Thursday 8 December 2022

गुजरात में इतिहास रचा पर हिमाचल की सर्दी में भी पसीना निकला भाजपा का



 
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में सत्ता खोने  के बाद आज गुजरात विधानसभा के जो नतीजे आये उन्होंने भाजपा को सीना फुलाने का अवसर दे दिया | उसने न सिर्फ अपना , अपितु दशकों पहले कांग्रेस को मिली 149 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ दिया  है | उसका आंकड़ा 158 हो गया है | वहीं कांग्रेस अपने इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए 16 सीटों पर सिमट गई है | सरकार बनाने का दावा लिखकर देने  वाले अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी आधा दर्जन विधायक जितवाने में ही सफल हो सकी | लेकिन वह कांग्रेस  की जड़ों में  मठा डालने में कामयाबी जरूर हो गई  है | अनेक सीटों पर उसको 30 से 40 फीसदी मत मिलना धमाकेदार शुरुआत कही जा सकती है किन्तु इस दावे का सही विश्लेषण सभी नतीजे आने के बाद करना बेहतर होगा | लेकिन एक बात पूरी तरह साफ है कि आम आदमी पार्टी उन सभी राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ करने की रणनीति पर चल रही है जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला है | गुजरात में चूंकि कांग्रेस नेतृत्व विहीन थी इसलिए उसके द्वारा उत्पन्न शून्य को भरना इस पार्टी के लिए आसान था | राहुल गांधी चुनाव के पहले 10 दिन पड़ोसी म.प्र में यात्रा करते रहे लेकिन उन्होंने गुजरात में केवल एक दिन प्रचार कर कांग्रेस के आत्मसमर्पण की पुष्टि कर दी थी | भाजपा इसीलिये इस बार आसान जीत के प्रति आश्वस्त तो थी लेकिन 2017 की  यादें उसे आशंकित करती रहीं जिसकी वजह से प्रधानमंत्री ने पूरा जोर लगा दिया | भाजपा को ये चिंता भी थी कि आम आदमी पार्टी विकल्प के तौर पर न उभरे | बीते 27 साल से लगातार जीतने के बाद सत्ता में लौटने का कारनामा वाकई काबिले तारीफ है । खास तौर पर इसलिए क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री का नाम  राज्य के बाहर भाजपाई तक नहीं जानते | ऐसे में ये सफलता श्री मोदी और अमित शाह की मेहनत का फल है | वैसे भी इस बात के लिए भाजपा की प्रशंसा करनी होगी कि पांच साल पहले लगे झटके के बाद उसने भविष्य की तैयारी शुरू कर दी | वहीं कांग्रेस जिन हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के सहारे  आगे बढना चाहती थी वे ही उसे बीच रास्ते  छोडकर चले गये | उस लिहाज से भाजपा के पास तो इस शानदार  जीत का जश्न मनाने के तमाम कारण हैं किन्तु कांग्रेस चूंकि लड़ी ही नहीं इसलिए उसके लिए हार की समीक्षा भी समय की बर्बादी होगी | आम आदमी पार्टी को  वह सब तो हासिल नहीं हुआ जो वह सोच रही थी परंतु एकदम नई जमीन पर आकर उसने अपनी मौजूदगी दर्ज करवाते हुए ये सन्देश दे दिया है कि भाजपा विरोधी गठबंधन उसके बिना बनाना कठिन होगा | बहरहाल गुजरात में भाजपा की ऐतिहासिक जीत और कांग्रेस की शर्मनाक पराजय से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ | आम आदमी पार्टी पर ये आरोप लगाना कि उसने कांग्रेस को हरवाया विश्लेषण का विषय तो है किन्तु उसका ये कहना वाजिब है कि वह अपना फैलाव इस कारण तो नहीं रोक सकती क्योंकि इससे किसी और को नुकसान होगा | लेकिन गुजरात से दूर हिमाचल प्रदेश के जो परिणाम आ रहे हैं उन्होंने आम आदमी पार्टी को इस आरोप से काफी हद तक बरी कर दिया क्योंकि वहां सुबह से  उतार चढाव के बाद अंततः कांग्रेस ने मैदान मार लिया  है | इस प्रकार इस राज्य की जनता ने हर चुनाव में सत्ता बदलने की