मोदी और आरएसएस से लड़ते हैं लेकिन उनके मन में इनके प्रति नफरत नहीं है | एक लोकतांत्रिक देश में किसी राजनीतिक नेता द्वारा अपने विरोधी व्यक्ति अथवा संगठन के विरुद्ध इस तरह की बात कहना स्वाभाविक ही है | हालाँकि उसके बाद गुजरात में चुनाव प्रचार करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे ने श्री मोदी को रावण कहकर श्री गांधी की भावना के विरुद्ध आचरण किया जिस पर भाजपा ने कांग्रेस को घेरा | चुनाव परिणाम से ये स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस की शर्मनाक हार में श्री खड़गे का बयान भी सहायक साबित हुआ | अतीत में भी प्रधानमंत्री के विरुद्ध ऐसी ही टिप्पणियाँ होती रही हैं जिनका भाजपा ने जमकर लाभ उठाया | देश की मौजूदा राजनीति जिस मुकाम पर आकर खड़ी है उसमें शालीनता और सौजन्यता तेजी से लुप्त हो रही हैं | वैचारिक विरोध व्यक्तिगत वैमनस्यता में बदलने लगा है | लेकिन हद तो तब हो गई जब गत दिवस म.प्र में कांग्रेस के वरिष्ट नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए तैयार रहने जैसी बात पार्टी कार्यकर्ताओं से कह डाली | उन्होने ये भी कहा कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिये श्री मोदी को हराना जरूरी है | जब हत्या जैसी बात पर बवाल होने लगा तब जाकर उनको होश आया और फिर गांधी के अनुयायी होने का ढोंग रचते हुए उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनके बयान को गलत तरीके से प्रसारित किया गया है और हत्या से उनका आशय पराजित करना रहा | भाजपा ने बिना देर लगाए उक्त नेता के साथ ही कांग्रेस को भी घेरना शुरू कर दिया | मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा खुद मोर्चे पर आ गये और श्री पटेरिया के विरुद्ध थाने में प्रकरण भी दर्ज कर लिया गया | चूंकि उक्त बयान के वीडियो उपलब्ध हैं इसलिए वे ये कहने की चालाकी नहीं दिखा सके कि उन्होंने श्री मोदी की हत्या जैसी बात कही ही नहीं | उनके स्पष्टीकरण में भी किसी तरह का अफसोस नजर नहीं आया | भाजपा ने जब दबाव बढ़ाया तब कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता के.के.मिश्रा ने बजाय श्री पटेरिया की निंदा करने के ये कहकर पिंड छुडा लिया कि उस बयान से पार्टी का कोई संबंध नहीं है | पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं की टिप्पणियाँ भी अब तक नहीं सुनाई दीं | प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कांग्रेस के अहिंसावादी होने का हवाला देते हुए श्री पटेरिया के बयान की निंदा तो की किन्तु इसके साथ ही ये भी जोड़ दिया कि यदि वीडियो में कही बात सही है तो | राहुल गांधी ने भी इसका संज्ञान नहीं लिया जबकि कुछ दिन पहले ही उन्होंने श्री मोदी से लड़ाई के बाद भी नफरत न होने जैसी बात कही थी | होना तो ये चाहिए था कि कांग्रेस उक्त नेता को निलम्बित कर फिर उनसे सफाई मांगती | लेकिन उसने बयान से दूरी बनाने की बात कहकर अपना दामन बचाने का दांव चला | वैसे तो श्री पटेरिया लम्बे समय से प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर पड़े हैं लेकिन पूर्व में वे सत्ता और संगठन दोनों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा चुके हैं | भले ही वे राजनीतिक तौर पर सड़क पर आ गये हों किन्तु उनको सड़क छाप नेता नहीं माना जा सकता | और इस आधार पर श्री मोदी की हत्या के लिए तैयार रहने जैसी बात को न ही जुबान का फिसलना कह सकते हैं और न ही उनके भाषाई ज्ञान में कमी को इसका कारण माना जा सकता है | इसीलिये उक्त बयान बहुत ही आपत्तिजनक और अपराध की श्रेणी में रखे जाने योग्य है | श्री मोदी तो खैर ,देश के प्रधानमंत्री हैं किन्तु किसी साधारण व्यक्ति की हत्या की बात कहना किसी भी ऐसे समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता जहां संविधान के अनुसार समूची व्यवस्था संचालित होती है | प्रधानमंत्री की हत्या की बात कहना तो क्या सोचना भी गंभीर अपराध है और इसलिए श्री पटेरिया को कानून के अनुसार समुचित सजा मिलना जरूरी है | यदि ऐसा नहीं होता तब राजनीतिक बिरादरी और आतंकवादियों में कोई फर्क नहीं बचेगा | ऐसा लगता है उक्त कांग्रेसी नेता सिर तन से जुदा वाली मनसिकता से प्रेरित हैं , अन्यथा लम्बे राजनीतिक अनुभव के बाद इस तरह की निम्नस्तरीय बात कहने का और दूसरा कारण नहीं हो सकता | गांधी के अनुयायी होने का दावा करने वाले श्री पटेरिया ने श्री मोदी के विरूद्ध अपनी भड़ास जिस भी वजह से निकाली हो किन्तु उनकी टिप्पणी बापू का भी अपमान है | होना तो ये चाहिए था कि भाजपा से पहले कांग्रेसजन अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए उनको पार्टी से बाहर करने की मांग उठाते किन्तु अनेक नेता और समर्थक सोशल मीडिया पर उन्हें साहसी बता रहे हैं | इस मामले का अंत कहाँ और कैसे होगा ये फ़िलहाल तो कहना मुश्किल है लेकिन देश के प्रधानमंत्री की हत्या जैसी बात खुले आम कहने वाले व्यक्ति का अब तक पार्टी में बना रहना कांग्रेस के लिए भी शर्मनाक है | यदि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की बुद्धि और विवेक अब तक जीवित है तब उन्हें श्री पटेरिया को निकाल बाहर करते हुए खुद आगे आकर माफी मांगना चाहिए | अन्यथा इस गंभीर अपराध की पुनरावृत्ति बढ़ सकती है | और उस दौर की कल्पना से भी पांव कांपने लगते हैं |
रवीन्द्र वाजपेयी