Saturday 24 December 2022

मुफ्त अनाज योजना से होने वाले नुकसान का आकलन भी जरूरी



केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत मुफ्त अनाज योजना 31 दिसम्बर 2023 तक बढ़ा दी है जिससे 81 करोड़ से भी अधिक लोग लाभान्वित होंगे | राशन दुकान से सस्ती दर पर मिलने वाले अनाज की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है और अब पूरा अनाज निःशुल्क प्राप्त होगा | हमारा देश दुनिया में खाद्यान्न पैदा करने वाले प्रमुख देशों में है | वह दौर चला गया जब हमें अनाज आयात करना पड़ता था | उसके ठीक उलट अब भारत खाद्यान्न के निर्यात की स्थिति में आ गया है | कोरोना और उसके बाद यूकेन संकट के दौरान खाद्यान्न उत्पादक क्षमता हमारे बचाव का बड़ा कारण बनी | लेकिन  ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि 140 करोड़ में से 80 मुफ्त अनाज योजना से होने वाले नुकसान का आकलन भी जरूरी

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत मुफ्त अनाज योजना 31 दिसम्बर 2023 तक बढ़ा दी है जिससे 81 करोड़ से भी अधिक लोग लाभान्वित होंगे | राशन दुकान से सस्ती दर पर मिलने वाले अनाज की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है और अब पूरा अनाज निःशुल्क प्राप्त होगा | | हमारा देश दुनिया में खाद्यान्न पैदा करने वाले प्रमुख देशों में है | वह दौर चला गया जब हमें अनाज आयात करना पड़ता था | उसके ठीक उलट अब भारत खाद्यान्न के निर्यात की स्थिति में आ गया है।  कोरोना और उसके बाद यूकेन संकट के दौरान खाद्यान्न उत्पादक क्षमता हमारे बचाव का बड़ा कारण बनी | लेकिन  ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि140 करोड़ में से 80करोड़ लोगों के सामने पेट भरने का संकट है | इसी के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत  व्यवस्था की गयी कि कोई भूखा न सोये | कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना के कारण जब लॉक डाउन लगा और सारे काम धंधे बंद होने से मजदूरों की रोजी – रोटी पर संकट आ गया तब इस  योजना ने देश को अराजकता से  बचा लिया | मोदी सरकार के इस कार्यक्रम को पूरी दुनिया में सराहना मिली | ये बात भी सही है कि कोरोना काल के दौरान  अर्थव्यवस्था को लगे झटके की वजह से कम पूंजी से स्वरोजगार करने वाले तबके की आय पर भी बुरा असर पड़ा और इसीलिये मुफ्त खाद्यान्न योजना ऐसे लोगों के लिए संजीवनी साबित हुई | जहां तक बात  राजनीतिक लाभ की है तो यदि भाजपा उसे भुनाने में सफल हो सकी तो उसका कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में होने वाले भ्रष्टाचार को काफी हद तक रोकना है | जिस तरह जन धन योजना के बैंक खातों की वजह से सब्सिडी प्राप्त करने वालों को बिचौलियों से मुक्त रखने में सफलता मिली ठीक वैसे ही मुफ्त खाद्यान्न योजना को आधार से जोड़ने का लाभ हुआ | हाल ही में लाखों फर्जी राशन कार्ड निरस्त भी किये गए | इस बारे में ये ध्यान देने योग्य है कि वर्ष 2023 में  अनेक प्रान्तों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं | वहीं 2024 में लोकसभा का महासमर होगा | ऐसे में  केंद्र सरकार इस योजना को बंद करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी | ये अनुमान भी लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव तक तो कम से कम इसे जारी रखा ही जाएगा | लेकिन आगे भी किसी  सरकार के लिए इसे बंद करना राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा होगा क्योंकि हमारे देश में चुनाव का माहौल कभी खत्म ही नहीं होता | इसलिए आरक्षण की तरह अब मुफ्त खाद्यान्न योजना भी एक स्थायी व्यवस्था बनने जा रही  है | सरकार के प्राथमिक दायित्वों में है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे | उस दृष्टि से इसके औचित्य से किसी को ऐतराज नहीं होगा |लेकिन दूसरी तरफ देखने वाली बात ये भी है कि घर बैठे खाने को मिल जाने की सुविधा से समाज में कामचोरी में वृद्धि हो रही है | इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों में देखने मिल रहा है | कृषि प्रधान देश होने से भारतीय अर्थव्यवस्था में खेती का बहुत बड़ा योगदान है | कोरोना के दौरान जब पूरे औद्योगिक जगत में लॉक डाउन के कारण मुर्दानगी थी तब भी कृषि क्षेत्र ने शानदार प्रदर्शन से देश का आत्मविश्वास बढ़ाया | रोजगार के मामले में भी खेती की महत्वपूर्ण भूमिका  है | लेकिन बीते कुछ सालों से स्थिति में बड़ा बदलाव आया है | बड़ी संख्या में श्रमिकों , विशेष रूप से युवाओं के शहरों की ओर रुख करने से खेती करने वालों के सामने समस्या उत्पन्न हो रही है | इसके लिए मुफ्त खाद्यान्न योजना को भी जिम्मेदार माना जाने लगा है | जिस तरह से मनरेगा के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में शराबखोरी बढ़ी  उसी तरह मुफ्त खाद्य योजना की वजह से निठल्लेपन की प्रवृत्ति में वृद्धि देखने मिली है | अनेक किसान श्रमिकों की किल्लत के कारण खेती से विमुख होने लगे हैं | ऐसे में  सरकार को व्यवहारिक पहलू की चिंता भी करनी चाहिए | हर हाथ को काम देने की प्रतिबद्धता सभी सरकारें दोहराती आई हैं | लेकिन काम से दूर भागने वाले युवाओं को  काम में लगाना भी सरकार की कार्ययोजना का हिस्सा बनना चहिये | अर्थशास्त्र और समाज शास्त्र के विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि सरकारी नौकरी को रोजगार का पर्याय मानने की अवधारणा बदलनी होगी  क्योंकि सरकारी क्षेत्र अब प्रमुख रोजगार प्रदाता नहीं रहा | निजी क्षेत्र के साथ ही स्वरोजगार के जरिये रोजगार का सृजन बड़े विकल्प के रूप में सामने आया है |  खेती आज भी बेरोजगारी की समस्या को काफी हद तक दूर करने में सक्षम है लेकिन उसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य संस्कृति पैदा करना जरूरी है | सरकार को चाहिए वह इस दिशा में गंभीरता के साथ विचार करे | भूखे लोगों के उदर पोषण  की व्यवस्था किसी भी लोक  कल्याणकारी राज्य में सरकार की जिम्मेदारी है परन्तु उसे ये भी देखना चाहिए कि उसकी सदाशयता समाज में , अजगर करे न चाकरी पंछी करें न काम , दास मलूका कह गए सबके दाता राम , वाली मानसिकता का कारण न बन जाए | प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी विदेशों में निवेशकों को आमंत्रित करते हुए भारत की युवा शक्ति का हवाला जरूर देते हैं | लेकिन बेरोजगारी के सर्वकालीन सर्वोच्च  आंकड़ों के बावजूद यदि कृषि , निर्माण और उद्योगों को  कामगारों की कमी से जूझना पड़ रहा है तब मुफ्त खाद्यान्न योजना जैसे कार्यक्रमों की उपादेयता पर सवाल उठना स्वाभाविक है | राजनीति और अर्थशास्त्र में विरोधाभास के परिणाम हानिकारक होते हैं | 

रवीन्द्र वाजपेयी 


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