Thursday 22 December 2022

कोरोना के खतरे के बीच सांसदों को जश्न की चिंता



संसद का शीतकालीन सत्र  29 दिसम्बर तक चलना तय हुआ था | लेकिन अब ये खबर आ रही है कि 23 तारीख को ही सत्रावसान कर दिया जावेगा | ऐसा न तो विपक्ष के हंगामे की वजह से  किया जाएगा और न ही सरकार के सामने किसी भी प्रकार का संकट ही है | बल्कि सदन में एक दूसरे पर क्रोधित होने  वाले माननीय सांसदों ने एक स्वर से मांग की है कि क्रिसमस और नए साल के मद्देनजर संसद का सत्र इसी सप्ताह खत्म कर दिया जावे | लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में संपन्न कार्य मंत्रणा समिति की  बैठक में सभी दलों के सांसदों ने हफ्ते भर पहले ही शीतकालीन सत्र  की समाप्ति पर सहमति प्रदान कर दी | इस समिति में सभी दलों का प्रतिनिधित्व रहता है | लेकिन अभी  तक ऐसी कोई भी जानकारी नहीं मिली कि किसी भी दल के सदस्य ने  समय से पूर्व सत्रावसान का विरोध किया हो | यदि कोई गंभीर कारण होता तब तो इस  निर्णय का औचित्य  था लेकिन महज इसलिए कि सांसद गण क्रिसमस  और नए साल का जश्न मनांना चाहते हैं  संसद का सत्र जल्दी खत्म कर  दिया जावे , सांसदों द्वारा अपने दायित्व के प्रति लापरवाही बरतना है | जन सेवा की कसमें खाने वाले सम्माननीय  जनप्रतिनिधि ये क्यों भूल रहे हैं कि वे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे नहीं हैं | उनके कन्धों पर 140 करोड़ लोगों के कुशल क्षेम की जिम्मेदारी है | कोरोना के कारण देश के सामने जो समस्याएं आईं उनमें से अनेक का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है | अर्थव्यवस्था भले ही पटरी पर लौट  रही है लेकिन बीते दो वर्ष में हुए नुकसान की भरपाई होना शेष है | वर्ष 2023 – 24 का बजट भी सामने है  दूसरी तरफ कोरोना के पुनरागमन की आशंका से पूरा देश चिंता में डूब गया है | आम जनता के साथ ही उद्योग – व्यापार जगत भी आशंकित हो उठा  है | केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को सतर्कता बरतने संबंधी दिशा निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं | प्रधानमंत्री आज उच्चस्तरीय बैठक ले रहे हैं | इसके अलावा भी अनेक ऐसे विषय हैं जिन पर संसद में विचार – विमर्श होना चाहिए | वैसे भी  सदन का बहुत सा वक्त होहल्ले में व्यर्थ जा चुका है  | यदि सत्र के पूरे समय का सदुपयोग होता तब कम अवधि में भी विषयसूची के सारे काम संपन्न हो जाते  किन्तु अपने देश में कार्य संस्कृति का अभाव सरकारी कार्यालय से संसद तक एक जैसा है | वैसे भी पांच दिन के सप्ताह में संसद में सरकारी  कामकाज और महत्वपूर्ण चर्चा केवल चार दिन हो पाती है क्योंकि शुक्रवार का दिन सांसदों के निजी प्रस्तावों के लिए आरक्षित होता है | इसीलिये अधिकतर सदस्य शुक्रवार को हाजिरी लगाकर अपने निर्वाचन क्षेत्र या अन्यत्र चले जाते हैं | सबसे दुखद पहलू ये है कि लोकतंत्र का मंदिर कहलाने वाली इस संस्था में आस्था रखने वाली जनता जिन पुजारियों को चुनकर भेजती है वे इसकी गरिमा और पवित्रता को बनाये रखने के प्रति बेहद लापरवाह हैं | यही वजह है कि करोड़ों रूपये खर्च होने के बाद भी सदन के समय का समुचित उपयोग नहीं हो पाता | जहाँ तक बात क्रिसमस की है तो सरकारी कार्यालयों में भी इस त्यौहार पर महज एक दिन का अवकाश रहता है | ईसाई धर्मावलम्बी शासकीय कर्मी  एक दो दिन का अतिरिक्त अवकाश ले लेते हैं | शिक्षण संस्थानों में अवश्य ज्यादा अवकाश रहता है और न्यायालय भी लगभग दो सप्ताह बंद रहते हैं | लेकिन संसद की तुलना इन सबसे करना बेमानी है | वर्तमान सत्र को तय अवधि के पूर्व समाप्त करने का अनुरोध सत्तारूढ़ और विपक्षी  दोनों खेमों के सांसदों ने अध्यक्ष से किया | इससे ये स्पष्ट है सदन में एक दूसरे को देखकर बाहें चढ़ाने वाले सांसद सत्र को जल्दी खत्म करने के मामले में एकजुट हैं | इस बारे में गौरतलब  है कि सत्र की अवधि कार्य मंत्रणा समिति से सलाह लेकर तय की जाती है | उसी हिसाब से सरकार और विपक्ष सदन के विचारार्थ रखे जाने वाले विषय कार्यसूची में शामिल करते  हैं | सदन  के व्यवस्थित रूप से संचालन के लिए सत्र से पूर्व अध्यक्ष सर्वदलीय बैठक भी बुलाते हैं जिसमें सभी दल अपनी - अपनी बात रखते हैं | इसके अतिरिक्त सत्र के दौरान संसदीय कार्य मंत्री भी विभिन्न दलों के साथ सम्पर्क और समन्वय बनाए रखते हैं | ऐसे में  ये विचार उठना स्वाभाविक है कि सांसदों को अचानक क्रिसमस और नए साल के जश्न की याद कहाँ से आ गयी ? मजदूरों , किसानों और जवानों से  देश के विकास और सुरक्षा के लिये हमेशा मुस्तैद रहने की उम्मीद करने वाले देश के भाग्य विधाताओं द्वारा क्रिसमस और नए साल के जश्न हेतु संसद का सत्र जल्दी खत्म करने की मांग से उनके दयित्वबोध पर सवाल उठना स्वाभाविक है | शायद इन्हीं सब कारणों से माननीय कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों के प्रति जनता के मन में पहले जैसा सम्मान नजर नहीं आता |   


रवीन्द्र वाजपेयी 
 

 

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