Monday 5 December 2022

जे.एन.यू में लिखे नारे देश तोड़ने की साजिश का हिस्सा



दिल्ली का बहुचर्चित जे.एन.यू ( जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय ) फिर  सुर्खियों में है | उसके परिसर की कुछ दीवारों पर ब्राह्मणों  और बनियों को भारत और विवि छोड़ने के साथ ही रक्तपात और बदला लेने की धमकी वाले नारे लिखे जाने की राष्ट्रव्यापी प्रतिक्रिया हुई है | सोशल मीडिया पर उक्त जातियों के लोग विरोध  व्यक्त कर रहे हैं | विख्यात  गीतकार मनोज मुन्तशिर शुक्ला द्वारा ब्राह्मणों के गौरवशाली इतिहास और योगदान पर रचित एक कविता का  वीडियो तेजी से प्रसारित हो रहा है | कुछ  लोग इसे गुजरात और दिल्ली नगर निगम के चुनाव को प्रभावित करने वाली चाल भी  बता रहे हैं | ये आशंका भी है कि विवि पर अपना नियंत्रण खत्म होता देख वामपंथी निम्नस्तरीय हरकतों पर उतर आये हैं | जातिगत वैमनस्य बढाकर संस्थान की शांति भंग करने का मकसद भी इसके पीछे हो सकता है | हालाँकि ये पहला अवसर नहीं है जब वहां  इस तरह की गंदी हरकत हुई हो | महिषासुर जयन्ती के अलावा हिन्दू देवी – देवताओं के आपत्तिजनक चित्र और टिप्पणियाँ किये जाने की शरारत  अतीत में  भी होती रही है | यहाँ के छात्र और शिक्षक संघ पर लम्बे समय तक  वामपंथी प्रभाव  रहने से  देश और समाजविरोधी गतिविधियाँ बेरोकटोक चलती रहीं | कश्मीर की आजादी के जो नारे लगाये जाते रहे वे किसी से छिपे नहीं हैं | लेकिन बीते कुछ वर्षों से  माहौल थोड़ा बदला है | छात्र और शिक्षक संगठनों में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रवेश होने के बाद पहले जैसी अराजकता नहीं रही | उच्च पदों पर  शिक्षा जगत से जुड़े सुलझे हुए व्यक्तियों की नियुक्ति से परिसर का वातावरण काफी सुधरा है | शहरी नक्सली कहलाने वाले तत्व इससे खीझ उठे हैं जिसके कारण उन्होंने जाति के नाम पर जहर फैलाने का षडयंत्र रचा | वैसे भी देश में इस समय अनेक ऐसे चेहरे उभर रहे हैं जो जाति के नाम पर समाज में  संघर्ष के हालात पैदा करने की कोशिश में  हैं | दुर्भाग्य से राजनीतिक दलों का समर्थन मिलने से इनके हौसले मजबूत होते हैं | यद्यपि सभी जातियों में सकारात्मक सोच रखने वाले लोग हैं किन्तु समाज को बांटने वाली मानसिकता मौका पाते ही सिर उठाने लगती है | देश के अनेक हिस्सों में जातिगत आरक्षण की मांग को लेकर हिंसात्मक आन्दोलन भी हुए हैं | महाराष्ट्र और राजस्थान में जातिगत संघर्ष भी देखने मिले | इनके पीछे वोट बैंक की राजनीति के अलावा उन्हीं राष्ट्रविरोधी लोगों की भूमिका रही जो जे.एन.यू में समय – समय पर दिखाई दे जाती है  | ये वही संस्थान है जहां  भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाने का दुस्साहस खुले आम होता रहा | दुःख का विषय ये है कि वैसा करने वालों को समर्थन देने के लिए देश के अनेक राजनीतिक नेता , बुद्धिजीवी  और पत्रकार जा  पहुंचे | उस दौर के छात्र नेताओं में से एक कन्हैया कुमार सीपीआई के साथ आने के बाद कांग्रेस में चले गये और वर्तमान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के साथ हैं | वैसे भी पंडित नेहरु के ज़माने से ही वामपंथियों ने शिक्षा , कला और संस्कृति  से जुड़ी संस्थाओं में अपनी जड़ें जमा ली थीं | कांग्रेस को ये तबका इसलिए पसंद रहा क्योंकि वह राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोध में बौद्धिक स्तर पर मोर्चेबंदी किया करता था | लेकिन इसकी वजह से उसका अपना जनाधार कमजोर होता गया | इंदिरा जी जब सत्ता में आईं और उन्हें पार्टी के भीतर वरिष्ट नेताओं का विरोध झेलना पड़ा तब वामपंथी उनकी बैसाखी बन गये जिसकी कीमत भी उन्होंने भरपूर वसूली | जे.एन.यू सरीखे संस्थानों पर कब्ज़ा उसी का परिणाम है | हालाँकि 1975 में आपातकाल लगाये जाने के समय सीपीआई श्रीमती गांधी के साथ खड़ी हुई जबकि सीपीएम ने विरोध का रास्ता पकड़ा किन्तु उसके बाद की राष्ट्रीय राजनीति में वामपंथियों ने रा.स्व.संघ और भाजपा के विरोध में कांग्रेस का समर्थन किया | इसी वजह से ममता बैनर्जी ने कांग्रेस छोड़ अपनी अलग पार्टी बना ली | धीरे – धीरे जब वामपंथी राजनीति ढलान पर आने लगी तब शहरी नक्सली वाला रूप धरकर वे देश को अंदर से कमजोर करने में जुट गए | जे.एन.यू में हुई संदर्भित शरारत उसी का हिस्सा है | हालाँकि यह षडयंत्र इसलिए नाकामयाब हो गया क्योंकि ब्राहमण और बनिया समुदाय की ओर से सामने आये विरोध में किसी जाति के विरुद्ध कुछ नहीं कहा गया | लेकिन  राजनीतिक दलों का इस मामले में मौन  अच्छा संकेत नहीं है | उल्लेखनीय है भारत तेरे टुकड़े होंगे वाली नारेबाजी के बाद कन्हैया और उमर खालिद आदि की गिरफ्तारी  हुई तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी विवि  परिसर में उक्त छात्र नेताओं को समर्थन देने पहुंचे थे | भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे और कन्हैया कुमार नित्य प्रति रा.स्व.संघ  और भाजपा को घेरते रहते हैं लेकिन जे.एन.यू की दीवारों पर लिखे समाज को तोड़ने वाले नारों पर उनकी चुप्पी सवाल खड़े करती है | अन्य विपक्षी नेता और असहिष्णुता का हल्ला मचाने वाले लोग  भी मुंह खोलने का साहस नहीं कर रहे | संभवतः उनकी सोच वोट बैंक के नफे - नुकसान पर टिकी होगी | लेकिन समाज के व्यापक हितों की दृष्टि से देश की राजधानी में स्थित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शिक्षा संस्थान में इस तरह की हरकत  का राजनीति से  ऊपर उठकर विरोध होना जरूरी है | हालाँकि आज भी हिन्दू समाज अपनी सहिष्णुता को बनाये रखे है जिसके चलते ऐसे  मंसूबे सफल नहीं हो पा रहे | उ.प्र जैसे  राज्य में जाति और समुदाय की राजनीति को जिस तरह जनता ने नकारा उससे देशविरोधी ताकतें बौखलाहट में आकर दलित और आदिवासी समुदाय को  मुख्य धारा से अलग करने के प्रयास में जुटी हैं | जे.एन.यू की दीवारों पर ब्राह्मण  और बनिया विरोधी नारे उसी का हिस्सा है | देश हित के लिए जरूरी है सभी राजनीतिक दल इस षडयंत्र के विरुद्ध आवाज उठायें | यदि वे ऐसा नहीं करते तो ये मानना गलत न होगा कि वे भी समाज को तोड़ने वाली ताकतों  के साथ हैं |

: रवीन्द्र वाजपेयी 

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