परम्परा को बनाये रखा | हालाँकि हिमाचल का देश की राजनीति में खास दबदबा नहीं है लेकिन भाजपा के लिए ये हार इसलिए शर्मनाक है क्योंकि यह उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा का गृह राज्य है | याद रहे पंजाब में सरकार बनाने  के फौरन बाद आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में पाँव फैलाने का प्रयास किया था | लेकिन जल्द  ही उसे लग गया कि पहाड़ की जनता को आकर्षित करने में वह सफल नहीं होगी | इसी बीच दिल्ली नगर निगम के चुनाव आ गये | इस कारण पार्टी नेतृत्व  ने चतुराई दिखाते हुए यहाँ अपनी ताकत खर्च न करते हुए दिल्ली का गढ़ बचाने और राष्ट्रीय पार्टी बनने की गरज से गुजरात में ताल ठोकना  बेहतर समझा | तीनों नतीजे देखने के बाद ये कहा  जा सकता है कि फिलहाल तो उसकी सोच सही निकली | भाजपा ने दिल्ली  नगर निगम खोने के बाद गुजरात तो मोदी – शाह की साख और धाक पर न सिर्फ जीता अपितु इतिहास भी रच डाला परन्तु हिमाचल में वह इतिहास को दोहराने से रोकने में विफल रही | दोपहर दो बजे तक जो आंकड़े आये थे उनके अनुसार हिमाचल में कांग्रेस को बहुमत से चार – पांच सीटें  ज्यादा मिल गई हैं | वहीं भाजपा  तीस से भी नीचे चली गयी और निर्दलीय मिलाकर भी बहुमत से दूर है | इसलिए जोड़तोड़ के जरिये सरकार बना लेने की सम्भावना भी उसके हाथ से खिसक गई है | दरअसल इस छोटे से राज्य में भाजपा के कुछ बड़े नेता लम्बे समय से आपसी लड़ाई में उलझे हुए हैं | केन्द्रीय नेतृत्व भी स्थायी इलाज की बजाय  प्राथमिक चिकित्सा कर शांत बैठ जाता है | इस बार बड़ी संख्या में विधायकों की टिकिटों को काटने के कारण अनेक बागी खड़े हो गये जिन्हें मनाने की बजाय उन्हें हल्के में लिया गया जिसका नुकसान  सामने है | वैसे भी हिमाचल में सरकारी कर्मचारी चुनाव को काफी प्रभावित करते हैं |  जिनका सरकार से नाराज होना परम्परा है | इस बार उनकी  नाराजगी भाजपा को भारी पड़ी | आपसी झगड़े कांग्रेस में भी कम नहीं हैं किन्तु प्रियंका वाड्रा ने इस राज्य की कमान संभालकर स्थानीय छत्रपों को जिस तरह शांत किया उसकी वजह से वह एकजुट होकर लड़ी | उस दृष्टि से हिमाचल की जीत का श्रेय काफी कुछ श्रीमती वाड्रा को भी मिलना चाहिए | पार्टी के भीतर इस जीत से उनकी  स्वीकार्यता निश्चित रूप से बढ़ेगी जो उ.प्र में बेहद बुरे प्रदर्शन के बाद सवालों के घेरे में थी | इस प्रकार कल से आज तक जो तीन बड़े नतीजे देखने मिले उनमें  भाजपा , आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों  को कहीं खुशी , कहीं गम का एहसास हो गया | हालाँकि इससे कांग्रेस का मौजूदा संकट दूर हो जाएगा और आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय विकल्प बन जायेगी ये खुशफहमी पालना जल्दबाजी होगी | लेकिन भाजपा के लिए ये नतीजे चेतावनी हैं | उसे ये बात समझ लेनी चाहिए कि प्रधानमंत्री देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और आगामी  लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की नैया पार लगाने में सक्षम हैं ,लेकिन जहां प्रादेशिक स्तर के भाजपा नेता कमजोर हैं वहां वह जीत को जेब में मानकर नहीं चल सकती | गुजरात इसलिए अपवाद है क्योंकि वहां भाजपा औए मोदी समानार्थी हैं | ये देखते हुए कर्नाटक , राजस्थान , छत्तीसगढ़ और म.प्र के आगामी चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं रहेंगे | आज ही कुछ उपचुनावों के जो नतीजे आ रहे हैं वे भी भाजपा के लिए बुरी खबर हैं |

:रवीन्द्र वाजपेयी 


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