कसभा चुनाव के दो चरण पूरे होते - होते कर्नाटक की राजनीति में बड़ा तूफा़न आ गया। जनता दल (से.) के सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा के पौत्र प्रज्ज्वल रेवन्ना पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगते ही काँग्रेस सहित समूचा विपक्ष आक्रामक हो उठा । प्रज्ज्वल के पिता रेवन्ना भी विधायक हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कुमार स्वामी उनके चाचा हैं। प्रज्ज्वल इस चुनाव में हासन से उम्मीदवार हैं जिन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त है। यौन उत्पीड़न का खुलासा होते ही वे जर्मनी भाग गए। मामले ने जोर पकड़ा तब कुमार स्वामी ने भतीजे को पार्टी से निलम्बित कर दिया। भाजपा ने हालांकि इस मामले से खुद को पूरी तरह पृथक कर लिया है किंतु जनता दल (से.) से गठबंधन होने से छींटे उसके दामन पर भी पड़ रहे हैं। उल्लेखनीय है पार्टी के ही कुछ नेताओं द्वारा प्रज्ज्वल को समर्थन देने का विरोध प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व से किया था। बात श्री देवगौड़ा तक पहुंची तो उन्होंने भाजपा को पोते को जिताने का आश्वासन देकर विरोध शांत करवा दिया। यद्यपि जिन अश्लील वीडियो में प्रज्ज्वल के काले कारनामे हैं वे वर्षों पुराने बताये जाते हैं। पहले जब ये उजागर हुए तब अदालत ने मीडिया को उन्हें जारी करने से रोक दिया था। लेकिन इस बार उनके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करते हुए राज्य सरकार ने विशेष जाँच दल गठित कर दिया है। देवगौड़ा परिवार इसे राजनीतिक षडयंत्र बताने के बावजूद जाँच में सहयोग का आश्वासन देते हुए दोषी पाए जाने पर यथोचित दंड दिये जाने की बात कह रहा है। देश के वर्तमान राजनीतिक वातावरण में इस तरह के दांव - पेच आये दिन देखने -- सुनने मिलते हैं। चूंकि सभी पार्टियां इस तरह के आरोपों से घिरती रहती हैं इसलिए कुछ दिनों की सनसनी के बाद मामला टांय - टांय फुस्स होकर रह जाता है। म.प्र में कई साल से सीडी कांड चर्चा में है। भाजपा और काँग्रेस दोनों एक दूसरे को कठघरे में खड़ा करते रहे। काँग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तो सीडी उनके पास होने का दावा भी किया किंतु सत्ता में रहते हुए वे उस मामले पर पड़ा पर्दा नहीं उठा सके। चूँकि शक के दायरे में कुछ वरिष्ट नौकरशाह भी हैं लिहाजा जांच अंजाम तक शायद ही पहुँच सके। कर्नाटक कांड में काँग्रेस का हमलावर होना स्वाभाविक है । चुनाव के बीच भाजपा और उसके सहयोगी को घेरने का अवसर भला वह हाथ से क्यों जाने देगी? उसकी जगह भाजपा होती तब वह भी यही तेवर दिखाती। रोचक बात ये है कि जिस महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया उसने प्रज्ज्वल और उनके पिता दोनों को घेरा है। ये भी स्मरणीय है 2018 में कुमार स्वामी काँग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। प्रज्ज्वल द्वारा बनाये कुछ कथित वीडियो यदि उस समय के निकले तब काँग्रेस क्या जवाब देगी ये भी बड़ा सवाल है। लेकिन मौजूदा समय में चूंकि जनता दल (से.) भाजपा का सहयोगी है इसलिए आरोपों के तीर उसे भी झेलने पड़ेंगे। भाजपा इस मामले में सीधे तो शामिल नहीं है किंतु उसके अपने नेता द्वारा प्रज्ज्वल की करतूतें उजागर कर दिये जाने के बावजूद उसकी उम्मीदवारी को सहन कर लेना पार्टी के उच्च नेतृत्व की गलती है। उसे श्री देवगौड़ा से दो टूक कहना चाहिए था कि उनके पोते पर जो आरोप हैं उनकी वजह से उसकी छवि पर भी आंच आयेगी । लिहाजा वे हासन सीट से किसी और को लड़ाये। यदि वे ना - नुकूर करते तब बड़ी पार्टी होने के नाते उसे गठबंधन तोड़ने का दबाव बनाना था। लेकिन विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद भाजपा कर्नाटक को लेकर ज्यादा ही भयभीत हो गई और उसने आनन-फ़ानन में जनता दल (से.) से गठबंधन कर लिया जबकि कुमार स्वामी उसे पहले भी धोख़ा दे चुके थे। हालांकि इस तरह के समझौते उसने देश भर में किये जिससे उसके अपने घर में नाराजगी तो है ही पार्टी विथ डिफरेंस के दावे के कारण उसके समर्थक बने वर्ग में भी निराशा है। वर्तमान चुनाव में भाजपा विरोधी विश्लेषक भी मान बैठे हैं कि अंततः आयेंगे तो मोदी ही। ऐसे में पार्टी को चाहिए वह उस छवि को सुरक्षित रखे जिसके दम पर वह शून्य से शिखर तक पहुंची है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करने वाले भी उन पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगा पाते। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी द्वारा चौकीदार चोर है का हल्ला मचाकर श्री मोदी को घेरने का जो अभियान चलाया गया उसे जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। लेकिन उनकी छवि के साथ ही आवश्यक है कि पार्टी का चेहरा और दामन भी साफ हो। प्रज्ज्वल कांड में भाजपा को खुलकर अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए। यदि उसे जनता दल (से.) से गठबंधन तोड़ना भी पड़े तो संकोच न करे क्योंकि पार्टी की छवि दो - चार सीटों के फायदे से ज्यादा कीमती है।
- रवीन्द्र वाजपेयी