Wednesday 28 December 2022

बेलगाम : समय रहते विवाद न सुलझाने का दुष्परिणाम



किसी विवाद को अक्सर इसलिए टाला जाता है कि फैसला करने पर एक पक्ष नाराज हो जाएगा | लेकिन कालांतर में वह  और जटिल हो जाता है तब उसका हल तलाशना बेहद कठिन होता है | हमारा देश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है | ताजा सन्दर्भ महाराष्ट्र  और कर्नाटक के बीच बेलगावी जिसका प्रचलित नाम बेलगाम है , को लेकर चले आ रहे विवाद का है | 1956 में भाषावार प्रान्तों की रचना के समय बेलगाम नामक मराठी भाषी जिला कर्नाटक में मिला दिया गया था | इसे लेकर शुरू से दोनों के बीच झगड़ा चला आ रहा है | हिंसक आन्दोलन और संघर्ष भी देखने मिले | राजनीतिक स्तर पर विवाद सुलझाने के प्रयास अनेक मर्तबा उस समय भी हुए जब केंद्र के साथ ही दोनों राज्यों  में एक ही दल सता में था और केन्द्रीय नेतृत्व भी  काफी ताकतवर था | लेकिन इच्छाशक्ति और दृढ़ता की कमी के कारण मामला अनसुलझा रह गया | फिलहाल प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है | उसका जो भी फैसला  आएगा वह दोनों राज्यों पर बंधनकारी होगा | लेकिन बीते कुछ दिनॉ से ये विबाद एक बार फिर जमीन पर उतर आया है | इसकी वजह निकट भविष्य में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हैं | उसकी  विधानसभा में एक प्रस्ताव गत सप्ताह पारित किया गया जिसके  अनुसार महाराष्ट्र को बेलगाम की थोड़ी सी भी जमीन नहीं दी जावेगी | जवाब में गत दिवस महाराष्ट्र विधानसभा  और विधानपरिषद ने बेलगाम के साथ ही उन 800 ग्रामों पर अपना हक जताने विषयक प्रस्ताव स्वीकृत कर दिया जहां मराठी भाषी लोगों का बाहुल्य है | गौरतलब है केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय  की प्रतीक्षा करेंगे किन्तु चुनाव करीब होने के कारण कर्नाटक सरकार ने जनता की नाराजगी से बचने विधानसभा में प्रस्ताव पारित करवा लिया | दूसरी तरफ महाराष्ट्र में शिवसेना इस मुद्दे पर राज्य सरकार को घेरने में लग गयी | संयोगवश कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों राज्यों  में भाजपा सत्तासीन है और केन्द्र में भी उसकी सरकार है | 1956 में भाषावार प्रान्तों की रचना करते समय बेलगाम के साथ ही कुछ मराठी भाषी इलाके कर्नाटक में क्यों और कैसे  चले गए ये वाकई विश्लेषण का  विषय है | लेकिन ऐसा और भी राज्यों में हुआ जिनकी सीमा वाले जिलों में मिश्रित आबादी रहती है | उदाहरण के लिए म.प्र के अनेक इलाके ऐसे हैं जहाँ महाराष्ट्र की झलक मिलती है | हालाँकि वे मराठीभाषी नहीं हैं | इसी तरह मालवा और मध्यभारत के अनेक जिलों में क्रमशः गुजरात और राजस्थान का प्रभाव साफ़ झलकता है |  लगभग सात दशक में बेलगाम की  कम से कम दो पीढ़िया तो बदल ही गईं हैं | दरअसल मुद्दा ये बनाया जाता है कि दूसरी भाषा बोलने वालों के साथ अन्याय होता है जो  कुछ हद तक ये सही भी  है किन्तु  इस तरह के विवाद राजनीतिक कारणों से ही उत्पन्न किये जाते हैं जिनका उद्देश्य अपनी रोटी सेकना ही है | देश की राजधानी दिल्ली में सुदूर दक्षिण से नौकरी करने आये लाखों लोग वहीं के होकर रह गए जिन्हें लेकर कोई विवाद सामने नहीं आया | एक समय था जब शिवसेना उत्तर भारतीयों के विरुद्ध बेहद आक्रामक रहती थी | छठ पूजा तक का विरोध किया जाता था | लेकिन अब उसे भी समझ में आ चुका है कि उ.प्र और बिहार से आये लोगों के साथ आत्मीयता कायम करना ही बुद्धिमत्ता है | महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों राज्यों के नेताओं को ये बात समझनी चाहिए कि जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है तब बेकार की रस्साकशी से कुछ  हासिल होने वाला नहीं है | अभी तक इस विवाद में अनेक  लोग हिंसा का शिकार हो चुके हैं वहीं  करोड़ों की संपत्ति नष्ट की जा चुकी है | समय - समय  पर हुए आंदोलनों में काम धंधे बंद रहने से हुआ  नुकसान अलग है | ये सब अनिर्णय की प्रवृत्ति से बंधे रहने का ही  दुष्परिणाम है | अव्वल तो भाषावार प्रान्तों की रचना ही ऐतिहासिक भूल थी जिसने देश को बेकार के विवाद में फंसा दिया | तमिलनाडु में भाषा के नाम पर ही  अलगाववाद को बढ़ावा मिला | हाल ही में पूर्व केन्द्रीय मंत्री और द्रमुक नेता डी . राजा ने यहाँ तक धमकी दे डाली कि हिंदी लादने की कोशिश होने पर तमिलनाडु देश से अलग हो सकता है | आजादी के  75 साल बाद देश जब विश्वशक्ति बनने की राह पर तेजी से कदम बढ़ा रहा हो तब दो राज्यों के बीच भाषा के नाम पर कुछ इलाकों को लेकर शत्रुता का भाव बना रहे इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी ?  बेलगाम को लेकर लड़ रहे दोनों राज्यों में एक ही दल के आधिपत्य वाली सरकार होने के बाद भी इस तरह की बचकानी राजनीति से क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ भले ही सिद्ध हो जाएँ लेकिन देश कमजोर होता है | इसी तरह का विवाद चंडीगढ़ को लेकर है | पंजाब को विभाजित कर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बने तब चंडीगढ़ को दोनों की राजधानी बनाकर केंद्र शासित  बना दिया गया | दशकों बाद भी वे  इसके लिए लड़ने मरने तैयार रहते हैं | जबकि इतने लम्बे समय में वे  चाहते तो चंडीगढ़ से बेहतर राजधानी बना सकते थे |  उल्लेखनीय है आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करते समय ही तय कर लिया गया कि हैदराबाद निश्चित समय तक दोनों की राजधानी रहेगी | आंध्र प्रदेश अमरावती नामक अपनी राजधानी विकसित कर रहा है | बेलगाम को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने तक महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों को संयम रखना चाहिए | दुर्भाग्यवश कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है का नारा केवल दीवारों तक ही सिमटकर रह गया है नेताओं  के दिल पर अंकित नहीं हो सका |

रवीन्द्र वाजपेयी 


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