Wednesday 14 December 2022

जिनपिंग अपने बचाव में भारत पर हमले की रणनीति पर चल रहे



अरुणाचल के तवांग क्षेत्र में चीनी सैनिकों की घुसपैठ को भरतीय सेना ने जिस तरह विफल किया उससे  साबित हो गया कि गलवान घाटी की घटना के बाद सीमा पर हमारी चौकसी काफी अच्छी है | जिस प्रकार की जानकारी अधिकृत रूप से आई  उसके अनुसार चीनी सैनिकों ने पूरी तैयारी के बाद भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की किन्तु बिना देर  लगाये हमारे सैनिकों ने उन्हें न सिर्फ पीछे धकेला अपितु अच्छी – खासी पिटाई भी की | हालांकि कुछ जवानों को चोटें आईं किन्तु इस मुठभेड़ में भी चीनी सैनिक ज्यादा संख्या में घायल हुए | स्मरणीय है गलवान में भी हमले की शुरुआत चीनी सेना की तरफ से हुई थी जिसमें एक भारतीय कर्नल मारे गये किन्तु  हमारे जवानों के पलटवार में चीनी  सेना को जबरदस्त नुकसान हुआ | उस घटना के बाद से लद्दाख से भूटान तक चीन की किसी भी सैन्य कार्रवाई से निपटने के लिए हमारी तैयारियां काफी पुख्ता हुई हैं | थलसेना तो थी ही किन्तु अब अग्रिम मोर्चे पर वायुसेना भी मुस्तैद है | मिसाइलें वगैरह भी लगाई गई हैं | ऐसा नहीं है कि चीन इन सबसे बेखबर हो किन्तु उसकी नीति यही है कि अपने पड़ोसियों को चैन से बैठने न दिया जाए | बीते कुछ समय से वह वन चाइना योजना के अंतर्गत ताइवान पर चढ़ाई  की रिहर्सल करता रहता है | यद्यपि अमेरिका के भय से  वह सीधा हमला करने से बच रहा है और फिर यूक्रेन में रूस के राष्ट्रपति पुतिन जिस तरह उलझ गये हैं उससे भी चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग सतर्क हैं | लेकिन देश के  अंदरूनी हालात उनकी परेशानी का कारण बने हुए हैं | भले ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाल ही में संपन्न सम्मलेन में उन्होंने अपनी सत्ता कायम रखने पर मुहर लगवा ली किन्तु कोरोना का प्रकोप बढ़ते जाने से करोड़ों लोग घरों में कैद  हैं | लॉक डाउन लगाकर  कारखानों में कार्यरत लोगों को घर नहीं आने दिया जा रहा | जरूरी चीजों की आपूर्ति गड़बड़ा चुकी है जिसकी वजह से आम जनता में रोष है | बीते अनेक दशकों में ये पहला अवसर है जब चीन में नाराज लोग सड़कों पर उतरकर सरकार के विरोध में प्रदर्शन और नारेबाजी करने का साहस दिखा रहे हैं  | ये चीन के भीतरी माहौल में बड़े  बदलाव का इशारा है | इसीलिये अब ये कहा जाने लगा है कि वहां सोवियत संघ जैसे बिखराव की शुरुआत होने लगी है | कोरोना के बाद वैश्विक परिदृश्य में हुए बदलाव से चीन के प्रति नफरत में वृद्धि का दुष्प्रभाव उसकी आर्थिक स्थिति पर भी दिखाई दे रहा है | निर्यात और विदेशी निवेश में तो कमी आई ही अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भी अपना कारोबार वहां से समेटना शुरू कर दिया है | इन सबसे परेशान जिनपिंग युद्ध का माहौल बनाकर जनता का ध्यान घरेलू मोर्चे से हटाने की नीति पर चल रहे हैं | उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि ताइवान को हड़पना आसान नहीं होगा | इसीलिये उन्होंने भारत में घुसपैठ की योजना पर काम शुरू कर दिया है | ऐसा करना उसके लिए इसलिए भी आसान है क्योंकि दोनों देशों की सीमा पर शांति के समय भी फ़ौजी तैनाती रहती है | हालाँकि हर मुठभेड़ के बाद दोनों देशों के  सैन्य कमांडरों की  मेल - मुलाकात में  मामला सुलझाकर दोबारा वैसा न होने की प्रतिबद्धता भी दोहराई जाती है किन्तु चीन अपनी आदत से बाज न आते हुए तनाव के हालात पैदा करता रहता है | अरुणाचल की सीमा पर उसकी  हरकतें लगातार जारी रहती हैं | हमारी सीमा से सटे अपने इलाके में गाँव बसाने की उसकी योजना जारी है | यद्यपि दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति कायम है कि गोली नहीं चलाई जावेगी | यही वजह है कि पहले डोकलाम और उसके बाद गलवान में हुई झड़पों के दौरान हाथापाई और डंडों का इस्तेमाल ही हुआ | तवांग की ताजा झड़प में भी कंटीले तार लगे डंडों जैसी चीजें  ही उपयोग की गईं | ज्यादातर मामलों में धक्का - मुक्की और हाथापाई ही देखने मिली है | ये कहना गलत न होगा कि चीन इन हरकतों के जरिये भारतीय सेना की ताकत और मुस्तैदी का परीक्षण करता रहता है | ये संतोष का विषय है कि 1962 में मिली हार के बाद से ही चीन के साथ निपटने की तैयारी लगातार होती रही किन्तु बीते आठ साल में जिस पैमाने पर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के साथ ही सीमावर्ती इलाकों में सडक , पुल , हवाई पट्टी आदि का विकास किया गया उससे सेना के साथ – साथ  सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वालों का आत्मविश्वास भी बढ़ा है | इसका अनुभव गलवान हादसे के समय हुआ जब लद्दाख की जनता किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने तैयार नजर आई | कुछ – कुछ वैसा ही तवांग से आ रही प्रतिक्रिया से भी ज़ाहिर हो रहा है | सरकार और सेना के बीच बेहतर समन्वय बने रहने से किसी भी हमले के समय तेजी से पलटवार करना संभव हो जाता है | तवांग में हमारे जवान जिस तत्परता से सक्रिय हुए और चीनी टुकड़ियों को पीटकर खदेड़ दिया उससे देश का मनोबल बढ़ा है | लेकिन ऐसे मामलों में राजनीति से बचना चाहिए क्योंकि जान हथेली पर रखकर  सीमाओं की सुरक्षा के लिये तैनात फ़ौजी जवान और अधिकारी जब सुनते हैं कि उनकी क्षमता और वीरता पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं तो उनका मन खिन्न हो जाता है | चीन इस घटना के बाद शांत बैठ जाएगा ये मान लेना मूर्खता होगी | हो सकता है उसकी अगली हरकत किसी दूसरे इलाके में देखने मिले क्योंकि  उसके अंदरूनी हालात जैसे – जैसे खराब  होंगे वैसे – वैसे वह भारतीय सीमा पर अशांति पैदा करने की कोशिश करेगा |                                     
रवीन्द्र वाजपेयी 


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