Friday 23 December 2022

म.प्र में बूढ़े नेताओं के भरोसे कांग्रेस की नैया पार होना मुश्किल



म.प्र विधानसभा में कांग्रेस का  अविश्वास प्रस्ताव  गिरने पर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि शिवराज सिंह चौहान की सरकार के पास सुविधाजनक बहुमत है  | यद्यपि कांग्रेस के अनेक नेता ये कहते रहते हैं कि कुछ  भाजपा विधायक उनके संपर्क में हैं | जवाब में भाजपा ने  कांग्रेस को याद दिलाया कि कुछ साल पहले अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ही उसके उपनेता ने पार्टी छोड़ दी थी  | और  2020 में हुआ दलबदल वह चाहकर भी नहीं भूल पाती जिसकी वजह से उसकी सरकार चली गई | यद्यपि म.प्र में ही राजनीति करने का फैसला करते हुए कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद तो  छोड़ दिया लेकिन प्रदेश कांग्रेस  अध्यक्ष  बने रहकर ये प्रयास कर रहे हैं कि आगामी  चुनाव में वे ही पार्टी के चेहरे बनें | उल्लेखनीय है 2018 में वे प्रदेश अध्यक्ष तो थे लेकिन शिवराज सिंह के मुकाबले कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव संचालक बनाकर उतारा जिससे जनता को   लगा कि पार्टी   सत्ता में आई तो वे  ही मुख्यमंत्री बनेंगे और इसीलिए भाजपा का पूरा प्रचार माफ़ करो महाराज , हमारा नेता शिवराज के नारे पर केंद्रित रहा | दिग्विजय सिंह के कुशासन से त्रस्त जनता उनकी वापसी नहीं चाहती थी और कमलनाथ  दशकों से छिंदवाड़ा के सांसद रहने के बाद भी बाहरी की छवि से नहीं उबर पाए | ऐसे में श्री सिंधिया अच्छा विकल्प थे और इसीलिये जनता ने कांग्रेस को बहुमत के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया | राहुल गांधी और ज्योदिरादित्य की निकटता से उम्मीद और बढ़ी  परन्तु दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने  भांजी मार दी | श्री नाथ की ताजपोशी तो हो गयी किन्तु उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का पद भी अपने पास रखा | यदि वह पद श्री सिंधिया को मिल जाता तो वे संतुष्ट हो भी जाते | लेकिन दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने उन्हें दूर रखने की पक्की व्यूह रचना तैयार कर डाली | दिग्विजय तो समानांतर मुख्यमंत्री के तौर पर  सक्रिय हो उठे | 70 वर्ष से ज्यादा हो चुके इन नेताओं की  मिलीभगत के कारण युवा नेताओं की की बेचैनी बढ़ने लगी | 2019 में गुना लोकसभा सीट से हार जाने के बाद श्री सिंधिया को अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आने लगा | और फिर उन्होंने वही कदम उठाया जो उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया ने 1968 में उठाकर पं. द्वारिका प्रसाद मिश्रा की सरकार गिरवा दी थी | दो दर्जन विधायकों की बगावत से कमलनाथ सरकार का पतन होने से  शिवराज की सत्ता  वापस लौट आई | भाजपा ने भी ज्यादातर बागियों  को मंत्री पद से उपकृत करने के बाद   उपचुनाव रूपी मुकाबला जीतकर  सरकार का बहुमत पक्का कर लिया | हालाँकि एक दो झटके भाजपा को भी लगे लेकिन मजबूत संगठन के बलबूते वह कांग्रेस पर भारी पड़ती रही | इस बीच कांग्रेस में युवा नेताओं की ओर से कमलनाथ पर  एक पद छोड़ने का दबाव पड़ा जिस पर उन्होंने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी त्याग दी किन्तु बजाय किसी युवा के वरिष्ट विधायक गोविन्द सिंह को बिठा दिया | इस प्रकार प्रदेश में कांग्रेस के तीनों बड़े चेहरे 70 वर्ष से ज्यादा आयु वर्ग के हो गये |  युवा नेताओं को ये तिकड़ी रास नहीं आने से भीतर – भीतर असंतोष बढ़ रहा है |  नगर निगम चुनाव में कांग्रेस के कुछ महापौर जीत तो गये किन्तु उसकी वजह  भाजपा की अंतर्कलह रही वरना पार्षदों का बहुमत भाजपा के पास न जाता | अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बीच कमलनाथ का भोपाल से बाहर चला जाना भी चर्चा का विषय रहा | म.प्र विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पहली भी  गिरते रहे हैं परन्तु उस बहाने विपक्ष अपनी जुझारू छवि बनाने में सफल रहा  | लेकिन कमलनाथ की अगुआई में कांग्रेस  शिवराज सरकार को घेरने में पूरी तरह विफल रही | मुख्यमंत्री श्री चौहान ने जिस आत्मविश्वास के साथ विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया उसके बाद कांग्रेस के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था | सही बात ये है कि म.प्र में कांग्रेस बूढ़े नेताओं के भरोसे भाजपा को परास्त करने का  सपना देख रही है  | उसे ध्यान रखना होगा कि 1998 में जब दिग्विजय सिंह का उदय हुआ तब     भाजपा वयोवृद्ध सुन्दरलाल पटवा और कैलाश जोशी के अधीन थी | इसलिये युवा चेहरे के रूप में दिग्विजय सिंह जनता की पसंद बन गये | 10 साल बाद भाजपा ने युवा उमाश्री भारती को उतारकर उनका तिलिस्म तोड़ दिया | हालाँकि नाटकीय घटनाक्रम के बाद वयोवृद्ध बाबूलाल गौर सत्ता में आये किन्तु जल्द ही उस निर्णय को बदलकर भाजपा ने शिवराज सिंह के रूप में युवा पीढ़ी को आगे किया जिसका सुपरिणाम उसे मिला | 2018 में श्री सिंधिया के रूप में कांग्रेस ने सशक्त चुनौती पेश की थी किन्तु कमलनाथ की ताजपोशी ने युवा वर्ग को निराश कर दिया | दूसरी तरफ भाजपा ने विष्णुदत्त शर्मा को संगठन की बागडोर सौंपकर युवा नेतृत्व को  आगे बढ़ाया | इसके बाद भी  कांग्रेस युवाओं  की बजाय कमलनाथ , दिग्विजय सिंह और गोविन्द सिंह के दम पर वैतरणी पार करने की सोच रही है | हालाँकि व्यवस्था विरोधी रुझान से भाजपा को भी जूझना पड़ सकता है किन्तु गुजरात के परिणाम ने उसका हौसला बुलंद कर दिया है |  म.प्र में संगठन मजबूत होने के साथ  ज्योतिरादित्य के  आने से  भी उसकी ताकत पूर्वापेक्षा बढ़ी है | बड़ी बात नहीं चुनाव आते – आते कुछ और कांग्रेसजन पार्टी छोड़ दें क्योंकि  कमलनाथ के प्रति पार्टी की युवा लाबी में बढ़ रहा असंतोष नए विस्फोट का कारण बन सकता है | और कहीं  आम आदमी पार्टी ने गुजरात की तर्ज पर म.प्र में भी हाथ  आजमाया तब कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं | 

रवीन्द्र वाजपेयी 


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