Friday 2 December 2022

गुजरात में मतदाताओं की उदासीनता राजनीतिक दलों की विफलता



आर्थिक मोर्चे से लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं | नवंबर महीने का जीएसटी संग्रह 1.45 लाख करोड़ रहना इस बात का प्रमाण है कि अर्थव्यवस्था का पहिया रफ्तार पकड़ चुका है | ऑटोमोबाइल उद्योग में भी मांग तेजी से बढ़ती जा रही है |  कोरोना काल के बाद आम उपभोक्ता में भविष्य को लेकर जो असुरक्षा का भाव था वह काफी कुछ दूर हुआ  है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पर्यटन उद्योग में उछाल है | इसी तरह   शादी – विवाह पर होने वाले खर्च में जो कटौती हुई थी वह भी अब समाप्त हो चली है | इसकी वजह से होटल , रिसार्ट , मैरिज गार्डन और कैटरिंग के अलावा उससे जुड़े  परम्परागत कारोबार में भी खासी वृद्धि देखी जा रही है | राजनीतिक कारणों से ही सही किन्तु केंद्र सरकार गरीबों को खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत जो मुफ्त अनाज दे रही है वह भी अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ होने का सबूत है | कोरोना के  कारण लगाये गए लॉक डाउन के दौरान जब सब कुछ बंद था तब भी देश के किसानों ने खेतों में पसीना बहाकर अन्न भंडारों को भरने का पुख्ता इंतजाम किया | उसकी वजह से कहीं भी अराजकता देखने नहीं मिली | यद्यपि जरूरी चीजों के दाम बीते दो ढाई सालों में अप्रत्याशित तौर पर बढ़े किन्तु उन परिस्थितियों में वैसा होना पूरी तरह स्वाभाविक था | सबसे बड़ी बात  ये रही कि किसी भी चीज की कमी नहीं रही तथा आपूर्ति लगातार जारी रहने से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का काम चला | उस समय पूरी दुनिया के साथ ही भारत भी एक ऐसे दौर से गुजरा जिसमें मौत हर कदम पर सामने थी और ऐसा लगता था कि सब कुछ बर्बाद हो जायेगा | लेकिन शासन , प्रशासन और जनता के बेहतर समन्वय और अनुशासन का पालन होने से आपदा अवसर बन गयी | और एक नया भारत विश्व पटल पर उभरकर सामने आया जो पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ है जिसमें विश्व का नेतृत्व करने की इच्छाशक्ति है | ताजा आंकड़ों के अनुसार महंगाई भी उतार पर है | वैश्विक बाजारों से खबर आ रही है कि कच्चे तेल की कीमतें भी गिर रही हैं | इससे ये उम्मीद की जाने लगी है कि भारत में पेट्रोल – डीजल की कीमतों में भारी कमी हो सकती है | पहले  अनुमान था कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पहले केंद्र  सरकार इनकी कीमतें घटा देगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ | इसका एक कारण शायद ये भी हो सकता है कि  भाजपा को दोनों राज्यों में अपनी जीत का विश्वास है | लेकिन देखने वाली बात ये है कि प्रधानमत्री और गृहमंत्री के घरेलू राज्य गुजरात में कल हुए प्रथम  चरण के मतदान का प्रतिशत 2017 की तुलना में कम रहा | राजनीति के पंडित ये मानते हैं कि कम मतदान यथास्थिति बनाये रखने का संकेत होता है | स्मरणीय है पिछली मर्तबा गुजरात में ज्यादा मतदान हुआ तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था | हालाँकि  वह सत्ता की देहलीज पर आकर ठहर गयी लेकिन  भाजपा को सर्दी में भी गर्मी का एहसास हो गया था | इस बार तो वहां  त्रिकोणीय संघर्ष है | भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी ने मैदान में उतरकर मुकाबले को बेहद कड़ा और रोचक बना दिया है | ऐसे में ये सोचना पूरी तरह सही था कि गुजरात में मतदाता उत्साहपूर्वक मतदान करने निकलेंगे किन्तु पिछले चुनाव की तुलना में कम मतदान इस बात का संकेत है कि जनता के मन में नाराजगी भले न हो किन्तु वैसा उत्साह भी नहीं है जो उन्हें मतदान केंद्र तक खींच लाता | यदि कम मतदान  कांग्रेस की खस्ता हालत का संकेत है तो फिर ये मान लेना गलत न होगा कि वह अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं का हौसला बढ़ाने में विफल रही | आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब की तरह से मुफ्त बिजली और शिक्षा का जो लालच दिया उसके बाद भी यदि 40 फीसदी मतदाता घर से नहीं निकले तो ये कहीं न कहीं राजनीति के प्रति अविश्वास का ही परिचायक है | इस बात को अर्थव्यस्था से जोड़ना अटपटा लग सकता है क्योंकि 2016 में की गई नोटबंदी के  बाद भी  भाजपा ने 2017 में उत्तरप्रदेश का चुनाव धमाकेदार अंदाज में जीता | लेकिन गुजरात जो कि उद्योग – व्यवसाय का गढ़ है वहां उसके  पसीने छूट गये और कर्नाटक में भी वह बहुमत पाने में विफल रही | इससे   साफ़ है कि मतदाता की सोच काफी अलग हो गई है | भाजपा के लिये भी ये शोचनीय है कि कांग्रेस का जहाज डूबता नजर आने से उसके प्रति मतदाताओं का रुझान घटा है लेकिन उसका भरपूर लाभ भाजपा को न मिलना भी काफी कुछ कह जाता है | गुजरात में ढाई दशक से भी ज्यादा समय से उसका राज है |  फिर भी कल मतदान का प्रतिशत गिरना दर्शाता है कि कहीं न कहीं ये अवधारणा बरकरार है कि कोई – जीते या हारे लेकिन हमारी दशा नहीं सुधरने वाली तो क्यों जाएँ मतदान करने ? ऐसे में इस सवाल  का जवाब प्रत्येक राजनीतिक दल को तलाशना चाहिए कि उनके धुआंधार प्रचार के बावजूद 40 फीसदी मतदाता घर बैठा रहा  तो इसकी वजह क्या है ?  गौरतलब है कि गुजरात का  साधारण से साधारण व्यक्ति आर्थिक मामलों में जबरदस्त रूचि रखता है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इसे सार्वजानिक रूप से कहते भी हैं | ऐसे में  गुजरात में मतदान का कम प्रतिशत इस बात का इशारा है कि लोग नाराज भले न हों लेकिन अभी भी खुशी उनके जीवन में नहीं लौट सकी है | जीएसटी के बढ़ते आंकड़े  सुनने में तो अच्छे लगते हैं लेकिन उनका सीधा फायदा जनता को नहीं मिलता तब तक उसका बड़ा हिस्सा व्यवस्था के प्रति उदासीन बना रहेगा | गुजरात में औसतन 60 फीसदी मतदान उसी का परिचायक है | ध्यान देने वाली बात ये है कि लोकतंत्र एक जीवंत व्यवस्था है जिसमें जनता की प्रसन्नता और नाराजगी दोनों किसी न किसी तरह लाभदायक होती हैं लेकिन उदासीनता सदैव नुकसान का कारण बनती है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

 

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