Saturday 3 December 2022

राहुल खुद जय सियाराम का नारा क्यों नहीं लगाते .....



कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में जितना समय रास्वसंघ और भाजपा को कोसने में लगा रहे हैं उतना  अपनी पार्टी की विचारधारा और उसकी सरकारों द्वारा किये गए कार्यों के प्रचार में खर्च करें तो उन्हें और कांग्रेस दोनों को लाभ हो सकता है | लेकिन दिग्विजय सिंह जैसे सलाहकार चूंकि उनके साथ चल रहे हैं इसलिए वे घूम - फिरकर वही गलती दोहरा  बैठते हैं जो अतीत में भी नुकसानदेह साबित हो चुकी है | मसलन गत दिवस वे हे राम , जय सियाराम और जय श्री राम की व्याख्या करते हुए भाजपा को समझाइश दे बैठे  कि वह जय सियाराम और हे राम भी कहे | हालाँकि इस बात के लिए श्री गांधी की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने ये भी बता दिया कि ये बातें उन्हें यात्रा में मिले एक पंडित जी ने बताई थीं | वैसे श्री गांधी ने जो व्याख्या की वह इतनी सतही है कि उनके समर्थक भी  ठीक से समझ नहीं सके | लेकिन इससे हटकर सवाल ये है कि भाजपा के हिंदुत्व से असहमति रखने और उसकी देखासीखी मंदिरों में जाकर साष्टांग करने वाले राहुल और उनकी पार्टी को जय सियाराम और हे राम बोलने से किसने रोक रखा है ? गांधी जी की प्रार्थना सभा में  ईश्वर अल्ला तेरो नाम , सबको सन्मति दे भगवान की गूँज सुनाई देती थी किन्त्तु उनकी समाधि पर हे राम लिखा गया जिस पर किसी ने ये नहीं कहा कि उससे हिंदुत्व का भाव सामने आता है | कांग्रेस को इस बात पर ऐतराज है कि भाजपा केवल जय श्री राम बोलती है ,  जय सियाराम और हे राम नहीं | बेहतर हो श्री गांधी अपनी इस यात्रा में सायंकाल बापू की तरह भजन संध्या शुरू करें और अपने समर्थकों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वे जय सियाराम और हे राम के नारे लगाया करें |  लेकिन मंदिर और  मठों में दंडवत करने के बावजूद  किसी ने श्री गांधी के मुख से जय सियाराम या हे राम नहीं सुना होगा | यात्रा में मिले किसी पंडित जी ने यदि  उक्त ज्ञान न दिया होता तब शायद ही वे राम नाम की व्याख्या करने का कष्ट उठाते | दरअसल राहुल और कांग्रेस दोनों लम्बे समय से उहापोह में हैं | वैचारिक अस्पष्टता और अस्थिरता की वजह से पार्टी की पहिचान ही खत्म होती जा रही है | भाजपा ने जब राम मंदिर और हिंदुत्व के मुद्दे को उठाकर सत्ता हासिल कर ली तब कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता पर खतरा नजर आ रहा था | और उसी धुन में वह अखिलेश , लालू और वामपंथियों से हाथ मिलाती रही | हिंदुत्व के मामले में भाजपा से ज्यादा कट्टर शिवसेना के साथ सरकार बना लेने का उसका निर्णय भी अधकचरी सोच का नतीजा था | जिस आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया उसकी पहली सरकार दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से ही बनी थी | राम भक्तों पर गोलियां चलवाने वाले स्व.मुलायाम सिंह यादव और लालकृष्ण आडवाणी की राम रथ यात्रा रोककर उनको गिरफ्तार करने वाले लालू प्रसाद यादव की सरकारों को स्व. राजीव गांधी ने टेका लगाने की जो गलती की उसके परिणामस्वरूप उ.प्र और बिहार में कांग्रेस घुटनों के बल आ गयी | यदि उसी समय कांग्रेस को राम नाम की महिमा समझ आ गई होती तो आज उसे ये दुर्दिन न देखने पड़ते | राहुल को चाहिए वे कांग्रेस की  नीतिगत अस्पष्टता को खत्म करने के प्रयास करें | भाजपा से ज्यादा हिन्दू बनने के फेर में वे खुद हंसी का पात्र बनते रहे हैं | 2017 के गुजरात चुनाव के दौरान अचानक उनकी पार्टी के प्रवक्ता ने श्री गांधी की जाति , गोत्र और उनके जनेऊ धारी होने का शिगूफा छोड़ दिया | उसके पहले उ.प्र  चुनाव में उन्होंने कांग्रेस का प्रचार अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी से किया लेकिन वहां पार्टी का सफाया हो गया | गुजरात चुनाव में वे सोमनाथ जा पहुंचे |  उसके बाद शिवभक्त बनाकर मानसरोवर भी गये | लेकिन  तमाम कोशिशों का कोई लाभ न उन्हें मिला न पार्टी को | यहाँ तक कि वे अपनी पुश्तैनी सीट अमेठी में ही  हार गए | भारत जोड़ो यात्रा पर नजर रख रहे अनेक  प्रेक्षक मान रहे हैं कि इससे कांग्रेस की तो नहीं लेकिन श्री गांधी के छवि में कुछ न कुछ सुधार होगा |  लेकिन इसके लिए जरूरी है वे भाजपा द्वारा खींची लकीर को काटने के बजाय उससे बड़ी लकीर खींचे | बीते कुछ सालों में साबित हो गया है कि कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता से कुछ भी लगाव नहीं है | जिन मुस्लिम मतों की खातिर वह उसे ढो रही थी ,उनको पहले मुलायम – लालू , ममता और अब ओवैसी ले भागे | इसी तरह दलित और पिछड़ी जातियां भी उससे छिटक गईं जिसका कारण उसका नीतिगत असमंजस ही है | राममंदिर बनाने का श्रेय भाजपा से छीनने के लिये वह दावा करती है कि उसका शिलान्यास तो स्व.राजीव गांधी के प्रधानमन्त्री और स्व. नारायण दत्त तिवारी के उ.प्र के मुख्यमंत्री रहते हुआ था | लेकिन जब बाबरी ढांचा गिरा तब कांग्रेस के प्रधानमंत्री स्व. पीवी . नरसिम्हाराव ने उसे दोबारा खड़ा करने का वायदा करने की मूर्खता कर डाली | लेकिन न कांग्रेस की सरकारें राम  मंदिर बनवा सकीं  और न ही बाबरी ढांचा दोबारा खड़ा हो सका | हालाँकि  भाजपा की  राजनीति  हिन्दुओं पर टिकी होने पर भी उसे उनके  पूरे  मत नहीं मिलते | बावजूद इसके उसने उ.प्र में सपा और बसपा की जातिगत गोलबंदी को तोडने में जो कामयाबी हासिल की वह कांग्रेस नहीं कर पा रही तो उसके लिए वह खुद दोषी है और पार्टी का अभिभावक रहने के कारण गांधी परिवार को उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिये जिससे वह बचता है | ऐसे में राहुल  कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन उनके मुंह में  राम और हिन्दू जैसे शब्द ठूंसे हुए लगते हैं | अपने आपको शिवभक्त कहने वाले श्री गांधी ने ज्ञानवापी  मुद्दे पर एक शब्द तक नहीं कहा | यही वजह है कि आज न हिन्दू समाज कांग्रेस के साथ बचा और न ही मुस्लिम उस पर पहले जैसा भरोसा कर पा रहे हैं |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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