पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करते हुए यहाँ तक कह दिया कि ओसामा बिन लादेन तो मर चुका है लेकिन गुजरात का बुचर ( कसाई ) जिंदा है , और वो भारत का प्रधानमंत्री है | जब तक वो प्रधानमंत्री नहीं बना था तब तक उसके अमेरिका आने पर पाबंदी थी | दरअसल संरासंघ की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के विरोध के साथ ही कश्मीर विवाद को लेकर बिलावल की बकवास के जवाब में हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ये कहा था कि ओसामा बिन लादेन को शरण देने वाला देश हमें नसीहत न दे | आतंकवाद को प्रश्रय देने के बारे में भी उन्होंने संरासंघ में पाकिस्तान को जमकर धोया था | उस समय बिलावल भी वहीं बैठे थे | उल्लेखनीय है अमेरिका सहित अन्य बड़े देश पाकिस्तान को खैरात देने से पीछे हटने लगे हैं | भारत की कूटनीतिक मोर्चेबंदी का ही परिणाम है कि पश्चिम के जो देश उसके सरपरस्त थे वे आतंकवाद की नर्सरी मानकर उसकी उपेक्षा करने लगे हैं | अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन कर उसने अमेरिका को जिस तरह धोखा दिया उससे वह बहुत नाराज है | कोरोना के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो उथलपुथल मची उसका दुष्प्रभाव पाकिस्तान पर भी है | राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही वहां आर्थिक बदहाली चरम पर है | चीनं को भी धीरे – धीरे पाकिस्तान बोझ लगने लगा है | ऐसे में विश्व बिरादरी के सामने साख ज़माने के लिए छटपटा रहे बिलावल को जब कुछ नहीं सूझा तो भारत के बारे में अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया | यद्यपि वे भले ही अपने नाना जुल्फिकार अली भुट्टो की नकल करते हुए खुद को भारत का कट्टर विरोधी साबित करते हुए पाकिस्तानी जनता के सामने शेर बनने की कोशिश कर रहे हों लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि बीते 75 सालों में पाकिस्तान के जिस भी नेता ने भारत से सीधे टकराने की जुर्रत की उसका हश्र बुरा ही हुआ | वैसे भी उनके देश की वर्तमान दशा बहुत ही खराब चल रही है | राजनीतिक अस्थिरता के अलावा पश्चिमी सीमान्त पर अफगानिस्तानी सेना से रोजाना संघर्ष हो रहा है | जिन अफगानी सैन्य लड़ाकों को उसने अमेरिका से लड़ने के लिए अपनी जमीन का उपयोग करने की अनुमति दी थी वे अब लौटने राजी नहीं हैं | इसके साथ ही बलूचिस्तान के अंदरूनी हालात भी संगीन हैं | पाक अधिकृत कश्मीर के बड़े इलाके इस्लामाबाद के शिकंजे से आजाद होने को बेचैन हैं | भारत द्वारा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अलगाववादी ताकतों की जिस तरह कमर तोड़ी गई उसकी वजह से सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों की संख्या में कमी आई है | हालाँकि घाटी पूरी तरह से उनसे मुक्त हो गई हो ऐसा कहना गलत होगा लेकिन आये दिन उनका सफाया किया जा रहा है | ऐसे में पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी सरगनाओं की अहमियत कम होने से वे आन्तरिक राजनीति में दखल देने लगे हैं | दूसरी तरफ भारत की आर्थिक , सामरिक और कूटनीतिक स्थिति निरंतर मजबूत होती जा रही है | जी 20 की अध्यक्षता मिलने से महाशक्तियों के साथ संवाद और सम्बन्ध पहले से काफी सुधरे हैं | पाकिस्तान इस सबसे काफी परेशान है | हालाँकि वहां जो भी नया सत्ताधीश आता है वह भारत से अच्छे रिश्ते रखने की बात कहता है | इमरान खान जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने शुरुआत में तो अच्छी पहल की लेकिन धीरे – धीरे वे भी अपने पूर्ववर्ती सत्ताधीशों की तर्ज पर भारत विरोध को ही हर मर्ज की दवा समझ बैठे , जिसका नतीजा सामने है | पाकिस्तान के लिए वर्तमान स्थिति में बेहतर तो यही है कि वह भारत के साथ राजनयिक और व्यापारिक रिश्ते मजबूत करे | इससे उसकी आर्थिक स्थिति सुधरने के साथं ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में मिट्टी में मिल चुकी साख भी कुछ हद तक तो कायम हो ही जायेगी | लेकिन बिलावल ने जिस तरह की भद्दी भाषा भारत के प्रधानमंत्री के प्रति इस्तेमाल की उससे साबित हो गया कि उनकी बुद्धि कुंद हो गयी है | संरासंघ जैसे वैश्विक मंच का उपयोग यदि वे दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने के किसी प्रस्ताव के साथ करते तो उनकी परिपक्वता प्रमाणित होती | लेकिन श्री मोदी जैसे वैश्विक नेता के बारे में इस तरह की टिप्पणी करने से स्पष्ट हो गया कि बिलावल भले ही विदेश मंत्री बन गये परन्तु न तो उन्हें राजनयिक शिष्टाचार की समझ है और न ही कूटनीति की | यदि वे सोचते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्द कहकर पाकिस्तान में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर लेंगे तो उनसे बड़ा मूर्ख नहीं मिलेगा | उनके नाना जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी संरासंघ में भारतीय कुत्ते शब्द का उपयोग कर खुद को तुर्र्म खां दिखाने की कोशिश की किन्तु उन्हीं के विदेश मंत्री रहते हुए पाकिस्तान 1965 और 1971 की जंग हारा | उन दोनों लड़ाइयों के दौरान पाकिस्तान की विदेश नीति बुरी तरह विफल रही थी | यद्यपि बाद में वे प्रधानमंत्री भी बने लेकिन अंततः उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया | उनकी बेटी और बिलावल की माँ बेनजीर को भी सत्ता में आने का अवसर मिला किन्तु वे भी भारत विरोध की राह पर चल पडीं और सत्ता गंवाने के बाद अंततः लम्बे समय तक देश से बाहर रहने मजबूर हुईं | किसी तरह उनकी वापसी हुई तो बम विस्फोट में मार दी गईं | यदि बिलावल में रत्ती भर भी साहस होता तो अपने नाना और माँ को मारने वाली जल्लादी मानसिकता की मुखालफत करते | विदेश मंत्री की कुर्सी उन्हें नवाज शरीफ परिवार के साथ सौदेबाजे में मिली है और उनके मन में प्रधानमंत्री बनने की चाहत भी जरूर होगी | उनके पिता आसिफ जरदारी भी राष्ट्रपति रहे हैं | लेकिन बिलावल को ये बात समझ लेना चाहिए कि भारत विरोध की राजनीति के करने से अब न तो उनका भला होने वाला है और न ही उनके मुल्क का | और ये भी कि यदि वहां का माहौल ऐसा ही रहा तो बड़ी बात नहीं उनका हश्र भी नाना भुट्टो और माँ बेनजीर जैसा हो जाए |
रवीन्द्र वाजपेयी
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