Wednesday 7 December 2022

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत भाजपा के लिए सबक, कांग्रेस की नाउम्मीदी जारी



 
दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम आ गये  हैं | इन पक्तियों के लिखने तक आई खबरों के अनुसार आम आदमी पार्टी  भाजपा से स्थानीय निकाय भी छीनने जा रही  है  | उल्लेखनीय है दिल्ली में तीन नगर निगम थीं जिन्हें मिलाकर एक कर दिया गया | इसके कारण पार्षदों की कुल संख्या 272 से  घटकर 250 पर आ गयी | ऐसा करने के पीछे जो भी सोच रही हो लेकिन ये  मान  लेना गलत न होगा कि तीन निकायों को घटाकर एक करने का फायदा आम आदमी पार्टी को मिल गया  है | हालाँकि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का वह दावा तो हवा – हवाई होता नजर आ रहा है कि उनकी पार्टी 220 सीटें जीतेगी और भाजपा महज 20 पर सिमट जायेगी | इसी तरह एक्जिट पोल के अनुमान भी पूरी तरह सही होते नहीं लग रहे क्योंकि दिल्ली विधानसभा जैसी स्थिति नगर निगम में  बनती नहीं दिख रही |  भाजपा अगर 100 पार्षद भी जीत गई  तब विपक्ष काफी मजबूत होगा जिससे महापौर उस तरह काम नहीं कर सकेंगे जैसा मुख्यमंत्री के रूप में श्री केजरीवाल कर लेते हैं | और फिर ये भी देखने वाली बात है कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली  और पंजाब में विधानसभा चुनाव जिस बड़े बहुमत के साथ जीता संभवतः उसी कारण राजनीतिक प्रेक्षकों को लग रहा होगा कि दिल्ली नगरपालिका में भी  वह प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयेगी | लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि वह अधिकतम 135 का आंकड़ा ही छू सकेगी और उस स्थिति में भाजपा 100 से ऊपर  आ सकती है | बहरहाल  बहुत बड़ा उलटफेर न हुआ तब ये माना  जा सकता है कि 15 साल बाद दिल्ली में स्थानीय निकाय से भाजपा का दबदबा खत्म कर आम आदमी पार्टी ने अपना  परचम लहरा दिया है । यद्यपि जैसा अब तक सामने आया है उसके अनुसार भाजपा ने अपना वोट बैंक बरक़रार रखा है लेकिन उसके लिए चिंता का कारण ये है कि सातों लोकसभा सीटें हाथ में होने के बावजूद वह स्थानीय स्तर के चुनाव में सत्ता खोने जा रही है | इन नतीजों पर वह ये कहकर अपने समर्थकों को बहला सकती है कि 15 साल तक नगर निगम चलाने  के कारण व्यवस्था विरोधी भावना का असर होना स्वाभाविक है लेकिन ये सही सोच नहीं है | भाजपा को स्वीकार करना चाहिए कि दिल्ली की जनता से नगर निगम के जरिये जो सीधा जुडाव उसे बना लेना चाहिए था उसमें वह विफल रही वहीं  दिल्ली विधानसभा जीतकर आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी के जनमानस में अपनी पैठ मजबूत कर ली | ऐसे में भाजपा कुछ भी कहे लेकिन 15 साल के बाद यदि वह नगर निगम पर अपना आधिपत्य गँवा रही है तब उसे आत्मविश्लेषण करना चाहिए | जहाँ तक बात आम आदमी पार्टी की है तो उसे भी  राजधानी की जनता ने एक तरह से झटका दिया है | चुनाव प्रचार के दौरान श्री केजरीवाल द्वारा 220 सीटें जीतने के दावे को मतदाताओं ने पूरा न कर ये संकेत दे दिया कि दिल्ली सरकार के कामों से भी वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं है | निश्चित रूप से मुख्यमंत्री की लोकप्रियता और छवि अन्य स्थानीय नेताओं के मुकाबले बेहतर है लेकिन पहले कार्यकाल की अपेक्षा दूसरा अवसर मिलने पर आम आदमी पार्टी की प्रदेश सरकार उतना अच्छा काम नहीं कर सकी | वरना नगर निगम में भी उसे 200 सीटें मिलनी चाहिए थीं  | भाजपा के हाथ से सत्ता छीन लेने के बाद भी जनता ने उसे विधानसभा की तरह नकारा नहीं है जिससे ये एहसास किया जा सकता है कि वह आम आदमी पार्टी को भी पूरी तरह स्वछन्द होने देना नहीं चाहती | विधानसभा चुनाव की अपेक्षा उसके 10 से 12 फीसदी मत घटना ये  दिखाता है कि सत्ता विरोधी रुझान उसे भी झेलना पड़ा | दोपहर  एक बजे तक के रुझान में आम आदमी पार्टी का स्पष्ट बहुमत तय हो गया है और भाजपा 100 के आसपास सीमित रहेगी | लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस 10 के आसपास सिमट गयी है | जो राष्ट्रीय राजनीति में उसका विकल्प बनने के आम आदमी पार्टी के दावे को मजबूत करता है | दरअसल श्री केजरीवाल  ये जानते हैं कि भाजपा का विकल्प बनना फ़िलहाल संभव नहीं है लेकिन यदि उनकी पार्टी कांग्रेस को पीछे छोड़ देती है तब उसका भविष्य उज्ज्वल होगा और भाजपा विरोधी जनमानस  उनमें सम्भावना तलाशेगा | पंजाब में सफलता के बाद गुजरात में भी पार्टी की रणनीति कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेलने की रही जिसका परिणाम कल के नतीजे से स्पष्ट हो जाएगा | दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए वाकई चिंता पैदा करने वाले हैं क्योंकि लोकसभा और  विधानसभा के बाद स्थानीय निकाय के चुनाव में भी वह जिस तरह औंधे मुंह गिरी उसके बाद भविष्य में उसको उम्मीदवार मिलना  मुश्किल हो जाए तो आश्चर्य नहीं  होगा | सबसे बड़ी बात ये है कि उसने इस चुनाव को जीतने के लिए कुछ किया ही नहीं जिससे लगता है हार  को वह नियति मान बैठी है | आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव से 10 फीसदी मत कम मिलना दर्शाता  है कि सत्ता विरोधी रुझान उसे भी झेलना पडा | दोपहर  एक बजे तक के रुझान में आम आदमी पार्टी का स्पष्ट बहुमत तय हो गया था और भाजपा 100 के आसपास झूल रही थी | लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस 10 के आसपास सिमट गयी है | जो राष्ट्रीय राजनीति में उसका विकल्प बनने के आम आदमी पार्टी के दावे को मजबूत करता है | दरअसल श्री केजरीवाल  ये जानते हैं कि भाजपा का विकल्प बनना फ़िलहाल संभव नहीं है लेकिन यदि उनकी पार्टी कांग्रेस को पीछे छोड़ देती है तब उसका भविष्य उज्ज्वल होगा और भाजपा विरोधी जनमानस  उनमें सम्भावना तलाशेगा | पंजाब में सफलता के बाद गुजरात में भी पार्टी की रणनीति कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेलने की रही जिसका परिणाम कल के नतीजे से स्पष्ट हो जाएगा | दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए वाकई चिंता पैदा करने वाले हैं क्योंकि लोकसभा और  विधानसभा के बाद स्थानीय निकाय के चुनाव में भी वह जिस तरह औंधे मुंह गिरी उसके बाद भविष्य में उसको उम्मीदवार मिलना  मुश्किल हो जाए तो आश्चर्य नहीं  होगा | सबसे बड़ी बात ये है कि उसने इस चुनाव को जीतने के लिए कुछ किया ही नहीं जिससे लगता है हार  को वह नियति मान बैठी है | आम आदमी पार्टी को मिली सफलता भाजपा विरोधी उन मतों पर ही टिकी है जिन पर कांग्रेस का कब्जा था | इस प्रकार दिल्ली के ताजे नतीजे कांग्रेस के लिए निराशाजनक ही  नहीं अपितु अपमानजनक भी है | गुजरात में तो उसकी संभावना वैसे ही नहीं है और यदि हिमाचल में भी वह भाजपा से सत्ता नहीं छीन सकी तब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का बेअसर साबित होना तय है | हालांकि एक स्थानीय निकाय के चुनाव से राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य का आकलन करना जल्दबाजी होगी किन्त्तु आम आदमी पार्टी को सफलता मिलने के बावजूद भाजपा का 15 साल बाद भी अपना जनाधार बनाये रखना मायने रखता है वहीं कांग्रेस के लिए ये एक और झटका है | इसके बाद भी उसे समझ आयेगी ऐसा नहीं लग रहा | वरना प्रधानमंत्री का चेहरा कहे जाने वाले राहुल इन चुनावों से भागकर यात्रा न निकाल रहे होते | आम आदमी पार्टी निश्चित रूप से बधाई की पात्र है | वहीं भाजपा को भी ये नसीहत  दिल्ली की जनता ने दे दी है कि हर चुनाव प्रधानमंत्री के नाम पर नहीं जीता जा सकता और ये भी कि मतदाता लकीर का फ़कीर नहीं है जो हर चुनाव में  अलग तरह से निर्णय करता है | जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसकी बची खुची उम्मीद अब केवल हिमाचल पर टिकी हैं किन्तु उस छोटे से राज्य की राजनीति देश को प्रभावित नहीं करती | 

: रवीन्द्र वाजपेयी 

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